एक लंड और पूरे परिवार की चुदाई-1
(Ek Lund Aur Poore Parivar Ki Chudai- Part-1)
दोस्तो, मेरा नाम अनीश है, मैं पुलिस महकमे में क्लर्क हूँ। आमदनी अच्छी है, थोड़ा बहुत ऊपर से भी बन जाता है, इस लिए पैसे की कोई दिक्कत नहीं। खाता पीता हूँ, रंगीन मिजाज हूँ, यार दोस्त भी ऐसे ही हैं। अभी शादी नहीं हुई है, सिर्फ 25 बरस का ही हूँ। 2 महीने पहले मेरी बदली दूसरे शहर में हो गई। एक यार दोस्त की मदद से किराए का मकान भी मिल
गया।
अकेला रहता हूँ, इस लिए अक्सर शाम को घूमने के लिए, कभी सिनेमा, कभी माल, कभी बस अड्डे या रेलवे स्टेशन पर चला जाता हूँ। रेलवे स्टेशन और बस अड्डे जाने का फायदा यह है कि आपको कोई न कोई जुगाड़ मिल जाता है। मैं भी 2-4 दिन बाद यहाँ वहाँ घूम लेता था और अपने पानी निकालने का जुगाड़ हो जाता था।
एक दिन ऐसे ही मैं शाम के 6 बजे के करीब बस अड्डे पे बैठा आने जाने वाले लोगों की और देख रहा था, हाथ में पॉप कॉर्न का पैकेट था। तभी मेरे पास आ कर एक आदमी बैठ गया। देखने में ठीक लग रहा था, गरीब ज़रूर था, मगर फटेहाल नहीं था।
मैंने उसकी ओर देखा, उसने मुझे स्माइल पास की।
मैंने पूछा- कहाँ जाना है?
वो बोला- कहीं नहीं।
मैंने पूछा- तो?
वो बोला- जैसे आप बैठे हो, वैसे मैं बैठा हूँ।
मैंने उस से पूछा- मैं कैसे बैठा हूँ।
वो बोला- आपको मशीन चाहिए, और मेरे पास मशीन है।
मैं समझ गया कि ये तो दल्ला है।
मैंने पूछा- कैसी मशीन?
उसने एक हाथ के अंगूठे और उंगली से गोल बनाया और दूसरे हाथ की उंगली उस गोल चक्कर के अंदर बाहर करके मुझे चुदाई का इशारा कर कर बताया।
मैंने पूछा- मशीन कौन है तेरी?
वो बोला- मेरी बीवी है।
मुझे बड़ी हैरानी हुई, साला अपनी बीवी का दल्ला है।
मैंने कहा- कैसी है?
वो बोला- एक दम मस्त, गोरी चिट्टी, भरपूर!
मैंने पूछा- कितने पैसे?
वो बोला- 1000/- एक शॉट के!
मुझे डील ठीक लगी।
मैंने कहा- मगर पैसे मैं मशीन देखने के बाद ही दूँगा, अगर मुझे सब कुछ ठीक लगा तो!
वो बोला- ठीक है, तो अभी चलो और देख लो!
मैंने कहा- और तुम्हारा कमीशन भी बीच में ही है।
वो बोला- अपना कोई कमीशन नहीं जनाब, बस गला तर करवा दो।
हम दोनों उठ कर चल दिये, देशी के ठेके से मैंने एक बोतल ली, पास में ही एक दुकान से चिकन और नमकीन लिया, मेरे पीछे मेरे ही मोटर साइकिल पर बैठ कर वो मुझे अपने घर की ओर ले चला।
बस अड्डे के पीछे ही बसी घनी आबादी वाली बस्ती की तंग तंग गलियों से होते हम एक घर के आगे रुके। उसने दरवाजा खोला और हम अंदर गए।
अंदर कमरे में सिर्फ एक पुराना सा, गंदा सा सोफा और उसके सामने एक पुरानी सी टेबल पड़ी थी, बस। मुझे सोफ़े पर बैठा कर, सामान टेबल पर रख कर वो अंदर गया, और अंदर से वो दो प्लेट, एक डोंगा, दो गिलास, बर्फ और पानी लेकर आया।
जैसे ही वो आकर मेरे पास बैठा, अंदर से एक और औरत निकली। उम्र कोई 55-60 साल, गोरा रंग, आधे बाल सर के सफ़ेद, मोटा बदन। उस औरत ने सिर्फ, एक हल्के ग्रे रंग का ब्लाउज़ और सफेद रंग का पेटीकोट पहन रखा था। साड़ी नहीं पहनी थी, पर एक अंगोछा सा अपने सीने और पेट पे ओढ़ रखा था।
मैंने देखा, बुढ़िया के भी अंग पैर अच्छे थे। छाती खूब भारी थी, ग्रे ब्लाउज़ के नीचे पहना सफ़ेद ब्रा, मगर पेटीकोट के साइड कट से झाँकती उसकी गोरी कमर बता रही थी कि उसने नीचे से चड्डी नहीं पहनी थी। उस औरत ने अपने दोनों हाथ पीछे बांध रखे थे।
मैंने उस औरत का पूरा जायजा लेने के बाद उस आदमी की तरफ देखा, वो बोला- ये मेरी माँ हैं।
मैंने नमस्ते की तो उसने भी मुस्कुरा कर नमस्ते की।
मैंने मन में सोचा 200-400 में तो मैं इसको चोद सकता हूँ। सर के बाल ही कुछ सफ़ेद हुये हैं, मगर बदन में अभी भी कसावट है।
मैंने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है?
वो बोला- मेरा नाम तो भोला है, पर सब भोलू कहते हैं।
मैंने लिफाफे से देशी दारू की बोतल निकाली, टेबल पर रखी। पहले मैंने अपने गिलास में एक पेग बनाया और फिर भोलू के गिलास में दारू डाली, मैंने उसका गिलास आधे से भी ज़्यादा सिर्फ दारू से ही भर दिया।
तभी भोलू की माँ भी आगे को आई और मेरे सामने सोफ़े पर बैठते ही उसने अपना गिलास भी मेरे सामने रख दिया। मैंने पहले उस औरत की आँखों में देखा और फिर उसका गिलास भी दारू से आधा भर दिया, बर्फ डाली और हम तीनों ने चियर्ज कहा।
मैंने तो अभी एक सिप ही ली थी, मगर भोलू ने एक ही बार में सारा गिलास पी लिया, बुढ़िया ने भी अपना गिलास खाली करके नीचे रखा और, अपनी प्लेट में चिकन की एक टांग रख कर लगी नोचने।
मैंने तो कम ही पीने का फैसला किया, अपनी प्लेट में मैंने चिकन का एक छोटा सा टुकड़ा रखा और बुढ़िया से पूछा- आप क्या काम करती थी?
मैंने इस लिए पूछा क्योंकि मुझे लग रहा था जैसे यह बुढ़िया भी अपने टाइम में जुगाड़ रही होगी।
वो बोली- अरे मैंने बहुत काम किए हैं, किसी टाइम पूरे शहर में मेरा नाम चलता था, शीला!
मैं उसका नाम सुन कर चौंका- अच्छा?
मैंने कहा- शीला गश्ती?
वो हंस पड़ी, बोली- देखा, नाम सुनते ही पहचान लिया मुझे!
मैंने कहा- मगर ये भोलू तो कह रहा था कि इसकी बीवी भी चलती है, मैं तो उसी के लिए आया था।
वो बोली- हाँ, उसको भी बुला लेती हूँ.
और उसने आवाज़ लगाई- अरे सुनीता, इधर आओ ज़रा!
थोड़ी ही देर में अंदर से कोई 26-27 साल की एक औरत गहरे रंग की साड़ी में मेरे सामने आई। सुंदर चेहरा, पूरा मेक अप किया हुआ। काले रंग का लो कट ब्लाउज़, झीनी साड़ी में से झाँकता उसका गदराया हुआ हुस्न, करीब 2-3 इंच का क्लीवेज, भरी हुई छाती और पेट, मांसल कूल्हे, अच्छा कद काठी।
वो भी आकर मेरे सामने अपनी सास के साथ बैठ गई। मैंने अपनी आँखों से उसके बदन को निहारा, अपनी गंदी नज़र से उसके हुस्न को ताड़ते हुये मैंने उसकी नमस्ते का जवाब दिया। मगर सुनीता के पीछे ही एक और लड़की आ कर खड़ी हो गई, कोई 20-22 साल की होगी। पतली दुबली मगर गोरी। छोटे छोटे मम्मे, कुर्ता और चूड़ीदार पहने, बिना दुपट्टे के।
वो भी आकर बैठ गई।
मैंने उसको भी अपनी गंदी निगाह से देखा और पूछा- ये परी कौन है?
शीला बोली- मेरी बेटी है जी!
मैंने पूछा- ये भी?
शीला मेरी बात समझ कर बोली- हां जी, मेरी बेटी है तो!
फिर थोड़ा रुक कर बोली- इसके ढाई हज़ार लगते हैं।
मैंने सोचा, यार सौदा तो कोई भी बुरा नहीं है, सभी अच्छी हैं। मगर मुझे तो ये था कि जो भी मिली, उसको हो चोद दूँगा।
जो थोड़ी सी दारू बची थी बोतल में, वो उन दोनों ने अपने अपने गिलासों में डाल ली और पीने लगी।
मैंने देखा, बोतल तो खत्म हो गई, मैंने भोलू से कहा- भोलू, एक काम कर, एक बोतल और लेकर आ दारू की, ऐसा कर 8 पी एम की अँग्रेजी लाना, और एक चिकन भी!
मैंने भोलू के पैसे देकर चलता किया, अपनी जेब से सिगरेट की डिब्बी निकाली और सब को सिगरेट दी, तो उन तीनों ने एक एक सिगरेट ले ली, सब ने अपनी अपनी सिगरेट जलाई और पीने लगे।
फिर मैंने अपने जूते उतारे, और सोफ़े पर ही आलथी पालथी मार कर बैठ गया, मैंने शीला की बेटी को अपने पास बुला कर बैठाया। शीला ने भी अपना पेटीकोट ऊपर उठाया, और घुटनो तक उठा कर उसने भी अपनी टांग के ऊपर टांग रख कर बैठ गई।
बेशक उसने अपना पेटीकोट घुटने तक उठाया था, मगर मैंने इतनी सी हरकत में ही उसकी जांघें और चूत देख ली थी। अभी भी बुढ़िया की चूत पर गहरे काले बाल थे, या शायद बुढ़िया ने जान बूझ कर मुझे अपना जुगाड़ दिखाया।
मैंने लड़की से उसका नाम पूछा- क्या नाम है तुम्हारा?
वो बोली- सैंडी!
मैंने उसे अपनी तरफ खींचा, अब जब सारा घर ही रंडियों का था, तो किसी से शर्म करने की क्या ज़रूरत थी। मैंने पहले सैंडी के गाल को सहला कर देखा और फिर उसके कंधे से हाथ घुमाता हुआ, उसकी कमर तक ले गया।
बहुत ही चिकना बदन था उसका!
उधर बुढ़िया ने अपना चिकन का पीस खा लिया और जब दूसरा लेने उठी, तो अपने बदन पे डाला हुआ अंगोछा सा भी उतार दिया। बुढ़िया की आधी छाती नंगी हो गई, इतना बड़ा सारा क्लीवेज दिख रहा था।
मैंने कहा- आंटी जी, आप तो आज भी कयामत हो।
वो हंस कर बोली- अरे यही तो मैं इस कलमुंही से भी कहती हूँ कि खाया पिया कर, मर्दों को औरत ही वो पसंद आती है, जिसके मम्मे भारी हों। अब मेरी बहू के ही देख लो, एकदम मस्त माल है.
मैंने सुनीता की ओर देखा, वो मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान में भी इतराना था, जैसे वो अपने बड़े बड़े मम्मों पे नाज़ करती हो।
मैंने सैंडी का मम्मा अपने हाथ में पकड़ कर दबाया- नहीं आंटी जी, सैंडी के मम्मे भी अच्छे हैं.
मैंने कहा।
शीला बोली- ये मैंने कब कहा कि इसके मम्मे अच्छे नहीं, मैं तो ये कहती हूँ कि थोड़े और बड़े कर ले। वैसे तो मेरी राजदुलारी सारे शहर की जान है।
मैंने सोचा, अब इन सब ने तो देशी दारू चढ़ा ली है, तो क्यों न सबके साथ मस्ती की जाए। तो मैं उठा और उठ कर शीला और सुनीता के बीच में जा बैठा, एक बाजू मैंने शीला की गर्दन के पीछे से तो दूसरी बाजू मैंने सुनीता की गर्दन के पीछे से निकाली और दोनों को अपनी ओर खींच लिया, दोनों मेरे साथ सट कर बैठ गई।
मैंने सुनीता की साड़ी का पल्लू उसके सीने से हटा दिया। दूध जैसे गोरे दो मम्मे उसके ब्लाउज़ में कैद थे, मैंने पहले सुनीता की ठोड़ी ऊपर को उठाई और उसके होंठों को चूमा, और फिर नीचे वाले लिपस्टिक लगे होंठ को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा, अपना हाथ मैंने इधर सुनीता के ब्लाउज़ में डाल कर उसका मम्मा पकड़ा तो दूसरा हाथ शीला के ब्लाउज़ में डाल दिया। एक ही टाइम में मैं सास बहू दोनों के मम्मे मसल रहा था।
मेरे बिना कहे शीला ने मेरे कमीज़ के बटन, बेल्ट, पेंट की हुक, ज़िप सब खोल दी। मैं उठ कर खड़ा हुआ और उन दोनों सास बहू ने मेरे कपड़े उतरवा दिये, मेरे बदन पर सिर्फ चड्डी ही बची थी, जिसमे मेरा लंड बिल्कुल टाईट हो कर बाहर आने को बेताब था।
इतने में भोलू आ गया, उसके आते ही झटपट मोटे मोटे 5 पेग और बने, सब चिकन पर टूट पड़े, 5-7 मिनट में ही आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गई। मैंने सिर्फ थोड़ी सी ही पी। मैंने अपने पाँव उठा कर सामने टेबल पर ही रख दिये और सैंडी को कहा- सैंडी डार्लिंग, इधर आओ, और आकर मेरी गोद में बैठो।
वो लड़की उठ कर आई और आकर मेरी गोद में बैठ गई।
मैंने शीला से कहा- शीला!
इस बार मैंने उसे आंटी नहीं कहा, सीधा नाम लेकर बुलाया- सबसे पहले मैं तुम्हारी बेटी की चुदाई करूँगा।
शीला बड़ी कटीली सी हंसी हंस कर बोली- ज़रूर करो, ज़रूर करो, मगर सैंडी के साथ साथ एक शर्त भी है।
मैंने कहा- क्या शर्त, क्या पैसे ज़्यादा चाहिए?
वो बोली- अरे नहीं, पैसे तो वही हैं, 2500! मगर सैंडी से पहले तुम्हें मुझे चोदना पड़ेगा। बहुत दिनों बाद आज मैंने देशी दारू पी है। अब देशी पी के मुझे पर भी खुमार चढ़ गया है। आज तो मैं भी मज़ा लूँगी.
कह कर शीला ने अपना पेटीकोट ऊपर उठाया और अपनी नंगी जांघ पर हाथ मार कर जैसे मुझे चुनौती दी हो।
मैंने उससे पूछा- और तू कितने पैसे लेगी?
वो बोली- मैं फ्री में हूँ। तेरी दारू और चिकन के मोल में बिक गई।
मैंने भोलू की और देखा, वो सिर्फ दारू के पेग पे पेग डाल कर पीने में मस्त था।
एक एक पेग और डाला और व्हिस्की की दूसरी बोतल भी उन लोगों ने खतम कर दी, सारा चिकन और नमकीन भी वो लोग खा गए। मैंने सुनीता की ओर देखा, उसने मेरा हाथ अपने ब्लाउज़ से निकाला और अपना गिलास उठा कर अंदर चली गई।
आखिरी पेग पीते पीते भोलू भी वहीं नीचे फर्श पर लुढ़क गया। मैं उठ कर खड़ा हुआ, और मैंने अपनी जेब से 2500 रुपये निकाल कर शीला के मम्मों में फंसा दिये, उसके दोनों मम्मे अच्छे से पकड़ कर दबाये। शीला, मैं और सैंडी हम तीनों पीछे वाले कमरे की ओर चल पड़े।
रास्ते में एक कमरा और आया, जिस में मैंने देखा, सुनीता बेड पे गिरी पड़ी थी। मैं उसके पास गया, पहले उसके होंठों पे बड़ा सा चुम्मा लिया, फिर उसका ब्लाउज़ उठा कर उसके दोनों मम्मे बाहर निकाले और लगा चूसने। मगर तभी शीला पीछे से आ गई, और मेरे कंधे से मुझे पकड़ कर बोली- अरे इसे भी चोद लेना, पहले मेरे पर तो ज़ोर आज़माई कर ले!
और वो मुझे खींच कर ले गई।
सुनीता वैसे ही नंगी लेटी मुझे जाता देखती रही, जैसे उसकी आँखों में भी चुदने की हसरत थी।
अपने कमरे में जाते ही, शीला ने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। मेरे पास आई, मेरी चड्डी खींच के उतारी और मेरा लंड पकड़ कर चूसने लगी। बेशक बूढ़ी थी, मगर पुरानी गश्ती थी, लंड चूसने की पूरी उस्ताद। इतना मज़े ले ले कर मेरा लंड चूस रही थी, जैसे उसे खुद इस काम में बहुत मज़ा आ रहा हो। पूरे का पूरा लंड वो अपने मुँह में अंदर खींच जाती, फिर बाहर निकालती, मैं तो जैसे उसका मुँह चोद रहा था।
सामने कुर्सी पर सैंडी बैठी टीवी देखने लगी। बीच बीच वो हमे भी देख लेती, जैसे देख रही हो कि उसकी माँ उसके सामने क्या क्या कर रही है, और कैसे कर रही है। लंड की चुसई के बाद वो सैंडी से बोली- चल री, कोंडोम चढ़ा कस्टमर के!
सैंडी उठी और गद्दे के नीचे से एक कोंडोम का पैकेट निकाला और एक कोंडोम निकाल कर मेरे लंड पे चढ़ाने लगी।
इतनी देर में शीला ने अपना पेटीकोट, ब्लाउज़, ब्रा सब उतार दिये, और बिल्कुल नंगी हो गई, मुझे धक्का मार कर बेड पे लेटाया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गई।
बुढ़िया भारी थी, मगर बहुत ही तजुर्बेकार। एक मिनट में ही मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पे सेट किया और अंदर ले लिया, और जब ऊपर नीचे हो कर खुद चुदवाने लगी तो मुझे ऐसे लग रहा था, जैसे अपनी चूत से भी वो मेरा लंड चूस रही हो।
मैं सोच रहा था, शायद इतना मज़ा तो मुझे सैंडी या सुनीता भी न दे, जितना मज़ा ये बुढ़िया दे रही है।
मैंने पूछा- शीला तेरी उम्र कितनी होगी?
वो बोली- दो महीने बाद 61 पूरे कर लूँगी।
मैंने फिर पूछा- और काम करना कब छोड़ा?
वो बोली- अरे ये काम कभी छुटता है? कोई न कोई तुम्हारे जैसा मुर्गा तो अब भी फांस लेती हूँ। जब अपना दिल करता है, तब चुदवा लेती हूँ, नहीं तो अब बच्चे ही काम संभाल रहे हैं।
3-4 मिनट की चुदाई के बाद वो नीचे उतर गई और बोली- ले चल, अब तू ऊपर आ और पेल!
मैंने उसके लेटने के बाद उसकी टाँगें खोली और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया।
उसको चोदते चोदते मैंने कहा- शीला, सैंडी को भी बुला ले यहीं पे। थोड़ा उससे भी प्यार कर लूँगा मैं!
वो बोली- अरे पहले मुझसे तो कर ले, जब उस से करेगा, तब अपने मन की कर लेना!
अगले 5 मिनट में ही मैंने जल्दी जल्दी चुदाई कर के अपना पानी गिरा दिया, शीला का हुआ या नहीं, मुझे नहीं पता।
उसके बाद मैं उसी बेड पे नंगा ही लेटा रहा, शीला ने अपने कपड़े पहने और उठ कर रसोई में चली गई।
कोई आधे घंटे बाद मैं उठा, बाहर छोटा सा आँगन था, जिसे उन्होंने पूरा ही कवर कर रखा था। वहीं हैंड पंप पर मैं नहाया, शीला ने खुद अपने हाथों से मेरा बदन पौंछ कर साफ किया, मुझे गरमा गरम चाय पिलाई।
मैं बिल्कुल नंगा ही जाकर सुनीता के कमरे में बैठ गया, वो भी चाय पी रही थी।
मैंने सुनीता से पूछा- तुमसे एक बात पूछूँ?
वो बोली- जी पूछिए।
मैंने जान बूझ कर उस से संवेदना करी- तुम तो किसी भले घर की लगती हो, फिर इस दलदल में कैसे फंस गई?
वो बोली- हमारा घर तो बहुत अच्छा है, ये तो मुझे शादी के बाद पता चला कि मैं किन हरामज़ादों के चक्कर में पड़ गई। अब तो मैं इतनी गंदी हो चुकी हूँ कि वापिस अपने घर भी नहीं जा सकती। मेरे घर से कोई हमारे नहीं आता, इनका कोई रिश्तेदार यहाँ नहीं आता, हम कभी किसी के नहीं जाते। बस अब तो हमारे घर में ग्राहक ही आते हैं।
मुझे लगा ये लड़की दुखी है, इसको पटाया जा सकता है, अगर ये पट गई तो फ्री की चूत का इंतजाम हो जाएगा।
इतने में शीला आ गई, बोली- अरे तुम यहाँ बैठे हो, उधर सैंडी तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।
मैंने अपनी चाय खत्म की और उठ कर सैंडी के कमरे में चला गया।
सैंडी बेड पे बैठी थी।
पहले मैंने सैंडी को नंगी किया और फिर उसको चोदा, मगर सैंडी को चोदने में मुझे कुछ खास मज़ा नहीं आया, सिर्फ अपने 2500 रुपये वसूल करने के लिए ही मैंने उसे चोदा।
यह इंडियन सेक्स स्टोरी अगले भाग में समाप्त होगी.
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कहानी का अगला भाग: एक लंड और पूरे परिवार की चुदाई-2
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