पैगाम-2

लेखिका : नेहा वर्मा

“क्या ? गंगा तो एक दम बढ़िया है … कस कर चोदता है, गाण्ड भी बजा देता है और क्या?” मैंने हंस कर कहा।

“नहीं, राम रे एक पैगाम और आया है, दुर्गा प्रसाद का… वो डॉक्टर का दोस्त… गंगा का दोस्त !”

“अरे मरना है क्या, गंगा को पता चल गया तो मार ही डालेगा।”

“अरे गंगा ने ही तो कहलवाया है… फिर तुझे एक और लण्ड का मस्त स्वाद मिल जावेगा।”

“क्या कहलवाया है?”

“यही कि दुर्गा की बीवी बाहर गई है, लहरी से पूछ कर देखना… ये रहे पांच सौ और… !”

“अरे वो … वो दुर्गा … हाँ रे है तो मस्त … तू क्या कहती है भला ?” मेरी आंखों के आगे दुर्गा के बलिष्ठ शरीर की छवि नजर आने लगी।

“चुदा ले … तेरा क्या… एक और सही… अरे ये भोसड़ा है … जितना इसे लौड़े खिलायेगी, उतनी ही चिकनी होती जावेगी।”

“गुलाबी, एक मन की कहूं… ?”

“शरमा मत, दिल की कह डाल… !”

“अगर गंगा और दुर्गा एक साथ… एक आगे और एक पीछे से … हाय कितना मजा आयेगा ना… !”

“हाय रे लहरी, सच कहती हूँ, चुदा ले एक साथ … थारी जिंदगी सफ़ल हो जावेगी।”

गुलाबी भी इस बार वासना में मरी जा रही थी।

“फिर कब … बता ?” मेरे दिल में गुदगुदी सी भर गई।

“अरे कल दिन को ही … साली मस्त लौड़े खा … भचाभच … हाय रे लहरी… मुझे भी साथ ही चुदा ले।”

“देख इस बार हजार लेना… चुदने का क्या है, मेरे साथ तू भी चुद लेना।”

गुलाबी मुझसे लिपट गई। मुझे दुआयें देने लगी।

दूसरे दिन गुलाबी अपने दोनों हीरो को साथ ले आई।

दुर्गा ने गुलाबी के चूतड़ मसलते हुये कहा,”गुलाब्बो ! मां कसम, तुझे भी एक दिन चोदना पड़ेगा, जान !”

“चल हट, बड़ा आया चोदन वास्ते… उधर देख, लहरी ने आंख भी झपका दी ना तो दोनों को बाहर का रस्ता दिखा दूंगी… हां… स्साला !”

“दुर्गा, प्लीज चुप हो जा …!” गंगा ने दुर्गा कोहनी मारते हुये कहा।

मुझे झिझक सी हुई, मैंने गंगा को एक तरफ़ ले जाकर कहा,”गंगा, ये दुर्गा आदमी तो ठीक है ना… कुझे आगे सतायेगा तो नहीं ना?” मैंने अपनी शंका व्यक्त की।

“अरे नहीं रे, घरेलू आदमी है, बस लण्ड की आग बुझाना चाहता है … फिर मैं हूं ना …!”

“फिर ठीक है… दोनों मिल कर मेरा चेकअप कर लो, और इलाज शुरू कर दो।” मैंने वासना भरे लहजे में कहा।

“जी भाभी जी … दुर्गा, तू पीछे से देख, मैं आगे से चक करता हूँ।” गंगा ने गाण्ड मारने का इशारा किया।

दुर्गा मेरे पीछे आ गया और मेरा लहंगा ऊपर उठा दिया,”गंगा, पिच्छू को चिक्कन है रे … मेरा इंजेक्शन तो जोर का लगेगा।”

“और मेरा इंजेक्शन आगे से फ़िट हो जायेगा … है ना भाभी… लो अपनी टांगे ऊंची कर लो।”

“धत्त, पहले अपने कपड़े तो उतारो … अपना अपना हथियार तो दिखाओ।”

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

“ये ले भाभी जान, है ना मस्त लौड़ा… ” दुर्गा ने अपना लण्ड हिलाया। दोनों के गोरे मस्त तकतवर जिस्म थे। मैंने धीरे से अपना पेटीकोट और ब्लाऊज उतार दिया और नंगी हो गई। दोनों मेरा मांसल शरीर देख कर मतवाले से हो गये। वो दोनों मेरे बदन से एक साथ चिपक गये। दुर्गा तो अपना लण्ड मेरे चूतड़ों पर घिसने लगा। मेरे मन में जैसे फ़ुलझड़ियाँ फ़ूटने लगी … दिल में कसक सी भर गई। दोनों का जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ खाकर मुझे वासना की आग में जलाने लगा था।

मैंने अपनी एक टांग उठा कर पास के स्टूल पर रख दी, मेरी गाण्ड और चूत दोनों एक साथ खुल गई। दुर्गा का लण्ड मेरे चूतड़ों के बीच सरकता हुआ छेद तक आ गया। गंगा ने झुक कर अपना लण्ड मेरी चूत में रख कर कर धीरे से अन्दर ठेल दिया। तभी जैसे मेरी गाण्ड के फ़ूल को कुचलता हुआ दुर्गा का लण्ड मेरी गाण्ड में समा गया। आह … दो तरफ़ा मार … कितना सुखद लग रहा था।

दुर्गा ने मेरे भारी स्तन जोर से दबा दिये और मुझसे चिपक गया। गंगा ने मेरे अधर अपने अधरों के बीच धर लिये और चूसने लगा। दोनों के मस्त लण्ड मेरे जिस्म में अन्दर गहराई में उतराने लगे थे। कैसा सुन्दर सा अहसास हो रहा था। लण्ड की मस्त मोटाई महसूस होने लगी थी। मेरी कमर दोनों मर्दों के मध्य पिस गई थी। मेरे मुख से मीठी सिसकारी निकले जा रही थी। गुलाबी मेरे पास में नीचे बैठी हुई बहुत ही ध्यान से ये सब देख रही थी। दोनों के धक्के चालू हो चुके थे, मेरे मुख से सुख भरी चीखें निकल रही थी। दुर्गा का लण्ड ज्यादा मोटा था और लम्बा भी था। ज्यादा अन्दर तक पेल रहा था।

तभी वो स्टूल, जिस पर मेरा पैर रखा हुआ था, जोर के धक्कों के कारण एक तरफ़ गिर गया। तभी दुर्गा ने मेरी कमर पकड़ कर बिस्तर पर लेटा दिया। मुझे अब दुर्गा का लण्ड चाहिये था सो मैं उससे चिपट गई और अपनी एक टांग उसकी कमर में डाल दी, ताकि मेरी गाण्ड भी खुल जाये। गंगा लपक कर मेरी गाण्ड से चिपक गया और कुछ ही देर में फिर से मेरी दो तरफ़ा चुदाई होने लगी थी। दोनों तरफ़ की चुदाई ने मेरे जिस्म में इतना मीठा जहर घोल दिया था कि मेरा जिस्म कांपने लगा … लगा कि मैं अब और नहीं झेल पाऊंगी। मेरे स्तनों को गंगा ऐसे निचोड़ रहा था जैसे कोई गीला कपड़ा हो।

तभी मेरे तन से काम रस निकलने लगा। मैं झड़ने लगी। मैं चिल्ला पड़ी,”अरे छोड़ दो जालिमो … मैं तो गई … बस करो … हाय रे मेरी मां … मेरा तो शरीर ही तोड़ डाला !”

दोनों ने मुझे छोड़ दिया और अपने लण्ड बाहर खींच लिये।

“हटो… मुझे उतरने दो … ” मैं बिस्तर से उतर आई। गंगा सीधा लेटा था, उसका लण्ड भी किसी डण्डे की तरह तना हुआ था। गुलाबी ने मेरी तरफ़ देखा और मैंने उसे आँख मार दी। गुलाबी नंगी तो थी ही… बिस्तर पर धीरे से चढ़ कर गंगा के ऊपर लेट गई।

“अरी गुलाबी … चल आजा … आजा … “

गुलाबी ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कराती हुई उसने अपनी चूत का जोर लगा कर दुर्गा का लण्ड चूत में घुसा लिया और सिसक पड़ी। उसने अपने पांव समेट कर ऊपर कर लिये और अपनी गाण्ड ऊपर उठा थी। उसके दोनों चूतड़ के गोले खिल उठे और मध्य में उसकी गाण्ड का भूरा फ़ूल खिल कर सामने आ गया। दुर्गा ने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में टिकाया और घुसा डाला। गुलाबी ने मस्ती में एक सीत्कार भरी और दुर्गा से चिपक ली।

“देखा गुलाब्बो रानी… चुद गई ना … तू तो मस्त चीज़ निकली रे !” दुर्गा ने अपनी विशिष्ट शैली में उससे कहा।

“मादरचोद, जल जल्दी चोद, मजा आ रिया है … लगा जोर दार … मर्दों वाली चुदाई कर डाल !” गुलाबी तड़प उठी।

“गुलाबी, पहले क्यों नहीं बताया … तुझे तो हम दोनों मस्त चोद देते… !”

“साले कंजूस … 500 रुपिया में चोद्दा मारेगा … हजार से कम नहीं लूं मैं तो… “

“गुलाबी… 1000 रुपिया पक्का … इसका अलग से … गाण्ड मरायेगी तो हजार और दूंगा !” दुर्गा ने बोली लगाई।

“मैं भी गुलाब्बो रानी … आह मस्त राण्ड है रे… “

“ऐ तू होगा रण्डवा … मैं तो अपने पति की रानी हूँ रे… “

दोनों दांत भींच कर उसे चोदने लगे। मैं बड़ी हसरत से उन्हें देखने लगी। कुछ ही देर में एक एक करके दोनों झड़ गये। दोनों ने अपनी जवानी का रस मुझे और गुलाबी को पिलाया। हम दोनों तृप्त हो गई। चुद कर गुलाबी भी खुश थी। उसे दो हजार रुपिये भी तो मिले थे। वो दोनों कपड़े ठीक करके चले गये।

गुलाबी मुझसे लिपट गई। उसकी आँखों में आंसू थे…

“लहरी बाई, इतने रुपिये तो मैंने जिन्दगी में भी कभी एक साथ नहीं देखे थे… तुझे ईश्वर खूब दौलत दे … सुखी रखे”

मैंने उसे प्यार से चूम लिया,”देख गुलाबी, इतना सुख भी मैंने कभी नहीं पाया था … तूने ही तो इन मर्दों से मुझे चुदवाया है … “

“ना जी, वो तो आपकी किस्मत के थे … देखो मैंने भी तो आज दो मर्दों का सुख पाया … “

“अच्छा चल, इतना मत भावना में बह … अभी और भी कोई पैगाम है… “

गुलाबी हंस दी और धीरे से एक पर्ची निकाली और हंस दी …

“वो वरुण सेठ है ना, उसकी बीवी को बच्चा होने वाला है … सो मैंने उससे पांच सौ रुपिया ले लिया है… “

“अरे वाह वो अरबपति वरुण … !!!”

नेहा वर्मा

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category Sex Kahani or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

पैगाम-2

Comments

Scroll To Top