तेरी याद साथ है-4
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प्रेषक : सोनू चौधरी
रिंकी ने चुम्बन वहाँ पप्पू के लंड पर किया था और मुझे ऐसा लगा जैसे उसने मेरे विकराल लंड पर किया हो।
हाँ भाई, मैंने अपने लंड को विकराल कहा, क्यूंकि पप्पू के लंड की तुलना में तो मेरा हथियार विकराल ही था। अपने लंड की दास्ताँ मैं अगली कहानियों में लिखूंगा…
तो जैसे ही मुझे यह एहसास हुआ कि रिंकी के होंठ मेरे लंड को छू रहे हैं मेरा भी लंड अपनी धार छोड़ बैठा। मैंने बहुत मुश्किल से अपनी आवाज़ निकलने से रोका था वरना इस खेल को देख कर मुझे जो सुख मिला था मैं बता नहीं सकता।
अंदर दोनों खड़े हो चुके थे। रिंकी दूसरी तरफ करके अपन मुँह धो रही थी और पप्पू पीछे से उसकी चूचियाँ दबा रहा था।
“अब हटो भी… सोनू कहीं हमें ढूंढता–ढूंढता ऊपर न आ जाये। तुम जल्दी से नीचे जाओ मैं चाय लेकर आती हूँ।” रिंकी ने पप्पू को खुद से अलग किया और अपने टॉप को नीचे करके अपनी ब्रा का हुक लगाया और अपनी पैंटी को भी अपने पैरों में डाल कर अपने बाल ठीक किये।
“रिंकी, मेरी जान…अब यह सुख दुबारा कब मिलेगा??” पप्पू ने वापस रिंकी को अपनी बाहों में भरने की कोशिश करते हुए पूछा।
“पता नहीं, आगे की आगे सोचेंगे…जब हम यहाँ तक पहुँचे हैं तो आगे भी कभी न कभी पहुँच ही जायेंगे…” और दोनों ने एक दूसरे को चूम लिया।
मैं रिंकी का यह जवाब सुनकर सोच में पड़ गया कि हो न हो, रिंकी ने इस पल का बहुत मज़ा लिया था और वो आगे भी बढ़ना चाहती है… यानि वो लंड अंदर लेने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। सच कहते हैं लोग…औरत अपने चेहरे के भावों को बहुत अच्छी तरह से मैनेज करने में हम मर्दों से ज्यादा सक्षम होती है।
रिंकी ने अपने चेहरे से कभी यह महसूस नहीं होने दिया था कि वो इतनी सेक्सी हो सकती है। मैं तो दंग रह गया था और मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैंने अभी अभी एक मस्त ब्लू फिल्म देखी हो।
खैर मैंने जल्दी से अपने आप को सम्भाला और सीधा नीचे भगा। मैं इतनी तेजी से नीचे भगा कि एक बार तो मेरे पैर फिसलते–फिसलते रह गए।
मैं सीधा अपने बिस्तर पर गया और लेट गया, मैंने अपने हाथों में एक किताब ले ली और ऐसा नाटक करने लगा जैसे मैं कुछ बहुत जरुरी चीज़ पढ़ रहा हूँ।
पप्पू दौड़ कर नीचे आया और सीधा मेरे कमरे में घुस गया। उसने मेरी तरफ देखा और सीधा मुझसे लिपट गया। लिपटे-लिपटे ही उसने मेरे कानों में थैंक्स कहा और यह पूछा कि कहीं वो मैं ही तो नहीं था जिसकी आवाज़ ऊपर आई थी।
मैंने अपनी गर्दन हिलाकर ना कहा और पप्पू से खुद ही पूछने लगा कि क्या हुआ…?
पप्पू ने कहा कुछ नहीं और वापस जाकर सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया जहाँ वो पहले बैठा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी विजयी मुस्कान थी। मैं भी अपने दोस्त की खुशी में बहुत खुश था। रिंकी के पैरो की आहट ने हमें सावधान किया और हम चुप होकर बैठ गए और रिंकी अपने हाथों में चाय की प्यालियाँ लेकर कमरे में दाखिल हुई।
रिंकी बिल्कुल सामान्य थी और ऐसा लग रहा था मानो कुछ हुआ ही नहीं था। वो अपने चेहरे पर वापस अपनी वही रोज वाली मुस्कान के साथ मेरी तरफ बढ़ी और मुझे चाय देने लगी।
मैंने उसकी आँखों में देखा और वापस चाय की तरफ ध्यान देते हुए एक हल्की सी मुस्कान दे दी जो मैं हमेशा ही देता था।
उसने पप्पू को भी चाय दी और अपनी चाय लेने के लिए वापिस मुड़ी। रिंकी जैसे ही मुड़ी, उसके विशाल नितंबों ने मेरा मुँह खोल दिया। आज मैंने पहली बार रिंकी को इस तरह देखा था। उसके मोटे और गोल विशाल कूल्हों को मैं देखता ही रह गया।
मेरी इस हरकत पर पप्पू की नज़र चली गई और वो मेरी तरफ देखने लगा…
रिंकी के जाते ही पप्पू ने मुझसे दोबारा वही सवाल किया,” सोनू, मैं जनता हूँ मेरे भाई कि वहाँ ऊपर तू ही था, तू ही था न?”
मैंने पप्पू के आँखों में देखा और धीरे से आँख मार दी।
“साले…मुझे पता था…” पप्पू बोलकर हंस पड़ा और मुझे भी हंसी आ गई…
हम दोनों ने एक दूसरे को गले से लगा लिया और जोर से हंसने लगे…तभी रिंकी हमारे सामने आ गई अपने हाथों में चाय का कप लेकर और हमें शक भरी निगाहों से देखने लगी। अब तक तो रिंकी को यह नहीं पता था कि मैंने सब कुछ देख लिया था लेकिन हमें इतना खुश देखकर उसे थोड़ी थोड़ी भनक आ रही थी कि हो न हो मेरी ही आवाज़ ऊपर सुनाई दी थी…
इस बात का एहसास होते ही रिंकी का चेहरा शर्म से इतना लाल हो गया कि बस पूछो मत। इतना तो वो उस वक्त भी नहीं शरमाई थी जब पप्पू ने उसकी चूत को अपने जीभ से चूमा था…
रिंकी की नज़र अचानक मुझसे लड़ गई और वो शरमाकर वापस जाने लगी…
तभी बाहर से घंटी कि आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए…
“रिंकी…रिंकीऽऽऽऽऽ…दरवाज़ा खोलो !” यह प्रिया की आवाज़ थी…
हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए…
रिंकी ने दरवाज़ा खोला और प्रिया अंदर आ गई…अंदर आते हुए प्रिया कि नज़र मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट दिखाई…और मुझे हाथ हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई…
यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते थे तो प्रिय मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कहती थी। मैं उसकी इस आदत को बहुत साधारण तरीके से लेता था लेकिन बाद में पता चला कि उसकी ये हाय…कुछ और ही इशारा किया करती थी…
अब सबकुछ सामान्य हो चुका था और पप्पू भी अपने घर वापस चला गया था।
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने हाथों से अपना लंड सहला रहा था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और मैंने उसके साइड से अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया था।
मेरी आँखें बंद थीं और मैं रिंकी की हसीं चूचियों और चूत को याद करके मज़े ले रहा था। मेरा लंड पूरी तरह खड़ा था और अपने विकराल रूप में आ चुका था। मैंने कभी अपने लंड का आकार नहीं नापा था लेकिन हाँ नेट पर देखी हुई सारी ब्लू फिल्मों के लंड और अपने लंड की तुलना करूँ तो इतना तो तय था कि मैं किसी भी नारी कि काम पिपासा मिटने और उसे पूरी तरह मस्त कर देने में कहीं भी पीछे नहीं था।
अपने लंड की तारीफ जब मैंने सिन्हा-परिवार की तीनों औरतों के मुँह से सुनी तब मुझे और भी यकीन हो गया कि मैं सच में उन कुछ भाग्यशाली मर्दों में से हूँ जिनके पास ऐसा लंड है कि किसी भी औरत को चाहे वो कमसिन, अक्षत-नवयौवना हो या 40 साल की मस्त गदराई हुई औरत, पूर्ण रूप से संतुष्ट कर सकता है।
मैं अपने ख्यालों में डूबा अपने लंड की मालिश किए जा रहा था कि तभी…
“ओह माई गॉड !!!! “…यह क्या है??”
एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखे खोल लीं…मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा…
“तुम…यहाँ क्या कर रही हो…?? ” मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया…
यह थी कहानी मेरे सेक्स के सफर की शुरुआत की…कहानी जारी रहेगी और आप लोगों के लंड और चूत को दुबारा से अपना अपना पानी निकालने की वजह बनेगी…
अभी तो बस शुरुआत है, सिन्हा परिवार के साथ बीते मेरे ज़बरदस्त दो साल, जिन्होंने मुझे इतना सुख दिया था कि आज भी वो याद मेरे साथ है…यकीन मानो दोस्तो, मेरी चुदाई की दास्तान आपको सब कुछ भुला देगी…
अगर आपको कुछ सुझाव देने हों तो मुझे मेल करियेगा जरुर…
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