तेरी याद साथ है-17
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left तेरी याद साथ है-16
-
keyboard_arrow_right तेरी याद साथ है-18
-
View all stories in series
प्रेषक : सोनू चौधरी
रिंकी की अक्षतयोनि का शील भंग करने के बाद:
दिल तो मेरा भी नहीं कर रहा है जान, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है और सबके वापस आने का वक़्त हो चुका है। अब आप जाओ और मैं भी जाकर अपने प्रेम की निशानियों को साफ़ कर देती हूँ वरना किसी की नज़र पड़ गई तो आफत आ जाएगी।”…रिंकी ने मुझे समझाते हुए कहा।
मैंने भी उसकी बात मान ली और एक आखिरी बार उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में दबा दिया।
“उफ्फ्फ…दुखता है न..। मत दबाओ न जान..। पहले ही तुम्हारे लंड ने उसकी हालत ख़राब कर दी है…अब जाने दो।” रिंकी ने तड़प कर मेरा हाथ हटाया और मुझे प्यार से धकेल कर नीचे भेज दिया।
मैं ख़ुशी ख़ुशी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आने लगा।
तभी मेन गेट पर आवाज़ आई और गेट खुलने लगा। मैं तेज़ी से नीचे की तरफ भागा और अपने कमरे में घुस गया।
कमरे से बाहर झाँका तो देखा कि प्रिया गेट से अन्दर दाखिल हुई..
मैंने चैन की सांस ली कि सही वक़्त पर हमारी चुदाई ख़त्म हो गई वरना आज तो प्रिया हमें पकड़ ही लेती…
मैं अपने बिस्तर में लेट गया और थोड़ी देर पहले बीते सारे लम्हों को याद करते करते अपनी आँखें बंद कर लीं…
ख्यालों में खोये खोये कब नींद आ गई पता ही नहीं चला…
“सोनू…सोनू…उठ भी जा भाई…तबियत कैसी है?” नेहा दीदी की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ी और मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गया और सामने देखा तो नेहा दीदी और सिन्हा आंटी हाथों में ढेर सारा सामान लेकर मेरे कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थीं…
मैंने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया और बिस्तर से उठ कर नेहा दीदी के हाथों से सामान लेकर अपने ही कमरे में रख दिया। सिन्हा आंटी ने मेरी तरफ देख कर अपनी वही कातिल मुस्कान दी और सीढ़ियों की तरफ चल पड़ी। नेहा दीदी भी उनके साथ ऊपर चली गईं और मैं अपने बाथरूम में घुस गया।
बाथरूम से निकल कर मैं अपने कमरे में आया और कपड़े बदल कर बाहर अपने अड्डे पे जाने का सोचा। तभी मुझे याद आया कि मेरा यार पप्पू तो शहर में है ही नहीं। मैं थोड़ा सा चिंतित हुआ और फिर ऐसे ही अपने टेबल के सामने कुर्सी पे बैठ गया। शाम हो चली थी और सूरज ढलने को बेताब था। मैंने कुछ सोचा और फिर उठ कर अपने घर कि छत पे जाने का इरादा किया। मुझे यही ठीक लगा और मैं कमरे से निकल कर सीढ़ियों से चढ़ने लगा।
छत पे जाने के लिए मैं सीढ़ियाँ चढ़ रहा था और जब मैं घर के पहले तल्ले पे पहुँचा तो मुझे सिन्हा आंटी के घर से सारे लोगों की हंसने की आवाज़ आ रही थी। शायद आंटी और नेहा दीदी सब के साथ मिलकर बाज़ार से लाये हुए सामान दिखा रही थीं और आपस में हसी मजाक चल रहा था।
एक बार के लिए मैंने भी उनके साथ बैठने का मन बनाया लेकिन फिर सोचा कि औरतों के बीच मैं अकेला मर्द बेकार में ही बोर हो जाऊँगा। यह सोचते हुए मैं ऊपर चढ़ने लगा और छत पर पहुँच गया। हमारे घर की छत बहुत लम्बी और चौड़ी है और छत के बीचों बीच सीढ़ी घर बना हुआ था। मैं अपने छत के किनारे पर पहुँच गया और रेलिंग पर बैठ कर डूबते हुए सूरज को निहारने लगा।
मेरा मन बहुत खुश था, हो भी क्यूँ न… इतनी मस्त और हसीन बदन को भोगा था मैंने।
मैं अब तक उसी खुमारी में खोया हुआ था। मैं अपने साथ अपना आई पॉड लेकर आया था, मैंने अपने कानों में इयर फ़ोन लगाया और अपने मनपसंद गाने चला दिए।
मुझे संगीत का बहुत शौक था और आज भी है। मैं अपनी धुन में गाने सुन रहा था और छत के चारों तरफ नज़रें दौड़ा रहा था कि तभी मेरे कंधे पर किसी के हाथ पड़े और मैंने चौंक कर पीछे मुड़ कर देखा।
मेरी आँखें चमक उठीं….मैंने प्रिया को अपने पीछे प्लेट में कुछ लिए खड़े पाया। वो मेरे पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैंने अपने कानों से इअर फ़ोन बाहर निकाल लिए और उसे देख कर मुस्कुराने लगा।
“तो जनाब यहाँ बैठ कर गाने सुन रहे हैं और मैं सारा घर ढूंढ रही हूँ।” प्रिया ने एक प्यारी सी अदा के साथ मुझसे कहा।
“अरे बस थोड़ा थक सा गया था, और आज पप्पू भी शहर में नहीं है तो मैं कहीं घूमने नहीं गया और यहाँ आ गया।” मैंने प्रिया का हाथ थाम कर कहा।
“यह लो, मम्मी हम सब के लिए आपकी फेवरेट गुलाब जामुन लेकर आई हैं। जल्दी से खा लो।” प्रिया ने प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैंने प्रिया के हाथों से प्लेट ले ली और गरमागरम गुलाब जामुन को देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया।
तभी मेरे दिमाग में एक शैतानी का प्लान आया और मैंने प्लेट प्रिया को वापस देते हुए कहा,”प्रिया, यह प्लेट तुम ले जाकर नीचे रख दो…आज इस गुलाब जामुन को कुछ नए तरीके से खाऊँगा।”
प्रिया ने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा और प्लेट को वापस ले लिया और वहीं रेलिंग पे रख दिया।
“आप और आपके अलग अलग अंदाज़ !” प्रिया ने बच्चों जैसी शकल बनाकर मेरी ओर देखा और मेरे हाथों से आई पॉड लेकर उसका इयरफ़ोन अपने कानों में डाल लिया।
मैं प्रिया के पीछे हो गया और उसकी कमर को अपनी बाँहों में जकड़ लिया। प्रिया ने भी किसी रोमांटिक फ़िल्मी सीन की तरह अपना सर मेरे सीने पर रख दिया और हम दोनों ढलती हुई शाम के धुंधले सूरज को देखते रहे। बड़ा ही रोमांटिक और फ़िल्मी सीन था।
थोड़ी देर में घर के सारे लोग छत पर आ गए। यह सब का रोज़ का काम था, घर की सारी औरतें शाम को छत पे टहलने आ जाती थीं। अब छत पे मैं, प्रिया, नेहा दीदी और सिन्हा आंटी थे। रिंकी कहीं नज़र नहीं आ रही थी तो मैंने आंटी से पूछा- रिंकी कहाँ है।आंटी ने बताया- उसके पेट में थोड़ा दर्द है, वो लेटी हुई है।
मेरे होठों पे एक हल्की सी मुस्कान आ गई, मैं जानता था कि उसके पेट नहीं कहीं और ही दर्द हो रहा है।
हम सब थोड़ी देर टहलने के बाद नीचे आ गए और अपने अपने काम में जुट गए। नेहा दीदी ऊपर आंटी के साथ खाना बनाने में लग गई और प्रिया अपनी पढ़ाई में। रिंकी पहले ही अपने रूम में लेटी हुई थी।
मैं अपने कमरे में आ गया और अपने कंप्यूटर पे बैठ गया। मेज पर वही प्लेट रखी थी जो प्रिया छत पर लेकर गई थी। मैंने सोच लिया था कि आज रात इस गुलाब जामुन का सारा रस प्रिया की चूत में डालकर चाट जाऊँगा। मैं यही सोच कर ही उत्तेजित हो गया था।
आँखें थी तो कंप्यूटर की स्क्रीन पर लेकिन उनमें तो बस एक ही चेहरा समाया हुआ था। मैं जानता था कि आज प्रिया फिर से मेरे पास आएगी नोट्स के बहाने और कल रात का अधूरा काम आज पूरा करेगी। रिंकी के आने का कोई सीन नहीं था। जैसी जबरदस्त चुदाई उसकी हुई थी, उस वजह से कम से कम दो दिनों तक तो वो मुझे अपने आप पर हाथ भी नहीं रखने देगी।
खैर, मुझे तो आज मेरी प्रिया के साथ ज़न्नत की सैर करनी थी। मैं इंतज़ार करने लगा। काफी वक़्त हो गया था या यूँ कहें कि मुझसे वक़्त कट नहीं रहा था। बार बार घड़ी पे नज़र जा रही थी और दरवाज़े की तरफ भी आँखें जा रही थीं।
तभी प्रिया दौड़ती हुई नीचे आई और मेरे कमरे में घुस गई। मैं कुर्सी पे बैठा नेट पे सेक्सी तस्वीरें देख रहा था जिसमे लड़के लड़कियों की नंगी चुदाई के सीन थे। प्रिया के आने पर भी मैंने जानबूझ कर वो बंद नहीं किया क्यूंकि मैं उसे उत्तेजित करना चाहता था।
उसने आते ही कुर्सी के पीछे से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं और मेरे गालों पे अपने गाल रगड़ने लगी और कंप्यूटर की स्क्रीन पर नज़र डाली। स्क्रीन पर एक तस्वीर थी जिसमें एक लड़का लड़की की चूत चाट रहा था।
“ओहो….तो जनाब ये सब देख रहे हैं….बड़े शरारती हैं आप !” प्रिया ने ये कह कर मेरे गालों पे दांत गड़ा दिए।
जवाब में मैंने अपना एक हाथ पीछे लेजाकर उसकी एक चूची को दबा दिया।
“आउच….क्या तुम भी, जब देखो मस्ती….चलो जल्दी से खाना खा लो….फिर मेरे नोट्स भी तो बनाने हैं।” प्रिया ने मुझसे अलग होते हुए कहा और मेरी तरफ देख कर हंसने लगी…
मैं कुर्सी से खड़ा हुआ और उसे अपनी तरफ खींच कर गले से लगा लिया। वो कसमसा कर मुझसे छूटने लगी और इस खींचातानी में मेरे हाथों में फिर से उसकी चूचियाँ आ गई और मैं उन्हें दबाने लगा। उसने ब्रा पहन राखी थी इसलिए चूचियाँ सख्त लग रही थीं। मैं मज़े से दबा रहा था और वो मेरे हाथ हटा रही थी….
“छोड़ो ना, सब ऊपर इंतज़ार कर रहे हैं….जल्दी चलो….पहले खाना खा लो फिर लगे रहना अपने इन दोनों कबूतरों के साथ। मैं कहाँ भागी जा रही हूँ….” प्रिया ने मुझे खुद से अलग किया और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर ले आई।
प्रिया मेरे आगे आगे सीढ़ियों पे चढ़ने लगी और मैं उसके पीछे पीछे। मैंने एक और शरारत करी और उसके पिछवाड़े के एक चिमटी काट ली।
“धत्त, शैतान कहीं के….” प्रिया ने डाँटते हुए कहा और आँखें दिखने लगी, लेकिन उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं और उनमे साफ़ साफ़ ये दिख रहा था कि उसे भी मेरी छेड़ छाड़ में मज़ा आ रहा है।
हम ऐसे ही मस्ती करते करते ऊपर खाने की मेज तक पहुँच गए और खाने के लिए बैठ गए। सभी लोग वहीं थे। नेहा दीदी और रिंकी एक साथ मेरी तरफ और प्रिया मेरे ठीक सामने। प्रिया के बगल में एक कुर्सी खाली थी जिस पर आंटी बैठने वाली थी। आंटी भी आ गईं और हम सब एक दूसरे से बातें करते करते खाना खाने लगे।
सब नार्मल ही थे लेकिन रिंकी चुपचाप थी। पता नहीं क्यूँ….
मैंने सोचा शायद उसे अभी भी दर्द हो रहा होगा और वो तकलीफ में होगी इसीलिए शांत है।
प्रिया ने रिंकी से पूछ ही लिया…. “क्या बात है रिंकी जी, आप इतनी चुप क्यूँ हैं?”
प्रिया ने अपने शरारती अंदाज़ में रिंकी से पूछा।
“कुछ नहीं यार, बस तबियत ठीक नहीं है और पूरे बदन में तेज़ दर्द है।” रिंकी ने मुस्कुराते हुए प्रिया से कहा।
“ओहो….तो चल मैं आज तुझे एक बढ़िया सी मसाज़ दे देती हूँ….तेरी सारी तकलीफें दूर हो जाएँगी।” प्रिया ने जोर से हंसते हुए कहा और उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे।
धीरे धीरे हम सब ने अपन अपना खाना ख़त्म किया और रोज़ की तरह अपने अपने कमरे में चले गए। जब मैं सीढ़ियों से उतर रहा था तो पीछे से सिन्हा आंटी ने आवाज़ लगाई- सोनू बेटा, यह लेकर जाओ….
आंटी मेरे पीछे एक प्लेट लेकर आई और खड़ी हो गईं।
उनके हाथों में एक प्लेट में चार गुलाब जामुन थे और ढेर सारा रस था। मैंने वो देख कर हल्के से मुस्कुरा दिया और आंटी से कहा- आंटी मैंने तो खा लिया है….प्रिया ने लाकर दिया था छत पे !
मैंने जानबूझ कर यह नहीं बताया कि वो गुलाब जामुन नीचे मेरे कमरे में रखे हुए हैं और मैं उन्हें कुछ अलग तरीके से खाना चाहता था।
“कोई बात नहीं बेटा, मैं जानती हूँ कि गुलाब जामुन तुम्हें बहुत पसंद हैं… ज्यादा खा लोगे तो कोई प्रॉब्लम नहीं हो जाएगी…” आंटी ने हंसते हुए वो प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैं भी मुस्कुराते हुए प्लेट ले ली और नीचे उतर गया। अपने कमरे में जाकर मैंने सारी मिठाइयों को अलग करके एक प्लेट में रख दिया और सारा रस एक अलग कटोरी में डाल दिया।
शायद आप लोगों को यह एहसास हो रहा होगा कि मेरे दिमाग में क्या शैतानी चल रही होगी उस वक़्त।
खैर मैं मुस्कुराते हुए सारा सामान बेड के साइड टेबल पर रख दिया और बाथरूम में घुस गया। वैसे तो मैं अपने सारे अनचाहे बालों को हमेशा साफ़ रखता हूँ लेकिन आज फिर से रेजर लेकर अपने लण्ड के आसपास के बालों को साफ़ किया और बढ़िया से आफ्टर शेव लोशन लगा दिया ताकि मेरी प्रिया रानी को अच्छी खुशबू मिले जब वो मेरे लंड से खेले।
मैंने बाहर आकर अपने बिस्तर को ठीक किया और बैठ कर प्रिया का इंतज़ार करने लगा। कंप्यूटर पर अपने सेक्सी फिल्मों के खजाने से मैंने ढूंढ कर एक फिल्म निकाली जिसमें चूत और लण्ड की चुसाई के ढेर सारे अलग अलग तरीके दिखाए थे। उनमें से एक में लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरे बदन पे कुछ टेस्टी लिक्विड डालकर एक दूसरे को चाट रहे थे और मज़े ले रहे थे। मैं यह देख कर काफी उत्तेजित हो गया था और ऐसा ही करने का मन बना लिया।
नीचे आये हुए काफी देर हो चुकी थी और किसी की आवाज़ भी नहीं आ रही थी यानि सब लोग अपने अपने कमरे में सो चुके थे।
तभी किसी के सीढ़ियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी और मेरा दिल धड़कने लगा। मुझे पता था कि यह मेरी प्रिया ही है और मेरा सोचना सही था।
प्रिया अपने हाथों में किताबें लेकर मेरे दरवाज़े पर खड़ी हो गई और मुझे देखकर एक कातिल अदा के साथ मुस्कुराने लगी।
मैंने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर दिया, मैं नहीं चाहता था कि प्रिया वो फिल्म देख ले क्यूंकि मैं आज उसे सरप्राइज देना चाहता था।
मैंने कुर्सी से उठ कर उसका स्वागत अपनी बाहें फैला कर किया और उसने इधर उधर देख कर यह सुनिश्चित किया कि कहीं कोई देख न रहा हो और वो भाग कर मेरी बाहों में समां गई, उसके हाथों से किताबें छूट कर नीचे गिर गईं और हम दोनों एक दूसरे से ऐसे लिपट गए जैसे कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी हों।
हम वैसे ही थोड़ी देर तक एक दूसरे की बाहों में चिपके हुए खड़े रहे फिर मेरी नज़र दरवाज़े और खिड़कियों पर गई। मुझे रिंकी की याद आ गई और मैं मुस्कुराकर प्रिया से अलग हो गया। मैंने बढ़ कर दरवाज़ा और खिड़की बंद कर दिए। वापस घूम कर मैंने प्रिया का हाथ थाम कर उसे अपने साथ बिस्तर पर बिठा दिया। हम दोनों बिस्तर पे एक दूसरे के सामने बैठ गए और मैं प्रिया को गौर से देखने लगा।
आज प्रिया ने एक ढीली सी सफ़ेद रंग टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे लाल रंग का ढीला सा शलवार के जैसा पजामा पहना हुआ था जैसा कि लड़कियाँ अक्सर पहनती हैं। मुझे यकीन था कि उसने अन्दर कुछ नहीं पहना होगा लेकिन आज उसकी चूचियाँ बिल्कुल खड़ी खड़ी सी दिख रही थीं। शायद मेरे पास होने की वजह से वो उत्तेजना में थी और इस वजह से उसकी चूचियाँ फूल गई थीं।
मैं वैसे ही उसे घूरे जा रहा था और उसके रूप का रसपान कर रहा था। प्रिया मेरी तरफ देख कर मुस्कुराये जा रही थी। हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं कह रहा था। तभी प्रिया की नज़र साइड टेबल पर रखे हुए गुलाब जामुन और रस की कटोरी पर गई और उसने तुरंत मेरी तरफ देख कर पूछा- अरे ! ये अभी तक ऐसे ही पड़े हैं…आपने खाए क्यूँ नहीं?
“आपका इंतज़ार कर रहा था ताकि आप आओ और अपने हाथों से हमें खिलाओ !” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“आले ले…मेला बच्चा….मेरे हाथों से खानी है मिठाई….पहले बता देते तो छत पे ही अपने हाथों से खिला देती।” प्रिया ने बड़े प्यार से एक तोतली आवाज़ में मेरे सर पे हाथ फेरते हुए मुझे अपने पास खींच कर अपने गले से लगा लिया।
ह्म्म्म…..इतना हसीं पल था कि आज भी उस पल को याद करके मैं सिहर उठता हूँ। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
खैर, प्रिया ने प्लेट उठाई और चमचे से काट कर आधा गुलाब जामुन मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने भी अपना मुँह खोल कर खा लिया और फिर उसके हाथों से लेकर आधा बचा हुआ गुलाब जामुन उसे खिलाया। प्रिया खाना नहीं चाहती थी लेकिन मैंने प्यार से उसे देखा तो वो मन नहीं कर पाई। जब मैंने प्रिया को मिठाई खिलाई तो थोड़ा सा रस उसके होठों से बाहर आ गया और उसके निचले होठों से होता हुआ नीचे आने लगा। मैंने झट से अपने होंठ लगा दिए और उस रस की बूँद को अपने होठों से चूम कर खा लिया।
प्रिया ने मेरी इस हरकत पे मुझे प्यार से देखा और आगे बढ़ कर मेरे होठों पे एक पप्पी ले ली…
हम दोनों ने ऐसा करके तीन गुलाबजामुन खा लिए और जब प्रिया अगली गुलाबजामुन उठाने जा रही थी तो मैंने उसे रोक दिया और प्लेट उसके हाथों से लेकर वापस मेज पर रख दिया।
“क्या हुआ, मन भर गया मिठाई से…..तुम्हें तो बहुत पसंद है ये !” प्रिया ने मुझे देख कर पूछा।
“खाऊँगा बाबा, लेकिन अभी नहीं और ऐसे नहीं…..” मैंने प्रिया को आँख मारी और उसे लेकर धीरे से बिस्तर पे लेट गया।
लेट कर मैंने उसे अपने से बिल्कुल सटा लिया और अपना एक पैर उठाकर उसके ऊपर रख दिया और उसे और भी करीब कर लिया। अब मैंने उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराईं और धीरे धीरे अपनी उँगलियों को उसके चेहरे पे फिराने लगा…
उसकी आँखों, उसके नाक… उसके गाल… फिर उसके होठों पे मेरी उँगलियों ने सिहरन करनी शुरू कर दी। प्रिया चुपचाप उस लम्हे को महसूस करके मुझसे लिपट कर लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी…
कहानी जारी रहेगी।
What did you think of this story??
Comments