उज्जैन की वो रात
प्रेषक : राहुल वर्मा
सबसे पहले तो मैं अपार हर्ष प्रकट करता हूँ कि अन्तर्वासना के माध्यम से मेरी कहानी प्रकाशित होने जा रही है।
यह मेरी पहली कहानी हैं, इसलिए हो सकता है कि कहीं कोई गलती हो जाए तो एक नादान लन्ड समझ कर माफ़ कर देना।
अपनी ओर से सारी गीली कुंवारी चूतों को अपने लन्ड से प्रणाम करता हूँ, और बन चुके भोसड़ों को दिल से सलाम करता हूँ। जो वे किसी न किसी का भला कर रही हैं।
लोग सेक्स से ना जाने क्यों भागते हैं। ये तो एक शारीरिक आवश्यकता है। इसमें बुराई कैसी?
मेरी यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है व काल्पनिक पात्रों पर लिखी गई है। यह केवल चूतों को गीली करने और लंडों को खड़ा करने के लिए लिखी गई है।
अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ। यह कहानी उस वक्त की है, जब मैं इंदौर रहता था और कभी-कभी किसी काम से उज्जैन जाना पड़ता था। बार-बार के इस अप-डाउन से बेहतर मैंने वहीं रुम लेकर रहना उचित समझा।
मैं एक किराये के रुम से रहने लगा। रोजाना अपने काम पर जाना और वापिस अपने रुम पर लौट आना।
पर होनी को तो शायद कुछ और ही मन्जूर था।
मेरे मकान-मालिक के बारे में आप सबको बताना आवश्यक है।
विनोद वर्मा- मकान मालिक
सुनीता वर्मा- विनोद वर्मा की पत्नी
रानू- सुनीता की बहन की लड़की
प्रेमलता- नौकरानी
विनोद वर्मा का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस था। इसलिए वो अक्सर बाहर रहा करते थे, सुनीता हाउस वाइफ़ थी और ज्यादातर घर पर ही रहती थी। उसकी आयु लगभग 30 साल रही होगी। कहने को तो वो दिखने में बहुत सामान्य सी थी, मगर थी वह एक नायाब काया की मलिका।
उसके संतरे ‘हाय !’ सोच कर ही लन्ड खड़ा हो जाता है। जब वह चलती तो मानो उसके संतरे ब्लाउज फ़ाड़ के बाहर आने को आतुर दिखाई देते थे।
उसे भी अपनी जवानी पर कुछ ज्यादा ही घमण्ड था। वो अपने चूतड़ बहुत मटका कर चलती थी।
रानू एक स्थानीय कालेज से बी.ई. कर रही थी। जवानी की दहलीज में कदम रख रही थी। फ़िगर कुछ खास नहीं था, पर दिखने में बिल्कुल एक नम्बर की पटाखा थी।
मैं रोजाना अपने काम से लौट कर अपने कमरे में ही रहता हूँ, फ़ेसबुक पर टाईम पास करता हूँ।
वह शुक्रवार का दिन था। मैं अपने काम जल्दी निपटा कर घर आया, कमरे पर जाकर अपना सामान पैक करने लगा।
तभी दरवाजे पर किसी की आहट आई। पलट कर देखा तो वो सुनीता थी। वह उस समय लाल रंग का गाउन पहने हुए थी, “क्या कयामत लग रही थी !”
मेरा तो लण्ड वहीं सामने सैल्यूट करने लगा।
पर फिर थोड़ा सम्भलकर कहा- अरे भाभी आप ! आईए ना, वहाँ दरवाजे पर क्यों खड़ी हैं?
सुनीता- क्या बात है, आज जल्दी आ गए। कुछ काम नहीं था क्या?
मैं- नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है, घर जाना है बहुत दिन हो गए तो सोचा हो आता हूँ।
भाभी चुटकी लेते हुए- क्या बात है, घर की बड़ी याद आ रही है? कोई खास इन्तजार कर रहा है क्या वहाँ?
मैं हंसते हुए- अरे नहीं भाभी, आप भी कैसी बातें करती हैं, कोई खास होता तो अपने घर से इतनी दूर यहाँ नहीं रहता।
भाभी शरारत भरे स्वर में- ओ हो… तो क्या चौबीस घण्टे घर पर ही रहते, थक नहीं जाते?
मैं चौंकते हुए- क्या भाभी, आप भी ना !
भाभी- हा… हा… अरे भैया, आप तो शर्माने लगे।
मैं बात बदलने के लिए- भाभी आपके यहाँ स्टूल है? मेरा थोड़ा सामान ऊपर रखा है, पर मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा है।
भाभी- अरे भैया कुर्सी की जरूरत क्या है? हम हैं ना ! आप हमें उठा लीजिए हम आपके सामान को निकाल देंगे।
साली ऐसी अंगडाई ले कर के बात कर रही थी कि मन तो कर रहा था, छिनाल को यहीं पटक कर चोद दूँ।
मैं- अरे नहीं.. नहीं भाभी, मैं और आपको…??
भाभी- अरे केवल उठाने का ही तो कह रही हूँ, मैं कहाँ तुम्हें मेरा…!!
मैं- मेरा क्या???
भाभी- कुछ नहीं। तुम्हारी इच्छा !
अब बारी मेरी थी, सोचा अबे चूतिये अच्छा खासा मौका है, उठा ले फ़ायदा।
मैंने कहा- ठीक है भाभी।
मैं भाभी को उठाने के लिए उनके पीछे गया और कमर को कस कर पकड़ लिया और उठाने लगा।
भाभी- आ…हा…हा… रुको… रुको, मैं ऐसे में साँस भी नहीं ले पाऊँगी, थोड़ा धीरे से उठाओ।
इधर मेरा लण्ड भी फुफकार मारने लगा। वो उनके चूतड़ों की दरार के बीच घुस रहा था, उन्हें भी वो महसूस हो रहा था।
वो थोड़ी और पीछे होने लगीं, जिससे मेरा लन्ड और भी अन्दर की ओर जाने लगा। मैं तो वहीं खड़ा रह गया।
तभी भाभी बोली- भैया उठाओ भी, या यूँ ही पकड़ कर खड़े रहोगे।
मैं जानबूझ कर शरमाया, सोचा देखता हूँ ये आखिरकार खुद ब खुद मेरी होती है या नहीं।
मैंने भाभी को अबकी बार हल्के हाथ से उठाया, अब उनकी गान्ड मेरे मुँह के पास थी।
“हाय क्या मादक गन्ध थी वह !”
अब सोचा कि इस साली को तो चोद के ही रहूँगा। कुछ गलत हुआ तो क्या होगा ज्यादा से ज्यादा कमरे से ही निकालेगी और क्या करेगी?
मैंने जानबूझ कर अपनी पकड़ ढीली की वो पकड़ से फिसलने लगी। उसका गाउन ऊपर ही रहा पर वो नीचे की ओर फिसलने लगी।
मैंने कहा- अरे भाभी, आप गिर जायेंगी !!
“अरे अरे…अरे…धड़ाम…!”
भाभी और मैं पास ही नीचे जमीन पर बिछे हुए गद्दे पर गिर पड़े। मेरा एक हाथ भाभी के दुद्दुओं के नीचे था।
भाभी औंधे मुँह गिरी थी। गाउन कमर तक चढ़ गया था।
“उफ़ क्या नजारा था ! गोरी चिकनी टाँगें !”
ऊपर से अपने हाथ पर उनके चूचों का दबाव मैं साफ़ महसूस कर सकता था।
मैंने भाभी को आवाज लगाई, “भाभी आप ठीक तो हैं?
भाभी ने जैसे ही देखा कि उनका गाउन कमर तक उठा हुआ है, और उनकी काली पैन्टी साफ़ दिख रही थी। वो शरमा गईं।
मैंने उनके गाउन को उठाया और नीचे करने लगा। नीचे करने के दौरान, मैंने ऊपर से ही भाभी के चूतड़ों पर धीरे से हाथ घुमा दिया।
भाभी के मुँह से ‘आह’ निकल गई। मेरा एक हाथ भाभी के नीचे था, तो एक हाथ से भाभी को सीधा किया।
अब भाभी का मुँह मेरे मुँह के ठीक सामने था। मैंने अब भाभी को हल्के से किस किया, भाभी ने अपनी आँखें बन्द कर लीं।
मैं समझ गया कि भाभी भी अब मूड में हैं। मैंने चुम्बन को चूमाचाटी में बदल दिया।
अब वो भी चुम्बन का जवाब देने लगीं, मैं गाउन के ऊपर से ही उनके कबूतरों को सहलाने लगा।
कभी मेरी जीभ उनके मुँह में तो कभी उनकी जीभ मेरे मुँह में। करीब पाँच मिनट बाद भाभी ने मुझे धक्का दिया।
मैं अचानक लगे इस धक्के से दूर हो गया। मैं सहम गया कि कहीं भाभी डांटने ना लगें।
तभी भाभी बोलीं- दरवाजा खुला है ! तुम नीचे मेरे रूम में आ जाओ। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैं तो चौंक ही गया।
“एक अन्धा क्या मांगे, दो आँखें !”
मैंने जोर से भाभी को गले लगाया और कहा- थैंक्स भाभी।
भाभी ने गाल पर किस किया और कहा- मैं इन्तजार कर रही हूँ, तुम नीचे आ जाना।
कह कर भाभी नीचे चली गईं। मैंने भी सारा अस्त-व्यस्त सामान ठीक किया और जल्दी से उनके घर जाकर आवाज लगाई।
तभी अन्दर से आवाज आई- आ जाओ भैया। मैं यहाँ अन्दर हूँ।
आवाज अन्दर बेडरूम से आई थी, मैं रुम में गया, देखा भाभी अन्दर उसी गाउन में बैठी थीं।
मैं भी पास जाकर बैठ गया और कहा- भाभी आज जो…!
तभी भाभी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए, मेरी आवाज तो वहीं अटक गई। मैं भी धीरे-धीरे उनके होंठों को चूमने लगा और अपना एक हाथ उनके वक्ष पर रख कर दबाने लगा।
भाभी चुम्बन लेते हुए मादक सीत्कार निकालने लगीं- आह… उफ़्फ़… धीरे थोड़ा आह…
उनका एक हाथ मेरे लन्ड पर था। मैं उस समय जीन्स और टी-शर्ट पहने हुए था।
भाभी बाहर से ही लन्ड सहलाने लगी। मेरा हाथ उनके गाउन के अन्दर सरक रहा था। मैं पैन्टी पर से ही उनकी चूत पर हाथ फिराता रहा, थोड़ा गीला-गीला लगा। मैं समझ गया। भाभी को बड़ी जल्दी है।
इस दौरान चूमा-चाटी ही चल रही थी। अब मैं थोड़ा अलग हुआ, और उनके गाउन को निकाल दिया।
अब वो सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी में थीं, उन्होंने मेरे सारे कपड़े उतार दिए।
मैंने भाभी को उठाया। और बिस्तर पर लिटा दिया, और जोर-जोर से उनके दूद्दू दबाने लगा।
“हाय क्या लग रहा था!”
उस समय मेरा लन्ड जो कि लगभग 8 का होगा, चूत पर दस्तक दे रहा था। उसकी ब्रा और पैन्टी भी निकाल फेंकी।
अब हम दोनों नंगे थे और शुरू होने वाला था, हवस का नंगा नाच।
मैं 69 की पोजिशन में आ गया। वो मेरे लन्ड को किसी लॉलीपाप की तरह चूस रही थीं।
“आहम्ह… ओह नो…!” मैं चिल्लाया, “सब अभी निकाल दोगी क्या?”
वो बोली- चुप रहो आज जो है, वो सब मेरा है।
मैं भी अब उसकी चूत पर अपनी जीभ घुमाने लगा, अपने एक हाथ की उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।
वह लन्ड को कभी हाथ से हिलाती को कभी पूरा मुँह में ले लेती। इस सबसे मैं बहुत उत्तेजित हो गया।
मैं सिसयाया, “मैं आ रहा हूँ।”
फिर भी उसने मुँह नहीं हटाया और वो अभी भी पूरी स्पीड से मुँह आगे-पीछे कर रही थी।
मैंने अपना सारा वीर्य उसके मुँह में छोड़ दिया।
वह सारा वीर्य बड़े मजे से गटक गई, वो भी अब झड़ने लगी, हम दोनों वहीं लेट गए।
कुछ समय यूँ ही लेटे रहने के बाद जब आँखें खुलीं, तो वो दोबारा मेरे लन्ड को मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगी।
मैं अब दोबारा दूसरे राउन्ड के लिए तैयार था, मैंने उसे उठाया और बिस्तर पर पर लिटा दिया।
एक तकिया लिया और उसकी कमर के नीचे लगा दिया। अब उसकी चूत और मेरे लन्ड के बीच केवल थोड़ी ही दूरी थी।
मैंने अपने लन्ड को उसकी चूत की फाँकों पर घुमाने लगा। वो भी आपे से बाहर आने लगी।
“आह… ह्म्म… बस मेरे राज अब और मत तड़पा, अब डाल भी दे।”
पर मैं उसे थोड़ा और तड़पाने लगा, उसकी चूची जोर-जोर से दबाने लगा।
वह जोर से चिल्लाई, “आआ आआआ… ओ माँ… बस बे भेनचोद, अब और कितना इन्तजार करवाएगा।”
गाली सुन कर मैं भी उत्तेजित हो गया।
मैंने कहा- ले साली रान्ड कहीं की, अब तेरी चूत किसी का लन्ड नहीं ले पाएगी।
ये कह कर मैंने अपना लन्ड जोर से उसकी चूत के मुँह पर रखा और कमर उठा कर जोर से धक्का दिया।
अभी आधा लन्ड ही गया था, पर थोड़ा मोटा होने के कारण उसकी चूत की फाँकें खिंचने लगीं। वह जोर से चिल्लाने लगी,
“अह्ह्ह… ओह्हह्ह… सीईईए… मम्मम्म…”
मैंने तुरन्त उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। मैं थोड़ा रूका, कुछ देर वेसे ही रहने के बाद जब वो थोड़ा शान्त हुई, मैंने दोबारा जोर से धक्का दिया और पूरा लन्ड चूत की फाँकों को चीरता हुआ अन्दर की ओर घुसता चला गया।
थोड़ी देर तक तो वो दर्द से कराहती रही, फिर कुछ देर बाद उसकी आवाज में मादकता आने लगी। पूरे कमरे मे उसकी सीत्कार की आवाजें आने लगीं, कभी उसकी तो कभी मेरी, और हम दोनों वासना की आँधी में बहने लगे।
एक सैलाब सा आया और जब रुका तो हम दोनों स्खलित होकर एक दूसरे की बाँहों में सिमट कर सुख लेने लगे।
सुनीता भाभी की और मेरी जोड़ी खूब जमी और एक बार की चुदाई रोज का सा नियम बन गया।
कहानी पर अपनी राय दीजिए।
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