रिश्ता वही सोच नई-1
(Rishta Vahi Soch Nai-1)
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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को राहुल का प्यार भरा नमस्कार। मैं पुणे का रहने वाला हूँ.. मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। मेरा इन्जीनियरिंग का आखिरी साल चल रहा है।
जो मैं आज आपसे बांटने जा रहा हूँ, यह मेरी जिन्दगी का बहुत हसीन पल हैं।
एक साल पहले मेरे पड़ोस के भाई की शादी हुई थी.. जिसमें मैं शामिल होने नहीं आ सका, क्योंकि मेरी परीक्षा चल रही थीं.. फिर बाद में जब मैं होली पर घर आया था.. तो वे पड़ोस की नई वाली भाभी अपने घर चली गई थीं और बाद में भैया और भाभी विदेश चले गए थे।
मैं छुट्टी लेकर घर आया और पड़ोस की उन भाभी से उनकी शादी के एक साल बाद मिलने वाला था, मैंने उनको अभी तक ना तो देखा था.. और ना मैं उनका नाम जानता था, मेरे पड़ोस में रहती थीं.. इसलिए मुझे कोई ये सब जानने की जरूरत भी नहीं थी।
मैंने सब के पैर छुए.. माँ, दीदी पड़ोस की सभी औरतों के.. वहीं भाभी भी थीं।
माँ ने कहा- इसके भी छू..
मैंने जैसे ही भाभी की तरफ देखा तो मेरी आँखों में पानी आ गया.. भाभी भी मुझे देखती रहीं।
माँ ने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- नींद आ रही है.. मैं जा रहा हूँ..
पर मेरे आँख में पानी का कारण नींद नहीं.. मेरी भाभी दीप्ति थी।
वो मेरे स्कूल में पढ़ती थी। उस वक्त मैं 9 वीं कक्षा में था और वो 12 वीं कक्षा में थी।
वो बहुत ही खूबसूरत थी.. मैं हमेशा दीप्ति को देखता रहता था।
एक दिन मैं पूरे जोश के साथ दीप्ति के पास गया और बोला- मुझे तुम बहुत पसंद हो।
दीप्ति बोली- तुम कौन सी क्लास में हो?
मैंने कहा- 9 वीं कक्षा में.. और तुम 12 वीं कक्षा में..
दीप्ति बोली- अभी तुम बच्चे हो.. अगर तुम मेरे साथ के होते तो मैं तुम्हारी जरूर प्रेमिका बनती..
इतना कह कर वो हँसने लगी।
उसकी हँसी बहुत प्यारी थी.. फिर उसने मेरे सर पर हाथ फेरा और अपना हाथ बढ़ाकर कहा- हम अच्छे दोस्त जरूर बन सकते हैं।
मैंने भी उससे हाथ मिला लिया.. मेरे लिए तो यही काफी था। मैं इसे ही प्यार समझता था।
वो हर रोज मुझ से हाथ मिलाती और मेरी पढ़ाई के बारे में पूछती और मैं खुश हो जाता।
एक दिन दीप्ति ने मुझसे हाथ मिलाया, मेरा हाथ देखकर बोली- अरे.. तुम्हें तो बुखार है.. तुम स्कूल क्यों आए?
मैंने कहा- तुम्हें देखने..
वो हल्के से हँसी और उसने मेरे गाल पर चुम्बन कर दिया और बोली- मेरा प्यारा दोस्त..
फिर उसने मुझे छुट्टी दिलवा कर घर भेज दिया। वो मेरे लिए जन्नत का दिन था। ऐसे ही वक्त गुजरता रहा।
मैंने दसवीं क्लास पास करके घर के पास के स्कूल में दाखिला ले लिया और दीप्ति ने भी अपनी 12 वीं कर ली थी।
इस प्रकार हमारा स्कूल का साथ छूट गया और ये रिश्ता यहीं खत्म हो गया.. पर मैं दीप्ति को भुला नहीं पाया था.. वो मेरा प्यार थी।
अब वही दीप्ति.. मेरी पड़ोस की भाभी बन चुकी थी। मेरा दिल रो रहा था.. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. कि क्या करूँ.. कैसे प्रतिक्रिया करूँ।
अगले दिन माँ ने मुझे उठाया और कहा- जा दीप्ति को डॉक्टर के पास ले जा..
मैं मना करने लगा.. पर माँ मान ही नहीं रही थीं।
उन्होंने कहा- तेरी भाभी बाहर खड़ी है। मैंने देखा दीप्ति नीले रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही है और वो अपनी नजरें नीचे झुका कर खड़ी है।
मैंने अपना गुस्सा छोड़ कर गाड़ी निकाली और दीप्ति को डॉक्टर के पास ले जाने लगा।
करास्ते में न मेरी कुछ बोलने की हिम्मत हुई.. ना उसकी। हम हस्पताल पहुँच गए। मैं बाहर खड़ा हो गया.. तब दीप्ति पहली बार बोली- राहुल मेरे साथ अन्दर चलिए।
अब दीप्ति की आवाज़ में एक आदर सा था।
फिर वो डॉक्टर से टेस्ट करवाने चली गई। जब वो वापस आई तो मैं पैसे देने लगा, तो दीप्ति बीच में ही मुझे रोक कर.. पैसे देने लगी।
मैंने दीप्ति की तरफ देखा.. फिर उसने अपना हाथ पीछे सरका लिया।
मैंने डॉक्टर को पैसे दे दिए और हम घर आ गए। मैंने गाड़ी खड़ी की.. दीप्ति मुझे पैसे देने के लिए खड़ी थी।
पर मैं दीप्ति की तरफ बिना देखे हुए अपने घर चला गया।
रात को मैं अपनी छत पर घूम रहा था। दीप्ति के घर की छत हमारे घर से लगी हुई थी.. जैसे ही मैंने दीप्ति को छत पर देखा.. तो मैं अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन मैं कमरे में टीवी देख रहा था.. मेरी माँ दीप्ति को कमरे में ले आई और उससे बातें करने लगीं।
दीप्ति बीच-बीच में मुझे देख रही थी। ऐसे ही बातों-बातों में माँ ने उससे पूछा- तुम कौन से स्कूल से पढ़ी हो?
उसने स्कूल का नाम बताया.. नाम सुनते ही माँ बोली- इसी में तो राहुल भी पढ़ा है.. तुम दोनों एक-दूसरे को जानते होगे ना?
मैंने झट से जवाब दिया- नहीं.. हम नहीं जानते..
मैं इतना कह कर कमरे से बाहर चला गया।
दीप्ति मुझे देख रही थी। माँ बोली- पता नहीं.. इसे क्या हो गया है.. अजीब-अजीब सी बातें करता है।
फिर माँ और दीप्ति एक-दूसरे से बातें करने लगे।
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शाम को दीप्ति के घर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैंने देखा.. दीप्ति रो रही थी और उसकी सास और मेरे भैया उस पर चिल्ला रहे थे।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था.. दीप्ति ने मुझे देखा और थोड़ा मुँह फिरा लिया।
मैंने घर आकर माँ से ये सब कहा.. माँ ने कहा- तुझे क्या.. उनकी बहू है, वो चाहें कुछ भी करें।
माँ के मुँह से ऐसी बातें सुनकर.. मुझे बड़ा अजीब सा लगा।
उसका पति घर पर ना होने की वजह से अगले दिन दीप्ति को डॉक्टर के पास मुझे ही ले जाना था। मेरे को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या चक्कर है।
आज रिपोर्ट मिलने का दिन था। दीप्ति की आँखें सूजी हुई थीं.. जैसे वो सारी रात रोई हो और वो अभी भी रो रही थी।
मुझे अपने भैया पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
मैं दीप्ति को गाड़ी पर बिठा कर ले जाने लगा। दीप्ति रो रही थी.. मैं दुखी तो था पर मैं उससे कैसे पूछू मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था।
कहानी जारी रहेगी, मुझे जरूर मेल कीजिएगा..
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