तेरी याद साथ है-16

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प्रेषक : सोनू चौधरी

रिंकी ने एक नज़र आईने पे डाली और उस दृश्य को देखकर एक बार के लिए शरमा सी गई।

मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी चूचियों को फिर से थामा और उसकी गर्दन पर चुम्बनों की बरसात कर दी। रिंकी ने भी मेरे चुम्बनों का जवाब दिया और अपने हाथ पीछे करके मेरे लंड को पकड़ लिया और अपने चूतड़ों की दरार के बीच में रगड़ने लगी। मैंने धीरे धीरे उसे आगे की तरफ सरका कर आईने के एकदम सामने कर दिया और अपने हाथों से उसके हाथों को आगे ले जाकर शीशे पर रखवा दिया और उसे थोड़ा सा झुकने का इशारा किया।

रिंकी ने आईने में मेरी तरफ देख कर एक मुस्कान के साथ अपनी कमर को झुका लिया और अपनी गांड को मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उसके चिकने पिछवाड़े पे अपने हाथ रखे और सहला कर एक जोर का चांटा मारा।

“आऔच…हम्म्म्म…बदमाश…क्या कर रहे हो…?” रिंकी ने एक सेक्सी आवाज़ में मुझे देखते हुए कहा।

मैंने भी मुस्कुरा कर उसकी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और अपने लंड को उसकी गांड की दरार में सरकाते हुए चूत के मुँहाने पे रख दिया। चूत पूरी चिकनाई के साथ लंड का स्वागत करने के लिए तैयार थी।

मैंने अपना अंदाजा लगाया और एक जोर का झटका दिया।

गच्च…की आवाज़ के साथ मेरा आधा लंड उसकी चूत में समां गया और रिंकी ने एक मादक सिसकारी भरी और आईने में अपनी चूत के अन्दर लंड घुसते हुए देखने लगी। मैंने बिना किसी देरी के एक और करारा झटका मारा और पूरे लंड को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया।

“ओह्ह्ह्ह…मेरे राजा…चोद डालो मुझे…फाड़ डालो आज इस हरामजादी को…रात भर लंड के लिए टेसुए बहा रही थी…” रिंकी ने मज़े में आकर गन्दे गन्दे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया और मैं जोश में आकर उसकी जबरदस्त चुदाई करने लगा।

“फच्च…फच्च…फच्च…फच्च उह्ह्ह…आअह्ह्ह्ह…उम्म्मम्म…” बस ऐसी ही आवाजें गूंजने लगी कमरे में।

हम दोनों दुनिया से बेखबर होकर अपने काम क्रीड़ा में मगन थे और एक दूसरे को आईने में देख कर लंड और चूत को मज़े दे रहे थे…

मैंने अब अपनी स्पीड बढ़ाई और राजधानी एक्सप्रेस की तरह अपने लंड को उसकी चूत में ठोकने लगा। मैं अपने आप में नहीं रह गया था और कोशिश कर रहा था कि पूरा का पूरा उसकी चूत में समां जाऊं…

मैंने उसकी कमर थाम रखी थी और उसने आईने पे अपने हाथों को जमा रखा था। मैंने आईने में देखा तो उसकी चूचियों को बड़े प्यार से हिलते हुए पाया, मुझसे रहा नहीं गया, मैंने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी चूचियाँ पकड़ लीं और उसकी पीठ से साथ लाकर लम्बे लम्बे स्ट्रोक लगाने लगा।

“आह्ह्ह्हह……सोनू…चोदो…चोदो …चोद……मुझे..आअज चोद चोद कर मेरी चूत फाड़ डालो…हम्म्म्म…ऊम्म्मम्म……और तेज़… और तेज़…” रिंकी बिल्कुल हांफ़ने लगी और उसके पैरों में कम्पन आने लगी। उसने अपनी गांड को पीछे धकेलना शुरू किया और मुझे बोल बोल कर उकसाने लगी…

मैंने भी अपना कमाल दिखाना चालू किया और जितना हो सके उतना तेजी से चोदने लगा।

“ये लो मेरी रानी…आज खा जाओ अपनी चूत से मेरा पूरा लंड…पता नहीं कब से तुम्हारी चूत में जाने को तड़प रहा था…उम्म्म्म…और लो …और लो…” मैंने भी उत्तेजना में उसकी चूचियों को बेदर्दी से मसलते हुए उसकी चूत का बैंड बजाना चालू किया।

अब हम दोनों को वक़्त करीब आ चुका था, हम दोनों ही अपनी पूरी ताक़त से एक दूसरे को चोद रहे थे। मैं आगे से और रिंकी पीछे से अपने आप को धकेल कर मज़े ले रही थी।

तभी रिंकी ने अपने मुँह से गुर्राने जैसे आवाज़ निकलनी शुरू की और तेज़ी से हिलने लगी…

“गुऊंन्न……गुण…हाँ…और और और और… चोदो… आआआ…ऊम्म्मम… और तेज़ मेरे राजा…चोदो… चोदो… चोदो… उफ्फ्फ… मैं गईईई….” रिंकी ने तेज़ी से हिलते हुए अपनी कमर को झटके दिए और शांत पड़ गई… उसकी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था जो मेरे लंड से होते हुए उसकी जाँघों पर फ़ैल गया था, आईने में साफ़ दिखाई दे रहा था।

मैं अब भी अपनी उसी गति से उसे चोदे जा रहा था…

“हम्म्म…मेरी रानी…मेरी जान…ये ले… मैं भी आया… क्या गर्मी है तुम्हारी चूत में… मैं पागल हो गया रिंकी… हम्म्म्म…” मैं अब अपनी चरम सीमा पे था।

रिंकी थोड़ी सी निढाल हो गई थी इसलिए उसकी पकड़ आईने से ढीली हो रही थी। मैंने एक झटके के साथ उसे पकड़ कर बिस्तर की तरफ पलट दिया। अब रिंकी की टाँगे बिस्तर से नीचे थी और वो पेट के बल आधी बिस्तर पे थी। मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में था।

मैंने एक जोर की सांस ली और सांस रोक कर दनादन उसकी चूत के परखच्चे उड़ाने लगा।

फच्च…फच्च…फ्च… फ्च्च…की आवाज़ के साथ मैंने तेज़ी से उसकी चूत में अपना लंड अन्दर बाहर करना शुरू किया और उसे बेदर्दी से चोदने लगा।

“ओह्ह्ह…सोनू… बस करो… मर जाऊँगी… अब और कितना चोदोगे जान… हम्म्म्म…” रिंकी इतनी देर से लंड के धक्के खा खा कर थक गई थी और झड़ने के बाद उसे लंड को झेलने में परेशानी हो रही थी। उसने अपना सर बिस्तर पे रख कर अपने दोनों हाथों से चादर को भींच लिया और मेरे लंड के प्रहार को झेलने लगी।

“बस हो गया मेरी जान…मैं आया, मैं आया…ओह्ह्ह्ह…ये लो… ले लो मेरे लंड का सारा रस…” मैंने तेज़ी से चोदते हुए अपने आखिरी के स्ट्रोक मारने शुरू किये…

तभी मेरे दिमाग में आया कि अब मैं झड़ जाऊँगा और ऐसे ही रहा तो सारा पानी उसकी चूत में ही झड़ जाएगा…चाहता तो मैं यही था कि उसकी चूत में ही झाड़ूं लेकिन बाद में कोई परेशानी न हो यह सोच कर मैंने रिंकी का मत जानने की सोची और तेज़ चलती साँसों के साथ चोदते हुए उससे पूछा,”रिंकी मेरी जान…कहाँ लोगी मेरे लंड का रस…? मैं आ रहा हूँ।”

मेरी आशा के विपरीत रिंकी ने वो जवाब दिया जिसे सुनकर मैं जड़ से खुश हो गया।

“अन्दर ही डाल दो मेरे रजा जी… इस चूत को अपने पानी से सींच दो… मुझे तुम्हारे लंड का गरम गरम पानी अपनी चूत में फील करना है।” रिंकी ने हांफते हुए कहा।

मैं ख़ुशी के मारे उसकी कमर को अपने हाथों से थाम कर जोरदार झटके मारने लगा…

“आअह्ह…आह्ह्ह्ह……ऊओह्ह……रिन्कीईईइ…” एक तेज़ आवाज़ के साथ मैंने एक जबरदस्त धक्का मारा और अपने लंड को पूरा जड़ तक उसकी चूत में ठेल कर झड़ने लगा।

न जाने कितनी पिचकारियाँ मारी होंगी, इसका हिसाब नहीं है लेकिन मैं एकदम से स्थिर होकर लंड को ठेले हुए उसकी चूत को अपने काम रस से भरता रहा।

हम दोनों ऐसे हांफ रहे थे मानो कई किलोमीटर दौड़ कर आये हों।

मैं निढाल होकर उसकी पीठ पर पसर गया। रिंकी ने भी अपने दोनों हाथों को बिस्तर पर फैला दिया और मुझे अपने ऊपर फील करके लम्बी लम्बी साँसे लेने लगी। हम दोनों ने अपनी अपनी आँखें बंद कर लीं थीं और उस अद्भुत क्षण का आनन्द ले रहे थे।

चुदाई के उस आखिरी पल का एहसास इतना सुखद होता है यह मुझे उसी वक़्त महसूस हुआ। हम दोनों उसी हालत में लगभग 15 मिनट तक लेटे रहे।

मैं धीरे से रिंकी के ऊपर से उठा और रिंकी के नंगी पीठ को अपने होंठों से चूम लिया। रिंकी की आँखें बंद थी और जब मैंने उसकी पीठ को चूमा तो उसने धीरे से अपनी गर्दन हिलाई और पीछे मुड़ कर मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी।

मेरा लंड अब तक थोड़ा सा मुरझा कर उसकी चूत के मुँह पे फँसा हुआ था। मैंने खड़े होकर अपने लंड को उसकी चूत से बाहर खींचा तो एक तेज़ धार निकली चूत से जो हम दोनों के रस और रिंकी की चूत का सील टूटने की वजह से निकले खून का मिश्रण दिख रहा था।

रिंकी वैसे ही उलटी लेती हुई थी और उसकी चूत से वो मिश्रण निकल निकल कर बिस्तर पर फैलने लगा।

मैंने रिंकी की पीठ पर हाथ फेरा और उसे सीधे होने का इशारा किया। रिंकी सीधे होकर लेट गई और अपने पैरों को फैला कर मेरे कमर को पैरों से जकड़ लिया और अपने पास खींचा। ऐसा करने से मेरा मुरझाया लंड फिर से उसकी चूत के दरवाज़े पर रगड़ खाने लगा। चूत की चिकनाहट मेरे लंड के टोपे को रगड़ रही थी। अगर थोड़ी देर और वैसा ही करत रहता तो शायद मेरा लंड फिर से खड़ा होकर उसकी चूत में घुस जाता।

मैंने वैसे ही खड़े खड़े रिंकी की आँखों में देख और उसे आँख मारते हुए अपने हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिए।

रिंकी ने मेरे हाथों में अपने हाथ दिए और मैंने उसे खींच कर उठा दिया। उठते ही रिंकी मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे कोई लता किसी पेड़ से लिपट जाती है। हम दोनों एक दूसरे को हाथों से सहलाते रहे।

तभी रिंकी को बिस्तर से उठाते हुए मैं अलग हो गया उर हम दोनों खड़े हो गए। खड़े होते ही रिंकी की टाँगें लड़खड़ा गई और उसने मेरे कन्धों को पकड़ लिया। मैंने उसे सहारा देकर अपने सीने से लगा लिया। रिंकी मेरे सीने में अपना सर रख कर एकदम चिपक सी गई और ठंडी ठण्डी साँसे लेने लगी।

मैंने झुक कर उसके चेहरे को देखा, एक परम तृप्ति के भाव उस वक़्त उसके चेहरे पे नज़र आ रहे थे।

रिंकी ने अपना सर उठाया और मुझसे लिपटे लिपटे ही बिस्तर की तरफ मुड़ गई…

“हे भगवन……यह क्या किया तुमने…” रिंकी ने बिस्तर पर खून के धब्बे देख कर चौंकते हुए पूछा।

“यह हमारी रास लीला की निशानी है मेरी जान… आज तुम कलि से फूल बन गई हो।” मैंने फ़िल्मी अंदाज़ में रिंकी को कहा।

“धत…शैतान कहीं के !” रिंकी ने मेरे सीने पे एक मुक्का मारा और मेरे गालों को चूम लिया। हम दोनों हंस पड़े।

तभी हमारा ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया तो हमारा माथा ठनका।

घड़ी में 3 बज रहे थे…यानि हम पिछले 3 घंटे से यह खेल खेल रहे थे। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और एक बिना बोले समझने वाली बात एक दूसरे को आँखों से समझाई। रिंकी ने मेरे होंठों को चूम लिया और मुझसे अलग होकर अपने कपड़े झुक कर उठाने लगी।

उसके झुकते ही मेरी नज़र उसके बड़े से कूल्हों पर गई और एक सुर्ख गुलाबी सा छोटा सा छेद मेरी आँखों में बस गया।

वो नज़ारा इतना हसीं था कि दिल में आया कि अभी उसे पकड़ कर उसकी गांड में अपना लंड ठोक दूँ। लेकिन फिर मैंने सोचा कि जब रिंकी को मैंने अपने लण्ड का स्वाद चखा ही दिया है तो चूत रानी की पड़ोसन भी मुझे जल्दी ही मिल जायेगी।

यह सोच कर मैं मुस्कुरा उठा और अपनी निक्कर और टी-शर्ट उठाकर पहन ली। रिंकी ने भी अपनी स्कर्ट पहन ली थी और अपनी ब्रा पहन रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसकी ब्रा को अपने हाथों से बंद किया और ब्रा के ऊपर से जोर से चूचियों को मसल दिया।

“ऊह्ह्ह…क्या करते हो सोनू… आज ही उखाड़ डालोगे क्या…अब तो ये तुम्हारी हैं, आराम से खाते रहना।” रिंकी ने एक मादक सिसकारी के साथ अपनी चूचियों को मेरे हाथों से छुड़ा कर कहा और फिर बाहर निकलने लगी क्यूंकि उसका टॉप बाहर सोफे पे था।

रिंकी मेरे आगे आगे चलने लगी, उसकी टाँगें लड़खड़ा रही थीं। मैं देख कर खुश हो रहा था कि आज मेरे भीमकाय लंड ने उसकी चूत को इतना फैला दिया था कि उससे चला नहीं जा रहा था…

खैर धीरे धीरे रिंकी बाहर आई और अपना टॉप उठाकर पहन लिया। मैं भी अपने कपड़े पहन कर बाहर हॉल में आ चुका था। मैंने रिंकी को एक बार फिर से अपनी बाहीं में भर और उसके गालों को चूमने लगा।

“अब बस भी करो राजा जी, वरना अगर मैं जोश में आ गई तो अपने आप को रोक नहीं पाऊँगी…हम्म्म्म…” रिंकी ने मुझे अपनी बाँहों में दबाते हुए कहा।

“तो आ जाओ न जोश में… मेरा मन नहीं कर रहा तुम्हें छोड़ के जाने को।” मैंने उसके होंठों को चूमते हुए मनुहार भरे शब्दों में अपनी इच्छा जताई।

“दिल तो मेरा भी नहीं कर रहा है जान, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है और सबके वापस आने का वक़्त हो चुका है। अब आप जाओ और मैं भी जाकर अपने प्रेम की निशानियों को साफ़ कर देती हूँ वरना किसी की नज़र पड़ गई तो आफत आ जाएगी।”…रिंकी ने मुझे समझाते हुए कहा।

मैंने भी उसकी बात मान ली और एक आखिरी बार उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में दबा दिया।

“उफ्फ्फ…दुखता है न… मत दबाओ न जान… पहले ही तुम्हारे लंड ने उसकी हालत ख़राब कर दी है…अब जाने दो।” रिंकी ने तड़प कर मेरा हाथ हटाया और मुझे प्यार से धकेल कर नीचे भेज दिया।

मैं ख़ुशी ख़ुशी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आने लगा।

तभी मेन गेट पर आवाज़ आई और गेट खुलने लगा। मैं तेज़ी से नीचे की तरफ भागा और अपने कमरे में घुस गया।

कमरे से बाहर झाँका तो देखा कि प्रिया गेट से अन्दर दाखिल हुई… मैंने चैन की सांस ली कि सही वक़्त पर हमारी चुदाई ख़त्म हो गई वरना आज तो प्रिया हमें पकड़ ही लेती…

मैं अपने बिस्तर में लेट गया और थोड़ी देर पहले बीते सारे लम्हों को याद करते करते अपनी आँखें बंद कर लीं…

ख्यालों में खोये खोये कब नींद आ गई पता ही नहीं चला…

“सोनू…सोनू…उठ भी जा भाई…तबियत कैसी है?” नेहा दीदी की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ी और मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गया और सामने देखा तो नेहा दीदी और सिन्हा आंटी हाथों में ढेर सारा सामान लेकर मेरे कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थीं…

मैंने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया और बिस्तर से उठ कर नेहा दीदी के हाथों से सामन लेकर अपने ही कमरे में रख दिया। सिन्हा आंटी ने मेरी तरफ देख कर अपनी वही कातिल मुस्कान दी और सीढ़ियों की तरफ चल पड़ी। नेहा दीदी भी उनके साथ ऊपर चली गईं और मैं अपने बाथरूम में घुस गया।

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