यह आग कब बुझेगी- 1

(Housewife Sex Desire)

यह कहानी हाउस वाइफ सेक्स डिजायर की है एक सम्भ्रान्त परिवार की बहू जिसे अपनी हसरतों को पूरा करने के लिए, अंतर्वासना की एक कहानी से प्रेरणा और उसकी लेखिका सहेली से हिम्मत मिली।

यह कहानी सुनें.

मैं आपकी कामसखी मधु, मैंने आपको अपनी पिछली कहानी
हाउसवाइफ से बनी रंडी
में मेरी सहेली हया की रंडी बन के चुदने की फैंटेसी के बारे में बताया था।

मैं मानती हूं कि कोई भी मर्द या औरत यह नहीं कह सकती कि उन पर किसी भी कहानी का कोई असर नहीं होता और … जब बात कामवासना की हो तो हर व्यक्ति के दिमाग में नई-नई फैंटेसी जन्म लेने लगती है।

जो पति पत्नी एक दूसरे की सहमति से अपनी अपनी फेंटेसी पूरी करना चाहते हैं, वे तो उन फेंटेसी को पूरा करने की हिम्मत कर लेते हैं और सफल भी होते हैं।
जो अकेले ही मजे लेना चाहते हैं, वे अक्सर तनावग्रस्त रहते हैं या बहुधा असफल हो के मन मसोस के रह जाते हैं।

मेरी सहेली हया ने यह भी कहा था कि यदि उसकी कहानी पढ़कर एक भी औरत अपनी दबी हुई हसरतों को पूरा करने की ठान लेगी तो उसका अपनी कहानी छपवाने का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।

क्योंकि हर इंसान के दिल में सैकड़ों हसरतें दफन होती हैं, परिवार और समाज के दबावों के कारण उसे जबरन शरीफ बनना पड़ता है।
कोई भी व्यक्ति खुल के, अपनी इच्छा अनुसार, अपना जीवन नहीं जी पाता।

इनमें भी औरतें अधिक दबाव में जीवन जीती हैं.
जीजा हो, देवर हो या ननदोई हो, ये लोग मजाक ही मजाक में, कई बार सीमा पार कर जाते हैं।

लेकिन … औरत अपनी ओर से कभी भी ऐसा मजाक नहीं कर सकती जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हो।
समाज की खींची हुई अदृश्य लक्ष्मण रेखा को पार करते ही उसे चालू होने का तमगा मिल जाता है।

उस की कहानी से किसी औरत के प्रेरित होने का प्रमाण मुझे तब मिला, जब मुझ से मेरी एक और कामुक सहेली नीलम मिली।
उसने वह हया वाली कहानी पढ़ ली थी और हया के उन्मुक्त जीवन के बारे में जानने को बहुत उत्सुक थी।

मैंने भी, जितना मैं हया के बारे में जानती थी, वह सब अपनी लेखन प्रतिभा का इस्तेमाल करते हुए खूब मिर्च मसाला लगाकर उसे सुना दिया.
या यूं कहो कि उसको अपनी फेंटेसी पूरी करने के लिए जी भर के उकसाया, उस हाउस वाइफ सेक्स डिजायर को बढ़ावा दिया।

वह कहने लगी- यार, जब से मैंने हया वाली कहानी पढ़ी है, तब से मेरे तन बदन में जैसे आग लगी हुई थी. तूने उस आग में अपनी कामुक बातों का घी डालकर उसे और भड़का दिया है। मैं भी चाहती हूं कि मन की कुछ हसरतें तो पूरी कर लूं, वरना बाद में तो तस्वीर पर हार टंगना है और थोड़े समय में लोग भूल भी जाते हैं। किसको पता रहता है कि यह औरत कितनी सती सावित्री थी या इसने कितनों के साथ मजे लूटे थे।

मैं समझ गई कि नीलम जल्दी ही कुछ ना कुछ गुल खिलाएगी! मैं तो यह सोच कर खुश थी कि मुझे एक और रसीली कहानी मिलेगी, जिससे मैं अपने पाठकों को एक बार फिर से कामोन्माद से भर सकूंगी।

कुछ समय बाद जब नीलम मुझे फिर से मिली तो मैंने उससे पूछा- क्यों री, कुछ किया या नहीं?
तो उसने कहा- कुछ तो किया और जम कर किया. और कुछ हो गया और वो भी जमकर हुआ।

मैं चौंक गई, मैंने पूछा- ऐसा क्या करके आई है तू? कमीनी?

इस पर हया की तरह उसने भी मुझे अपनी कहानी सुनाई।
जो एक बार फिर उसी के शब्दों में, आपके तन बदन में काम तरंगें उठाने के लिए पेश है।

मैं, एक 40 वर्षीय आकर्षक औरत हूं, मेरा फिगर 34 32 36 है। मैं और मेरे पति सेक्स को लेकर बहुत ज्यादा खुले विचारों के हैं और हम प्रकृति के इस वरदान ‘सेक्स’ का भरपूर आनंद लेना चाहते हैं।

लेकिन बच्चों की जिम्मेदारियों में उलझे रहने के कारण और कभी यदि मौका मिला भी तो हिम्मत नहीं जुटा पाने से मामला अभी तक तो केवल ख्याली पुलाव तक ही सीमित चल रहा था।

अब मेरे साथ हुआ यों कि जब से मैंने वह हया वाली कहानी पढ़ी, तब से कहीं ना कहीं मेरे मन मस्तिष्क के किसी कोने में किसी गैर मर्द के साथ कुछ न कुछ कर गुजरने का संकल्प पनपने लगा।

मेरी जवानी अभी पूरे उफान पर थी और मेरी चूत की नए लंड से चुदने की प्यास, अन्तर्वासना की कहानियों, पोर्न वीडियो और मेरी सहेली माधुरी की कामुक बातों से और भी गहरी हो चुकी थी।

इसलिए मैं हमेशा ऐसी किसी जुगाड़ में रहने लगी थी कि कहीं कोई गैर मर्द ऐसा मिले जिससे मैं भी हया की तरह पैसे लेकर या मुफ्त में चुदवा के भी मेरी चूत की नए स्वाद की तलब को शांत कर सकूं।

अब यह केवल किस्मत की बात थी कि पहले तो ऐसा कोई व्यक्ति मिले, जिससे मेरा चुदाई का मन करे, साथ में ऐसा अवसर भी मिले कि उस मर्द को पटा कर अपनी इच्छा पूरी की जा सके।

दिन रात मैं इन्हीं ख्यालों में खोई रहती कि कौन सा ऐसा मर्द मुझे मिलेगा, जिससे चुदकर मैं अपनी दबी हुई इच्छाओं को पूरा कर सकूंगी?
कौन होगा जो मेरे जीवन में नई मस्ती, नई सनसनी ले कर आयेगा?

जो भी मर्द मेरे संपर्क में आता, मेरा मन यही कल्पना करने लगता कि इस का लंड कितना लंबा होगा, कितना मोटा होगा, यह किस तरह चोदता होगा, क्या मैं इस मर्द से चुदवा पाऊंगी?
मैं हमेशा इन्हीं काम-कल्पनाओं में घिरी रहने लगी।

लेकिन कहते हैं ना कि यदि पूरे मन से किसी चीज की कामना करो और उसे पाने की कोशिश करो तो ऊपर वाला भी आपकी इच्छा पूरी करने में सहयोग करता है।
ऐसा ही मेरे साथ हुआ।

कुछ महीने पहले की बात है, मैं एक विवाह में, पति एवं अन्य रिश्तेदारों सहित, पुष्करराज गई थी।
वहां हम ब्रह्मा जी के एक प्राचीन मंदिर के दर्शन करने हेतु निकले जो मुख्य द्वार से बहुत दूर था और विचित्र बात यह थी कि वहां पर कोई रिक्शा भी उपलब्ध नहीं था।

हम स्थानीय लोगों से पूछते हुए काफी दूर तक पैदल चलते गए और जैसे-तैसे मंदिर पहुंचे.
सब के सब थक के चूर हो रहे थे।

इतने में मैंने वहां एक सुदर्शन युवक देखा.
मुझे लगा कि यह मेरा शिकार बन सकता है।

मैंने मेरे पति को कहा- मैं बहुत थक गई हूं, लौटते में पैदल बिल्कुल नहीं चल पाऊंगी, मेरी ऐड़ियां दुख रही हैं। कुछ ना कुछ करना पड़ेगा.
तो उन ने कहा- यार यहां कोई ई-रिक्शा या ऑटो भी नहीं है, क्या कर सकते हैं?

इतने में मैंने देखा कि वह युवक अपनी मोटर साइकिल की तरफ बढ़ रहा था।
मैंने कहा- मैं इस लड़के से बात करती हूं, यह मुझे अपनी कार तक जरूर छोड़ देगा।

मेरे पति सुनील को कोई आपत्ति नहीं थी।
मैं उस युवक के पास गई, मैंने कहा- हेलो डियर, क्या तुम मुझे कार स्टैंड तक लिफ्ट दे दोगे?

उसने मेरे को एक नजर देखा.
किसी भी सेक्सी औरत को देखकर मर्द के दिमाग में सबसे पहले यही विचार आता है कि क्या यह पट सकती है?

उसने कहा- जरूर जरूर!
उस एक नजर में ही उसने मेरी फिगर का जायजा भी ले लिया था, जाहिर था कि उसका मन ललचा रहा था और मैं भी मन ही मन खुश थी कि शिकार खुद मेरे चंगुल में आ रहा था।

उसने गाड़ी स्टार्ट की, मैं उसके पीछे, उससे दूर हो के बैठी थी।

वह रास्ता करीब करीब 3-4 किलोमीटर या इससे ज्यादा था।
मैं देख रही थी कि वह बंदा गाड़ी बड़े आराम से चला रहा था जैसे उसे पहुंचने की कोई जल्दी ना हो।

मैंने भी कुछ दूर आगे बढ़ते ही अपने दोनों स्तन उसकी पीठ में गड़ा दिए और अपना एक हाथ उसकी जांघ पर रखकर उससे बातचीत शुरू की।

उससे मैंने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है? तुम कहां रहते हो?
वह बोला- मेरा नाम जितेन्द्र सिंह है, आप मुझे जीतू कह सकती हैं. मैं यहीं रहता हूं, मेरी ज्वैलरी की दुकान है। वैसे मैं पास के ही गांव का रहने वाला हूं और हफ्ते में एक बार घर जाता हूं। आज 3 दिन हुए हैं घर से आए! अब 3 दिन बाद फिर जाऊंगा।

मैंने पूछा- तुम्हारी शादी हो गई?
उसने कहा- हां, हो गई। पत्नी घर पर, परिवार के साथ रहती है, मैं यहां ‘बिल्कुल अकेला’ रहता हूं।

उस ने ‘बिल्कुल अकेला’ शब्द पर जोर दिया था, मैं उसके संकेत को समझ रही थी।
मेरी चूत में गुदगुदी सी हुई, मुझे लगा इसे तो ऊपर वाले ने मेरे लिए ही भेजा है।

बस फिर क्या था, मैंने ठान लिया कि कुछ भी हो जाए, अब तो इस युवक से चुदवाना ही है।
मैंने उसे ललचाने के लिए कामुक अंदाज में पूछा- तुम तो कड़क जवान मर्द हो, यहां पर अकेले रहते हो, तो रात में चैन कैसे पड़ता है? नींद कैसे आती है?

वह भी समझ गया कि मैं खुली बात करके, उसको उकसा रही हूं.
मेरे संकेत से उसके लंड में निश्चित रूप से हलचल हुई होगी।

उसने कहा- जैसे तैसे, मन मार के सो जाता हूं क्योंकि उसके अलावा, और कोई उपाय भी तो नहीं है मेरे पास।

मेरे बूब्स द्वारा उसकी पीठ की निरंतर मालिश जारी थी.
वह भी उसका पूरा आनंद ले रहा था, बीच-बीच में वो जानबूझ के हल्का ब्रेक लगा रहा था जिससे उसको मेरे बोबों के स्पर्श का पूरा पूरा मजा मिल सके।

फिर करीब 10 मिनट बाद हम लोग कार स्टैंड तक पहुंचे, वहां उसने मुझे उतारा और वह बोलने लगा- मैं जाऊं या तुम्हारे परिवार के आने तक रुकूं?
स्पष्ट था वह मेरे साथ समय बिताना चाहता था, उसे जाने की जल्दी नहीं थी।

उसे एक पराई औरत के साथ, काम कल्पना करते हुए, कामुक बातों में मजा आ रहा था और उसकी जींस में 45 डिग्री पर उसका तना हुआ लंड स्पष्ट दिख रहा था।

मैंने लोहा गर्म देखकर एक और चोट की, उससे पूछा- क्यों मिस्टर, यह क्या हो रहा है?
तो उसने भी शर्म लिहाज छोड़ कर कहा- जब तुम्हारे जैसी गर्म औरत मेरे पीछे बैठकर अपने बूब्स को मेरी पीठ में गड़ा के मेरी वासना की आग को भड़काएगी तो इसका तो कर्तव्य बनता है कि यह तुरंत सेवा के लिए तैयार हो जाए। इसलिए अब यह तो सेवा के लिए पूरी तरह तैयार है लेकिन बदले में इसको भी तो ठंडा होने के लिए तुम से कुछ चाहिए।

तो मैंने रिझाने वाले अंदाज में पूछा- इसको ठंडा करने के लिए क्या करना होगा डियर?
उसने कहा- अब तुम जैसी गर्म औरत को यह भी बताना पड़ेगा क्या? मुझे तो लगता है कि तुम इतनी एक्सपर्ट हो कि मर्द की आंखों से, उसके चेहरे के भाव से, उसकी भावनाओं को पढ़ लेती होगी कि एक मर्द को तुम जैसी कामदेवी से क्या चाहिए।

फिर उसने बेझिझक, मुझे दिखाते हुए, अपने लंड को सेट किया और पूछा- तुमने मुझ से तो सब जान लिया, पर अपने बारे में कुछ नहीं बताया, तुम्हारा नाम क्या है? तुम कहां रहती हो?
मैंने कहा- मेरा नाम नीलम है, मैं चित्तौड़ में रहती हूं और अभी एक विवाह में आई हुई हूं।

इस पर उसने कहा- क्या यह हमारी पहली और आखिरी मुलाकात होगी या … हम कुछ समय के लिए कम से कम एक बार और मिल सकते हैं?

उस पर मैंने कहा- मैं भी सोच तो रही हूं कि भगवान ने शायद मुझे तुमसे मिलवाने के लिए ही इतनी दूर मंदिर तक भेजा है. तो क्यों ना हम एक बार मिलकर भगवान की इच्छा का सम्मान करें।

उसके चेहरे पर एक मोहक मुस्कान सी आ गई, उसने कहा- फिर कब मिलेंगे?
मैंने कहा- देखो, मैं विवाह में आई हूं, मेरे पतिदेव, जीजी-जीजाजी, यहां तक कि मेरी ननद-ननदोई भी साथ में हैं। ऐसे में निकलना मुश्किल तो जरूर है लेकिन मैं कोई जुगत लगाती हूं। कल दोपहर में लंच के बाद मैं कोशिश करूंगी कि तुम तक पहुंच सकूं।

उसने मुझसे नंबर मांगा, मैंने नंबर देने से तो मना कर दिया पर यह कहा- तुम रिसोर्ट के बाहर करीब 1:00 से 1:30 के बीच में मेरा इंतजार करना, मैं मौका मिलते ही आ जाऊंगी। उसके बाद हम तुम्हारे कमरे पर चलेंगे और तुम्हारे पास हम दोनों की इच्छा पूरी करने के लिए 2 घंटों का समय होगा।

मैंने कहा- मेरे ख्याल से दो घंटे पर्याप्त है?
उसने कहा- हां, काम चल जायेगा।

फिर मैंने उससे पूछा- तुम्हारे कमरे तक जाने में कोई समस्या तो नहीं होगी?
उसने कहा- नहीं, मेरा कमरा एक तरफ है, वहां कोई नहीं रहता, किसी की नजर नहीं पड़ेगी, तुम निश्चिंत रहो।

उसके बाद हमारी कई तरह की बातें चलती रहीं.
उसने मेरे बारे में बहुत कुछ पूछताछ की, मैंने काफी कुछ झूठ सच करके, सैक्सी गरम मसाला मिलाकर उसकी वासना को जगाए रखा।

मैंने भी उससे उसकी गर्लफ्रेंड और पराई औरतों से, उसके संबंध के बारे में पूछा.

वह खुलते खुलते एकदम खुल गया और उसने बताया- मैंने कम से कम 14-15 औरतों को निपटाया है। उन में दो गर्लफ्रेंड, दो पड़ोस की भाभियां एवं दो प्रोफेशनल थीं। प्रोफेशनल को तो जब मैं जयपुर और दिल्ली किसी काम से गया था, तब वहां उनको चोद कर आया था। बाकी ऐसी औरतें थीं जो गांव में बहुत आसानी से खेतों में काम करती हुई मिल जाती हैं। जो 50-100 नकद या छोटे-मोटे गिफ्ट में अपनी चूत चुदाने के लिए राजी हो जाती हैं। उन्हें बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता कि जैसे वे कुछ गलत कर रही हैं या जो मर्द 100-50 नकद या गिफ्ट के बदले उन्हें चोद रहा है, वह उनका शोषण कर रहा है।

कहते हैं लंड जब तन जाता है मर्द का दिमाग काम करना बंद कर देता है.
जाहिर था कि अब वह नहीं उसका लंड बात कर रहा था।
वह बहुत कामुक हो चुका था और मुझे चोदने को बेताब था।

इतने में हमने देखा कि हमारे परिवार वाले सब लोग हमारे नजदीक आ चुके थे.

वे सब आए तो जीतू ने सबसे नमस्ते करी और मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा- मैंने तो इनको बोला था कि अब आप जाओ। तो भैया बोलने लगे कि नहीं, नहीं मैं आप को अकेला छोड़ कर कैसे जा सकता हूं? जब तक आपके परिवार वाले नहीं आते, मैं आप के साथ ही रहूंगा।

परिवार वाले उसके इस सद्व्यवहार से बहुत खुश हुए। उसको सहयोग हेतु धन्यवाद दिया.
मेरे परिवार वालों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि हमने इस समय का कितना ‘अच्छा सदुपयोग’ किया था।

उसके बाद वह वहां से चला गया।

अब मैं अगले दिन जीतू से मिलने जाने के बारे में सोच रही थी कि मैं इतने रिश्तेदारों के बीच से कैसे निकलूंगी? पति को इस बारे में कुछ बताऊं या नहीं और मेरी झांटें जो अभी जंगल की तरह बढ़ी हुई थी, इन्हें साफ करूं या नहीं? क्योंकि मुझे क्या पता था कि देवभूमि पुष्कर में मुझे नया लंड मिलने वाला है।

इन्हीं सब विचारों में डूबी मैं रिसोर्ट पहुंची और रात में सोते समय मैंने निश्चय किया कि पति को सब कुछ बता कर निकलना ही ठीक रहेगा। जिससे 2 घंटे तक जब मैं नहीं दिखूं तो वे परेशान ना हों और परिवार वालों से मेरे बारे में पूछताछ ना करें, नहीं तो सबको पता चल जाएगा कि मैं 2 घंटे से गायब हूं।

यही सब सोचकर मैंने अपने पति से कहा- यार, गैर मर्द से चुदवाने का एक बढ़िया मौका हाथ लगा है, तुम कहो तो कल उसको भुना लूं?

मेरे पति तो खुद इतने कामुक, इतने रसिया हैं, कुछ-कुछ तो अंदाजा उन्हें भी ब्रह्मा जी के मंदिर में, जीतू के साथ जाने के लिए मेरे उतावलेपन से हो गया था।
उनने खुद आगे होकर बोला- क्यों? उस नवयुवक को पटा लिया क्या तूने? और अब कल उसके लंड से चुदने का मन है तेरा?
मैं झेंप गई.

फिर वे बोले- जा नीलू जा, जी ले अपनी जिंदगी।
मैंने उन्हें एकदम बांहों में खींच लिया- यार वास्तव में तुम एक अद्भुत हसबैंड हो।

मेरे पति को मेरी इस कामुक इच्छा पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ और उनने अपनी सहमति दे दी।

दिक्कत सिर्फ यह थी कि मेरी दीदी और ननद, दोनों बहुत ज्यादा धार्मिक प्रवृत्ति की हैं और किसी भी तरीके से उन दोनों को कोई शंका नहीं होनी चाहिए। उन दोनों की नजर में मेरी भी इमेज बहुत अच्छी है इसलिए मुझे इस बात का विशेष ध्यान रखना था कि बस उन दोनों को पता ना लगे और मैं चुपचाप चुदवा के वापस आ जाऊं। कहीं ऐसा ना हो कि ‘मेरे साथ मेरी इज्जत की भी मां चुद जाए।’

क्योंकि अगर बात खुली तो सबसे पहले परिवार में मेरा जीजा और मेरा ननदोई, वे दोनों ही मुझे निपटाने की सोचेंगे क्योंकि आमतौर पर हर जीजा, अपनी साली को आधी घरवाली मानकर मौका लगे तो चोदना चाहता है।

और ननदोई … वह भी अपने साले की पत्नी को जब भी देखता है तो उसको देखकर यही सोचता है कि काश यह मेरे नीचे आ सके।

जीजा तो बहन के सामने भी और विशेषकर उसकी अनुपस्थिति में अपनी दबी हुई कामनाओं का इजहार जब तब करता ही रहता है।

ननदोई, जीजा जितना चंचल तो नहीं होता लेकिन वह मौका जरूर ढूंढता रहता है, जब वह साले की पत्नी के साथ छेड़छाड़ कर सके।

हंसी मजाक का रिश्ता तो देवर भाभी का भी होता है पर देवर इतनी छूट नहीं ले सकता जितना ननदोई ले लेता है।
क्योंकि कहीं ना कहीं देवर पर यह सामाजिक दबाव बना रहता है, जिसके अनुसार भाभी को मां का दर्जा दिया गया है।

देवर तो भाभी की तरफ से संकेत मिलने पर ही कुछ कहने या करने की हिम्मत करता है जबकि जीजा और ननदोई की आंखों में कोई गौर से देखें तो अक्सर “दमित वासना टपकती हुई दिख जाएगी”।

सुबह जब मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुसी तो मैंने सोचा ‘यार पहली बार किसी गैर मर्द के पास चुदने जा रही हूं, इसलिए चूत को तो भरपूर मजा आना ही चाहिए।’

इस कारण मैंने अपनी चूत को अपनी झांटें साफ़ कर के चमकाया और मेरी चिकनी हो चुकी चूत पर विशेष सुगंधित क्रीम की मालिश करी।
सुगंधित क्रीम की मालिश से और नए लंड से मिलने वाली खुशी की कल्पना से मेरी चूत जैसे दमक उठी।

दिन में हम सबने मिलकर नाश्ता किया उसके बाद कुछ देर नृत्य का कार्यक्रम चला, राजस्थानी ढोल पर सब झूम के नाचे।
मैं तो अतिरिक्त उत्साह से भरी हुई थी, मैंने भी खूब कमर मटकाई।

12:30 पर हमने लंच प्रारंभ किया, मेरा मन खाने में बिल्कुल नहीं लग रहा था; मेरा सारा ध्यान रिसोर्ट के गेट की तरफ था, हर बीत रहे पल के साथ मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

मैं यह भी देख रही थी कि कहीं कोई मेरी ओर देख तो नहीं रहा … उसे यह महसूस तो नहीं हो रहा कि मैं कुछ बेचैन हूं, क्योंकि मुझे भरे पूरे परिवार के बीच में से 2 घंटे के लिए चुदने जाना था।

मैंने पाया कि केवल मेरे पति ही कनखियों से मुझे देख देख के मुस्कुरा रहे थे.
उनके जवाब में मैं भी झेम्पती हुई मुस्कुरा रही थी.

बाकी सब का ध्यान स्वादिष्ट व्यंजनों की तरफ था।
मैं थोड़ी आश्वस्त हुई।

मुझे बार-बार यह लग रहा था कि क्या जीतू आ गया होगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह नहीं आए या निराश हो कर चला जाए।

जैसे तैसे मैंने अपना लंच खत्म किया, अब मुझे जल्दी से वहां से निकलना था।

मैंने कमरे में जाने का बहाना किया और रिसोर्ट के हॉल में से होती हुई, बजाए अपने कमरे में जाने के, मैं बाहर की ओर बढ़ चली।

मैंने विवाह के कार्यक्रम अनुसार, एक शानदार महंगी वाली साड़ी और ज्वेलरी पहनी हुई थी।

जब मैं रिसोर्ट के बाहर पहुंची, उस समय 1:30 बज चुके थे.
मुझे फिर लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि जीतू इंतजार करके निकल गया हो.
पर जब मर्द को नई चूत मिलने वाली हो तो वह घंटों, दिनों, महीनों इंतजार कर सकता है।
वह उसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि कैसे भी नई चूत मिल जाए चोदने को।

मैंने देखा कि जीतू रिसोर्ट के गेट से 10 कदम की दूरी पर बेचैन हालत में खड़ा हुआ था।
मुझे आती देख कर निश्चित रूप से उसके लंड में भी हलचल हुई होगी।

क्योंकि आज उससे चुदने के लिए लकदक गहनों कपड़ों में सजी हुई, संभ्रांत परिवार की एक कामातुर मगर प्रतिष्ठित महिला आ रही थी।
उसे इस बार एक नया अहसास मिल रहा था।
क्योंकि इस से पहले उसने जितनी भी औरतें चोदी थीं, वे या तो सामान्य भाभी, चाची या गर्लफ्रेंड थीं, या गरीब खेत में काम करने वाली औरतें थीं जिनके पास देह के सिवा कुछ भी नहीं था। उन औरतों में कोई भी जीतू को चुदते समय इतनी सजी संवरी नहीं मिली थीं।

खेतों में काम करने वाली जिन मजदूर औरतों का, उसने दैहिक शोषण किया था, वे तो मिट्टी और पसीने में लथपथ, मैले कुचले कपड़ों में उसके नीचे आ गई थीं और उस समय जीतू को केवल ‘तुरंत चोदन के जरिए अपना पानी निकालना था.’

उसके अलावा जिन रंडियों को उसने जयपुर और दिल्ली में रगड़ा था, उनका तो चूंकि धंधा ही चुदवाना है, इसलिए वे तो खुले और कम कपड़े पहनती हैं, बदन को छुपाती कम हैं, दिखाती ज्यादा हैं; बेशर्मी भरा व्यवहार करती हैं।

ऐसे में एक अच्छे प्रतिष्ठित परिवार की बहू, शादी के घर से निकलकर, अनायास ही चुदवाने को आ जाए तो वो मर्द को अलग ही उत्तेजना से भर देती है और यही उस समय जीतू के साथ हो रहा था।

मैं जीतू की मोटरसाइकिल पर बैठी और इस बार एक शरीफ औरत की तरह, पूरे सभ्य तरीके से बैठी।
मेरा बदन बिल्कुल भी उससे स्पर्श नहीं कर रहा था क्योंकि एक तो मेरे कपड़ों के कारण सबका ध्यान मेरी ओर आकर्षित हो रहा था, दूसरे मैं उसकी बेताबी को बढ़ाना चाह रही थी।

उसके कमरे में पहुंचने पर मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क कर मेरे काबू के बाहर होने लगा क्योंकि पहली बार मैं किसी गैर मर्द के साथ उसके कमरे में अकेली मस्ती मारने की मंशा से पहुंची थी।

हाउस वाइफ सेक्स डिजायर की यह कहानी आपको अच्छी लग रही होगी.
अपने मर्यादित विचार मेल अथवा कमेंट्स में लिखें.
माधुरी सिंह ‘मदहोश’
[email protected]

कहानी के अगले अंक
देवभूमि में रासलीला
में पढ़िए कि किस तरह नीलम अपनी स्वनिर्मित बंदिशों से मुक्त होकर अपनी जवानी का भरपूर आनंद लेती है.

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