अज़ीब दास्ताँ है ये…
रवीश सिंह
प्रिय मित्रो, कई दिनों के बाद नई कहानी लिख रहा हूँ, आशा है पसन्द आएगी।
ज़िन्दगी में कई बार कुछ लोगों से अजीब हालातों में मुलाकात होती है लेकिन जीवन भर की दोस्ती हो जाती है।
श्रेया मेरी ऐसी ही दोस्त है।
बात तब की है जब मैं रिया के लिए काम करता था (अधिक जानकारी के लिए अन्तर्वासना पर मेरी पुरानी कहानियाँ पढ़ें)।
श्रेया एक ज्यादा पैसे वाले बाप की इकलौती औलाद है। बिज़नेस के सिलसिले में उसके पिताजी अक्सर विदेश जाते रहते हैं।
ऐसी ही एक यात्रा के समय श्रेया की माँ, छाया को मेरी सेवा की जरूरत पड़ी।
ज्यादातर औरतें होटल में मिलती हैं ताकि घर के नौकरों को भी पता ना चले, लेकिन छाया ने मुझे घर पर ही बुलाया था।
पाँच कमरों वाला समुद्र को निहारता एक आलीशान फ्लैट था।
छाया ने मुझे पूरी रात के लिए बुक किया था। अमूमन, ऐसी स्थिति में दो से तीन चुदाइयाँ तो होती ही हैं।
जब मुझे छाया के रूम में पहुँचाया गया तब वो वोदका पी रही थी और टीवी पर कोई अंग्रेजी फिल्म देख रही थी।
चंद मिनट इधर उधर की बात की और फिर मुझे टी-शर्ट निकाल कर अपने पास बिठा लिया।
45-50 मिनट हम वो फिल्म देखते रहे और वो दारू पीती रही, मैंने सिर्फ एक पेग लिया।
छाया ने मेरी नंगी छाती पे हाथ फेरा और चूमा, फिर अपनी पीठ मेरे बदन के सहारे टिका फिल्म देखने लगी।
जब फिल्म में कोई अंतरंग या चुम्बन सीन आता तो वो भी उत्तेजित हो मुख चुम्बन लेने लगती और मेरा हाथ अपनी योनि स्थल पे छोड़ आती मसलने के लिए।
फिल्म खत्म होने पर बोली- कम, लेटस हैव अ फ़क… (चलो सम्भोग करते हैं)
वो बिस्तर पर जाने को खड़ी हुई लेकिन लड़खड़ा के सोफे पर गिर गई।
हालत देख कर ही पता चल गया कि वो बहुत पी चुकी है।
ठहाका मारते हुए बोली- शायद ज्यादा हो गई है, बिस्तर पे ले जाओगे?
संवाद की भाषा ज्यादातर अंग्रेजी थी लेकिन यहाँ सीधा हिंदी में लिख रहा हूँ।
मैंने उसे बाँहों में उठाया और बिस्तर की तरफ बढ़ा तो एक और आग्रह किया- प्लीज, टॉयलेट में ले चलोगे? सू सू करनी है, उधर बायीं तरफ, प्लीज !
बाथरूम मुंबई की कई खोलियों से बड़ा और शानदार था। नशे में छाया से कपड़े भी नही खोले जा रहे थे।
फिर प्लीज और आग्रह किया तो मैंने उसकी स्कर्ट और पैंटी निकाली और साफ़ चूत के दर्शन किये।
कमोड पर बैठने और मूतने के बाद मैंने उसकी पेंटी उठाई तो फिर बोली- जब चुदाई के लिए निकालनी ही है तो पहनना क्यों?
‘यह टॉप भी निकाल दो।’ कहते हुए दोनों हाथ उठा दिए।
टॉप निकाला तो उसका नंगा बदन देख एक ही विचार आया पैसा हो तो अधेड़ उम्र की महिला भी पटाखा लगती है।
उसी अवस्था में उसे उठा कर बाहर लाया और बिस्तर पे पटका।
अपने कपड़े खोले और मैं छाया के ऊपर चढ़ गया।
छाया का चिकना बदन उसकी उम्र से कहीं ज्यादा मस्त था।
मैंने उसके मम्मे चूसना चालू किया तो वो दोनों हाथ मेरी पीठ और हिप्स पर फिरा रही थी।
मेरे बाल पकड़ मुँह से मुँह लगाया और चूमने लगी।
छाया बिल्कुल उस अंग्रेजी फिल्म की हीरोइन की तरह चूम रही थी जो हमने कुछ देर पहले देखी थी।
मैं छाया की जांघों के बीच वज्रासन में बैठ अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा तो वो बहुत उत्तेजित हो गई।
मुझे अपनी ओर खींच कर लंड चूत में डालने का आग्रह किया तो मैंने लंड को चूत में घुसा दिया पूरा का पूरा।
मेरा लंड छाया की चूत में अंदर बाहर हो रहा था और छाया अंग्रेजी की गालियाँ देकर उत्तेजित कर रही थी।
नशे में भी चुदक्कड़ औरत मज़े ले कर चुदवा रही थी।
20 मिनट बाद छाया स्खलित हो गई लेकिन मेरी चुदाई जारी रही और 35-40 मिनट और छाया के एक और स्खलन के साथ कंडोम मेरे वीर्य से भर गया।
दोनों निढाल होकर लेटे रहे हम दोनों।
तक़रीबन 10 मिनट के बाद उठा तो देखा नशे और मस्त चुदाई के सुरूर में छाया की आँख लग गई।
मैंने अपना लंड साफ़ कर अंडरवीयर पहनी और सोचा बालकनी में जाकर एक सिगरेट पी लूँ।
31वीं मंज़िल की बालकनी में समुद्र की हवा में नंगे बदन सिगरेट पीने का मज़ा ही कुछ और है।
2-4 कश लिए की पास की बालकनी से आवाज़ आई- तो आज तुम मम्मी का खिलौना हो?
पलट कर देखा तो यकायक सकपका गया। श्रेया हूबहू अपनी माँ की प्रतिछाया थी।
‘एक और सिगरेट है?’ श्रेया ने मेरे नंगे बदन को निहारते हुए सवाल किया।
मैंने पैकेट खोल के ऑफर की मगर तीन फीट की दूरी से जला नहीं सकता था तो लाइटर भी बढ़ाया।
‘कैसे मर्द हो, लड़की की सिगरेट नहीं जला सकते?’ श्रेया ने चिढ़ाया।
मैं भी जोश में बालकनी पार कर गया।
कभी उस हरकत के बारे में सोचता हूँ तो फट जाती है।
अगर पार करते वक़्त या वापस लौटते वक़्त पैर फिसल जाता तो मरता, वो भी सिर्फ अंडरवियर में।
बालकनी में श्रेया और मैं आमने सामने ज़मीन पर बैठे थे और अपनी अपनी सिगरेट फूंक रहे थे।
तभी मेरी नज़र उसके वक्ष पर गई, उम्र के हिसाब से काफ़ी बड़े थे।
उसने भांप लिया और बोली- कमीने मर्द सब एक जैसे होते हैं।
कहते हुए उसने अपने बूब्स को हाथों से उठाया और चिढ़ाते हुए हिलाये और एक शरारत भरी मुस्कान बिखेर दी।
फिर अपनी दायीं टांग मेरे जांघों के बीच लेजा मेरे लौड़े को मसलने लगी और सिगरेट का धुंआ अपने मम्मों पे छोड़ने लगी।
इससे पहले कि मैं उसकी सेक्सी हरकतों का कोई जवाब देता, श्रेया उठी और रूम में चली गई।
मेरी नज़र मेरी अंडरवियर पे गई और देखा कि लंड में कसाव आ रहा था।
अगर श्रेया चुदती है और रिया को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं…
ऊपर से छाया की नाराज़गी भी।
मेरी सोच को विराम लगा जब श्रेया फिर बालकनी में आई।
हाथों में बियर के कैन से भरी आइस बकेट थी और तन पे एक कपड़ा कम। शॉर्ट्स खोल सिर्फ पेंटी और टी-शर्ट में थी।
श्रेया सामने के बजाये सट कर बैठ गई और बियर का एक कैन खोल बड़ा सा घूंट लिया और कैन मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने पीते ही कहा- बहुत मीठी बियर है।
‘मीठी?’
‘हाँ मीठी, तुम्हारे होंटों को जो छू लिया।” मैंने फ़्लर्ट करते हुए कहा।
श्रेया मुस्कुराते हुए बोली- मादरचोद, मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड नही हूँ। फ़्लर्ट मत कर!
(जैसा पहले बताया बातचीत, यहाँ तक गाली भी अंग्रेजी में ही थी पर antarvasna3.com के चहेते पाठकों के लिए हिंदी में लिख रहा हूँ)
‘मैं यहाँ छुट्टी में आई हूँ। यू एस में पढ़ती हूँ।’ श्रेया ने बताया।
थोड़ी देर शान्ति रही और पूरी बियर खत्म कर दी।
मैं सोच रहा था कि क्यों एक रईस लड़की एक अनजान मर्द के साथ सिगरेट और बियर पी रही है।
वो भी उसके साथ जो उसकी माँ को चोद रहा था।
दूसरा कैन खोलते हुए श्रेया फिर मस्ती करने लगी, मेरे अंडरवियर के ऊपर से ही मेरे लौड़े को हाथ से मसलने लगी।
जवानी के जोश में एक कमसिन लड़की के साथ जान जोखिम में डाल बालकनी कूद कर तो आ गया मगर रिया या छाया को पता लगने के डर से मैं अपनी ही धुन में था।
श्रेया ने मेरे चेहरे पर धुंआ छोड़ा और होठों से होंठ मिला चुम्बन दिया।
‘चिंता मत करो, मैं किसी को नही कहूँगी। और वैसे भी मेरी माँ अब सुबह 11 बजे से पहले नही उठने वाली !’ श्रेया ने जैसे मेरा मन पढ़ लिया हो।
श्रेया पलट कर मेरी गोद में बैठ गई और हमारी जीभ एक दूसरे के मुँह में कबड्डी खेल रही थी।
श्रेया ने चूम चूम कर मेरा पूरा चेहरा अपने थूक भिगो दिया। तो मैंने भी उसकी गर्दन, गाल चूम लिए।
मेरा दायां हाथ की उंगलियाँ उसकी पेंटी के नीचे चूत और गांड में घुस उत्तेजना को तीव्र कर रहे थे तो श्रेया का हाथ भी अब मेरी अंडरवियर के भीतर चला गया और मेरे लंड और टट्टों की बेरहमी से मालिश करने लगा।
‘अब चोद दो… !’ तेज चलती साँसों के बीच श्रेया बोली।
एक दूसरे को चूमते और अंगों से खेलते हुए हम कमरे में दाखिल हुए और पास पड़े सोफे पे ही शुरू हो गए।
सोफे पर बैठते ही श्रेया का टॉप निकाल फेंका उसने मेरी अंडरवियर नीचे सरका दी।
एक भूखे जानवर की तरह मेरे लंड को मुँह में ले चूसने और चाटने लगी।
एक रईसज़ादी एक राण्ड के जैसे शर्म की सभी दीवार तोड़ चुकी थी।
मैंने उसकी पेंटी निकालने को खड़ा किया तो वो फिर चुम्बनरत हो गई, मुझे सोफे पे धकेला और उलटी मुड़ कर लेट गई।
हम दोनों करवट के बल आ गए और मैंने पीछे से चूत में लौड़ा पेल दिया।
कमर हिला हिला कर झटके मारने लगा।
छाया की चूत के मुकाबले श्रेया की फ़ुद्दी मस्त टाइट थी।
हर झटके के साथ श्रेया के मस्त मम्मे उचक रहे थे।
थोड़ी देर बाद श्रेया मेरे ऊपर आ गई और उछल उछल कर लंड को चूत में अंदर-बाहर कर रही थी, उसका पानी निकल गया, मेरे लिंग और टट्टों को भिगो दिया।
मेरा लौड़ा भी तक खड़ा था, मैंने श्रेया को सोफे के किनारे कुतिया बना पीछे से चोदना जारी रखा।
थोड़ी देर में मैंने अपना सारा माल श्रेया के चूतड़ों और पीठ पर निकाल दिया।
थोड़ा रस उसकी गांड को गिला कर चूत से टपक गया।
श्रेया के चेहरे पर अच्छी चुदाई की संतुष्टि और मुस्कान थी।
हमने बालकनी में और बियर और सिगरेट पी और रात के लिए अलविदा कहने के पहले एक चुदाई और की।
श्रेया चार दिन और मुम्बई में थी और चारों दिन मेरे लंड को काम पे लगाये रखा।
श्रेया और मेरी हैसियत में बहुत अंतर है लेकिन फिर भी हम आज तक दोस्त हैं और दोस्ती बनाये रखने के लिए एक दूसरे को गिफ्ट नहीं देते।
वो जब भी मुंबई आती है हम निर्लोभ सम्भोग का आनन्द लेते हैं।
वो मुझे अपने हर बॉयफ्रेंड के बारे में और में उसे अपनी हर गर्लफ्रेंड के बारे में बताता हूँ।
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा।
लिखियेगा ज़रूर !
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