रिश्ता वही सोच नई-2

(Rishta Vahi Soch Nai-2)

राहुल कदम 2015-04-27 Comments

This story is part of a series:

आज रिपोर्ट मिलने का दिन था। दीप्ति की आँखें सूजी हुई थीं.. जैसे वो सारी रात रोई हो और वो अभी भी रो रही थी।
मुझे अपने भैया पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
मैं दीप्ति को गाड़ी पर बिठा कर ले जाने लगा। दीप्ति रो रही थी.. मैं दुखी तो था पर मैं उससे कैसे पूछू मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था।
दीप्ति अभी भी रो रही थी। हमने रिपोर्ट ली और वापस आने लगे.. पर वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी.. मैंने बाइक रोकी और उसके गाल से आंसू पोंछे।
मेरे इतना करते ही वो ‘राहुल..’ बोलकर मुझसे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी।
मैं वैसे ही खड़ा रहा.. थोड़ी देर बाद वो हटी और उसने मुझसे माफ़ी मांगी, उसने अपना चेहरा साफ़ किया।
अब मैंने पूछा- दीप्ति बात क्या है?
तो दीप्ति बोली- तुम्हारे मतलब की बात नहीं है।

मुझे गुस्सा आया.. मैंने गुस्से में उसे देखा, उसने अपना सर नीचे किया और हम घर जाने लगे।
मैंने बाइक खड़ी की और मैं अपने घर जाने लगा तो दीप्ति बोली- प्लीज राहुल हमारे घर चलो.. मुझे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा है.. प्लीज तुम्हें हमारी अपनी पुरानी दोस्ती की कसम।
मैं कसम की लाज रखते हुए दीप्ति के साथ उसके घर चला गया।

मैं और दीप्ति बैठ कर बातें कर रहे थे। मैंने कहा- दीप्ति मैं तुम्हें अभी भी उतना ही प्यार करता हूँ.. जितना बचपन में करता था।
दीप्ति मुस्कुराई और उठकर चलने लगी। उसे हँसते हुए देखकर मुझे अच्छा लगा। उसकी साड़ी का पल्लू सोफे के बीच फंस गया और जैसे ही वो मुड़ी.. उसके सीने से पल्लू गिर गया।

मुझे दीप्ति के दोनों कच्चे आम दिखने लगे.. पर मेरे दिल में उसके लिए कोई गलत भावना या वासना नहीं थी।
दीप्ति चिल्लाई- राहुल..!
उसे लगा, उसका पल्लू मैंने ही खींचा है। मैं उठ कर मेन गेट पर आ गया। दीप्ति ने पीछे मुड़कर देखा.. तो उसका पल्लू सोफे में फंसा हुआ था।
उसने मुझसे सॉरी कहा।

मैंने गुस्से में कहा- तुम हमेशा मुझे गलत क्यों समझती हो। बचपन में तुमने मेरे प्यार को गलत समझा और आज भी..
यह कहकर में घर आ गया।

थोड़ी देर में दीप्ति मेरे घर पर आई, उस वक्त हमारे घर में मेरे अलावा और कोई नहीं था।
मुझे गुस्से में देखकर वो मेरे पास आई, मेरे बालों में हाथ फेरा और फिर मेरे गाल पर चुम्मी ली और बोली- मेरे प्यारे दोस्त.. मुझे माफ़ कर दो।
मैं दीप्ति की ओर घूमा और उसके गाल पर चुम्बन धर दिया और कहा- माफ़ कर दिया।
उसके गाल बहुत नरम थे, हम दोनों हँसने लगे।

मैंने फिर दीप्ति से पूछा- तुम्हें मैं कैसा लगता हूँ।
उसने कहा- अच्छा..
मैंने पूछा- कितना अच्छा?
तो दीप्ति ने कहा- अगर मेरी शादी नहीं हुई होती.. तो मैं तुमसे कर लेती।

मैं बहुत खुश हुआ। मैंने दीप्ति के हाथ पकड़ कर चूमे और मैंने दीप्ति से कहा- सच-सच बता.. ये डॉक्टर के पास जाने का और तुम्हारा रोने का क्या कारण है।
यह सुनते ही दीप्ति मेरे गले से लग गई। और फिर रोने लग गई।
वो मुझसे चिपक कर मेरे अन्दर की वासना जगा रही थी। मैंने फिर से पूछा.. तो दीप्ति ने बताया- सास और भैया उसे ताने मारते हैं.. क्योंकि वो बच्चा नहीं दे सकती..
मैं उसे हैरत से सुन रहा था।

दीप्ति आगे बोली- मुझ में कोई कमी नहीं है.. तुम मेरी रिपोर्ट देख लो.. तुम्हारे भैया में ही कमी है.. पर वे मानते ही नहीं और मुझे मारते हैं।
इतना कहकर फिर से रोते हुए वो मेरे गले लग गई। इस बार दीप्ति ने मुझे इतनी जोर से गले लगाया कि उसके आम मेरी छाती में गड़ गए।

अचानक मेरे हाथ दीप्ति की कमर पर चलने लगे, दीप्ति ने भी अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए।
मैंने उससे कहा- तुम भैया को छोड़ क्यों नहीं देती?
तो वो बोली- बदनामी तो मेरी ही होगी और फिर कौन मुझ से शादी करेगा?

इसी बीच मेरे हाथ दीप्ति की गाण्ड पर पहुँच गए। मैंने उन्हें अपनी ओर दबाया और दीप्ति ने भी मुझे कस कर जकड़ लिया। मेरा लण्ड तन चुका था.. जो मैं दीप्ति की चूत पर रगड़ रहा था। दीप्ति और मैं एक-दूसरे को बुरी तरह से भींच रहे थे, उसके निप्पल खड़े चुके थे जो मुझे महसूस हो रहे थे।

दीप्ति अब हल्की-हल्की सिसकार रही थी। और मैं फिर दीप्ति के होंठ चूसने लगा। दीप्ति ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी।
अब मेरे हाथ दीप्ति के मम्मों पर आ गए थे.. जिन्हें मैं अच्छी तरह से दबा रहा था और बीच-बीच में उसके निप्पल भी भींच रहा था।
दीप्ति गरम हो चुकी थी।
दीप्ति मुझसे लिपट कर बोली- मुझे अपनी बना लो राहुल.. मुझे बच्चा दे दो।
वो अपनी चूत मेरे लण्ड के साथ रगड़ने लगी। मैंने भी दीप्ति के ऊपर हमला बोल दिया। दीप्ति के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा।

उसने गर्म होकर अपने ब्लाउज के हुक खोल दिए। मैंने उसके ब्लाउज को उतार कर फेंक दिया।
उसने काली ब्रा पहनी हुई थी.. क्या क़यामत लग रही थी वो..
मैंने ब्रा खोलने की कोशिश की.. लेकिन ये मेरा पहली बार था.. तो उसने ही अपने कबूतरों को आज़ाद कर दिया। अब मैं जोर-जोर से उसके निप्पल चूसने लगा, दीप्ति चुदास से गरम हो गई थी.. वो चिल्ला रही थी।
‘आहह..’

मेरा हाथ दीप्ति की चूत पर पहुँच गया। फिर मैंने उसे पूरा नंगा किया और उसके चूत पर मसाज करने लगा, दीप्ति की साँसें तेज हो गई थीं, मैंने दीप्ति को बाँहों में उठाया और बेडरूम में ले गया।
अब मैंने भी अपने सारे कपड़े निकाल फेंके, मैं फिर दीप्ति के निप्पल चूसने लग गया और एक हाथ से दीप्ति की चूत में उंगली डाल दी।
दीप्ति पूरी चुदासी हो चुकी थी और वो मेरे लण्ड को अपने हाथ से दबा रही थी।
मैंने चूत चाटना शुरू किया.. उसे कण्ट्रोल नहीं हुआ और वो मेरे मुँह के ऊपर ही झड़ गई, मुझे थोड़ा सा गंदा महसूस हुआ.. पर मजा भी आया। मैंने पहली बार वो रस चखा.. बहुत अच्छा लगा। मेरा लौड़ा भी पूरा तन चुका था।

मैंने दीप्ति के चूतड़ों के नीचे 2 तकिए लगाए और अपना लण्ड उसकी चूत पर रखा और एक जोर से धक्का दिया।
उसकी चूत बहुत टाइट थी.. मेरा लण्ड 2 इंच ही अन्दर गया था.. वो जोर से चिल्लाई, मैंने उसका मुँह दबा दिया.. वो मेरा हाथ हटा कर बोली- उई.. आह्ह.. जरा धीरे से करो..

लेकिन मुझसे रहा नहीं गया और एक जोरदार झटका फिर मारा.. अबकी बार मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत की गहराई में उतर गया। मैंने उसका मुँह अपने मुँह में लिया.. जिससे उसकी आवाज नहीं निकल पाए!

दर्द से उसके आंसू निकल गए, वो छूटने के लिए अपने हाथ-पैर फटकार रही थी.. पर मैं भी छोड़ने वाला नहीं था, मैं उसके निप्पल चूसने लगा और थोड़ी देर में उसे भी मजा आने लगा। अब वो अपनी गाण्ड उछाल-उछाल कर मेरा साथ देने लगी।
ऐसे करते-करते हम दोनों झड़ गए।

मैंने अपना माल दीप्ति की चूत में छोड़ दिया.. इसके बाद तो जैसे दीप्ति मेरी हो कर रह गई थी। इसी तरह मैंने दीप्ति को कई बार चोदा।
फिर एक दिन उसने मुझे बताया- राहुल, मेरे मेन्सिज़ मिस हो गये हैं, शायद मेरे पेट में तुम्हारा…?
मैं बहुत खुश था।
दोस्तो, यह मेरी सच्ची कहानी है.. आपको कैसी लगी मेरी यह कहानी, मुझे जरूर मेल कीजिएगा..
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