मेरी अय्याशियाँ पिंकी के साथ-4
वो अब बिल्कुल शांत सी हो गई थी, मगर जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी नन्ही योनि के साथ खेल रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे की भाव-भंगिमायें भी लगातार बदल रही थी।
जैसा उसका नाम हैं ‘पिंकी’ वो है भी बिल्कुल वैसी, सफेद गोरा रँग जो हाथ लगाने से भी लाल गुलाबी हो जाए, वो अधिकतर कपड़े भी गुलाबी रंग के पहनती जिसके कारण वो पिंक यानि गुलाबी या ये कहें कि किसी ताजे खिले गुलाब की तरह लगती है।
पिंकी का और हमारा घर साथ साथ ही है,घर की छत आपस में मिली हुई है, दोनों छतों के बीच में बस कमर तक ऊँचाई की दीवार है इसलिए हम छत से भी एक दूसरे के घर जा सकते थे और पड़ोसी होने के नाते हमारा व पिंकी के घर काफी आना जाना था, जो अब भी वैसा ही है.
हम दोनों में अब भी नहीं बनती थी, अभी तक हम दोनों एक दूसरे को बचपन के नाम से ही चिढ़ाते रहते थे। हम दोनों में से किसी को भी अगर चिढ़ाने का कोई मौका मिल जाये तो हम बाज नहीं आते थे।
जब भी पिंकी मुझे बोलती तो वो मुझे बहँगा कहकर बुलाती और मैं भी उसे छिपकली कह कर पुकारता था। पिंकी भी मेरे ही समान कक्षा में पढ़ती थी मगर वो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती थी और मैं लड़कों के स्कूल में पढ़ता था।
पिंकी पढ़ने में काफी होशियार थी। हम दोनों में होड़ लगी रहती थी कि परीक्षा में किसके नम्बर अधिक आयें।
पहले तो मैं भी पढ़ने में काफी अच्छा था मगर फिर बाद में तो आपको पता ही है भाभी के साथ सम्बन्ध बनने के बाद मैं पढ़ाई से काफी दूर हो गया था।
वो अब बिल्कुल शांत सी हो गई थी, मगर जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी नन्ही योनि के साथ खेल रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे की भाव-भंगिमायें भी लगातार बदल रही थी।
उसकी चिकनी चुत पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल थे. मैं उसकी चूत पर उंगली से सहला रहा था और वो हल्की गीली हो रही थी.
मैंने अपना सिर उसकी दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया और अपने प्यासे होंठों को उसकी नंगी, केले के तने सी चिकनी, नर्म मुलायम जाँघों पर लगा दिया.
पिंकी का घर हमारे घर के बगल में ही है, हमारे घर की व पिंकी के घर की छत आपस में मिली हुई है, एक दिन मैंने उसे कपड़े बदले देखा तो...