एक दिल चार राहें -6

(Sexy Padosan Ki Kahani)

प्रेम गुरु 2020-07-18 Comments

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कामवाली लड़की तो चली गयी, लंड खड़ा रह गया. सेक्सी पड़ोसन की कहानी में पढ़ें कि मार्केट में मुझे पड़ोस वाली भाभी मिल गयी. उनसे बात हुई तो वो भी अकेली थी.

सानिया के बिना पूरा घर ही जैसे बेनूर सा लगाने लगा था। पूरे मूड की ऐसी तैसी हो गई थी। मेरे दिल-ओ-दिमाग में तो इस समय बस सानिया का कमसिन बदन ही छाया हुआ था।
आज बहुत दिनों के बाद मुट्ठ लगाई थी।
अब तो बस कल की सुबह का इंतज़ार है जो सानिया रूपी सुरमई उजाले के रूप में मेरी आँखों को तृप्त करने वाली है।

कोई 4 बजे मेरी आँख खुली। टाइम पास करने के लिए मार्किट चला आया।
सानिया के लिए क्रीम और जूते भी खरीदने थे ATM से पैसे भी निकलवाने थे।

आजकल भरतपुर के फर्स्ट मॉल में डिस्काउंट सेल चल रही है। वहाँ से मैंने सानिया के लिए पैरों की बिवाई के लिए क्रीम खरीदी. फिर एक जोड़ी जूते, चप्पल, जुराबों की 2 जोड़ी और ब्रा पेंटी खरीद ली। साथ में बढ़िया चोकलेट्स का एक बड़ा सा पैकेट भी ले लिया।

अब मैं वापस घर जाने की सोचने लगा था।
सयाने कहते हैं भगवान् जब एक रास्ता बंद करता है तो कई नए रास्ते भी खोल देता है।

मैं सामान के पैकेट्स पकड़े मॉल से बाहर आने ही वाला था कि अचानक ‘हाई’ की आवाज से मैं चौंका।
कितना सुखद आश्चर्य था कि सामने से संजीवनी बूंटी खड़ी थी।

हे लिंगदेव! हल्के भूरे रंग की जीन पेंट और नाभि दर्शाना छोटे से टॉप में इसकी पतली कमर और उसके नीचे थिरकते नितम्ब तो ऐसे लगते हैं जैसे कोई ढ़ाई किलो आरडीएक्स समेटा हुया हो।
साली यह संजीवनी बूंटी तो इस उम्र में भी पूरी चिरयौवना लगती है। हे लिंग देव! काश एकबार पूरी रात इसे बांहों में भरने का मौक़ा मिल जाए तो इसे चिरयौवना को चिरसुहागन बना दूं।

“ओह … हाई … अरे मिसेज बनर्जी! आप यहाँ कैसे?”
“हा.. हा.. हा … यही तो मैं पूछ रही हूँ आप यहाँ कैसे?”
“अरे वो दरअसल छोटा-मोटा सामान लेना था और समय बिताने के बहाने आ गया था.”
“मैं भी अकेली थी तो सोचा क्यों ना आज शॉपिंग कर ली जाए.”

“गुड … पर … अकेली? मेरा … मतलब बनर्जी साहेब नहीं आए साथ में?”
“नहीं वो 3-4 दिन के लिए कोलकता गए हैं।”
“ओह … और सुहाना?”
“वो भी 2 दिन के लिए अपने कजिन के यहाँ चली गई है मैं आजकल अकेली ही बोर हो रही हूँ.”

हे लिंगदेव ! जिस प्रकार संजीवनी बूंटी ने अपनी मोटी-मोटी कजरारी और नशीली आँखों को मटकाते हुए यह संवाद बोला था मेरे तो कलेजे का ही जैसे चीर हरण हो गया था। मैं तो बस उसे ऊपर से नीचे तक देखता ही रह गया।

“आप भी लगता है अकेले आए हैं, मिसेज माथुर वापस नहीं आई क्या?”
“अभी नहीं … उसे तो अभी थोड़ा समय और लगेगा.”
“आप तो उसे बहुत मिस करते होंगे ना?”
“हाँ सही है पर क्या करें उसकी भी मजबूरी है।”

उसने जिस प्रकार पूछा था मैं तो बहुत देर तक इस फिकरे के मतलब के बारे में सोचता ही रह गया था।
“आपकी शॉपिंग हो गई क्या?” मैंने पूछा.
“अभी कहाँ? आप मेरी हेल्प करेंगे ना?”
“ओह … पर मैं तो इस मामले में बिल्कुल अनाड़ी हूँ।“

“हा हा हा …” संजीवनी बूंटी हंसने लगी थी।
“कोई बात नहीं आज आपका अनाड़ीपन भी आजमा लेते हैं.” उसने कामुक मुस्कान के साथ मेरी ओर देखेते हुए कहा।
आप मेरे दिल की हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

फिर उसने सुहाना के लिए ब्रा-पेंटी, कपड़े और शूज आदि लिए। उसे खरीददारी करते समय मैं तो गूंगे लंड की तरह बस हाँ … हूँ ही करता रहा।

हमें 1 घंटा तो इस खरीददारी में लग ही गया था। मेरा मन तो कर रहा था सानिया के लिए भी एक जीन पेंट और टॉप खरीद लूं पर इस लैला के सामने यह सब खरीदना अच्छा नहीं लग रहा था अगर उसने पूछ लिया कि यह किसके लिए है तो मेरे पास तो शायद कोई जवाब ही नहीं होगा।

खैर मैंने यह काम किसी ओर दिन के लिए छोड़ दिया।

मैं अपनी गाड़ी लेकर आया था। संजीवनी बूंटी शायद बस या ऑटो रिक्शो से आई थी। वापसी में वह मेरे साथ ही आगे की सीट पर मेरी बगल में बैठ गई।

रास्ते में मैंने ने किसी रेस्टोरेंट में कॉफ़ी पीने का प्रस्ताव रखा तो उसने उलाहना देते हुए कहा- आप तो बस बाहर से ही निपटा देना चाहते हो?
“अरे नहीं … ऐसी बात नहीं है.” मैंने सकपकाते हुए कहा।
“क्यों घर पर कॉफ़ी नहीं पिलायेंगे क्या?”
“ओह … हाँ श्योर … मोस्ट वेलकम!”

मुझे तो जैसे कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था। पता नहीं इन हसीनाओं को देखते ही मेरा दिमाग तो जैसे काम करना ही बंद कर देता है। और जिस प्रकार यह लैला (संजीवनी बूंटी) हंस-हंस कर बिंदास बातें कर रही थी मेरा दिल तो जोर-जोर से धड़कने ही लगा था। वैसे कॉफ़ी पिलाना तो बस बहाना था मुझे तो उसके साथ टाइम बिताना था।

मैंने गाड़ी को गली में ही पार्क कर दिया।
जब मैंने सेक्सी पड़ोसन को घर चलने को कहा तो वह बोली- प्रेम जी! अभी कॉफ़ी रहने देते हैं आपको परेशानी होगी और बहुत लेट हो जाएगी … एक काम करते हैं?
“क.. क्या?”
“पहले वादा करे आप ना नहीं कहेंगे?”
“ओह.. हाँ … प्लीज बोलिए!”

“देखिये … आज मैं भी अकेली हूँ और आप भी … तो … क्यों ना आज का डिनर आप हमारे यहाँ साथ ही करें?”
मुझे तो इस लैला के इस प्रस्ताव पर जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। पता नहीं इसके दिमाग में क्या चल रहा है।

“क्या हुआ? … क्या सोचने लग गए?”
“ओह … हाँ … दैट्स गुड आईडिया!”

“तो फिर आप जल्दी फ्रेश होकर हमारे यहाँ पर आ जाएँ मैं आपके लिए बढ़िया डिनर बनाती हूँ.” उसने जानलेवा तीखी मुस्कान के साथ कहा।

अब तो मैं बहुत कुछ सोचे जा रहा था। एक बात का थोड़ा डर सा भी जरूर था कि कहीं मोहल्ले की औरतें मुझे उसके घर आते जाते ना देख लेंगी तो हो सकता है कुछ और सोचने लग जाए।
वैसे यह मधुर की तरह यह लैला भी मोहल्ले वालों से मिलने-जुलने में परहेज ही बरतती है इसलिए ज्यादा चिंता वाली बात भी नहीं है।

“आप कहें तो बाहर किसी अच्छे रेस्तरां … में … डिनर कर लेते हैं.”
“विश्वास रखें मैं खाना अच्छा बनाती हूँ।” मुझे असमंजस में पड़ा देखकर उसने हंसते हुए कहा।
“नहीं … नहीं मेरा वो मतलब नहीं था.” अब मेरे पास हामी भरने के अलवा और क्या कोई रास्ता कहाँ बचा था।

रात को मैं कोई नो बजे होंगे उसका फ़ोन आ गया। वह डिनर पर बुला भी रही थी और उलाहना भी दे रही थी- प्रेमजी! क्या हुआ? आप तो आये ही नहीं अभी तक मैं कब से वेट कर रही हूँ!
“हाँ.. वो … सॉरी … ओके … मैं आ रहा हूँ.” मैंने हकलाते हुए कहा।
भेनचोद यह जबान भी कई बार साथ ही नहीं देती।

आज उससे मिलने के लिए मैंने भी नया कुर्ता और पायजामा पहना था और अपनी तरफ से पूरा चिकना बनकर तैयार हुआ बैठा था।

थोड़ी देर में मैं उसके घर के सामने था। मैंने जैसे ही कॉल-बेल का बटन दबाया अन्दर से कुत्ते के भोंकने जैसी आवाज आई; बाद में संजीवनी बूंटी की।
वह शायद शुक्कू (डॉगी का नाम) को चुप करा रही थी- नो … बेबी … नो!

और फिर लैला ने झट से दरवाजा खोल दिया। मुझे लगा वह दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी। शुक्कू मियां कूं कूं करते उसके पैरों में लिपटने लगे।

आज तो संजीवनी बूंटी तो आज पूरी लैला ही बनी थी।
बालों की खुली चोटी और उसमें मोगरे का एक गज़रा। मोटी-मोटी आँखों में काजल, होठों पर लाल रंग की लिपस्टिक और कलाइयों में चूड़ियों की जगह गज़रा।
बाएं हाथ की अँगुलियों के लम्बे नाखूनों पर मैरून रंग की नेलपोलिश।

उसने गले में मंगलसूत्र तो जरूर पहना था पर मांग में सिन्दूर पता नहीं क्यों गायब था। उसने हल्के पिस्ता रंग का झीना स्लीवलेश गाउन पहना था जिसे कमर पर फीते से बांध रखा था। इस ड्रेस में तो उसके क़यामत भरे मखमली बदन की पूरी रूपरेखा साफ़ दिख रही थी।

मुझे लगता है उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी है। इस उम्र में भी इसकी इतनी पतली कमर और वक्षस्थल का कसाव किसी 20-22 साल की नव यौवना (तरुणी) जैसा लग रहा था।

उसके बदन से आती जवान बदन की खुशबू से मेरा स्नायु तंत्र सराबोर हो गया। शायद उसने नहाने के बाद बढ़िया परफ्यूम या बॉडी स्प्रे भी किया था।

जब सेक्सी पड़ोसन ने घर का दरवाजा खोला तो मेरा ध्यान अनायास ही उसकी लम्बी चिकनी छरहरी बांहों पर चला गया था।
हे भगवान्! उसकी बांहें तो एकदम साफ़ शीशे की तरह चमक रही थी। बालों का तो नामो निशान ही नहीं था। मुझे लगता है उसने जरूर वैक्सिंग या किसी हेयररिमूवर से बाल साफ़ किये होंगे।

कांख के पास पतली छछहरी बांहों के संधि स्थल को देखकर यह अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था कि इसकी बुर तो कमाल की होगी।
मैंने सुना भी है और कहानियों में भी पढ़ा है कि बंगाली औरतें अपने गुप्तांगों के पूरे बाल साफ़ नहीं करती हैं। हाँ … थोड़े ट्रिम जरूर कर लेती हैं। ऐसा करके वो अपने प्रेमी या पति को खूब रिझाती हैं। याल्ला … उसकी श्याम सलोनी बुर तो हल्के झांटों से ढकी खुशबू ही छोड़ रही होगी।

इन ख्यालों से मेरा लंड तो घोड़े की तरह हिनहिनाने ही लगा था।

मुझे अपनी ओर घूरते पाकर उसने कहा- आइये … माथुर साहेब प्लीज अन्दर आइये ना!
“ओह … हाँ.” मुझे अपने आप पर थोड़ी शर्मिंदगी सी हुई पता नहीं मुझे अपनी ओर घूरते पाकर वह क्या सोच रही होगी।

मेनगेट का दरवाजा बंद करके हम दोनों अन्दर आ गए तो वह मुझे हॉल में पड़े सोफे पर बैठने का बोलते हुए रसोई में चली गई। मैंने बाजार से जो चोकलेट्स का पैकेट सानिया के लिए खरीदा था वह साथ ले आया था।

मैं सोच रहा था मेरी सुहाना नामक फुलझड़ी चोकलेट खाते समय मेरे बारे में जरूर सोचेगी। वह पैकेट मैंने सोफे के पास रखी मेज पर रख दिया।

अब मैंने हाल में नज़र दौड़ाई। हॉल में मध्यम रोशनी थी। घर ठीक ठाक ढंग से सजाया हुआ था। सामने वाली दीवाल पर सुहाना का बड़ा सा पोस्टर लगा था।
याल्ला … उसने एक हाथ में टेनिस का रैकेट और दूसरे हाथ में ट्रॉफी पकड़ी हुई थी। छोटी सी स्कर्ट में झांकती उसकी मखमली जांघें और तंग सी शर्ट में दबे फंसे गोल उरोज तो जैसे क़यामत ही ढा रहे थे। हे भगवान्! अपनी जवानी के दिनों में यह लैला भी इतनी ही खूबसूरत रही होगी।

सामने ही शो केस में कई ट्रॉफियाँ रखी हुई थी। और 3-4 फ्रेम की हुई हाथ से बनी पेंटिंग्स भी रखी थी। वैसे भी बंगाली औरतें कलाकार और हुनरमंद होती हैं, मुझे लगता है यह पेंटिंग जरूर लैला ने ही बनाई होगी।

डाइनिंग टेबल पर बहुत से बर्तन और हॉटकेस रखे लग रहे थे। लगता है लैला ने आज बहुत से चीजें बना डाली हैं।
थोड़ी देर में वह ट्रे में रखे दो गिलास लेकर आ गई।

“डिनर बाद में करते हैं पहले आपको रेल्ली सिंह का स्पेशल बादाम शरबत पिलाती हूँ। पता है यह शरबत कोलकता से मंगवाया है.” लैला तो आज खूब चहक रही थी।
“ओह … थैंक्स!”

शरबत वाकई लाजवाब था। शरबत पीते समय मैं सोच रहा था काश! इसका असली दूध वाला शरबत पीने को मिल जाए तो खुदा कसम यह जिन्दगी जन्नत बन जाए।

“आपका शरबत तो वाकई बहुत ही लाजवाब है।” मैंने तारीफ़ करते हुए कहा।
“और लाऊँ?”
“अरे नहीं … थैंक यू।”
“सॉरी … मैंने डिनर में आपकी पसंद तो पूछी ही नहीं?”

“अरे कोई बात नहीं हम लोग तो बस जो भी मिल जाए खा लेने वाले इंसान हैं, ज्यादा नखरे नहीं करते।“ मैंने हंसते हुए कहा।

“मैंने आज अपने हाथों से आपके लिए बंगाल की स्पेशल लुच्ची और शुक्तो बनाया है और साथ में खिचुरी और बंगाली मिष्ठी पुलाव भी बनाया है। आपको जरूर पसंद आएगा।”
लुच्ची नाम सुनकर मुझे हंसी सी आ रही थी।

मैंने कहा “अरे … आपने बहुत कष्ट किया? क्या जरूरत थी इतनी चीजों की?”
“अपनों के लिए कोई कष्ट थोड़े ही होता है?” मेरी सेक्सी पड़ोसन की मुस्कान तो कातिलाना ही थी।

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सेक्सी पड़ोसन की कहानी जारी रहेगी.

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