चूत जवां जब होती है- 10
कुछ कामिनियाँ ऐसी होती हैं जो चूत लण्ड जैसे शब्द कभी मुंह से नहीं ले सकतीं, कुछ अत्यंत शर्मीली लज्जालु होती हैं वे चुपचाप लेट कर चुदवाना पसन्द करतीं हैं, पूरी नंगी भी नहीं होतीं और अपना कोई सहयोग भी नही देतीं...
‘जब चूत जवां होती है’ जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह कथा किसी भी नई नई ताजा जवान होती हुई, खिलती हुई कली की चूत में उठने वाली कसक, उमंगों तरंगों और उसकी लण्ड लील जाने की लालसा और उत्कंठा को लेकर है।
यूं तो प्रकृति के हिसाब से लड़की के पीरियड्स या मासिकधर्म ग्यारह-बारह साल की उमर में ही शुरू हो जाते हैं और पीरियड्स शुरू होने का अर्थ है कि वो सम्भोग हेतु, गर्भ धारण हेतु तैयार हो गई है।
प्रकृति ने उसकी चूत को कैसा भी मोटा लम्बा लण्ड लील जाने, आत्मसात कर लेने की और चुदाई का भरपूर आनन्द ले लेने के लायक बना दिया है, अधिकृत और स्वतंत्र कर दिया है।
परन्तु सामाजिक मान्यताएं और क़ानून ऐसी कच्ची कली को चोदने की इजाज़त नहीं देता हालांकि प्रकृति ने तो उसे तैयार कर ही दिया है इस काम के लिए!
इन मानव रचित रीति रिवाजों की बेड़ियों में जकड़ी यह जवां चूत या तो विवाह हो जाने तक सालों साल इंतजार करती है और जैसे तैसे, अपने तरीके से अपनी चूत को समझाती बहलाती रहती है, या किन्ही विषम परिस्थितियों में हम अंकल टाइप के लोगों से चुद ही जाती है जैसे ट्यूशन में, पड़ोस के अंकल जी से, पापा के घनिष्ठ मित्र से, शादी ब्याह में अचानक बिना किसी प्लानिंग के या कभी कभी किसी सगे सम्बन्धी के लण्ड से!
ज्यादातर मैंने देखा है कि लड़की जब अपने शहर से बाहर होती है जैसे किसी शादी में या छुट्टियों में मामा के यहाँ तो वहाँ पर वह खुल के खेल जाती है और चुदाई का पहला मौका मिलते ही बिछ जाती है चुदने के लिए!
बहरहाल हर चूत की अपनी अपनी नियति होती है।
अभी कुछ ही दिन पहले की सत्य घटना है जो कि टीवी समाचारों में दो तीन दिन तक छाई रही, आप लोगों ने भी देखा सुना होगा, कि हैदराबाद की एक अल्प-वयस्क लड़की ने स्कूल में एक बच्चे को जन्म दिया यह लड़की वहाँ कक्षा नौ की छात्रा थी. सोचिये यह लड़की उससे कम से कम एक साल पहले से सम्भोग रत रही होगी, उसने कभी किसी से शिकायत भी नहीं की, मतलब वो खुद अपनी मर्जी से यौन रत रही थी।
ऐसे किस्से रोज ही होते हैं सैकड़ों की संख्या में लेकिन सामने नहीं आ पाते!
पहले बाल विवाह हो जाया करते थे और जब लड़की रजस्वला हो जाती थी, रजस्वला होते ही उसका गौना हो जाता था और वो ससुराल चली जाती थी और चुदाई का आनन्द लेती थी, कई कई बच्चे पैदा करने के बाद भी जीवन भर स्वस्थ रहती थी बीमार भी शायद ही कभी होती थी। परन्तु समाज की अपनी मान्यताएँ, विवशताएँ भी हैं।
कानून किसी को भी यूं खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने की इजाजत नहीं दे सकता।
हाँ, हमारे कानून ने वयस्क युवक युवतियों को एक साथ रहने की, live-in-relationship की अनुमति तो दे ही दी है।
बहरहाल जो भी हो, प्रकृति के अपने नियम सिद्धान्त हैं जो मनुष्य के कल्याण के लिए ही बने हैं क्योंकि यह शरीर प्रकृति की ही देन है और उसी के नियमों पर चलना हितकारी होता है।
*****
यह कहानी मेरी पूर्व में प्रकाशित कहानी ‘लण्ड न माने रीत’ की अगली कड़ी है. पहले की कहानी में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे परिस्थितियों से विवश होकर मुझे अपने मित्र की लाडली कमसिन बिटिया आरती की चूत मारनी पड़ी और वो किस प्रकार अपने प्रथम सम्भोग में मुझे अपना कौमार्य समर्पित कर, मेरे लण्ड से अपनी चूत की सील तुड़वा कर रक्त रंजित होकर चरम आनन्द को प्राप्त हुई थी।
फिर आरती ने अपने विवाहोपरांत कामासक्त होकर मुझे बुला भेजा क्योंकि वो मेरी चुदाई को कभी भूल ही नही पाई थी और मुझसे पुनः चुदना चाहती थी।
मैं भी आरती से मिलने को व्याकुल था और उसके बुलावे पर नौकरी से छुट्टी लेकर गाँव आकर, उसके घर जाकर उससे होली के त्यौहार पर मिला। सौभाग्य से आरती के माता पिता को बाहर जाना पड़ा और वे मुझे आरती का ख्याल रखने और उसी के साथ रात दिन रहने का निवेदन कर दो तीन दिन के लिए बाहर चले गए।
फिर हमने रात में जी भर के चुदाई का आनन्द लिया और सुबह सुबह सूर्योदय के साथ ही मैंने उसे पुनः चोदा।
तभी आरती मुझे स्मरण कराती है कि उसकी मुंह बोली साउथ इंडियन ननद जो कि उसके ससुराल में उसकी किरायेदार भी है वो ट्रेन से आने वाली है, जिसका नाम वत्सला है और उसे लेने मुझे शहर जाना है।
आरती मुझे वत्सला के कामुक स्वभाव के बारे में भी बताती है कि कैसे वो आरती और उसके पति को छुप छुप कर चुदाई करते देखती थी फिर वो दोनों लेस्बियन फ्रेंड्स बनी और एक दूसरे की चूत की खुजली को मिटाने लगी, एक दूसरी की चूत को तृप्त करने लगी। पिछली कहानी यहीं तक थी।
और अब मुझे वत्सला को रिसीव करने शहर के रेलवे स्टेशन जाना है, उसे अपने साथ बस में लेकर गाँव आना है।
कुछ कामिनियाँ ऐसी होती हैं जो चूत लण्ड जैसे शब्द कभी मुंह से नहीं ले सकतीं, कुछ अत्यंत शर्मीली लज्जालु होती हैं वे चुपचाप लेट कर चुदवाना पसन्द करतीं हैं, पूरी नंगी भी नहीं होतीं और अपना कोई सहयोग भी नही देतीं...
'और तेज तेज धक्के मारो मुझे… गाली दे के चोदो मुझे… जैसे मेरी मम्मी चुदवाती है पापा से!' वो अपनी कमर उछालते हुए तड़प कर बोली।
'तुम्हारी मम्मी को गाली सुनते हुए चुदवाना पसन्द है... कौन सी गाली देते हैं तुम्हारे पापा?' मैंने धक्के लगाते हुए पूछा।
जब कोई लड़की अपनी चूत अपने हाथों से खोल कर इस तरह से लेटकर चोदने का न्यौता देती है तब यह उसके समर्पण की पराकाष्ठा होती है, अपनी लाज शर्म त्याग कर ही वो ऐसा कर पाती है...
आरती के कहने पर मैंने वत्सला को अपनी बाहों में भर लिया और उसके कुंवारे बदन से खेल कर उसे मज़ा देने लग, उत्तेजित करने लगा। वो बेचैन हो उठी थी।
वत्सला ने डरते डरते अपनी जीभ मेरे लण्ड से छुआ दी, फिर दुबारा थोड़ा और शहद चाट लिया। मैंने भी लण्ड को आगे की तरफ कर दिया और वत्सला रुक रुक कर लण्ड पर अपनी जीभ लगा लगा कर चाटने लगी।
कुछ देर बाद उसने मुंह हटा लिया और उसकी लार से चुपड़ा हुआ मेरा लण्ड लहराने लगा; उसके मुखरस का एक गाढ़ा सा तार अभी भी मेरे लण्ड और उसके होठों के बीच झूल रहा था।
'आ जाओ बड़े पापा... मैं नंगी हो रही हूँ... और अपनी चूत के पट अपने हाथों से खोल के लेटती हूँ आपके स्वागत के लिए...हा हा हा!' आरती हँसते हुए बोली और फोन कट गया।
सुबह आरती मुझे दूसरी चाय देने आई तो मैंने उसे पास बिठाया और उसके जवाँ बदन का मज़ा लेने लगा। तब हम दोनों में वत्सला की चुदाई की बातें हुईं, पढ़ें इस कहानी में !
घर पहुंच कर रात को सोने लगे तो मुझे 'आह… उह…' की आवाजें सुनाई दी, मैं समझ गया कि ननद भाभी में लेस्बियन सेक्स का खेल चल रहा है। मैं उठा और देखने गया।
पिछली कहानी में आपने पढ़ा कि आरती ने मुझे मिलने बुलाया, हमें चुदाई का भरपूर मौक़ा मिला. फिर आरती की मुंहबोली ननद आने वाली थी तो उसे लिवाने मुझे शहर जाना था. वो मुझे मिली!