लव प्रेम और वासना- 2

(Love Sex With Love)

लव सेक्स विद लव कहानी में एक अरसे बाद मैं अपनी उस लड़की के घर में उसके बेडरूम में था जिसके साथ निजी पल बिताने के सपने मैं लम्बे समय से देख रहा था.

दोस्तो, मैं संदीप साहू आपको अपनी विवाहिता सहेली खुशी के साथ की सेक्स कहानी सुना रहा था.

कहानी के पहले भाग
हम तेरे आशिक हैं बरसों पुराने
में अब तक आपने पढ़ लिया था कि मेरे बताए गए पते पर खुशी मुझसे मिलने आने वाली थी.

अब आगे लव सेक्स विद लव कहानी:

मुझसे थोड़ी दूर पर ही एक सफेद रंग क्रेटा कार रूकी.
उसमें से लाल लिपिस्टिक काला चश्मा लगाए, स्लीव लेस ग्रे टॉप और ब्लू जींस पहने मेरी खुशी उतर कर मेरे सामने खड़ी हो गई.

मैं खुशी को शादी के बाद पहली बार देख रहा था.
मन तो था कि मैं उसे साड़ी पहने देखूं, पर मेरी ये इच्छा शायद फिर कभी पूरी होगी.

अभी तो मैं उस चांद को देख रहा था, जिसके लिए मैं हमेशा आह भरता हूं.
मेरा मन तो उससे गले लगने का था पर मैं दूर से ही उसे हाय बोलकर रह गया.

सोचा था कि मैं उसे बांहों में कस लूंगा और चुम्बनों की बरसात कर दूंगा.
पर मन का झिझक मुझे रोके रखा.

मैं उस मोहिनी की मोहिनी सूरत पर अटक सा गया.
मेरी तंद्रा खुशी की आवाज से टूटी जब उसने कहा- अब यहीं खड़े रहना है या घर भी चलोगे!

मैंने जल्दी से अपना सामान डिग्गी में रख दिया.

चूंकि गाड़ी खुशी स्वंय चलाते हुई आई थी तो मैं उसकी गाड़ी में ड्राइवर सीट के बगल वाली सीट पर बैठ गया.

सिर्फ हम दोनों उस कार में थे और नासिक तक की दूरी हम लॉन्ग ड्राइव का मजा लेकर तय करने वाले थे.

हम एक दूसरे का हालचाल पूछ रहे थे.
वह ज्यादा बातें कर रही थी और मैं उसका जवाब ही दे पा रहा था.

‘कैसे हो? मुझे याद करते हो या नहीं? और घर पर सब कैसे हैं? सफर कैसा रहा?’
वगैरह-वगैरह.

फिर बहुत सी बातें खुशी की शादी के वक्त की भी हुईं.

‘तुम्हें ये कैसी लगी, वह कैसी लगी?’
‘इसने ये कहा, उसने वो कहा!’

फिर मेरी हरकतों के लिए खुशी ने तंज भी कसे.

इन बातों के बीच मैं खुशी को चोर नजरों से देख रहा था और खुशी ने मेरी चोरी पकड़ ली.
उसने कहा- क्यों कभी लड़की नहीं देखी क्या? या फिर मुझे पहली बार देख रहे हो?

मैंने कहा- तुम्हें पहली बार नहीं देख रहा हूं और मैंने लड़कियां भी बहुत देखी हैं लेकिन और लड़कियों में … और मेरी खुशी में कुछ तो अंतर है!
वह हंस दी.

‘ऐसे भी शादी के बाद तुम और भी निखर गई हो, तुम्हें देखकर आंखें मूंद लूं और इस जमाने को अलविदा कह दूं … ऐसा मन हो रहा है!’

इतना सुनते ही खुशी ने अचानक से ब्रेक पर पैर रख दिया.
उस समय ट्रैफिक थोड़ा कम था.

ब्रेक लगाने के तुरंत बाद ही अपना हाथ मेरे मुँह पर रख दिया और कहा- आइंदा कभी दुनिया छोड़ने की बात की तो मेरा मरा मुँह देखोगे!
इतना सुनते ही मैं भी अधीर हो उठा और मेरी आंखें भर आईं.
मैंने भी उसके मुँह पर अपना हाथ रखते हुए कहा- तुम भी ऐसा कभी मत कहना!

अब हम दोनों के हाथ एक दूसरे के होंठों पर थे.
पता नहीं मेरे मन में क्या आया जो कि मैंने खुशी के हाथों पर जो मेरे होंठों पर ही थे, उन्हें चूम लिया और मेरी उम्मीद के विपरीत खुशी ने भी प्रत्युत्तर में मेरे हाथों को चूम लिया.

दूसरे ही पल शर्माती हुई वह अपनी नजरें फेर कर सामने की ओर देखने लगी.
अगले ही पल वह फिर से कार चलाने लगी.

अब खुशी बहुत कम बातें कर रही थी और मुस्कुराने लगी थी.

उसकी मुस्कुराहट का कारण मैं जानता था क्योंकि वही आग मेरे मन में भी लगी थी.
लेकिन ऐसे समय में अनजान रहने का एक अलग ही मजा है.

अब हम दोनों बातें तो कर रहे थे पर हमारा ध्यान और मन कहीं और जा चुका था.

खुशी बहुत अच्छी कार चलाती है, मैंने बात को पलटने के लिए इसी चीज का जिक्र किया.

पहले मैंने उसकी प्रशंसा की और फिर अपनी ड्राइविंग स्किल की बात कर दी.
साथ ही उसकी थकावट की चिंता करते हुए मैंने खुद ड्राइविंग सीट मांग ली.

खुशी ने मुझे कार की स्टेयरिंग सौंप दी.
तब मेरा मन यह सोचने लगा कि खुशी की स्टेयरिंग मेरे हाथों में कब आएगी.

अब खुशी मेरे बगल में बैठकर मेरी तरह ही मुझे निहारने लगी और मैंने उसकी चोरी पकड़ ली.
वह अपनी चोरी पकड़े जाने से थोड़ी झेंप सी गई.

फिर क्या था … मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- घर तक पहुंचने का सब्र ना हो तो किसी सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दूं क्या?
पर खुशी शहर की लड़की थी.

उसने नहले पर दहला मारते हुए कहा- सब्र तो सच में नहीं है, रोक लो जहां तुम्हारा मन करे. अकेली लड़की साथ में है .. जितना चाहो फायदा उठा लो!
उसकी यह बात मुझे रिझा भी रही थी और चेता भी रही थी.

वह शायद यह जानना चाह रही थी कि मेरे अन्दर का इंसान और मेरा सब्र कैसा है.

मैंने अपना सब्र बनाए रखा और खुशी ने नासिक के पास ही एक अच्छे ढाबे पर गाड़ी रूकवा ली.
दोपहर के खाने का समय हो चला था तो लंच यहीं कर लेना उचित लगा.

खुशी ने मुझसे बिना पूछे ही ढेर सारी अलग अलग चीजें खाने में मंगवा लीं.

मैंने पूछा- इतना सारा क्यों?
खुशी ने कहा- तुम ज्यादा मत सोचो, तुम मेरे पास आए हो तो तुम्हारी खातिरदारी मेरा फर्ज है.

मैंने कहा- मतलब जो खाना बचेगा, उसकी बरबादी का जिम्मेदार मैं ही हूं?
मेरी बात सुनकर उसने दो चीजें कम कराईं और कहा- अब कुछ मत बोलना, नहीं तो मूड खराब हो जाएगा.

हमने अच्छे से खाना खाया.
खाने के बाद हमने आइसक्रीम खाई.

फिर कुछ समय वहीं बैठ कर बातें की.

वहां से निकलते वक्त खुशी ने जिद करके खुद ही पेमेंट किया और अब मैं यही सोच रहा था कि घर पहुंच कर क्या होगा?

मेरे दिमाग को ज्यादा कसरत नहीं करनी पड़ी, थोड़े ही समय में हम खुशी के बड़े फ्लैट पर पहुंच गए.

यह एक बड़ी सोसायटी थी, फ्लैट के गेट पर कार्ड स्वाईप करके हम अन्दर पहुंचे.

अन्दर पहुंचते ही मैंने खुशी को गले से लगाना चाहा तो खुशी ने तुरंत रूकने का इशारा किया.
उसकी कामवाली बाई अन्दर से निकली.

मैं सामान्य जान पहचान वालों की तरह वहां रखे लक्जरी सोफे पर बैठ गया.

पहले उसने हमें पानी पिलाया, फिर खुशी ने बाई से कहा- कमला, गाड़ी की डिग्गी में सामान रखा है. इसे गेस्ट रूम में रख दो.
कमला के जाते ही उसने मुझे बताया कि हमने तीन कार्ड बनवा रखे हैं.

जब कमला सामान लेकर आई तो खुशी ने कहा- कमला सुनो, तुम्हारे देवर की शादी कब है?
कमला ने कहा- दीदी, रस्में तो कल से ही शुरू होने वाली हैं. मैंने तो बताया था ना आपको!

खुशी ने कहा- ठीक है कमला तुम चली जाना, इधर का काम मैं संभाल लूंगी.
कमला ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा और मेरा सामान गेस्ट रूम में रख आई.

वह खाने के लिए पूछने लगी, खुशी ने कहा- खाना मत बनाओ, हम बाहर से खाकर आए हैं.

खुशी ने उसे कुछ पैसे पकड़ाते हुए कहा- ठीक है, अब तुम जा सकती हो.
उसके जाने के बाद मैंने पूछा तो पता चला कि कमला कल से 5-6 दिन की छुट्टी पर थी.

कमला के चले जाने के बाद खुशी मेरे सामने आई और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया.
वह मेरे गले में अपनी बांहों का हार डालते हुए मुझे किस करने लगी.

रोमांस की गाड़ी मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज भाग रही थी.
मैं भी कहां पीछे रहने वाला था … मैंने भी चुम्बनों की बौछार लगा दी और खुशी की पीठ को सहलाने लगा.

जैसे ही मेरे हाथ उसके नितंबों तक पहुंचे, खुशी कांप उठी और उसने थरथराते हुए अल्फाजों में कहा- बस संदीप रूक जाओ! मैंने इसके लिए लंबा इंतजार किया है … और कुछ प्लान भी कर रखा है!

मैं रूक गया और खुशी का चेहरा देखने लगा.
उसका चेहरा वासना से लाल हो उठा था.

उसने आंखें बंद कर रखी थीं और अपने थिरकते लबों से कांपते स्वरों में बोले जा रही थी- आई लव यू संदीप … आई लव यू संदीप … ये तुम भी जानते हो और मैं भी कि इस बार हमारे मिलन में क्या होने वाला है! इसके लिए तुमने भी प्रतीक्षा की है और मैंने भी. बस तुम आज रात तक और रूक जाओ. फिर कर लेना अपने मन का. मैं तुम्हें किसी चीज के लिए नहीं रोकूंगी.

मैंने खुशी की दोनों बाजुओं को पकड़ा एक चुम्बन माथे में करते हुए कहा- तुम रात तक रूकने को कहती हो … मैं तो तुम्हारी मर्जी के बिना तुम्हें जीवन भर ना छूऊं. फिर भी मेरे प्यार में कोई कमी दिख जाए तो कहना!

खुशी ने आंखें खोलीं और मेरी आंखों में देखकर कहा- तुम जीवन भर मुझसे दूर रह सकते हो, पर मैं नहीं.
अब क्या बोलूं और क्या नहीं … कुछ ना सूझा, तो मैंने उसके आंसू पौंछे और बात को घुमाने के लिए कहा- बताओ तो सही क्या प्लान है?

खुशी अब थोड़ी सामान्य होकर लेकिन शर्माती हुई बोली- सब ब्रा का फल मीठा हो ना हो … पर सब्र का फल जरूर मीठा होता है. इसलिए सब्र करो बच्चू.
उसकी बात से हम दोनों ही हंस पड़े.

फिर खुशी ने मुझे फ्रेश होने और आराम करने को कहा.
कुछ देर के लिए मेरी नींद भी लग गई.
उनके गेस्ट रूम में मेरा कब्जा था.

फिर खुशी ने आकर मुझे उठाया, लगभग शाम हो चुकी थी.

उसने मुझे घूमने जाने के लिए रेडी होने को कहा और हम दोनों कार लेकर घूमने निकल पड़े.
उसने कार से ही कुछ जगहें दिखाईं, फिर एक गार्डन में ले जाकर कार रोक दी.

हम दोनों ने एक साथ कॉफी पी.

फिर खुशी ने मुझे वैभव का विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा- संदीप, तुम थोड़ी देर यहां बैठ कर घर आ जाना. मैं पहले जा रही हूँ … मुझे कुछ तैयारियां करनी हैं.

उसने आखिरी लाइन जिस अदा से कही, उससे तो कोई गधा भी इरादा भांप लेता.

फिर क्या होना था, मैं वहां बैठकर बोर हो रहा था.

मैंने वहां से उठकर गार्डन के आस-पास घूमना चाहा … तभी मुझे एक अच्छा सा जेन्ट्स पार्लर नजर आ गया. मैंने टाइमपास के साथ ही चिकने होने का मूड भी बना लिया.

पार्लर में मुझे बहुत समय लगा.
फिर मैंने सीधे खुशी के पास जाना उचित समझा.

मैं पार्लर से निकला ही था कि कुसुम का मैसेज आ गया- तुम पहुंच गए क्या? कहां ठहरे हो?

मैंने उसे अपने आने की सूचना तो दी पर ये झूठ कह दिया- मैं भैया के साथ होटल में ठहरा हूँ. साथ ही लिखा कि जब तुम फ्री हो जाओ, मैसेज कर देना.

अब मैं खुशी के पास पहुंच गया, खुशी ने मेरे पहुंचते ही खाना टेबल पर लगा दिया.

मैंने कहा- इतनी जल्दी खाना … अभी तो आठ ही बज रहे हैं?

खुशी ने कहा- अभी बहुत काम बाकी है. पहले खाना खा लेते हैं, फिर समय नहीं मिलेगा.
उसने ऐसा कहते हुए अपनी आंखें नचा दीं.

इस वक्त खुशी ने व्हाइट शॉर्ट्स और पिंक टी-शर्ट डाल रखी थी.

इन कपड़ों में खुशी के उभार मुझे ललचा रहे थे.
उसके चेहरे पर आज एक अलग तरह की मुस्कान थी.

मिलन का समय ज्यों ज्यों नजदीक आ रहा था, वैसे ही प्रेम की ठंडी हवा से वासना के गर्म झौंके बनते जा रहे थे.

हम खाना खा रहे थे, तभी वैभव का कॉल आ गया.

खुशी ने वैभव से ऐसे बात की, जैसे वह अकेली हो और वैभव के ना होने से दुखी हो.

हालांकि यह उसका बनावटी रूप था लेकिन अपने गृहस्थ जीवन को सुखी रखने के लिए जरूरी कदम था.

कुछ देर बात करके फोन रखते हुए खुशी ने कहा- चलो एक ये काम भी निपट गया.

फिर खाना खत्म होते ही खुशी ने कहा- अब तुम अपने कमरे में जाओ और फ्रेश होकर तैयार रहना … और मेरे कमरे में तभी आना, जब मैं तुम्हें फोन करके बुलाऊं … और हां अच्छे कपड़े पहन कर तैयार होना!

मैं कमरे में गया और कुछ देर आराम करने के बाद गोल्डन कलर की पैंट और व्हाईट शर्ट पहन कर तैयार हो गया … और खुशी के फोन का इंतजार करने लगा.

अब हर मिनट हर लम्हा मुझे भारी पड़ने लगा.
खुशी के साथ मैं रात गुजारने वाला हूँ, यह सोच सोचकर ही मेरी धड़कने तेज हो रही थीं.
ऊपर से खुशी के सप्राईज ने दिमाग हिला दिया था.

काफी देर बाद फोन की घंटी बजी.
खुशी ने कहा- तुम तैयार हो ना?
मैंने कहा- हां कब से!
उसने कहा- अच्छा ठीक है, तुम आ जाओ और ये कहते हुए उसकी तेज सांसों की आहट मुझ तक स्पष्ट आ रही थी.

मैं खुशी के कमरे में पहुंचा, दरवाजे को अन्दर की ओर धकेला.
कमरा गुलाबी रोशनी से नहा रहा था.

और जब मेरी नजर बेड पर पड़ी, तो मैं स्तब्ध रह गया.

पूरा बेड फूलों की लंबी मालाओं से सजा था.
चादर के ऊपर बहुत से छोटे गुलाब बिखरे थे और एक गुलाब दुल्हन बनकर मेरे इंतजार में सजकर बैठी थी.

खुशी हमारे मिलन की रात को सुहागरात की तरह मनाना चाहती है, ये मैंने सोचा भी ना था.

दुल्हन के जोड़े में खुशी मुँह ढक कर बैठी थी.
उसका शृंगार अभी देखना बाकी था.

लेकिन ऐन वक्त पर मेरे दिमाग की बत्ती जली और मैं अपने कमरे की ओर भागने लगा.
खुशी ने आवाज लगाई- क्या हुआ?
तो मैंने कहा- कुछ नहीं … बस दो मिनट में आया.

मैंने अपने बैग में कुसुम के लिए एक साड़ी रखी थी और सोचा था कि खुशी को उसकी पसंद की कोई चीज शॉपिंग करा दूंगा.
पर अभी मुँह दिखाई जरूरी थी इसलिए मैंने तुरंत प्लान बदला और साड़ी उठा कर खुशी की ओर भागा.

खुशी के पास जाकर मैं फूलों की लड़ी हटाते हुए बेड के किनारे पर बैठ गया और लंबी सांसें लेते हुए मैं खुशी को सर से पांव तक और पांव से सर तक निहारना चाहा.
पर मैं ऐसा कर ना सका क्योंकि जब मेरी नजर घूंघट डाले बैठी खुशी के पैरों पर गई तो नजरें वहां से आगे बढ़ ही ना सकीं.

मैं खुशी के पैरों की उंगलियों और उसकी बिछिया से ही बातें करने लगा.
खुशी शर्म और संकोच से उंगलियों को बार बार सिकोड़ रही थी और उसके मन की हलचल को ब्यान कर रही थी.

शायद मैं सारी रात उसकी बिछिया से बात करके ही निकाल देता.
पर खुशी की लहराती आवाज से मुझे होश आया- तुम अभी कहां गए थे?
मैंने कहा- वह..हां.. मैं तो भूल ही रहा था. मैं तुम्हारी मुँह दिखाई लाने गया था.
यह कहते हुए मैंने साड़ी खुशी को पकड़ा दी.

यह खुशी की हैसियत के हिसाब से बहुत मामूली उपहार था.
पर उसने बहुत खुश होकर साड़ी को लिया.

अब मैं उपहार तो दे ही चुका था तो मुझे उसका घूँघट उठाने का लाइसेंस मिल गया था.

उसने हाथ में रखी साड़ी बेड पर एक ओर रख दी और आंखें मूँद कर तेज सांसों के साथ मेरे आगे बढ़ने का इंतजार करने लगी.

मैंने बहुत आहिस्ते से उसका घूँघट हटाना शुरू किया और उस अप्सरा के रूप लावण्य को देख कर मेरे मन का कवि जाग उठा.

उसके कानों की बाली, होंठों की लाली, माथे की बिंदिया, चमकती मांग मोती, आंखों के काजल, पैरों के पायल, उसकी घाघरा चोली, गले का हार और मेंहदी और उसके हर अंग की तारीफ मैं अपने कवि अंदाज में करने लगा.

फिर उसके कोमल होंठों पर अपनी उंगलियां ऐसे फेरीं जैसे मैं किसी पत्ते से शबनम की एक बूंद को उंगलियों पर उठाने का प्रयत्न कर रहा हूँ.

वह शर्मोहया से दोहरी हो रही थी.
मैंने बहुत समय बाद कुछ कहा- खुशी तुम बहुत सुंदर हो.
जवाब कुछ ना आया.

फिर मैंने कहा- तुमसे मिलने के लिए मैं बेताब था!
उसने कहा- मैं भी!

मैंने कहा- ये पल मेरे लिए अनमोल हैं.
खुशी ने इसके जवाब में अपनी बांहें फैला दीं और मैं उससे लिपट गया.
मैं लिपटा भी ऐसे कि कभी कोई जुदा ना कर सके.

हम दोनों लिपटे हुए ही बिस्तर पर ढुलक गए.
अब बारी थी चुम्बनों की … माथे पर, गाल पर, कंधे पर … मैंने कई चुंबन धड़ाधड़ अंकित कर दिए.
यही काम खुशी ने भी किया.

लेकिन चुंबनों का सिलसिला भी तब थम गया जब रसपान की बारी आयी.
जी हां … जब मैंने खुशी के होंठों का रसपान करना शुरू किया तो उसने भी मेरा गजब का साथ दिया.

यह लव सेक्स विद लव का ऐसा दौर था जो हमें वासना की धधकती आग में खींचता ले गया.
हमारे होंठ एक दूसरे से मिले हुए ही थे कि मैंने खुशी के कपड़ों गहनों को हटाने उतारने का प्रयास शुरू कर दिया.

खुशी ने मुझसे पल भर की दूरी बनाई और खुद ही अपने कपड़ों गहनों से आजाद होना शुरू कर दिया.
जल्द ही वह ब्रा और पैंटी में आ गई और उसी पल मैंने भी अपने वस्त्र त्याग दिए.

अब मैं भी सिर्फ सफ़ेद फ्रेंची में था.

फिर जब खुशी पर मेरी नजर गई तो रूप की उस देवी को मैं देखता ही रह गया.
गोरा तराशा हुआ बदन, उस पर कोमलता भी ऐसी कि गुलाब भी सख्त लगे.

अंगों में कामुकता का ज्वर भी ऐसा कि कामदेव को भी पसीना आ जाए … फिर मैं क्या चीज हूं.
मुझे भी पसीना आ गया.

अब माहौल को खुशी ने संभाला, उसने बांहें फैलाईं और मैं उसमें समा गया.

मैं लगातार खुशी की तारीफ करने लगा.
तो खुशी ने मेरे मुँह में अपनी उंगली रखते हुए कहा- अपनी ही चीज की तारीफ करना बुरी बात है, मैं तुम्हारी हूँ … तुम मेरे हो … अब अच्छा बुरा जो भी है, सो है. इस पल को बातों में मत गंवाओ.

मैंने भी हां में सर हिलाया और उसके होंठों से होंठ लगाते हुए उसके नाजुक उभरे नितंब से लेकर उसकी चिकनी कमर और पेट पर हाथ फिराने लगा.

पर जब मेरा हाथ उसके मस्त उभारों पर गया तो खुशी ने अपना हाथ मेरे हाथों पर रख दिया और उभारों को दबाने लगी.

यह इशारा था कि मैं उसके नाजुक अंगों के साथ थोड़ा सख्ती से पेश आऊं.

पर मैंने उभार अब भी नजाकत से दबाए … पर अब खुशी का बदन मेरी सेक्स कला पर नाचने लगा था.

मैंने उसकी ब्रा का हुक भी खोल ही दिया.
आह … उन बेचैन पहाड़ियों का प्राकृतिक सौंदर्य मेरे सामने था.

मेरी नजर उसके छोटे भूरे घेरे वाले बड़े चूचुकों पर पड़ी तो वे ऐसे इतरा रहे थे मानो मुझे आंख दिखा रहे हों.

मैंने एक को जोर से उमेठ दिया … तो खुशी चिहुंक उठी.
वह मेरे हाथों पर चपत लगाती हुई बोली- उखाड़ डालोगे क्या?
मैंने कहा- देखो ना … ये मुझे आंख दिखा रहे हैं!

खुशी ने हँसते हुए कहा- ये भी तो हो सकता है कि आंखों के इशारे से तुम्हें बुला रहे हों!
यह सुनकर मैं मुस्कुरा उठा.

उसके बाद बारी बारी से मैंने उरोज सहित उन दोनों निप्पलों को ऐसा चूसा कि खुशी कामवासना के शिखर तक जा पहुंची.

यह बात मैंने तब जानी, जब मदहोशी में मैंने अपना हाथ उसकी पैंटी में डाल दिया, उसकी मस्त फूली हुई चिकनी चूत पर हाथ फिराया.

वह पहले से ही बहुत गीली थी, शायद वासना का एक सैलाब आकर गुजर चुका था.
पर अभी तो ये महज शुरूआत थी.

मेरी लव सेक्स विद लव कहानी कैसी लग रही है, नीचे दिए गए ई-मेल पते पर कमेंट करके जरूर बताएं.
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लव सेक्स विद लव कहानी का अगला भाग: लव प्रेम और वासना- 3

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