शेर का पुनः शिकार-2
लेखक : मुकेश कुमार
मेरा लौड़ा पकड़ते हुए बोली- जो काम इसका है उंगली नहीं कर सकती।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी, हम दोनों सकपका गए। तभी बाहर से बाई की आवाज़ आई- भाभी…!
तो शर्मीला बोली- मेरे बेडरूम में चले जाओ, उसे बर्तन करने बोलती हूँ तो पीछे से निकल जाना।
औरतों की यह और एक बात समझ नहीं आती, चूत में आग लगी है लेकिन बाई को ना नहीं बोल सकती। बहरहाल, अपने कपड़े उठाये मैं बेडरूम में गया। शर्मीला भाभी ने सिर्फ ब्लाउज पहना ब्रा पेंटी मुझे अन्दर ले जाने बोल, चेहरे पर लगे माल को क्रीम की तरह मल दिया।
बाई को काम बता कर रूम में आई बोली- मेरे यहाँ काम कर तुम्हारे घर आयगी, इसके जाने के बाद तुम आ जाना, खाना बना कर रखूंगी, ररररराजा !” और मुझे चूमने लगी।
उनके चेहरे से मेरे वीर्य की महक आ रही थी।
“अब तुम जाओ !”
मैंने घर आकर सिगरेट जलाई और लंड की तिल के तेल से मालिश कर सोच रहा था कि मारिया सही बोलती थी ‘हैंगओवर उतारने के लिए चोदने से अच्छा कोई इलाज नहीं है।’
बाई आई और सफाई कर चली गई। मैं भी नहा कर तैयार हो पड़ोसी धर्म निभाने चला।
अन्दर आने के साथ ही दरवाजा बंद कर शर्मीला मुझसे लिपट गई, अपने हाथों से खाना खिलाया और मुखग्रास भी।
मुझे बेडरूम में लिटा ए सी चला कर गृह कार्य जल्दी जल्दी निपटाने गई।
एक बार फिर शादीशुदा होने जैसा एहसास हुआ। मैंने सिगरेट जलाई और इंतजार करने लगा। शर्मीला आई और पास बैठ मेरी छाती पर हाथ फिराने लगी। थोड़ा ऊपर हो पलंग के सहारे बैठ गया और शर्मीला को पलट अपने सहारे बिठाया कि उसका चेहरा मेरे कंधों तक आ रहा था। फिर सिगरेट बुझाई और शर्मीला को चूमने लगा। मेरी जबान भाभी के पाले में उनकी जबान से कबड्डी कर रही थी।
एक हाथ पेट पर फिसलता हुए नीचे की और बढ़ा, दूसरा ब्लाउज के अन्दर चूचों के मर्दन के लिए। नीचे वाले हाथ ने साड़ी निकाल पेटीकोट का नाड़ा खोला तो शर्मीला थोड़ी ऊपर हुई ताकि में फालतू कपड़े नीचे सरका सकूँ।
मौका पा मेरा लंड तन गया और गांड की दरार में फिट हो गया।
चुम्बन से हमारे चेहरे गीले हो गए तो अलग हुए और बचे कपड़े निकल फेंके। शर्मीला भूखी बिल्ली की तरह मेरे लंड की तरफ बढ़ी और चूसने लगी, थूक लगा लगा और चूस कर तथा हाथ से मस्त टनाटन कर दिया। मुझे भी कई दिन बाद चूत मिल रही थी। बाल पकड़ मैंने उसे अपने ऊपर खींचा और घूम कर पीठ के बल किया पैर चौड़े कर झांटों में चहकती गीली लाल चूत के द्वार पर लंड रख रगड़ने लगा।
“जानू मत तड़पा, यह तो मैं खिलौनों के साथ भी कर सकती हूँ। फाड़ दे मेरी चूत को… मत तड़पा जान !” शर्मीला मिन्नतें करने लगी। एक झटके के साथ मेरे लौड़े का सुपारा अन्दर गया तो शर्मीला उछल गई और दर्द से चिलाने लगी- ओहोहो… सी सी।
दो मिनट उसी अवस्था में रह कर उसे शांत होने दिया। जैसे ही होंठ काटना बंद किया, मेरा शेर मांद में गहरे जाने लगा। शर्मीला को अब मज़ा आ रहा था, तो मैंने गति तेज़ कर दी। शर्मीला लगातार मीठी सिसकारियाँ मार रही थी और कमर उचका उचका कर साथ दे रही थी। फिर एक अकड़न आई और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।
मैंने उसे घोड़ी बनाया और लंड पीछे से चूत मे डाल चोदने लगा। उसके मम्मे जोर जोर से हिलने लगे तो दोनों हाथों से पकड़ लिया। शर्मीला फिर स्खलित हो गई तभी मेरा भी बांध टूटने वाला था।
“मेरा भी निकलने वाला है, कहाँ निकालू?” मैंने कहा।
“अन्दर नहीं !” शर्मीला घबरा कर बोली- अगर प्रेग्नेंट हो गई तो बहुत बड़ी समस्या हो जायेगी।
मैंने सही समय पर निकाला और सारा वीर्य उसके चूतड़ों पर निकाल दिया। धीरे धीरे गांड में बहने लगा तो मैंने ऊँगली से इकट्ठा करके गांड में घुसा दिया। फिर निढाल हो एसी में भी पसीने से लथपथ हो एक दूसरे की बाँहों में नंगे ही सो गए।
शाम को नींद खुली तो देखा भाभी नंगी ही घर का काम कर रही थी। मैं पलंग पर सहारा ले कर बैठ गया और सिगरेट जलाई। शर्मीला आई और बोली- अच्छी चीज नहीं है। इसे छोड़ो चाय बनाती हूँ।”
मैंने खींच कर बिठा दिया और उसके नंगे बदन पर हाथ फेरने लगा।
“अच्छा तो यह भी नहीं है कि पराई स्त्री को चोदो, पर मैं नहीं करता तो तुम्हारी प्यास कैसे बुझती?” मैंने तर्क किया।
“एक बार पीकर देखो !” कह सिगरेट उसकी तरफ बढ़ा दी।
उसने एक जोर का कश लिया और खांसने लगी। मैं उसे सीने से लगा पीठ मसलने लगा। फिर धीरे से पीना सिखाया, कश खींच कर एक दूसरे पर छोड़ रहे थे। साथ साथ एक चुम्मा-चाटी भी कर रहे थे। शाम का भोजन कर एक दूसरे की बाहों में थोड़ी देर टीवी देखा और फिर बिस्तर गरम करने लगे।
सवेरे देर से उठे, बाई का प्रकरण आधे घंटे में पटाया। तब तक में बाथरूम में छुपा रहा। बाई के जाते ही अपना गाउन फ़ेक अंदर आ गई। मेरे हाथ से सिगरेट ली और घुटनों के बल बैठ कश लेते हुए मेरे शेर को चूस कर जागृत करने लगी। मैंने भी उसके मम्मों पर थूका और चिकना कर अपना लंड दोनों चूचों के बीच रगड़ने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
शर्मीला फिर कामाग्नि में जल उठी और उसकी चूत प्रेम रस छोड़ने लगी।मैंने अमृत को जाया नहीं होने दिया, भाभी को बंद कमोड पर झुकाया और मैंने टांगों के बीच बैठ जांघों पर बहे चूत रस चाटा, फिर झांटों के अन्दर छुपी मुनिया को खाने लगा, जबान घुसा कर हर बूँद चूस रहा था मैं।
शर्मीला बाथरूम को अपनी सिसकारियों से गुंजायमान कर रही थी।
“राजा अब औरत बनी हूँ… आह ओह… सी सी आह… खा जा इस रंडी को !”
मैंने चाट कर चूत लाल कर दी गांड को भी नहीं छोड़ा। फिर शर्मीला से सहन नहीं हो सका तो मेरा सर पकड़ मुझे खड़ा किया और बोली- जानू पेल दे अपना शेर मेरी मांद में !
मैंने पीछे से ही घुसा दिया और जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा। मेरी नज़र फिर गांड पर गई तो मन किया गांड में डाल दूँ। शर्मीला के कान में फुसफुसाया- रानी गांड मारनी है तेरी !
उसके जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और बहुत सारा थूक उसकी गांड में लगाया और चूत से निकाल गांड पर लाया। सिर्फ अग्रभाग ही घुसाने की कोशिश की तो शर्मीला जोर से चिल्ला उठी। फिर उसके मुँह पर हाथ रख बाथरूम में रखा, शैम्पू लिया और उसे थूकने को बोला। झाग से लंड और उसकी गांड को चिकना किया, मेरे शेर को एक और गुफा में धीरे धीरे घुसा दिया। शर्मीला को दर्द हो रहा था, आँसू भी आ गए पर थोड़ी देर बाद बोली- अब ठोको।
मैंने गांड मारना शुरू की, फिर उसे भी मज़ा आने लगा साथ साथ में उसकी चूत में उंगली कर रहा था। वो और में एक साथ स्खलित हुए। मेरे शेर ने सारा माल उसकी गांड में उलट दिया। शर्मीला थोड़ी देर कमोड पर ही बैठी रही, फिर मूत दिया और खड़ी होकर मुझसे लिपट गई बोली- फाड़ दी मेरी गांड, बहुत दुःख रही है, पर बहुत अच्छा लगा, तुमने मेरी प्यास बुझाई है।
मस्ती करते हुए हम नहाने लगे। दो दिन हमने रंग रेलियाँ मनाई। फिर उसके पति आ गए थे।
कहानी अन्तर्वासना पर जारी रहेगी।
हैप्पी चोदिंग…
मुकेश कुमार
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