मुझे दीदी ना कहो-2

लेखिका : कामिनी सक्सेना

उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।

उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे … मैंने अपने होंठ झटक दिये।

“यह क्या कर रहे हो …? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया … अब जाओ तुम !” मेरे नखरे और बढ़ने लगे।

पर मेरे दोनों कबूतर उसकी गिरफ़्त में थे। वो उसे सहला सहला कर दबा रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। बस जुबान पर इन्कार था, मैंने उसके हाथ अपने नर्म कबूतरों से हटाने की कोशिश नहीं की। उसने मेरा टॉप ऊपर खींच दिया, मैं ऊपर से नंगी हो चुकी थी। मेरे सुडौल स्तन तन कर बाहर उभर आये। उनमें कठोरता बढ़ती जा रही थी। मेरे चुचूक सीधे होकर कड़े हो गये थे। मैं अपने हाथों से अपना तन छिपाने की कोशिश करने लगी।

तभी उसने बेशर्म होकर अपनी पैंट उतार दी और साथ ही अपनी चड्डी भी। यह मेरे मादक जोबन की जीत थी। उसका लण्ड 120 डिग्री पर तना हुआ था और उसके ऊपर उसके पेट को छू रहा था। बेताबी का मस्त आलम था। उसका लण्ड लम्बा था पर टेढा था। मेरा मन हुआ कि उसे अपने मुख में दबा लूँ और चुसक चुसक कर उसका माल निकाल दूँ। उसने एक झटके में मुझे खींच कर मेरी पीठ अपने से चिपका ली। मेरे चूतड़ों के मध्य में पजामे के ऊपर से ही लण्ड घुसाने लगा। आह्ह ! कैसा मधुर स्पर्श था … घुसा दे मेरे राजा जी … मैंने सामने से अपनी चूचियाँ और उभार दी। उसका कड़क लण्ड गाण्ड में घुस कर अपनी मौजूदगी दर्शा रहा था।

“वो क्या है? … उसमें क्या तेल है …?”

“हाँ है … पर ये ऐसे क्या घुसाये जा रहा है … ?”

उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मुझे बिस्तर पर उल्टा लेटा दिया। एक हाथ बढ़ा कर उसने तेल की शीशी उठा ली। एक ही झटके में मेरा पाजामा उसने उतार दिया,”बस अब ऐसे ही पड़े रहना … नहीं तो ध्यान रहे मेरे पास चाकू है … पूरा घुसेड़ दूँगा।”

मैं उसकी बात से सन्न रह गई। यह क्या … उसने मेरे चूतड़ों को खींच कर खोल दिया और तेल मेरे गाण्ड के फ़ूल पर लगाने लगा। उसने धीरे से अंगुली दबाई और अन्दर सरका दी। वो बार बार तेल लेकर मेरी गाण्ड के छेद में अपनी अंगुली घुमा रहा था। मेरे पति ने तो ऐसा कभी नहीं किया था। उफ़्फ़्फ़्… कितना मजा आ रहा था।

“आलोक, देख चाकू मत घुसेड़ना, लग जायेगी …” मैंने मस्ती में, पर सशंकित होकर कहा।

पर उसने मेरी एक ना सुनी और दो तकिये नीचे रख दिये। मेरी टांगें खोल कर मेरे छेद को ऊपर उठा दिया और अपना सुपाड़ा उसमें दबा दिया।

“देख चाकू गया ना अन्दर …”

“आह, यह तो तुम्हारा वो है, चाकू थोड़े ही है?”

“तो तुम क्या समझी थी सचमुच का चाकू है मेरे पास … देखो यह भी तो अन्दर घुस गया ना ?”

उसका लण्ड मेरी गाण्ड में उतर गया था।

“देख भैया, अब बहुत हो गया ना … तूने मुझे नहीं छोड़ा तो मैं चिल्लाऊँगी …” मैंने अब जानबूझ कर उसे छेड़ा।

पर उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये थे, लण्ड अन्दर बाहर आ जा रहा था, उसका लण्ड मेरी चूत को भी गुदगुदा रहा था। मेरी चूत की मांसपेशियाँ भी सम्भोग के तैयार हो कर अन्दर से खिंच कर कड़ी हो गई थी।

“नहीं दीदी चिल्लाना नहीं … नहीं तो मर जाऊँगा …” वो जल्दी जल्दी मेरी गाण्ड चोदने लगा पर मैंने अपने नखरे जारी रखे,”तो फिर हट जा … मेरे ऊपर से… आह्ह … मर गई मैं तो !” मैंने उसे बड़ी मस्त नजर से पीछे मुड़ कर देखा।

“बस हो गया दीदी … दो मिनट और …” वो हांफ़ता हुआ बोला।

“आह्ह … हट ना … क्या भीतर ही अपना माल निकाल देगा?” मुझे अब चुदने की लग रही थी। चूत बहुत ही गीली हो गई थी और पानी भी टपकाने लगी। इस बार वो सच में डर गया और रुक गया। मुझे नहीं मालूम था कि गाण्ड मारते मारते सच में हट जायेगा।

“अच्छा दीदी … पर किसी को बताना नहीं…” वो हांफ़ते हुये बोला।

अरे यह क्या … यह तो सच में पागल है … यह तो डर गया… ओह… कैसा आशिक है ये?

“अच्छा, चल पूरा कर ले … अब नहीं चिल्लाऊंगी…” मैंने उसे नरमाई से कहा। मैंने बात बनाने की कोशिश की- साला ! हरामजादा … भला ऐसे भी कोई चोदना छोड़ देता है … मेरी सारी मस्ती रह जाती ना !

उसने खुशी से उत्साहित होकर फिर से लण्ड पूरा घुसा दिया और चोदने लगा। आनन्द के मारे मेरी चूत से पानी और ही निकलने लगा। उसमे भी जोर की खुजली होने लगी … अचानक वो चिल्ला उठा और उसका लण्ड पूरा तले तक घुस पड़ा और उसका वीर्य निकलने को होने लगा। उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने मुठ में भर लिया। फिर एक जोर से पिचकारी निकाल दी, उसका पूरा वीर्य मेरी पीठ पर फ़ैलता जा रहा था। कुछ ही समय में वो पूरा झड़ चुका था।

“दीदी, थेन्क्स, और सॉरी भी … मैंने ये सब कर दिया …” उसकी नजरें झुकी हुई थी।

पर अब मेरा क्या होगा ? मेरी चूत में तो साले ने आग भर दी थी। वो तो जाने को होने लगा, मैं तड़प सी उठी।

“रुक जाओ आलोक … दूध पी कर जाना !” मैंने उसे रोका। वो कपड़े पहन कर वही बैठ गया। मैं अन्दर से दूध गरम करके ले आई। उसने दूध पी लिया और जाने लगा।

“अभी यहीं बिस्तर पर लेट जाओ, थोड़ा आराम कर लो … फिर चले जाना !” मैंने उसे उलझाये रखने की कोशिश की। मैंने उसे वही लेटा दिया। उसकी नजरें शरम से झुकी हुई थी। इसके विपरीत मैं वासना की आग में जली जा रही थी। ऐसे कैसे मुझे छोड़ कर चला जायेगा। मेरी पनियाती चूत का क्या होगा।

“दीदी अब कपड़े तो पहन लूँ … ऐसे तो शरम आ रही है।” वो बनियान पहनता हुआ बोला।

“क्यूँ भैया … मेरी मारते समय शरम नहीं आई ?… मेरी तो बजा कर रख दी…” मैंने अपनी आँखें तरेरी।

“दीदी, ऐसा मत बोलो … वो तो बस हो गया !” वो और भी शरमा गया।

“और अब … ये फिर से खड़ा हो रहा है तो अब क्या करोगे…” उसका लण्ड एक बार फिर से मेरे यौवन को देख कर पुलकित होने लगा था।

“ओह, नहीं दीदी इस बार नहीं होने दूंगा…” उसने अपना लण्ड दबा लिया पर वो तो दूने जोर से अकड़ गया।

“भैया, मेरी सुनो … तुम कहो तो मैं इसकी अकड़ दो मिनट में निकाल दूंगी…” मैंने उसे आँख मारते हुये कहा।

“वो कैसे भला …?” उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा।

“वो ऐसे … हाथ तो हटाओ…” मैं मुस्करा उठी।

मैंने बड़े ही प्यार से उसे थाम लिया, उसकी चमड़ी हटा कर सुपाड़ा खोल दिया। उसकी गर्दन पकड़ ली। मैंने झुक कर सुपाड़े को अपने मुख में भर लिया और उसकी गर्दन दबाने लगी। अब आलोक की बारी थी चिल्लाने की। बीच बीच में उसकी गोलियों को भी खींच खींच कर दबा रही थी। उसने चादर को अपनी मुठ्ठी में भर कर कस लिया था और अपने दांत भीच कर कमर को उछालने लगा था।

“दीदी, यह क्या कर रही हो …?” उसका सुपाड़ा मेरे मुख में दब रहा था, मैं दांतों से उसे काट रही थी। उसके लण्ड के मोटे डण्डे को जोर से झटक झटक कर मुठ मार रही थी।

“भैया , यह तो मानता ही नहीं है … एक इलाज और है मेरे पास…” मैंने उसके तड़पते हुये लण्ड को और मसलते हुये कहा। मैं उछल कर उसके लण्ड के पास बैठ गई। उसका तगड़ा लण्ड जो कि टेढा खड़ा हुआ था, उसे पकड़ लिया और उसे चूत के निशाने पर ले लिया। उसका लम्बा टेढा लण्ड बहुत खूबसूरत था। जैसे ही योनि ने सुपाड़े का स्पर्श पाया वो लपलपा उठी … मचल उठी, उसका साथी जो जाने कब से उसकी राह देख रहा था … प्यार से सुपाड़े को अपनी गोद में छुपा लिया और उसकी एक इन्च के कटे हुये अधर में से दो बूंद बाहर चू पड़ी।

आनन्द भरा मिलन था। योनि जैसे अपने प्रीतम को कस के अपने में समाहित करना चाह रही थी, उसे अन्दर ही अन्दर समाती जा रही थी यहा तक कि पूरा ही समेट लिया। आलोक ने अपने चूतड़ों को मेरी चूत की तरफ़ जोर लगा कर उठा दिया।

… मेरी चूत लण्ड को पूरी लील चुकी थी। दोनों ही अब खेल रहे थे। लण्ड कभी बाहर आता तो चूत उसे फिर से अन्दर खींच लेती। यह मधुर लण्ड चूत का घर्षण तेज हो उठा। मैं उत्तेजना से सरोबार अपनी चूत लण्ड पर जोर जोर पटकने लगी।

दोनो मस्त हो कर चीखने-चिल्लाने लगे थे। मस्ती का भरपूर आलम था। मेरी लटकती हुई चूचियाँ उसके कठोर मर्दाने हाथों में मचली जा रही थी, मसली जा रही थी, लाल सुर्ख हो उठी थी। चुचूक जैसे कड़कने लगे थे। उन्हें तो आलोक ने खींच खींच कर जैसे तड़का दिये थे। मैंने बालों को बार बार झटक कर उसके चेहरे पर मार रही थी। उसकी हाथ के एक अंगुली मेरी गाण्ड के छेद में गोल गोल घूम रही थी। जो मुझे और तेज उत्तेजना से भर रही थी। मैं आलोक पर लेटी अपनी कमर से उसके लण्ड को दबाये जा रही थी। उसे चोदे जा रही थी। हाय, शानदार चुदाई हो रही थी।

तभी मैंने प्यासी निगाहों से आलोक को देखा और उसके लण्ड पर पूरा जोर लगा दिया। … और आह्ह्ह … मेरा पानी निकल पड़ा … मैं झड़ने लगी। झड़ने का सुहाना अहसास … उसका लण्ड तना हुआ मुझे झड़ने में सहायता कर रहा था। उसका कड़ापन मुझे गुदगुदी के साथ सन्तुष्टि की ओर ले जा रहा था। मैं शनैः शनैः ढीली पड़ती जा रही थी। उस पर अपना भार बढ़ाती जा रही थी। उसके लण्ड अब तेजी से नहीं चल रहा था। मैंने धीरे से अपनी चूत ऊँची करके लण्ड को बाहर निकाल दिया।

“आलोक, तेरे इस अकड़ू ने तो मेरी ही अकड़ निकाल दी…”

फिर मैंने उसके लण्ड की एक बार फिर से गर्दन पकड़ ली, उसके सुपाड़े की जैसे नसें तन गई। जैसे उसे फ़ांसी देने वाली थी। उसे फिर एक बार अपने मुख के हवाले किया और सुपाड़े की जैसे शामत आ गई। मेरे हाथ उसे घुमा घुमा कर मुठ मारने लगे। सुपाड़े को दांतों से कुचल कुचल कर उसे लाल कर दिया। डण्डा बहुत ही कड़क लोहे जैसा हो चुका था। आलोक की आनन्द के मारे जैसे जान निकली जा रही थी। तभी उसके लौड़े की सारी अकड़ निकल गई। उसका रस निकल पड़ा … मैंने इस बार वीर्य का जायजा पहली बार लिया। उसका चिकना रस रह रह कर मेरे मुख में भरता रहा। मैं उसे स्वाद ले ले कर पीती रही। लन्ड को निचोड़ निचोड़ कर सारा रस निकाल लिया और उसे पूरा साफ़ कर दिया।

“देखा निकल गई ना अकड़……… साला बहुत इतरा रहा था …” मैंने तमक कर कहा।

“दीदी, आप तो मना कर रही थी और फिर … दो बार चुद ली?” उसने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा।

“क्या भैया … लण्ड की अकड़ भी तो निकालनी थी ना … घुस गई ना सारी अकड़ मेरी चूत में !”

“दीदी आपने तो लण्ड की नहीं मेरी अकड़ भी निकाल दी … बस अब मैं जाऊँ …?”

“अब कभी अकड़ निकालनी हो तो अपनी दीदी को जरूर बताना … अभी और अकड़ निकालनी है क्या ?”

“ओह दीदी … ऐसा मत कहो … उफ़्फ़्फ़ ये तो फिर अकड़ गया …” आलोक अपने लण्ड को दबा कर बैठाता हुआ बोला। तो अब देर किस बात की थी, हम दोनों इस बार शरम छोड़ कर फिर से भिड़ गये। भैया और दीदी के रिश्तों के चीथड़े उड़ने लगे … मेरा कहना था कि वो तो मेरा मात्र एक पड़ोसी था ना कि कोई भैया। अरे कोई भी मुझे क्या ऐसे ही दीदी कहने लग जायेगा, आप ही कहें, तो क्या मैं उसे भैया मान लूँ? फिर तो चुद ली मैं ? ये साले दीदी बना कर घर तक पहुँच तो जाते है और अन्त होता है इस बेचारी दीदी की चुदाई से। सभी अगर मुझे दीदी कहेंगे तो फिर मुझे चोदेगा कौन ? क्या मेरा सचमुच का भैया … !!! फिर वो कहेंगे ना कि ‘सैंया मेरे राखी के बन्धन को निभाना …’

कामिनी सक्सेना

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category पड़ोसी or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

मुझे दीदी ना कहो-2

Comments

Scroll To Top