संगीता का संगीत
लेखक : जूजा जी
यह कहानी उन दिनों की है, जब मुझ पर नयी-नयी जवानी चढ़ी थी, ईश्वर की कृपा से खूबसूरत व्यक्तित्व पाया था, आँखों में एक विशेष किस्म का चुंबकीय आकर्षण था, अब भी है। कोई भी लड़की देखती थी, तो एक बार जरुर मेरी शक्ल को निहार लेती थी।
खैर… मुहल्ले में, घर के सामने एक लड़की रहती थी संगीता, उसका भी अंग अंग मदिरा से भरा था, साली जब चलती थी तो क्या कूल्हे मटकाती थी कि बस देखते ही रहने का मन होता था। लगता था कि इसको पकड़ कर यहीं दबोच लूँ, पर पिटने के डर से गांड भी फटती थी, सो मन मसोस कर रह जाते थे।
मुट्ठी मार कर मन को शांत कर लेते थे, पर किस्मत में लिखा था कि संगीता की सील तोड़ने की जिम्मेवारी मेरे लौड़े की है तो कहानी बन गई।
अस्तु… आपके लौड़ों को खड़ा करने और पाठिकाओं की चूतों से रस निकालने की कथा लिख रहा हूँ।
आपको अन्तर्वासना पर हजारों कथायें हमारे सहलेखकों, लेखिकाओं की कृपा से मिलती हैं, सो आपसे निवेदन है कि जब भी कोई खानी पढ़ें, रचनाकार का भी धन्यवाद अवश्य करें !
अस्तु अथ संगीतायाः योनि छिद्रण कथा:
रोज की तरह सुबह ट्यूशन जाने के लिये घर से निकला। आदतन संगीता के घर की खिड़की की तरफ निगाह डाली, कभी कभी वो वहाँ बैठ कर कुछ पढ़ती रहती थी। अपन इसी उम्मीद से उस खिड़की पर निगाह डालते थे कि हो सकता माल दिख जाए।
जिस दिन दिख जाती थी, उस दिन ऐसा लगता था कि आज का दिन अच्छा गुजरेगा।
मेरी नजर खिड़की की तरफ गई तो संगीता वहीं बैठी थी और आज उसने मुझे भी देखा और हल्के से मुस्कुरा दी।
मैं हकबका गया, मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि साली स्माइल भी देगी। खैर मैंने भी मुस्कुरा कर अपनी मनोभावनाएँ उनके सामने झाड़ दीं।
उसने पूछा- किस सब्जेक्ट की ट्यूशन पढ़ने जाते हो?
मैंने कहा- गणित की।
संगीता बोली- ओके !
बस… बात ख़त्म।
मैंने दिल को तसल्ली दी कि चलो शुरुआत तो हुई। ट्यूशन से लौट कर घर आया तो फिर खिड़की पर निगाह गई… वो नहीं थी।
मैं अपने घर में घुसा तो देखा संगीता मेरी मम्मी से कुछ बात कर रही थी।
उसने मुझे देखा तो स्माइल देकर पूछा- पढ़ आये गणित?
मैंने मन में सोचा कि कहाँ रानी, अभी तो सिर्फ किताब देखी है। एकाध पन्ना पलट कर कोई एक्सरसाइज तो करने दे साली, फिर बताऊँगा, पर ऊपर से मैंने बोला- हाँ।
मेरी निगाह उसके वक्षोभारों पर थी, उसने मेरी नजरों का पीछा किया और अपना दुपट्टा ठीक करने लगी। मेरी तरफ देख कर फिर हल्की सी मुस्कान उछाल दी।
मैं समझ गया कि कुछ हो सकता है।
वो उठी और मेरी मम्मी से बोली- अच्छा चाची, अभी चलती हूँ।
मम्मी ने कहा- ठीक है संगीता, आती रहा करो, मुझे अच्छा लगा।
मैंने भी कहा- हाँ, मम्मी का मन बहल जाता है, तुम आ जाया करो।
संगीता ने मुझे फिर मुस्कुरा कर देखा और कहा- ठीक है।
मेरी बाँछें खिल गयीं, और मैंने हल्के से अपनी बायीं आँख दबा दी।
संगीता के चेहरे पर शर्म की लालिमा छा गई।
दूसरे दिन जब वो मेरे घर आई, तो मैंने उसको एक किताब दी और कहा- लो यही किताब चाहिए थी न तुमको?
संगीता ने मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाह डाली।
मैंने उसको आँख से इशारा किया और पलट कर मम्मी से कहा- मैं जरा जा रहा हूँ।
संगीता को कौतूहल था, वो कुछ-कुछ समझ तो रही थी पर उसको भी जल्दी थी सब कुछ जानने की तो वो भी रुकी नहीं।
मेरी मम्मी से कह कर अपने घर चली गई।
जब अगले दिन आई तो उसने मुझे किताब वापिस की और बोली- थैंक्स, लेकिन मुझे ये वाली नहीं, सेक्सपियर वाली किताब चाहिये।
मैंने कहा- ठीक है, कल दे दूँगा।
और उसकी स्माइल देख कर मैं समझ गया कि लौंडिया राजी है, राजी क्या है समझो सामने बिछी पड़ी है।
जल्दी से अपने कमरे में जाकर किताब खोली तो उसमें एक ख़त था, जो मेरे ख़त का जवाब था और एक गुलाब का फूल था, जो दब जरुर गया था, लेकिन उसकी महक में संगीता की महक थी।
उसने लिखा था कि ‘वो मुझसे अकेले में मिलना चाहती थी और मुझसे प्यार करती है।’
अब मैंने उसको अगले दिन एक किताब दी और उसको शाम को एक होटल में आने को कहा।
वो सही समय पर होटल के रेस्टोरेंट में पहुँच गई, उसके साथ उसकी एक सहेली भी थी।
मैंने बड़े आदर से उन दोनों को बैठाया।
उसकी सहेली बोली- मुझे जरा काम है, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।
संगीता ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और मैंने भी उसकी आँखों में आँखें डाल दी।
हमारी प्रेम की नैया चल पड़ी थी पर मुझे लग रहा था कि शायद हम दोनों का जीवन भर का साथ कभी नहीं हो सकता है। सो मैंने उससे अपने मन की यह बात कह ही दी।
उसने कहा- यदि तुम मेरे न हुये, तो क्या हुआ, ये समाज भले ही हमको, एक न करे, पर यह मेरा वादा है कि मैं तुमको हमेशा प्यार करुँगी।
उसकी बात में दम था।
जल्द ही हमने अपने मिलने का एक ठिकाना ढूंढ लिया, और हम वहाँ मिलने लगे।
अभी तक हमने सैक्स नहीं किया था।
एक दिन वो आई और बोली- जानू, मेरी शादी तय हो गई है, और मैं चाहती हूँ कि मेरे पहले बच्चे के पिता तुम बनो।
मेरा दिल लरज गया, आज मेरी मुराद पूरी होने वाली थी, मैंने उसको अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
वो भी यही चाहती थी, पता ही नहीं चला कि कब कपड़े उतरते चले गये। मैं और संगीता पूरी तरह नंगे एक दूसरे को हर जगह चूम रहे थे।
मैंने उसके दुद्दुओं को खूब मसला और उसके गुलाबी निप्पलों को, अपने होंठों से दबा दबा कर चूसा, मुझे वो एक मीठे आम की तरह लग रहे थे। मेरा लंड उसने अपने हाथों में पकड़ लिया।
मैंने उससे पूछा- मुँह में लोगी?
उसने जबाब में मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मेरे आनन्द का ठिकाना नहीं था।
हम दोनों ने 69 की स्थिति आकर मुखमैथुन किया, उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और उसी समय, मेरा लण्ड भी छूट गया।
उसने मेरे माल को अपने दुद्दुओं पर मल लिया। मैंने भी उसकी चूत से निकले रस को अपनी छाती में लगा लिया।
हम दोनों ने एक दूसरे को गले से लगाया और फिर कुछ ही देर में मेरा लौड़ा फिर खड़ा हो गया था।
मैंने उसकी गीली चूत के मुहाने पर अपने लौड़े के टोपे को रखा और एक हल्का सा दबाब दिया। मेरा लण्ड उसकी टाइट बुर में फँस गया।
संगीता को कुछ दर्द सा हुआ, मैंने देखा कि उसने अपने होंठ भींच रखे थे। मैंने फिर से अगला धक्का मारा और आधे से अधिक लौड़ा उसकी चूत में प्रविष्ट हो गया था, अब उससे सहन नहीं हुआ।
उसकी घुटी सी चीख निकल गई- जानू, आ उं लग ग ती है… आ अ आ।
मैंने देखा उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे और वो बहुत दर्द महसूस कर रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने रुक कर उससे पूछा- आगे बढूँ?
उसने सर हिलाया और मैंने अपनी कमर को एक और धक्का मारा, मेरा लण्ड उसकी चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ पूरा घुस गया।
मैंने कुछ देर रुक कर उसके कुचाग्र चूसते हुए अपने लण्ड से करीब आठ दस धक्के मारे और संगीता की चूत का संगीत बजने लगा।
उसको अब अच्छा लग रहा था। उसने भी मुझे मुस्कुरा कर देखा और नीचे से अपने नितम्ब उठाए।
बस, फिर क्या था हम दोनों की दुरन्तो अपनी पूरी गति से दौड़ने लगी और करीब 15 मिनट की पेलम-पाली के बाद मैंने अपना बीज उसके गर्भ में बो दिया।
करीब दस मिनट तक मैं उसकी चूत में अपना लण्ड डाल कर पड़ा रहा। कुछ देर बाद हम उठे, गुसलखाने में जाकर एक दूसरे को साफ़ किया और फिर जुदा हो गए।
…और आज तक जुदा ही हैं।
शादी के बाद यों तो वो कई बार मायके आई पर जब सवा साल बाद वो अपने मायके आई, तो उसकी गोद में एक बच्चा था।
मैंने इशारे से पूछा तो उसने सहमति में सर हिलाया।
मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गये। यह मेरे पहले प्यार की सच्ची दास्तान है, इसमें एक रत्ती भी झूठ नहीं है। आज उसकी बहुत याद आई तो यह कथा आपको सुना दी है।
मुझे आपके विचारों का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहेगा। आप मुझसे फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं।
What did you think of this story??
Comments