नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 2
(Antarwasna Sex Stories In Hindi)
इस Antarwasna Sex Stories In Hindi में आप पढ़ेंगे कि मेरे पड़ोस की एक लड़की को संतान का सुख नहीं मिल रहा था. मैंने उनकी रिपोर्ट देखी तो थोड़ी थोड़ी कमी दोनों में थी.
दोस्तो, मैं चाहत आनन्द … आपको एक ऐसी सेक्स कहानी सुना रहा था जिसमें अभी तक नायिका का आगमन नहीं हुआ था.
तब भी मुझे उम्मीद है कि आपको मेरी यह सेक्स कहानी पसंद आ रही होगी.
कहानी के पहले भाग
ओरल सेक्स की चाहत में
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं अपनी बीवी की चुदाई कर रहा था कि तभी मुझे ऐसा लगा कि कोई हमें दरवाजे में बने एक छोटे से छेद से देख रहा है.
अब आगे Antarwasna Sex Stories In Hindi:
अब हम दोनों ने फटाफट कपड़े पहने और मैं जल्दबाजी में बाहर निकला.
मगर वहां कोई नहीं था.
मैंने नजर उठाकर वनिता की खिड़की में भी देखा मगर उसमें भी अन्दर से पर्दा लगा था.
मुझे कहीं कोई नहीं दिखा.
अनिमा ने मुझसे पूछा- क्या हुआ?
मगर मैंने उसे कुछ नहीं बताया.
कुछ भी कहने से वह डर जाती और आगे से ये सबकुछ बंद हो जाता.
इसलिए मैं चुप रहा.
डर के मारे कुछ दिनों तक मैं वहां सेक्स करने से बचता रहा मगर कुछ दिनों के बाद सब कुछ सामान्य हो गया.
एक दिन अनिमा ने फिर से मुझे उस कमरे में खींच लिया.
वह दरवाजे के सामने की दीवार से लग कर घोड़ी बन गई.
पर मैंने इस बार उसे दरवाजे के बगल वाली दीवार से सटा कर खड़ा किया.
वह झुकी हुई नीचे जमीन को देख रही थी और मैं पीछे से अपना लंड उसकी चूत में अन्दर सरकाता हुआ दरवाजे के उसी छेद की ओर देख रहा था.
थोड़ी देर तक जब कोई नहीं आया तब मैंने निश्चिन्त होकर अपना ध्यान चुदाई में लगाया.
मैं जोर लगाकर चोदने लगा.
चूत से फच फच की आवाज निकलने लगी और अनिमा न चाहते हुए भी दबी आवाज में सिसकारी भरने लगी.
मैं उत्तेजना के चरम पर पहुंच ही रहा था कि अचानक दरवाजे के उसी छेद से किसी की झांकती नजर का मुझे आभास हुआ.
पर अब मैं रुक पाने की स्थिति में नहीं था. मैं चोदता रहा और वह नज़र झांकती रही.
जैसे ही मैं स्खलित हुआ, मैंने अपना लंड बाहर निकाला और तभी वह नज़र वहां से हट गई.
हम दोनों सब कुछ समेटकर बारी बारी से बाहर निकले.
वहां कोई नहीं था.
पापा बाहर थे, मां छत पर थीं और बच्चे टीवी देख रहे थे.
वनिता भी बच्चों के साथ ही थी.
मुझे आता देखकर वनिता उठकर अपने कमरे में चली गई.
वनिता मुझे भैया बोलती थी इसलिए अब तक मैंने उसको उसी नज़र से देखा था.
लेकिन पहली बार मैं उसके बारे में अलग नज़रिए से सोचने को मजबूर हुआ.
अगर दरवाजे से झांकती हुई नज़र उसी की थी तो उसने लगभग दो बार झटीली झाड़ियों से बाहर फुंफकारते मेरे काले नाग का दर्शन कर लिया था.
इसलिए बच बच कर ही सही, मैं उसकी हरकतें अब नोटिस करने लगा.
मैंने देखा कि वह पापा की लाइब्रेरी में से कहानियों की किताबें छोड़कर अब मेरी योगा की किताबें पढ़ रही है.
इसलिए अब मैंने अनिमा से वनिता के बारे में जानकारी लेनी चाही.
एक रात बच्चों के सो जाने के बाद हमने सेक्स किया और मैंने अनिमा से पूछा- वनिता को क्या प्रॉब्लम है?
अनिमा ने पहले भी कई बार वनिता के बारे में बताने की कोशिश की थी मगर मैं अनिमा को चूमने चाटने में इतना मशगूल रहता था कि उसकी बात को अनमने भाव से सुनकर टाल दिया करता था.
मगर जब आज मैंने खुद ही रुचि लेकर पूछा तो अनिमा एकदम से बताने लगी.
उसके बताने का अंदाज कुछ ऐसा था मानो वह वनिता के बारे में बताने के लिए भरी पड़ी हो.
उसने सब कुछ विस्तार से बताया और मुझसे कहा कि आप सागर और वनिता की कोई मदद क्यों नहीं करते हैं.
मुझे भी थोड़ी दया आ गई.
मैंने अनिमा को उनकी मदद का वादा किया और हम दोनों सो गए.
मैं वनिता से बात करने से बचता था इसलिए मैंने अगली सुबह सागर को अकेले में बुलाया और उससे पूछा.
मैंने उससे कहा कि कल रात अनिमा ने बताया कि आप दोनों कई सालों से बच्चे के लिए कोशिश कर रहे हैं और बहुत परेशान हैं!
सागर ने सब कुछ झिझक झिझक कर बताया.
तो मैंने उससे कहा- क्या आप मुझे दोनों की मेडिकल रिपोर्ट दिखा सकते हैं?
उसने हां कहा और लाकर रिपोर्ट्स और कई डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन दिखलाए.
तब मैंने देखा कि थोड़ी बहुत दोनों में प्रॉब्लम है और उन्होंने इलाज के लिए बहुत कोशिशें भी की हैं. मगर उनमें कुछ खास सुधार नहीं हुआ.
मैंने अपने योगा ट्रेनर के कैरियर में कई ऐसे दंपति देखे थे जिन्होंने योग के माध्यम से अपनी इस समस्या को ठीक किया था.
तभी मैंने सागर को भी उन लोगों की कहानियां सुनाई और उसको योग सिखाने का वादा भी किया.
इतनी बातचीत के बाद सागर अपने काम पर निकल गया.
मैं अपनी जानेमन के पास पहुंचा और उसे अपने और सागर के बीच हुई बातचीत को विस्तार से बताया.
मैंने अनिमा को विश्वास दिलाया कि जब भी सागर मुझसे कहेगा, मैं उसे योग सिखा दिया करूँगा और इससे उसकी प्रॉब्लम जरूर ही दूर हो जाएगी.
लेकिन कई दिन बीत गए और सागर मेरे पास योग सीखने के मकसद से नहीं आया.
शायद उसको मुझ पर पूरा यकीन नहीं था.
वे दोनों अपनी दुनिया में व्यस्त थे और मैं अपनी.
इसी बीच एक सुबह मैंने देखा कि सागर और वनिता के कमरे से रोने और चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं.
थोड़ी देर में ही सागर गुस्से में घर से बाहर निकल गया.
वनिता अब भी रो रही थी.
मेरी मां ने उसे सहलाया, चुप कराया.
फिर उससे लड़ने का कारण पूछा.
तो वनिता ने बताया कि जिस डॉक्टर से वे अपना इलाज करवा रहे थे, उन्होंने उन्हें आईवीएफ की सलाह दी है और खर्च करीब 5 लाख रुपए बताया है.
सागर के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे आईवीएफ के लिए जा पाते.
इसलिए सागर ने वनिता से कहा कि उसे कोई बच्चा नहीं चाहिए.
जबकि वनिता हर कीमत पर बच्चा चाहती थी.
सारा झगड़ा बस इसी बात का था.
आज हार कर रोते हुए वनिता मेरे पास आई और मुझसे बोली- भैया, आप ही हमारी मदद कीजिए.
मैं डर गया.
वह मुझसे मदद मांग रही थी और वह भी सबके सामने!
न जाने अब ये क्या कहेगी!
उसने मुझसे कहा- आप मुझे योग सिखाइए. आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी.
मैंने उससे कहा- थोड़ी थोड़ी प्रॉब्लम दोनों में है. इसलिए केवल तुम्हारे योग करने से कुछ नहीं होगा. सागर को भी मेरे बताए अनुसार चलना होगा.
मेरी पत्नी अनिमा ने वनिता की पीठ सहलाते हुए कहा- सागर भी योग करेगा.
वनिता अब भी अनिमा से लिपट कर रो रही थी.
मैंने कहा- ठीक है, इस संडे सुबह 6 बजे सागर और तुम दोनों तैयार रहना. मैं हफ्ते में केवल एक दिन ही तुम दोनों को समय दे सकूंगा. संडे को मेरे बताए अनुसार पूरे हफ्ते तुम दोनों को रोजाना एक घंटे योग करना होगा. ऐसा लगातार छह महीने करने पर तुम्हें फायदा जरूर होगा.
वनिता को उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी.
उसने अब रोना बंद कर दिया था.
मगर मैं उलझन से भर गया था.
इसके बाद से मेरा वनिता और सागर को हर रविवार सुबह योग सिखाने का सिलसिला शुरू हो गया.
रोज सात बजे जागने वाली वनिता उस दिन सुबह पांच बजे ही उठ जाती और साढ़े पांच बजे तक मेरे दरवाजे पर दस्तक देने लगती.
अनिमा को भी कोई कोफ्त नहीं होती क्योंकि उसी के कहने पर ये सब हो रहा था.
हां मैं दिखावे के लिए बिस्तर से बाहर निकलने के लिए नानुकुर जरूर करता मगर अनिमा मुझे धकेल कर उठा देती.
तब नवंबर का महीना शुरू हो चुका था; थोड़ी थोड़ी ठंड की शुरुआत हो चुकी थी.
इसलिए कई बार मैं सचमुच नहीं उठना चाहता था.
मगर अनिमा वाकई वनिता का दर्द समझती थी और उसकी मदद करना चाहती थी.
हफ्ते में एक दिन की ट्रेनिंग होने के कारण सागर और वनिता दोनों ही योग के लिए समय पर तैयार हो जाते थे.
ऐसा अगले तीन महीने तक तो ठीक चला.
मगर दिसंबर 2019 से चीन में कोरोना के जिस प्रकोप की शुरुआत हुई, जो मार्च तक आते आते पूरे भारत में फैल गई.
उसे रोकने के लिए भारत सरकार ने 25 मार्च 2020 को पूरे भारत में लॉकडाउन लगा दिया.
सब लोग अपने अपने काम छोड़कर पूरे एक महीने के लिए अपने अपने घरों में कैद हो गए.
अब किसी को घर के लोगों के अलावा न तो किसी से मिलना था और न ही किसी से सामने सामने बात ही करनी थी.
अब मेरे पास समय ही समय था. इसलिए अब वनिता रोज ही योग करवाने की जिद करने लगी.
पिछले चार महीनों में वनिता ने न केवल पूरी निष्ठा से योग किया बल्कि मेरी खरीदी हुई योग की सारी किताबें भी पढ़ डालीं.
उनमें से कई किताबें ऐसी भी थीं जिन्हें मैंने खरीद कर छोड़ दिया था और अब तक पढ़ा ही नहीं था.
इस हिसाब से वनिता योग में अपनी अंतरात्मा से रच-बस गई थी.
उसके साथ इतना कंफर्ट लेवल विकसित हो चुका था कि अब कई बार बिना कुछ बोले भी योग संबंधित मेरे निर्देशों को आसानी से समझ जाती थी.
वहीं सागर शुरुआत में तो योग को लेकर उत्साहित था मगर बीतते वक्त के साथ उसका उत्साह कम होने लगा.
कई दिन ऐसे बीते जब उसने कोई न कोई बहाना बनाकर योग करने से मना कर दिया.
लॉकडाउन के पूरे तीस दिनों में सागर ने शायद ही दस दिन योग किया होगा.
दिन बीतते गए और वनिता की योग और मुझमें निष्ठा बढ़ती गई.
मई होते होते छह महीने बीत चुके थे और मेरे वादे के मुताबिक उन दोनों को अपना अपना मेडिकल टेस्ट करवाना था जिससे योग के कारण उनके शरीर हुए सकारात्मक बदलावों को साबित किया जा सके.
हालांकि इन टेस्ट में भी कम से कम पांच हजार रुपए तो लगने थे और सागर इसमें भी डिस्काउंट पाने के जुगाड़ में था.
इसलिए सागर मेरे पास आकर मुझसे कोई कॉन्टैक्ट निकालने की रिक्वेस्ट करने लगा.
मुझे याद आया कि मेरा एक दोस्त एक लैब में असिस्टेंट की नौकरी करता है.
मैंने उससे पूछा तो उसने दो हजार का डिस्काउंट देना स्वीकार कर लिया.
सागर और वनिता ने अगली सुबह वहीं जाकर अपने सैंपल्स दिए और रिपोर्ट का इंतजार करने लगे.
उसमें भी सागर ने पांच सौ और डिस्काउंट की चाहत में मुझे ही पच्चीस सौ पकड़ाए और रिपोर्ट लाने को भेजा.
जब मैं 2500 रुपए के लिए अपने दोस्त को पटा ही रहा था, तभी मेरे मोबाइल में एक अनजान नंबर से फोन आया.
मैंने फोन उठाया तो दूसरी तरफ एक सहमी सी औरत की आवाज थी.
मैंने पूछा- जी, आप कौन बोल रही हैं?
उधर से आवाज आई- मैं, वनिता.
मेरे दिल की धड़कन थोड़ी तेज हो गई.
तुरंत ही मैंने खुद को सम्हाला और कहा- हां बोलो.
उसने धीरे से कहा- आपकी मां से आपका नंबर लिया है. रिपोर्ट आ गई है क्या?
मैंने कहा- हां, बस अभी मिली है.
उसने कहा- मुझे फोन पर ही बताइए कि क्या रिपोर्ट है?
मैंने उसे होल्ड करने को बोला और अपने दोस्त से रिपोर्ट लेकर ध्यान से देखने लगा.
वनिता की रिपोर्ट बता रही थी कि उसने पिछले छह महीने में कितनी सच्चाई से योग किया था. वह बिल्कुल सही थी और मां बनने की पूरी योग्यता रखती थी.
मुझे अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ और बहुत खुशी से मैंने उसे बताया कि वह बिल्कुल सामान्य हो चुकी है.
मगर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया.
मुझे लगा जैसे वह अपने रिपोर्ट के बारे में निश्चिंत थी और मुझसे कुछ और ही सुनना चाहती थी.
उसने मुझसे सागर की रिपोर्ट के बारे में बताने को कहा.
तब मैंने ध्यान दिया कि उसमें थोड़ा सा ही सुधार हुआ था. मगर इतना उसके बाप बनने के लिए काफ़ी नहीं था.
मैंने उसे बताया कि सागर में कुछ खास सुधार नहीं हुआ है.
वह शायद इसी बात की उम्मीद कर रही थी.
दस सेकंड तक वह चुप रही.
मैं उसके बोलने का इंतजार करता रहा.
कुछ देर बाद मैंने हैलो कहा तो वह बोली.
उसने पूछा- आपको सागर ने कितने पैसे दिए हैं?
मैंने कहा- ढाई हजार.
उसने मुझसे कहा- आप अपने दोस्त से कहकर सागर की रिपोर्ट बदलवा सकते हैं?
मैंने कहा- पता नहीं, वह मानेगा या नहीं. मगर करवाना क्या है?
जब मैंने यह पूछा, तो उसने जवाब देने की बजाय फिर से पूछा कि आपके पास कुछ पैसे हैं?
मैंने कहा- हां हैं.
तब उसने कहना शुरू किया.
वह बोली- जितने पैसे आपके दोस्त मांगते हैं, उनको दे दीजिए. मैं आपको दे दूंगी. मुझ पर भरोसा रखिए.
मैंने कहा- नहीं, पैसे की कोई बात नहीं है. मगर तुम चाहती क्या हो?
उसने कहा- सागर की रिपोर्ट ऐसी बनवाइए, जिससे उसे लगे कि मेरी तरह वह भी एकदम सामान्य हो गया है.
मैंने सोचा कि शायद अपने को वनिता से कमतर पाकर सागर घर में कलह करेगा इसलिए वनिता ऐसा करना चाहती है.
मगर उसके मन में कुछ और ही था, इसका तब मुझे बिल्कुल भी अहसास नहीं हुआ.
मैं जब रिपोर्ट लेकर घर पहुंचा तो चारों ओर खुशियां छा गईं.
अनिमा ने तो अकेले पाकर मुझे गले से लगा लिया और मारे खुशी के मुझे चूमने लगी.
उसे आज अपने पति के योगा ट्रेनर होने पर बहुत ज्यादा गर्व महसूस हो रहा था.
वह कितनी खुश थी कि अब सागर और वनिता मां बाप बन सकेंगे.
मेरी मां भी बहुत खुश थी.
सागर को पहले ही वनिता ने मटन लाने को कह दिया था.
अनिमा ने तो आज रात मुझे बहुत ही स्पेशल गिफ्ट देने का वादा किया.
आज उसने फोरप्ले से लेकर सेक्स तक सब कुछ खुद ही किया.
मुझे मन की मुराद मिल गई थी.
मैं बहुत खुश था.
सब लोग बहुत खुश थे.
मगर एक वनिता ही थी जो सोच में डूबी हुई थी.
उस दिन के बाद से वनिता अनिमा के हाव-भाव, उठने और बैठने के तरीके नोटिस करने लगी और उनकी कॉपी करने लगी.
हालाँकि वह ये काम इतनी सफाई से करती कि मुझे या अनिमा, किसी को भी उस पर शक नहीं हुआ.
मई का महीना अमूमन गर्मी की छुट्टियों का होता है, जिसमें पत्नियां पूरे एक महीने के लिए अपने मायके जाती हैं.
इस बार लॉकडाउन के कारण स्कूल खुले ही नहीं थे मगर इतने दिनों तक घर बंदी के कारण अनिमा ऊब गई थी इसलिए दस बारह मई के आस-पास जैसे ही सरकार के द्वारा लॉकडाउन में थोड़ी ढील दी गई, मेरी अनिमा मायके जाने को तैयार हो गई.
उधर मेरी बहन चहक भी ससुराल से यहां आना चाहती थी.
मैं खुद भी अपनी बहन को बहुत प्यार करता हूँ इसलिए मैं भी बहुत खुश था.
दो दिनों की तैयारी के बाद अनिमा के भाई उसे लेने आ गए और बच्चों के साथ वह अपने मायके चली गई.
मायके जाने से ठीक पहले की रात को उसने मुझ पर प्यार भरे सेक्स की बरसात कर दी.
सब कुछ ठीक चल रहा था कि केवल तीन दिनों के अन्दर हमें खबर मिली कि बहन चहक के बड़े ससुर जी, जिनकी उम्र 72 साल थी, को कोरोना हो गया है और अगले दो दिनों के अन्दर हमें उनकी मौत की खबर मिली.
हम तीनों को चहक के ससुराल जाना पड़ा.
अंतिम क्रिया के बाद माँ चहक के पास ही रुक गईं और मैं और पापा वापस अपने घर आ गए.
मैं उदास और दुखी था इसलिए मैंने पापा को घर भेजा और खुद थोड़ा हल्का होने के लिए दोस्तों के पास चला गया.
दोस्तों ने मुझे हंसाने के लिए काफी हंसी मजाक किया और थोड़ी रम पिला दी.
मैं वैसे केवल होली दीवाली वाला पियक्कड़ हूँ मगर आज घर पर टोकने वाला कोई नहीं था.
मैं जानता था कि पापा भी कहीं न कहीं बैठे अपना गम भुला ही रहे होंगे.
इसलिए मुझे कोई चिंता नहीं थी.
मैं लड़खड़ा तो नहीं रहा था मगर थोड़ी सी खुमारी मुझ पर जरूर छा रही थी.
जब मैं घर पहुंचा तो पापा बाहर ही दोस्तों से गप्प लड़ा रहे थे और किसी भी हालत में एक घंटा से पहले अन्दर आने वाले नहीं थे.
मेरे कमरे में टीवी चल रही थी और बाहर ही मेरी पत्नी अनिमा अपनी नाइटी पहने दरवाजे की ओट लेकर खड़ी टीवी देख रही थी.
मैंने रम की खुमारी में अनिमा को पीछे से पकड़ा और उसके दोनों स्तन सहलाते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा.
उसने आज ब्रा नहीं पहनी हुई थी.
वह स्तब्ध खड़ी रही और उसने कोई भी रिएक्शन नहीं दिया.
आज उसके निप्पल पूरे खड़े और ज्यादा ही नुकीले लग रहे थे.
मेरा लंड खड़ा होकर नाइटी के बाहर से ही अन्दर खाने को महसूस करने लगा.
पहले तो मुझे शक हुआ लेकिन जब मैंने उसके निप्पलों को छोड़कर अपना हाथ नीचे चूत की ओर बढ़ाया तो महसूस हुआ कि उसने पैंटी भी नहीं पहनी हुई थी.
उसे चूमते हुए जब मैंने उसके चेहरे को सामने किया तो मेरी खुमारी एक ही झटके में उतर गई.
वह अनिमा नहीं, वनिता थी.
वह बिना कुछ बोले कमरे से बाहर चली गई.
मैं टेंशन में आ गया.
दोस्तो, इस Antarwasna Sex Stories In Hindi के अगले भाग में आपको एक गैर स्त्री के साथ सेक्स की एक ऐसी दास्तान पढ़ने को मिलेगी, जो अपने आप में अद्भुत है.
मुझे उम्मीद भी है और आपके मेल से मालूम भी चल रहा है कि आपको सेक्स कहानी में मजा आ रहा है.
आपके मेल से मुझे भी प्रोत्साहन मिलता है, अतः मेल और कमेंट्स जरूर करें.
Antarwasna Sex Stories In Hindi का अगला भाग: नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 3
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