आज दिल खोल कर चुदूँगी-17

(Aaj dil Khol Kar Chudungi-Part 17)

नेहा रानी 2016-01-13 Comments

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा..
मैं बिस्तर पर बैठे हुए ही झुककर महमूद का लण्ड ‘गपागप’ चूस रही थी। महमूद पीछे से मेरी चूत मलकर मेरी प्यासी चूत की प्यास बढ़ाते हुए लण्ड चुसाई करवाता रहा।
एकाएक तभी महमूद के मुँह से सिसकारी के साथ वो अनाप-शनाप भी बोलने लगा- ले साली चाट.. मेरे लण्ड को ले.. चूस ले.. पूरा ले.. तेरी चूत मेरे लण्ड को पाकर धन्य हो जाएगी.. मैं चूत का शौकीन हूँ.. आह..सीई.. उह.. ले.. मेरी जान.. मैं गया आह सीसीसीई..
ये कहते हुए उसने ढेर सारा वीर्य मेरे मुँह में डाल कर हाँफते हुए अलग हो गया।
जब महमूद वीर्य छोड़ रहा था.. तभी उसका आधा वीर्य मेरे गले से नीचे हो गया था.. बाकी लण्ड बाहर करने पर मेरे मुँह से होते हुए मेरी चूचियों पर गिर रहा था।
मैं वैसे ही जीभ घुमाकर वीर्य चाटे जा रही थी।

अब आगे..

पूरे वीर्य को चाट कर साफ करते हुए मैं बाथरूम में चली गई और मैं जब बाहर आई.. तो देखा कि अभी भी महमूद वैसे ही बिना कपड़ों के पड़े थे। मैं भी जाकर महमूद के बगल में लेट गई और महमूद ने मुझे खींचकर अपने जिस्म से चिपका लिया। अब वो मेरे जिस्म को सहलाने लगे। मैंने बूढ़े को देख कर जैसी कल्पना की थी.. वैसा कुछ भी नहीं था.. बल्कि महमूद तो जवान मर्दों को मात देने वाला निकला।
एक बार फिर मेरी जाँघों के बीच में दबा हुआ महमूद का लण्ड आहें भरने लगा। इधर महमूद मेरी चूत और गाण्ड की फाँकों को कस कस कर सहलाते हुए मेरी प्यासी बुर की प्यास बढ़ा रहे थे।

मैं महमूद के सीने को सहलाते हुए बोली- क्या महमूद डार्लिंग.. आपने मेरी बुर का सौदा किया है.. तो क्या केवल अपनी प्यास मिटाओगे.. मेरी नहीं.. मेरी भी चूत प्यासी है?

महमूद मेरी बात सुनकर बोला- अभी तो पूरा दिन बाकी है रानी.. और तुम इतनी हसीन हो.. कि तेरी चूत की प्यास तो बढ़ाकर ही मैं मिटाऊँगा.. मेरा लौड़ा तेरी चूत का पसीना निकाल देगा.. मत घबड़ाओ.. अगर तू विवाहित न होती.. तो मैं तेरे को अपनी रखैल बना लेता।
‘मैं भी पति के रहते भी खुशी-खुशी आप की रखैल बन जाऊँगी.. पर आप तो बहुत दूर के हैं और मैं बनारस की हूँ।’

तभी एकाएक महमूद मेरे ऊपर सवार होकर मेरी छातियाँ भींच कर मेरे होंठों को अपने होंठों से दबाकर चूसने लगे। काफी देर तक मेरी छाती और होंठों को किस करते हुए वो अपने लण्ड को मेरी चूत पर घिस रहे थे।
मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे कोई योद्धा जंग में जाने से पहले अपनी तलवार को धार देता है।
मैं तो काफी देर से प्यासी थी और मेरी 5 दिन से चुदाई भी नहीं हुई थी।

उस पर भी एक तो महमूद ने पहले राउंड में मेरी चूत को बहुत गरम कर दिया था। इन सब का नतीजा यह निकला कि मेरी बुर पानी-पानी हो रही थी। बुर के अन्दर से पानी बाहर तक चिपचिपा रहा था, महमूद अपने लण्ड को मेरी पानी से भिगो रहे थे।

कुछ देर बाद महमूद ने मेरा पैर ऊपर उठाकर अपने कंधे पर रख लिया और लण्ड को मेरी चूत पर टिका कर धीमी- धीमी गति से सुपारे को थोड़ा अन्दर-बाहर करते हुए मुझे चुदाई के सागर में गोते लगवाने लगे।
महमूद की इस अदा से मेरी चूत की फाँकें खुलने-पचकने लगीं। मैं कमर उछाल कर लण्ड अन्दर लेना चाहती थी.. पर महमूद बड़ी सावधानी से लण्ड को अन्दर जाने से रोककर केवल सुपारे से ही मेरी बुर की फाँकों से खेलते हुए मेरी बुर की प्यास बढ़ाते जा रहे थे।

मैं चुदने के लिए व्याकुल हो रही थी.. मैं सिसकारियाँ लेने लगी। सिसकारी के सिवा मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी क्योंकि ड्राईविंग का काम किसी और के काबू में था.. वो जैसा चाह रहा था.. वैसा कर रहा था।

इधर मेरी चूत लण्ड खाने के चक्कर में फूलती जा रही थी। मैंने तड़पते हुए महमूद को भींच कर सिसियाया और आहें भरते हुए ‘आहह.. सिईईईई.. आहउ.. आह.. ससीइ..’ करते मैं बेतहाशा अपनी चूत उछाले जा रही थी।

महमूद का लण्ड अपनी बुर में लेने को मैं मचल रही थी। पर मेरा सारा प्रयास बेकार हो रहा था। मुझे लग रहा था कि महमूद मेरी बुर तड़पाने का ठान चुके थे। मेरी बुर महमूद के पूरे लण्ड को लीलने के लिए व्याकुल हो रही थी।

मेरे मदमस्त जिस्म का और बुर की तड़प बढ़ाने में महमूद एक काम और कर रहे थे, वे मेरी चूचियों को भींच कर पीते हुए अपने लण्ड का सुपारा मेरी बुर पर नचा रहे थे, कभी दाईं चूची को.. कभी बाईं चूची मुँह में भर चूसते हुए लण्ड से मेरी बुर के लहसुन को.. तो कभी मेरी बुर की फाँकों पर.. और कभी हल्का सा सुपारे को बुर के अन्दर कर देते थे।
महमूद के इस तरह के प्यार से मैं चुदने के लिए पागल हुए जा रही थी।

दोस्तो.. मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितना आनन्द आ रहा था।
महमूद मुझे एक मंजे हुए खिलाड़ी लग रहे थे, वे ताड़ चुके थे कि मेरी चूत बहुत बड़ी चुक्कड़ है।
उसी पल महमूद ने मेरी दाईं चूची पर दांत गड़ा दिया और मैंने ‘आईईई.. आहउई..’ कहते कमर उछाल दी।
और यहीं पर मुझे थोड़ा मजा आ गया।

महमूद का दिए हुआ दर्द मेरी चूत के लिए मजा लेने का मौका बन गया और मैंने ‘आहहह.. सीईईई.. आह..ऊई..’ कह कर महमूद की कमर कसकर पकड़ ली.. ताकि लण्ड कुछ देर के लिए ही मेरी चूत में घुसा रहेगा.. पर साला महमूद भी पक्का खिलाड़ी था। उसने तुरन्त अपना एक हाथ मेरी चूत के करीब ले जाकर मेरी जांघ के पास कस कर चिकोटी काट ली।

‘आईईईउई..’ की आवाज के साथ मेरा दांव उलट गया। जो मैंने जितनी तेजी से कमर उछाल कर लण्ड को बुर में लिया था.. यहाँ यही उलटा पड़ गया, इस चिकोटी के कारण उतनी ही तेजी मुझे कमर को नीचे करना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि महमूद का लण्ड मेरी चूत से बाहर आ गया।
मैं महमूद की कमर छोड़ कर उनके चूतड़ों पर हाथ से मारने लगी।

महमूद मुझे चिढ़ाते हुए अपने लण्ड को मेरी गाण्ड की दरार से सटाकर मेरी गुदा के छेद को रगड़ने लगे। महमूद के ऐसा करने से तो मेरी चुदने के इच्छा और भी तेज हो गई और मैं महमूद से अपनी बुर चुदवाने के लिए मनौती करने लगी।

मेरी मनुहार से महमूद को शायद मेरे ऊपर दया आ गई, महमूद मुझे चूमते हुए मेरी नाभि से होते हुए मेरी योनि प्रदेश को चूमने और चाटने लगा, मैं चूत उठा-उठा कर महमूद से बुर चुसवाने लगी।
मेरी बुर तो चुदने के लिए तड़प रही थी, महमूद के चुसाई से भरभरा गई पूरी बुर एकदम पकोड़ा सी फूल चुकी थी और चुसाई से राहत के बजाए बुर को अतिशीघ्र चुदाई की चाहत होने लगी।

तभी महमूद ने मेरी बुर को पीना छोड़ कर मेरे होंठों को चूसते हुए अपने लण्ड को मेरी बुर पर लगा कर हलका सा दबाव देकर सुपारे को अन्दर ठेल दिया।

‘आहहह.. सीसीसी.. ईईई.. आह..’ और मैं महमूद के सीने से लिपट गई।

तभी महमूद ने एक जोर का शॉट मेरी बुर पर लगा दिया।

‘आआ.. उइइइ… सीआह..’ की आवाज के साथ महमूद का पूरा लण्ड मेरी बुर में समा गया।

महमूद एक ही सांस में गचागच लण्ड बुर में डुबोने लगा और मैं चूतड़ों को उछाल-उछाल कर बुर में लण्ड लेने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी। महमूद भी मेरी बुर को चोदने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। पूरी लय-ताल से मेरी बुर की चुदाई करते हुए मेरी और मेरे चूत की तारीफ के साथ मेरी बुर का भोसड़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

मेरी बुर भी महमूद के हर शॉट पर फूलती जा रही थी और साथ में पानी छोड़ कर लण्ड को बुर में लेने का कोई कसर नहीं छोड़ रही थी।

मैं मस्ती के आलम में आँखें बंद किए हुए बस बुर को उछाल कर लण्ड खाती रही।
ना जाने कैसे बूढ़े में इतनी ताकत आ गई थी.. वो मेरी बुर की धुनाई करते जा रहा था और मैं भी एक इन्च बिना पीछे रहे बुर मराती जा रही थी।
तभी महमूद ने गति तेज कर दी और ताबड़तोड़ मेरी बुर पर झटकों की बौछार करने लगा।

मैं लण्ड की लगातार मार से मेरी चूत झड़ने के करीब पहुँच चुकी थी ‘आह..सी.. और पेलो.. और मारो.. निकाल दो.. मेरी चूत की सारी गरमी.. आहह.. सीई.. आह.. ऐसे ही चोदो.. मेरे सनम.. और डालो मेरी बुर में.. लण्ड आहह.. सीई.. मैं गई रे.. आह.. आह.. उई.. चली गई.. आह.. सीसी..’

और मैं महमूद से लिपट कर बुर का पानी निकालने लगी.. पर महमूद अभी भी शॉट लगा रहा था और झड़ती बुर पर शॉट पाकर मेरी बुर का पूरा पानी निकल गया। मेरी पकड़ ढीली पड़ गई।

इधर महमूद अभी भी धक्के लगाए जा रहा था। मेरे झड़ने के 5 मिनट की चुदाई के बाद महमूद ने भी मेरी बुर में अपना पानी डाल दिया और वो शान्त हो गया.. चुदाई का तूफान भी थम गया था।

आप मेरी रसीली कहानियाँ पढ़ने के लिए अन्तर्वासना पर जरूर आया कीजिए। मेरी चुदाई के हर एपिसोड को जरूर पढ़िए। अगले अंक में आपको एक नई चुदाई का मजा दूँगी।

अपने ईमेल जरूर लिखना क्या मालूम मेरी चूत के नसीब में आपका लण्ड लिखा हो।
कहानी जारी है।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top