दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-5
कण्ट्रोल तो मुझ से भी नहीं हो रहा था, मैं उठा और उसकी टाँगें चौड़ी करके बीच में बैठ कर जब मैंने मेरे लंड का लाल लाल सुपाड़ा उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे रोका।
मैं अपने दोस्त के यहां चंढ़ीगढ़ में था. उसके ताऊ जी की बेटी यानि कि मेरे दोस्त की भतीजी नई-नई जवान हुई थी. उसके साथ मैंने वहाँ पर जो हसीन पल बिताए उनकी दास्तां इस सेक्सी कहानी में.
कण्ट्रोल तो मुझ से भी नहीं हो रहा था, मैं उठा और उसकी टाँगें चौड़ी करके बीच में बैठ कर जब मैंने मेरे लंड का लाल लाल सुपाड़ा उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे रोका।
अपनी चूत पर मेरे मोटे लंड का एहसास करके मीनाक्षी घबरा रही थी, उसकी घबराहट को दूर करने के लिए मैं मीनाक्षी के ऊपर लेट गया और कभी उसके होंठ तो कभी उसकी चूची को चूसने लगा।
छत पर खुले आसमान के नीचे हम दोनों आपस में प्यार करने में मग्न थे। 'चाचू... वैसे जो हम कर रहे है वो ठीक नहीं है... आप मेरे चाचू है और...' इस से ज्यादा वो कुछ बोल ही नहीं पाई क्यूंकि मैंने अपने होंठो से उसके होंठ बंद कर दिए थे।
मेरे मुँह से ना जाने कैसे निकल गया- अगर मैं तुम्हें किस करना चाहूँ तो...? पहले तो वो चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी और फिर लापरवाह से अंदाज में बोली- कर लेना... किस लेने से क्या होता है..
मुझे चण्डीगढ़ में कुछ काम था तो मैं अपने दोस्त के घर रुका, वहाँ उसकी कमसिन भतीजी को देख मेरी लार टपकने लगी लेकिन दिल से एक आवाज आई 'राज यह तू क्या कर रहा है, वो तेरे दोस्त की भतीजी है।'