मेरी गली का सलीम-1
लेखिका : शमीम बानो कुरेशी
“क्या बात है अब्दुल, आजकल तो तू मिलने भी नहीं आता है?” मैंने शिकायत भरे स्वर में कहा।
“नहीं, ऐसी तो कोई बात ही नहीं… बस अब इन बातों में मन ही नहीं लगता !” उसने सर झुका कर कहा।
“कोई बात नहीं भड़वे, कभी कभी तो चोद जाया कर … अब यूँ मत कहना कि यार लण्ड ही नहीं खड़ा होता है।”
मुझे उसकी बात समझ में आ गई थी, अब उसका मन मुझसे भर गया था। मैंने भी उसे परेशान करना उचित नहीं समझा क्योंकि मैं तो अपने लौड़े सुगमता से ढूंढ लिया करती थी।
“मैंने तो तुझे सिर्फ़ इसलिये बुलाया था कि वो सामने एक नया लड़का आया है ना, मेरी उससे दोस्ती करवा दे !” मैंने नीचे देखते हुये उसे धीरे से कहा।
“क्यों, मन भर गया है क्या हमसे…?” वो कुछ कुछ खीजा हुआ सा बोला।
“भेन चोद अब तू तो अब मुझे अब ना तो चोदता है और ना ही मेरी गाण्ड मारने का तुझे ख्याल आता है तो मेरा मन भटकेगा ही … फिर मादरचोद, तेरा क्या जाता है उससे दोस्ती करवाने में?” मैंने उसे उलाहना दिया।
बड़े उदास मन से बोला- तो ठीक है मिला दूंगा … वो शन्नो बाई तन्दूर वाली के यहाँ आज शाम का खाना खा लेते हैं, देख, पेमेन्ट तू ही करेगी।”
“अरे हाँ कर दूँगी… तो बात पक्की … साले की पेमेण्ट के नाम से गाण्ड फ़टती है।” मैं बड़बड़ाई।
“देख तेरा काम है इसलिये कह रहा हूँ… अब ज्यादा मत बोल भोसड़ी की !” अब्दुल भी भड़क उठा।
शाम को हम दोनों शन्नो बाई के होटल पर पहुँच गये। सलीम भी कुछ ही देर में वहाँ पहुँच गया। सलीम से उसने मेरा परिचय करवाया।
“धन्यवाद सलीम भाई, आपने मेरा खाना कबूल किया !” मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। सलीम ने भी अपना हाथ मुझसे मिलाया फिर उसने हौले से मेरा हाथ दबा दिया।
“मैं जानता हूँ इनको, ये मोहम्मद साहब की लड़की है ना?”
“और मैं बताऊं … आप मजीद अंकल के लड़के हैं…”
“नहीं, उनका लड़का तो नही, वो तो मेरे चाचा जान है मैं तो साजिद जी का लड़का हूँ।” उसने कुछ हिचकिचा कर कहा।
“ये अब्दुल तो मेरे बड़े अब्बू का लड़का है, मेरा भाई है … मेरा बहुत ख्याल रखता है !” मैंने उसके मन की शंका दूर की।
“हाँ जी … ये भी आपके बड़े अब्बू के लड़के हैं, मैं जानता हूँ।” सलीम ने कहा।
बात चल निकली तो झिझक भी मिटती चली गई। वो मेरी हर एक बात को तवज्जो दे रहा था तो मैं समझ गई थी कि उसका मुझमें झुकाव हो चला है। खाना खाते खाते मैंने जान बूझ कर अपना पाँव उसके पांव से टकरा दिया। फिर पांव के टकराव के द्वारा अन्दर ही अन्दर दूसरी बात भी शुरू हो गई। सलीम अब मुझे तिरछी नजरों से देख देख कर मुस्करा रहा था। अब्दुल तेज था, वो भी समझ चुका था कि मैंने कुछ ना कुछ किया है, और बात अन्दर ही अन्दर हो रही है। उसने हमें खुलने का मौका दिया, सो वो उठ कर जाने लगा।
“बानो, मैं दस मिनट में आया … जरूरी काम याद आ गया !” उसने मुझे धीरे से अपनी आँख दबा कर कहा।
फिर अब्दुल उठा और बाहर निकल गया। उसके जाते ही सलीम ने एक निश्चिंतता की गहरी सांस ली और बोला- खुदा का शुक्र है…
“यह अल्लाह मिया से किस बात की शुक्रगुजारी हो रही है?” मैंने कटाक्ष किया।
वो मेरी बात सुनते ही झेंप गया।
“नहीं वो कोई बात नहीं… अब तो मैं आपसे खुल कर बात कर सकता हूँ ना !”
“मियां सलीम, मुझे पता है… प्लीज कुछ कहो ना … आपने इतनी सारी तो अपने पांव से हमे ठोकर मारी कि देखो चोट लग गई।” मैंने उसे छेड़ा।
“ओह माफ़ी चाहता हूँ… सच तो ये है कि इन्शा अल्लाह, मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है।”
“हाय अल्लाह, इतनी जल्दी … अभी तो कुछ कहा नहीं, कुछ सुना नहीं… आपने इतना करम मुझ पर फ़रमा दिया?” मैंने अपनी आँखें आश्चर्य से फ़ैलाई।
“अब्दुल आ जाये, उससे पहले खाना खा कर बाहर निकल जाते हैं।” उसने सुझाव दिया।
“या अल्लाह ! तीन सौ रुपये का बिल है… उसे आने तो दो !” मैंने अपनी चतुराई दिखाई।
“रुपये को मत देखिये जनाब, जल्दी करो, अपन कहीं और चलते हैं।” वो झटपट उठा और उसने काऊन्टर पर बिल अदा किया और हम बाहर निकल कर टू सीटर में बैठ कर पास के बगीचे में आ गये। हमने दो टिकट लिये और गार्डन में घुस गये। मैंने जल्दी से अपनी चुन्नी से अपना मुख बांध लिया ताकि मैं पहचान ना ली जाऊँ। जैसे आजकल की छिनाल लड़कियाँ कॉलेज जायेंगी तो भी अपना मुख कपड़े से बांध लेंगी।
बगीचे के एक कोने में मैंने अपनी चुन्नी खोल दी और सलीम का हाथ जानकर के थाम लिया। सलीम को जैसे झुरझुरी सी महसूस हुई जो मुझ तक भी आई। काफ़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे का हाथ ही मसलते रहे। फिर एकान्त पा कर मैंने उसे उत्तेजित किया।
“हाथ ही मसलते रहोगे या … या कुछ और भी मसलोगे सलीम जी?”
“जी … जी… क्या मसलूँ…?” फिर यह कह कर वो खुद ही झेंप गया। मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर मुस्कराते हुये कहा।
“मैं तो पूरी की पूरी की आपके सामने हूँ, कुछ भी मसल डालो !”
उसे तो बस यही चाहिये था। उसने सतर्कता से यहाँ-वहाँ देखा और मुझे धीरे से लिपटा लिया। उंह्ह, साले का लण्ड तो कड़क हो रहा था। उसने मेरी पोंद को पकड़ कर मुझे चूम लिया, चूतड़ों पर हाथ का दबाव पाकर मुझे बहुत अच्छा लगा। वो फिर मेरे स्तन मसलने लगा। उफ़्फ़्फ़ कितना मजा आ रहा था। मैंने भी धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और उसके लण्ड का जायजा पाने के लिये उसके लण्ड के उभार को बाहर से ही पकड़ लिया और दबाने लगी।
“अरे छोड़ो ना … यह क्या कर रही हो?” वो शरम से तड़प उठा।
“अरे लण्ड ही तो पकड़ा है !” मैंने लण्ड को ठीक से पकड़ा और धीरे धीरे दबाने लगी।
“ओफ़्फ़ोह … छोड़ो ना … !” वो अपने लण्ड को जैसे छुड़ाने लगा। मैंने उसका लण्ड और जोर से दबा लिया और ठण्डी आह भरती हुई बोली।
“जालिम जान ही ले लेगा ये तो … मस्त लण्ड है !”
“छीः आप गाली भी देती हैं?” उसने शरमा कर कहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
“सलीम, यह गाली कैसे हुई, लण्ड तो लण्ड है ना … कितना कड़क हो रहा है !”
मैंने उसे और उकसाया। सलीम को अब मजा आने लगा था। उसने विरोध करना बन्द कर दिया था और अब वो मेरे उरोज को दबा दबा कर मस्ती लेने लगा था।
“क्या मस्त चूचे हैं… पत्थर जैसे हो रहे हैं।” उसकी वासना भरी आवाज आई।
“सलीम … चोदेगा मुझे …?” मैंने जैसे पत्थर मारा।
“क्या…? क्या कहा…?” वो मेरे इस वार से घायल सा हो गया।
“मेरी गाण्ड मारेगा क्या?” दुबारा मैंने फ़ायरिंग की।
“हाय रे बानो… आप तो मर्दमार लड़की हैं।” वो अब पिंघलने लगा था। फिर जोर से उसका वीर्य पैंट में ही निकल पड़ा, पैंट के ऊपर एक काला धब्बा उभरने लगा। मैं जान करके हंस दी।
“खूब सारा माल निकला है रे !” मैंने नीचे देखते हुये कहा।
“अब आपने तो कमाल ही कर दिया ना … चलो घर चलें।” वो कुछ कुछ शरमाते हुये बोला।
मैंने उसे मुस्करा कर तिरछी नजर से देखा।
वो बोला- कल घर के सब लोग एक शादी में जायेंगे, आप उस समय मेरे घर आ जाना, बातें करेंगे।”
“बातें करेंगे या चुदाई…?” मैंने उसके सीधे साधे दिल को भड़का दिया।
“बानो आप तो जाने कैसे ये सब कह देती हो?” वो मचल कर बोला।
“देखो मुझे गाण्ड मराने में बहुत मजा आता है … बोलो तो मारोगे ना?” मैंने उसकी आँखों में देखते हुये कहा।
उसने मेरे गाण्ड का एक गोला दबा दिया … मैं तो चिहुंक उठी।
“तो पक्का ना…?” उसने फिर से मुझे याद दिलाया।
कहानी जारी रहेगी।
शमीम बानो कुरेशी
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