चुदाई के चाव में कुंवारी बुर की सील तुड़वाई- 2

(Xxx School Girl Hot Story)

Xxx स्कूल गर्ल हॉट स्टोरी में 19 साल की एक देसी लड़की अपने पहले सेक्स का बेसब्री से इन्तजार कर रही है. उसने अपने पड़ोस के लड़के से दोस्ती करके पहले सेक्स का रास्ता साफ़ किया.

फ्रेंड्स, मैं आपको अपनी सेक्स कहानी में सुना रही थी कि मेरी पहली चुदाई किस तरह से हुई और मेरी कुंवारी चूत की सील कैसे टूटी.

इस कहानी के पहले भाग
कमसिन लड़की को चुदाई की लगन लगी
में आपने अब तक पढ़ लिया था कि मैंने अपनी दीदी से कह तो दिया था कि वो सामने वाले लड़के ने ही मुझे चोदा है. मगर मैं उस लड़के को जानती तक नहीं थी इसलिए अपनी दीदी के सामने से उठ कर अन्दर चली गई.

अब आगे Xxx स्कूल गर्ल हॉट स्टोरी:

उन दिनों मेरा वो ही रूटीन था. घर, स्कूल और चबूतरे पर बैठना.

शुरू के कुछ दिन बीत गए.
मुझे स्कूल में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था.
मेरा कोई दोस्त भी नहीं था.

हमारे स्कूल में सुबह प्रार्थना के समय हर क्लास से कोई एक लड़का या लड़की कोई अच्छे मैसेज वाली बात बताने के लिए आगे आते हैं.
उस दिन रोज की तरह में नीचे गर्दन करके मिट्टी में उंगली से कुछ बना रही थी.

तभी रोज की तरह एक लड़का आगे गया और अपना प्रेरक किस्सा सुनाने लगा.
उस आवाज ने मुझे ऊपर देखने पर मजबूर कर दिया.

मैंने ज्यों ही देखा तो ये तो वही लड़का था, जिसके लिए मैंने दीदी को बोला था.
अब तो मुझे दीदी को बताने के लिए एक और मजबूत प्वाइंट मिल गया था कि ये लड़का मेरे साथ स्कूल में पढ़ता है.

उसी बारे में सोचते रहने के कारण उस लड़के में मेरी दिलचस्पी और बढ़ने लगी.
मैं अब हमेशा स्कूल में उसे ही खोजती रहती.

एक लड़की से मैंने उसकी क्लास का पता किया, वो मेरे से एक क्लास आगे था.
मैं अब कुछ हद तक उसके बारे में सोचने लगी और वो अहसास मेरे लिए नया था तो वो मुझे उस अकेलेपन की आदत लगने लगी.

अक्सर मैं खाना खाकर छत पर टहलने आ जाती थी और उसके ख्यालों में खोई रहती थी.
ऐसे ही घूमते हुए मुझे एक रात पड़ोसियों के घर से लड़ने झगड़ने की आवाजें आने लगीं.

पहले मैंने गौर नहीं किया और मकान की दीवार पर बैठ गई.
हमारे मकान से लगभग 10 मकानों की छत जुड़ी हुई है, कोई भी किसी भी मकान की छत पर आ जा सकता है.

उनको केवल हर मकान की एक छोटी दीवार पार करनी होती है.

हमारे मकान की उसी दीवार पर बैठी बैठी मैं उस लड़के के बारे में सोच रही थी.

तभी उस झगड़े वाले घर से एक आवाज तेज होने लगी और उस आवाज ने मेरा ध्यान खींच लिया.
वो आवाज वाला शक्स धीरे धीरे ऊपर आ रहा था.

मुझे आवाज जानी पहचानी लगी लेकिन अंधेरे में मैं उसे पहचान नहीं सकी.

वो मुझे ऊपर देख कर मेरी तरफ आने लगा.
अब मुझे वहां बैठने का अफसोस होने लगा कि ये अब मुझसे कुछ बात करेगा, कुछ पूछेगा.

मुझे किसी से बात नहीं करनी थी, मैं तो बस उन ख्यालों में ही खोई हुई रहना चाहती थी.

तभी उसने मेरी पीठ पर एक जोर से धौल लगाई और मेरे पास बैठ गया.
मुझे दर्द हुआ और मुँह से आह निकल गई.

मैंने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो उसने भी मेरी तरफ देखा.
मैं उसको देखते ही हक्की बक्की रह गई.

ये वही लड़का था, उसको देखते ही मेरे मुँह से निकल गया- तुम!
उसने भी मुझे देखा और बोला- तुम कौन हो?

मैंने अपने आपको संभाला और उसको डांटने के अंदाज में बोली- तुमने मुझे मारा क्यों?
अब वो लड़का डरने लग गया.
उसने मुझसे सॉरी कहा और बोला- मुझको लगा कि संगीता है, इसलिए मैंने आपको मारा था.

तब मुझे अहसास हुआ कि वो यहीं पास में रहता है और दीदी को भी जानता है.

मेरे पूछने पर उसने बताया कि आज घर में कुछ समस्या हो गई थी और इन सबसे बचने के लिए मैं ऊपर आ जाता हूं. लगभग हर बार मुझे तुम्हारी दीदी ऊपर मिलती है, बस इसी लिए तुम्हें संगीता समझकर मार दिया.

तभी मुझे सीढ़ियों से किसी के आने की आहट सुनाई दी, वो दीदी थी.
उसने आते ही हमें देख लिया.

उसको पहले ही मैंने झूठ बोल रखा था और वही लड़का मेरे साथ बैठा था.
तो दीदी को लगा कि इन दोनों के बीच सच में कुछ है.

दीदी ने मेरे ऊपर ताना कसते हुए कहा- तुम दोनों यहीं पर मत शुरू हो जाना, घर के और कोई भी ऊपर आते जाते रहते हैं.

मैं उस समय झेम्प गई क्योंकि मैं दीदी की बात समझ गई थी.
लेकिन उस लड़के को कुछ समझ नहीं आया; वो हमारी तरफ देखने लगा.

तभी दीदी ने दूसरा मुद्दा छेड़ दिया और बोली- ओए राकेश, तू क्यों रोज रोज लड़ता है. आज फिर से क्या हो गया?

तब मुझे पता चला कि उसका नाम राकेश है.
वो बोला- वही रोज रोज का लफड़ा यार!

इस तरह वो दोनों बातें करने लगे और मैं राकेश को देखने लगी.
उसका बोलना देखना मुझे सब अच्छा लग रहा था.

तभी दीदी को मम्मी ने आवाज लगाई, तो वो नीचे चली गई.

मैं भी राकेश को चलने के लिए बोलकर उठी, तभी मैंने यूं ही पूछ लिया- वैसे तुम्हारा नाम क्या है?

वो मुझे घूरकर देखते हुए बोला- तुम जानती तो हो!
मैं हकला गई और बोली- मैं कैसे जानूंगी तुम्हारा नाम?

वो बोला- मेरा नाम राकेश है और ये तुम जानती हो … और ये ‘यहीं पर शुरू नहीं हो जाना’ वाला क्या लफड़ा है, जो तेरी दीदी ने बोला था. मैं कब से सोच रहा था कि तुम देखी हुई लग रही हो, अब मुझे सब याद आ गया. तुम शायद मेरे स्कूल में ही पढ़ती हो.

उसका एकदम से ये रूप देख कर मैं हैरान रह गई.
मुझे लगा था इसे कुछ नहीं पता होगा.
मैंने कुछ नहीं कहा और नीचे आ गई.

अब मेरे लिए ये सब कुछ नया था और मेरा मन अन्दर ही अन्दर उछल रहा था कि जिसे मैं बाहर ढूंढ रही थी, वो मेरे ही घर के बगल में रहता है.

दूसरे दिन स्कूल में हम दोनों की आंखें कई बार मिलीं और वो हर बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता.
मैं भी जवाब में मुस्कुरा देती.

इसी तरह कुछ दिन बीत गए.

अब हम अक्सर छत पर मिलते और बस इधर उधर की बातें करते.

मुझे पता चला कि उसके मामा की कपड़ों की दुकान है. स्कूल के बाद वो वहीं रहता है. वो यहां बचपन से रह रहा है. उसका गांव बहुत छोटा है, वहां पर उस समय स्कूल नहीं था, तो उसको मामा के यहां भेज दिया था.

वो भी पढ़ाई में इतना अच्छा नहीं था तो उसके मामा उसको डांटते रहते थे.
उस डांट से बचने के लिए वो ऊपर आ जाता था, दीदी वहां पहले ही मिल जाती थी और वो उसको समझाती थी.

वो दोनों खूब देर तक बातें करते रहते थे.
घर पर भी वो सबसे मिला-जुला था, तो अक्सर वैसे भी आ जाता था. कभी कभार मामा ज्यादा डांटते, तो वो बिना खाना खाए हमारे घर आ जाता था.

उसके मामा की लड़की पहले ही हमारे घर आकर बता जाती थी कि उसने खाना नहीं खाया है, तो मेरी मम्मी उसको खाना खिला देती थीं और उसको कमरे में सोने को बोल देती थीं.
ये सब मुझे दीदी ने बाद में बताया था.

एक रात यूं ही हम छत पर बैठे थे और बातचीत कर रहे थे.

जब रात को हम जाने लगे तो उसने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर उन्हें चूम लिया.

मेरे लिए ये पहला मौका था, जब किसी लड़के ने मुझको किस किया था.
उस वक्त उसका मुझे इस तरह से किस करने का आभास भी नहीं था, तो मैं उसे किस करते ही एकदम से डर गई और एक अजीब से अहसास से अन्दर से हिल गई.

डर के कारण मेरी आंखों से आंसू भी आ गए.
मेरी आंखों में आंसू देख कर राकेश डर गया और मुझसे माफ़ी मांगने लगा.

वो किसी को नहीं बोलने के लिए बोलने लगा.
उस समय मुझे उस पर गुस्सा भी आ गया और मैं गुस्से में नीचे चली गई.

उस रात के बाद मैंने कुछ दिनों तक उससे बात नहीं की. उसने स्कूल में भी मेरे से बात करने की कोशिश की, लेकिन मैंने उससे बात नहीं की.

वो अब मुझसे डरने लगा और मेरे सामने डर से गर्दन नीचे कर लेता.
फिर धीरे धीरे मुझे उस पर दया आने लगी और मुझे अहसास होने लगा कि वो गलत नहीं था.

मैं भी उसकी तरफ आकर्षित होने लगी थी. हमारा रोज मिलना, एक दूसरे के बिना अच्छा नहीं लगना, ये सब उस हालात के कारण थे.
मैंने भी उसे माफ करने का मन बना लिया था.

इस दौरान मुझे पता चला कि दो दिन बाद राकेश का बर्थडे है, तो मैंने मन ही मन प्लान बना लिया था.
उस समय आज की तरह स्कूल में टेबल, स्टूल नहीं होते थे.

क्लास में केवल एक कुर्सी होती थी, जो अध्यापक के लिए होती थी, बाकी बच्चों के लिए दरी पट्टी होती थी. जिनको क्लास के एक बच्चे को अपनी बारी के अनुसार छुट्टी के बाद समेटकर एक जगह रखना होता था.

मैंने दो दिन तक भी उससे बात नहीं की. मैंने उसके बर्थडे वाले दिन शाम को छुट्टी का इंतजार किया.

राकेश का दरी पट्टी समेट कर रखने का नंबर बर्थडे वाले दिन से दो दिन बाद आने वाला था.
उससे पहले दो और लड़कियों का नंबर था.

मैंने उन लड़कियों को बहाना बना कर निकल जाने के लिए मना लिया था.
स्कूल की छुट्टी होने के बाद प्लान के अनुसार दोनों लड़कियां बहाना बना कर निकल गईं जिस वजह से राकेश को दरी समेटने के लिए रुकना पड़ा.

मेरी क्लास में एक लड़की का नंबर था तो मैं उसका साथ देने के बहाने रुक गई.

कुछ देर मैं उसके साथ दरियां समिटवाने लगी.
चूंकि हम दो थीं, तो काम से जल्दी फ्री हो गई थीं.

मैंने उस लड़की को भेज दिया और बाहर किसी को नहीं पाकर मैं सीधा राकेश की क्लास में आ गई.
उसने भी अपना काम लगभग कर दिया था और सभी दरियों को एक जगह रखने में बिजी था.

मेरे आ जाने का उसे बिल्कुल भी पता नहीं चला.
मैंने मौके का फायदा उठाया और राकेश को पीछे से जाकर पकड़ लिया.

इस तरह अचानक से मेरे पकड़ने से वो घबरा गया और एकदम से पीछे मुड़ा.
मैं भी उसको पकड़ी हुई थी, तो मैं भी उसके साथ घूम गई.

हम दोनों का बैलेंस नहीं बन पाया और हम दोनों उन समेटी हुई दरियों पर ही गिर गए.

मैं राकेश के नीचे दब गई, मेरे मुँह से चीख निकल गई.

राकेश को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है.
उसने उठने के लिए अपने हाथ को सहारे के लिए नीचे दबाया तो उसका हाथ सीधे मेरे एक स्तन पर गिरा.

उसके उठने के कारण मेरा स्तन दब गया और फिर से मेरे मुँह से चीख निकल गई.
लेकिन तब तक राकेश संभल गया था तो उसने मेरा मुँह दबा लिया और मेरे को उंगली से चुप रहने का इशारा करने लगा.

तब तक मैं भी अपने होश में आ गई थी.
मुझे सब कुछ समझ में आया तो मुझे हंसी आ गई कि यहां क्या प्लान होने वाला था और क्या हो गया.

मुझे हंसते हुए देख कर राकेश की जान में जान आई.
तब उसने खड़ा करने के लिए मुझे अपना एक हाथ दिया.

मैं ज्यों ही खड़ी हुई, मेरे स्तन में दर्द हुआ … जिससे मैं लड़खड़ा गई और राकेश की बांहों में गिर गई.

इसी बहाने मैंने उसे कस कर पकड़ लिया.
फिर उसने मुझे अलग किया तो मैंने गुस्से वाला चेहरा बना दिया.
उसने मुझसे पूछा- कहां दर्द हो रहा है?

मैंने शर्माते हुए मेरे स्तन की ओर इशारा किया.
तो उसने बोला- दबा दूं क्या?

मैंने गुस्से और प्यार से उसे उसकी छाती पर एक मुक्का मारा.
उसने मुझसे फिर से माफी मांगी और मुझे कस कर गले लगा लिया.

तब मैंने उसे बर्थडे विश किया, वो बोला मेरा बर्थडे गिफ्ट कहां है?
मैंने कहा- आज रात को छत पर खाना खाने के बाद मिलना.

ये कह कर मैं चली आई और उसको वो बिखरी हुई दरियां फिर से समेटनी पड़ीं.

शाम को खाना खाकर मैं जल्दी से ऊपर आ गई.

मैंने एक टाइट टी-शर्ट और टाइट लैगी पहन रखी थी.
लैगी इतनी टाइट थी कि उसमें से मेरी चूत के दोनों होंठों को आराम से महसूस किया जा सकता था.

लेकिन रात को किसी ने ध्यान नहीं दिया.

ऊपर छत पर राकेश पहले से वहीं इंतजार कर रहा था.
मैंने उससे कहा- इतनी जल्दी है क्या गिफ्ट की?

वो कुछ बोलता, उससे पहले मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों को अच्छे से चूम लिया.

आज आश्चर्यचकित होने की बारी उसकी थी लेकिन फिर वो भी मेरा साथ देने लगा.
उसने अपना मुँह खोल दिया और मेरी जीभ को अन्दर जाने दिया.

मेरे लिए ये सब नया था, लेकिन इतना मुझे पता चल गया था कि राकेश के लिए भी ये सब कुछ पहली बार और नया था.

दोस्तो, बस अब अगले भाग में आपको फुल चुदाई का मजा मिलने वाला है.
तो अपने आइटम सम्भाल लेना और मुझे बताने से न चूकना कि मेरी Xxx स्कूल गर्ल हॉट स्टोरी कैसी लग रही है.
मेल और कमेंट्स करें.
[email protected]

Xxx स्कूल गर्ल हॉट स्टोरी का अगला भाग: चुदाई के चाव में कुंवारी बुर की सील तुड़वाई- 3

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top