अभी ना जाओ चोद के !-3
(Abhi Na Jao Chod Ke- Part 3)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left अभी ना जाओ चोद के ! -2
-
View all stories in series
हल्का सा शावर लेने के बाद मैंने उसे बाहर भेज दिया। वो मुझे साथ ही ले जाना चाहता था पर मैंने कहा- तुम चल कर दूध पीओ मैं आती हूँ।
मिट्ठू जब बाथरूम से बाहर चला गया तो मैंने दरवाजे की चिटकनी लगा ली। आप सोच रही होंगी अब भला दरवाजा बंद करने की क्या जरुरत रह गई है अब तो मिट्ठू को कहना चाहिए था कि वो गोद में उठा कर बेडरूम में ले जाए। ओह …. आप भी कितनी गैहली हैं ? मिट्ठू की तरह। अरे भई मुझे जन्नत के दूसरे दरवाजे का भी तो उदघाटन करवाना था ना ? मैंने वार्डरोब से बोरोलीन क्रीम की ट्यूब निकली और उसका ढक्कन खोल कर उसकी टिप अपनी गांड के छेद पर लगाई और लगभग आधी ट्यूब अन्दर ही खाली कर दी। फिर मैंने उस पर अंगुली फिरा कर उसकी चिकनाई साफ़ कर ली। अब ठीक है।
और फिर मैं कैट-वाक करती हुई बेड की ओर आई। मेरी पायल की रुनझुन और दोनों उरोजों की घाटियों के बीच लटकता मंगलसूत्र उसे मदहोश बना देने के लिए काफी था। मैंने बड़ी अदा से नीचे पड़ी नाइटी उठाई और उसे पहनने की कोशिश करने लगी। पर मिट्ठू कहाँ मानने वाला था। उसने दौड़ कर मुझे नंगा ही गोद में उठा लिया और बेड पर ले आया और मेरी गोद में सर रख कर सो गया जैसे कोई बच्चा सो जाता है। उसकी आँखें बंद थी। मुझे उसका मासूम सा चेहरा बहुत प्यारा लग रहा था। काश ये लम्हें कभी ख़त्म ही न हों और मेरा ये मिट्ठू इसी तरह मेरे आगोश में पड़ा रहे।
मेरे उरोज ठीक उसके मुंह के ऊपर थे। अब भला वो कैसे रुकता। मैं भी तो यही चाहती थी। उसने अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाया और एक निप्पल मुंह में ले कर चूसने लगा। बारी बारी से वो दोनों उरोजों को चूसता रहा। आह …. इन उरोजों को चुसवाने में भी कितना मज़ा है मैं ही जानती हूँ। गणेश भी इतनी अच्छी तरह से नहीं चूसता है। ये तो कमाल ही करता है। वो साली मैना तो निहाल ही हो जाती होगी। मैना का ख़याल आते ही मेरी चूत में फिर से चींटियाँ रेंगने लगी। वो फिर से गीली होने लगी थी। तभी मेरा ध्यान उसके लंड की ओर गया। वो निद्रा से जाग चुका था और फिर से अगड़ाई लेने लगा था। मैंने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया। वो तो फुफ़कारें ही मारने लगा।
आह …. यही तो कमाल है जवान लौंडों का। अगर झड़ते जल्दी हैं तो तैयार भी कितनी जल्दी हो जाते हैं। मैं उसे हाथ में लेकर मसलने लगी तो मिट्ठू ने मेरी निप्पल को दांतों से काट लिया। “आईई ……” मेरे मुंह से हलकी सी किलकारी निकल गई।
“हटो परे..” मैंने उसे परे धकेलते हुए कहा तो वो हंसने लगा। जैसे ही मैं उठने लगी तो वो मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। अब मैं बेड पर लगभग औंधी सी हो गई थी। वो झट से मेरे ऊपर आ गया। मैं उसकी नीयत अच्छी तरह जानती थी। ये सब मर्द एक जैसे होते हैं। हालांकि गणेश का लंड छोटा और पतला था पर वो भी जब मौका मिलाता मेरे पिछले छेद का मज़ा लूटने से बाज नहीं आता था। फिर भला ये मिट्ठू तो एक नंबर का शैतान है। उसके खड़े लंड को मैं अपने नितम्बों के बीच अच्छी तरह महसूस कर रही थी। मैंने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर कर दिए। वो तो इसी ताक में था। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब उसने अपने लंड पर ढेर सारी क्रीम लगा ली है और गच्च से अपना लंड मेरी चूत में डाल दियाअ और मेरी कमर पकड़ कर जोर जोर से धक्के लगाने लगा।
कोई ८-१० धक्कों के बाद वो बोला,”मैना रानी ?”
“क्या है ?”
“वो कुत्ते बिल्ली वाला आसन करें ?”
“तुम बड़े बदमाश हो ?”
“प्लीज …. एक बार ….मान जाओ ना ?” उसने मेरी ओर जिस तरीके से ललचाई नज़रों से देखा था मुझे हंसी आ गई। मैंने उसका नाक पकड़ते हुए कहा “ठीक है पर कोई शैतानी नहीं ?”
“ओ.के। मैम “
अब मैं बेड के किनारे पर अपने घुटनों के बल बैठ गई। मैंने अपने पैरों के पंजे बेड से थोड़ा बाहर निकाल लिए थे और अपनी कोहनियों के बल मुंह नीचा करके औंधी सी हो गई। मेरे नितम्ब ऊपर उठ गए। मिट्ठू बेड से नीचे उतर कर फर्श पर खडा होकर ठीक मेरे पीछे आ गया। उसका लंड मेरे नितम्बों के बीच में था। मुझे तो लगा कि वो अगले ही पल मेरी गांड के छेद में अपना लंड डाल देगा। पर मेरा अंदाजा गलत निकला। उसने मेरी मुनिया की फांकों पर हाथ फिराया। खिले हुए गुलाब के फूल जैसी मेरी मुनिया को देख कर वो भला अपने आप को कैसे रोक पाता। उसने एक हाथ से मेरी मुनिया की फांकों को चौडा किया और उसे चूम लिया। और फिर गच्च से अपना लंड मेरी चूत में ठोक दिया। एक ही झटके में पूरा लंड अन्दर समा गया। अब वो कमर पकड़ कर धक्के लगाने लगा। उसने मेरे नितम्बों पर हलकी सी चपत लगानी चालू कर दी।
आह …. मैं तो मस्त ही हो गई। जैसे ही वो मेरे नितम्बों पर चपत लगता तो मेरी गांड का छेद खुलने और बंद होने लगता। मैं आह उन्ह्ह …. करने लगी और अपना एक हाथ पीछे ले जाकर अपनी गांड के छेद पर फेरने लगी। मेरा मकसद तो उसका ध्यान उस छेद की ओर ले जाने का था। मैं जानती थी अगर एक बार उसने मेरे इस छेद को खुलता बंद होता देख लिया तो फिर उस से कहाँ रुका जाएगा। आपको तो पता ही होगा मेरा ये छेद बाहर से थोड़ा सा काला जरूर दिखता है पर अन्दर से तो गुलाबी है। भले ही गणेश ने कई बार इस का मज़ा लूटा है पर उस पतले लंड से भला इसका क्या बिगड़ता।
मैंने अपनी चूत और गांड दोनों को जोर से अन्दर सिकोड़ लिया और फिर बाहर की ओर जोर लगा दिया। अब तो मिट्ठू की नज़र उस पर पड़नी ही थी। आह उसकी अँगुलियों का पहला स्पर्श मुझे अन्दर तक रोमांचित कर गया। उसने अपना अंगूठा मुंह में लिया और ढेर सा थूक उसपर लगा कर मेरी गांड के छेद पर रगड़ने लगा। मैं यही तो चाहती थी। मैंने एक बार फिर संकोचन किया तो मिट्ठू की हल्की सी सीत्कार निकल गई और उसने अपने अंगूठे का एक पोर अन्दर घुसा दिया। उसने एक हाथ से मेरे नितम्बों पर फिर थप्पड़ लगाया। आह. मैं तो इस हलकी चपत से जैसे निहाल ही हो गई।
आप को बता दूं कई औरतों को सेक्स के दौरान जब हलकी चपत लगाई जाए या दांतों से काटा जाए तो उन्हें सचमुच बड़ा मज़ा आता है। गुलाबो ठीक ही कह रही थी। ये साला गणेश तो निरा माटी का माधो ही है। जैसे खाने की हर चीज में मीठा वैसे ही इस चुदाई में भी इतनी मिठास और नरमाई ? वो तो इतनी सावधानी बरतता है कि जैसे मैं कोई कांच का बर्तन हूँ और उसके थोड़े से दबाव से टूट जाउंगी। मैं तो चाहती हूँ कि कोई जोर जोर से मेरे नितम्बों पर थप्पड़ लगाए और मेरे बूब्स, मेरी मुनिया, मेरे गाल, मेरे होंठ काट ले। एक थप्पी उसने और लगाई और फिर एक झटके से उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
मैंने हैरानी से अपनी गर्दन घुमा कर उसकी ओर देखा। तो वो बोला “मैना रानी, बुरा न मानो तो एक बात पूछू ?”
“ओह अब क्या हुआ ?”
“प्लीज एक बार गधापचीसी खेलें ?” उसकी आँखों में गज़ब की चमक थी और चहरे पर मासूमियत। वो तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई बच्चा टाफ़ी की मांग कर रहा हो। अन्दर से तो मैं भी यही चाहती थी पर मैं उसके सामने कमजोर नहीं बनाना चाहती थी। मैंने कहा “बड़े बदमाश हो तुम ?”
“ओह प्लीज मैना एक बार …. तुम ही तो कहती थी कि जिन औरतों के नितम्ब खूबसूरत होते हैं उन्हें पीछे से भी ठोकना चाहिए ?”
“ओह वो तो मैंने तुम्हारी उस मैना के लिए कहा था ?”
“प्लीज एक बार …..?” वो मेरे सामने गिड़गिड़ा रहा था। यही तो मैं चाहती थी कि वो मेरी मिन्नतें करे और हाथ जोड़े।
“ठीक है पर धीरे धीरे कोई जल्दबाजी और शैतानी नहीं ? समझे ?”
“ओह.। हाँ …. हाँ.। मैं धीरे धीरे ही करूँगा !”
ओह …. तुम लोल ही रहोगे.। मैंने अपने मन में कहा। मैं तो कब से चाह रही थी कि कोई मेरे इस छेद का भी बाजा बजाये। अब उसने अपने लंड पर ढेर सारी क्रीम लगाई और थोड़ी सी क्रीम मेरी गांड के छेद पर भी लगाई और अपना लंड मेरी गांड के छेद पर टिका दिया। ये तो निरा बुद्धू ही है भला ऐसे कोई गांड मारी जाती है। गांड मारने से पहले अंगुली पर क्रीम लगाकर ४-५ बार अन्दर बाहर करके उसे रवां बनाकर गांड मारी जाती है। चलो कोई बात नहीं ये तो मैंने पहले से ही तैयारी कर ली थी नहीं तो ये ऊपर नीचे ही फिसलता रह जाता और एक दो मिनट में ही घीया हो जाता।
उसका सुपाड़ा आगे से थोड़ा सा पतला था। मैंने अपनी गांड का छेद थोड़ा सा ढीला छोड़ कर खोल सा दिया। अब उसने मेरी कमर पकड़ ली और धीरे से जोर लगाने लगा। इतना तो वो भी जानता था कि गांड मारते समय धक्का नहीं मारा जाता केवल जोर लगाया जाता है। अगर औरत अपनी गांड को थोड़ा सा ढीला छोड़ दे तो सुपाड़ा अन्दर चला जाता है। और अगर एक बार सुपाड़ा अन्दर चला गया तो समझो लंका फतह हो गई। अब तक बोरोलीन पिंघल कर मेरी गांड को अन्दर से नरम कर चुकी थी और उसके पूरे लंड पर क्रीम लगी होने से सुपाड़ा धीरे धीरे अन्दर सरकने लगा। ओईई मा …. मुझे तो अब अहसास हुआ कि मैं जिस को इतना हलके में ले रही थी हकीकत में इतना आसान नहीं है। मेरी गांड का छेद खुलता गया और सुपाड़ा अन्दर जाता चला गया। मुझे तो ऐसे लगा कि मेरी गांड फट ही जायेगी। डेढ़ इंच मोटा सुपाड़ा कोई कम नहीं होता। मेरे मुंह से चीख ही निकल जाती पर मैंने पास रखे तौलिए को अपने मुंह में ठूंस लिया। अब मिट्ठू ने एक हल्का सा धक्का लगाया और लंड एक ही बार में मेरी गांड के छेद को चौड़ा करता हुआ अन्दर चला गया। मेरे ना चाहते हुए भी मेरी एक चीख निकल गई। “ओ ईई ….माँ मा मर गई ……..”
आज पहली बार मुझे लगा कि गांड मरवाना इतना आसान नहीं है। अगर कोई अनाड़ी हो तो समझो उसकी गांड फटने से कोई नहीं बचा सकता। मैंने हाथ पीछे ले जाकर देखा था उसका ५ इंच तक लंड अन्दर चला गया था। कोई १-२ इंच ही बाहर रहा होगा। मेरी तो जैसे जान ही निकल गई थी। दर्द के मारे मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे थे। मैंने तकिये में अपना मुंह छुपा लिया। मैंने जानबूझकर मिट्ठू से कोई शिकायत नहीं की। मैं तो उसे खुश कर देना चाहती थी ताकि वो मेरा गुलाम बन कर रहे और मैं जब चाहूँ जैसे चाहूँ उसका इस्तेमाल करुँ। सच पूछो तो मैं तो उस हरामजादी मैना को नीचा दिखाना चाहती थी। मैं तो चाहती थी कि ये मिट्ठू उसके सामने ही मुझे चोदे और मेरी गांड भी मारे और वो साली मैना देखती ही रह जाए।
मिट्ठू ने धीरे धीरे अपना लंड अन्दर बाहर करना चालू कर दिया था। ओह …. मैं तो ख्यालों में खोई अपने दर्द को भूल ही गई थी। आह …. अब तो मेरी गांड भी रवां हो चुकी थी। मिट्ठू तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रहा था। “हाई. मेरी मैना, मेरी नीरू रानी, मेरी बुलबुल आज तुमने मुझे स्वर्ग का मज़ा दे दिया है। हाई …..। मेरी जान मैं तो जिंदगी भर तुम्हारा गुलाम ही बन जाऊँगा। हाई .। मेरी रानी ” और पता नहीं क्या क्या बडबडाता जा रहा था।
मैं उसके लंड को अन्दर बाहर होते देख तो नहीं सकती थी पर उसकी लज्जत को महसूस तो कर ही रही थी। वो बिना रुके धीरे धीरे लंड अन्दर बाहर किये जा रहा था। जब लंड अन्दर जाता तो उसके टट्टे मेरी चूत की फांकों से टकराते तो मुझे तो स्वर्ग का सा आनंद मिलाता। मैंने अपनी गांड का एक बार फिर संकोचन किया तो उसके मुंह से एक जोर की सीत्कार ही निकल गई। मैं जानती हूँ वो मेरी गांड में अन्दर बाहर होते अपने लंड को देख कर निहाल ही हुआ जा रहा होगा। आखिर उसने एक जोर का धक्का लगा दिया। उसके लंड के साथ मेरी गांड की कोमल और लाल रंग की त्वचा को देख कर वो भला अपने आप को कैसे रोक पाता। अब मुझे दर्द की क्या परवाह थी। मैंने भी अपने नितम्बों को उसके धक्कों के साथ आगे पीछे करना चालू कर दिया। अब वो सुपाड़े तक अपना लंड बाहर निकालता और फिर जड़ तक अन्दर ठोक देता।
कोई १५ मिनट तो हमें जरूर हो ही गए होंगे। मेरी आह ओईई …. याआ …. की मीठी सीत्कार सुनकर वो और भी जोश में आ जाता था। मैं तो यही चाहती थी कि ये सिलसिला इसी तरह चलता रहे पर आखिर उसके लंड को तो हार माननी ही थी ना ?
“मेरी रानी …. मेरी प्यारी मैना अब बस मैं तो जाने वाला हूँ !”
“ओह …. एक मिनट ठहरो ?”
“क्यों क्या हुआ ?”
“ओह ऐसे नहीं तुम मेरे ऊपर आ जाओ मैं अपने पैर एक तरफ करके सीधे करती हूँ “
“ठीक है “
“बाहर मत निकालना ?”
“क्यों ?”
“ओह बुद्धू कहीं के फिर तुम न घर के रहोगे न घाट के ?”
पता नहीं उसे समझ आया या नहीं। गांड बाज़ी के इस अंतिम पड़ाव पर अगर लंड को एक बार बाहर निकाल लिया जाए तो फिर अन्दर डालने से पहले ही वो दम तोड़ देता है और मैं ये नहीं चाहती थी। मैंने अपने घुटने थोड़े से टेढ़े किये और बेड के ऊपर ही सीधे कर दिए। वो भी सावधानी से मेरे ऊपर आ गया बिना लंड को बाहर निकाले। बड़े लंड का यही तो मज़ा है। अगर इसकी जगह गणेश का या किसी और का छोटा लंड होता तो शर्तिया बाहर निकल ही जाता।
अब मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर दीं और नितम्ब ऊपर उठा दिए। मिट्ठू ने अपने घुटने मोड़कर मेरे कूल्हों के दोनों तरफ कर लिए और मेरे दोनों बूब्स पकड़ कर मसलने लगा। आह. उसके अंतिम धक्कों से तो मैं निहाल ही हो गई। मैंने अपनी चूत में भी अंगुली करनी चालू कर दी। अब तो मज़ा दुगना हो गया था। और दुगना ही नहीं अब तो मज़ा तिगुना था। मैंने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा जो चूसने लगी थी जैसे कि ये अंगूठा नहीं लंड ही हो। उसके धक्के तेज होने लगे और वो तो हांफने ही लगा था। मैं जानती हूँ उसकी मंजिल आ गई है। मैं जानती थी कि अब किसी भी वक़्त उसकी पिचकारी निकल सकती है। मैंने चूत में अंगुली की रफ़्तार बढा दी। जब उसे पता चला तो उसने मेरे कान की लोब अपने मुंह में ले ली और एक जोर का धक्का लगाया। मेरे नितम्ब कुछ ऊपर उठे थे धड़ाम से नीचे गिर गए और उसके साथ ही उसकी न जाने कितनी पिचकारियाँ छूटने लगी। मेरी मुनिया ने भी पानी छोड़ दिया।
पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे से इसी तरह गुंथे पड़े रहे। मैं तो यही चाहती थी हम इसी तरह पड़े रहें पर उसका लंड अब सिकुड़ने लगा था और ये क्या एक फिच्च. की आवाज़ के साथ वो तो फिसल कर बाहर आ गया। मेरी गांड के छेद से सफ़ेद मलाई निकालने लगी जिसे उसने अपनी अँगुलियों से लगा कर मेरे नितम्बों पर चुपड़ दिया। ओह …. गरम और गाढ़ी मलाई से मेरे नितम्ब लिपट ही गए।
मैं उठ कर बैठ गई और फिर उसके गले से लिपट गई। मैंने उसके गालों पर एक चुम्मा लिया। उसने भी मुझे बाहों में कस लिया और मुझे चूम लिया। “थैंक्यू मेरी जान …. आज तो मुझे स्वर्ग का ही आनंद मिल गया जिससे मैं वंचित और अनजान था। ओह थैंक्यू नीरुजी ….”
मैंने उसकी ओर आँखें तरेरी तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और बोला “ओह सॉरी.। मेरी मैना रानी ” और उसने मेरी ओर आँख मार दी। मैं भला अपनी हंसी कैसे रोक पाती “ओह. तुम पक्के लोल हो !”
मैंने जल्दी से नाइटी उठाई और बाथरूम में घुस गई। मैंने अन्दर सीट पर बैठ गई। हे भगवान् कितनी मलाई अन्दर अभी भी बची थी। फिर पेशाब करने के बाद अपनी चूत और गांड को साबुन और डेटोल लगा कर धोया और क्रीम लगाई। नाइटी पहन कर जब मैं बाहर आई तो मिट्ठू कपड़े पहनने की तैयारी कर रहा था। मैंने भाग कर उसके हाथों से कुरता और पाजामा छीन लिया। “अरे नहीं मेरे भोले राजा अब सारी रात तुम्हे कपड़े पहनने की कोई जरुरत नहीं है तुम ऐसे ही बहुत सुन्दर लग रहे हो ?”
“आप ने भी तो नाइटी पहन ली है ?”
“मेरी और बात है ?”
“वो क्या ?”
“तुम अभी नहीं समझोगे ?” मैंने बेड पर बैठते हुए आँखें बंद कर ली। अरे ये क्या.। उसने मुझे फिर बाहों में भर लिया और मेरे ऊपर आ गया। मुझे हैरानी थी कि वो तो फिर तैयार हो गया था। “ओह. रुको ….”
“क्या हुआ. ?”
“नो..”
“प्लीज एक बार और ?”
“ठीक है पर इस बार मैं ऊपर आउंगी ?” और मैंने उसकी ओर आँख मार दी। पहले तो वो कुछ समझा ही नहीं बाद में जब उसे मेरी बात समझ आई तो उसने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में जकड़ा कि मेरी तो हड्डियां ही चरमरा उठी ………
और फिर चुदाई का ये सिलसिला सारी रात चला और आज की रात ही क्यों अगली तीन रातों में उसने मुझे कम से कम १८ बार चोदा और कोई १० बार मेरी गांड मारी। उसने मेरी मुनिया को कितनी बार चूसा और मैंने कितनी बार उसका लंड चूसते हुए उसकी मलाई खाई मुझे गिनती ही याद नहीं। हमने बाथरूम में, किचन में, शोफे पर, बेड पर, फर्श पर और घर के हर कोने में हर आसन में मज़े किये। मेरी तो पिछले ८-१० सालों की कसर पूरी हो गई। ये चार दिन तो मेरे जीवन के अनमोल दिन थे जिसकी मीठी यादों की कसक मैं ता-उम्र अपने सीने में दबाये रखूंगी। आप शायद हैरान हो रही है ना ?
और आज शाम को वो हरामजादी मैना आने वाली थी। मिट्ठू ने तो उसके आने की ख़ुशी में छुट्टी ही मार ली थी। अल सुबह जब मिट्ठू अपने फ्लैट में वापस जा रहा था तो मैंने उसे आज दोपहर में मेरे पास आने के लिए मना लिया था। आज मैं दिन में एक बार उस से जमकर चुदवाना चाहती थी। इसका एक कारण था। मैं तो उसे आज दिन में पूरी तरह निचोड़ लेना चाहती थी ताकि जब शाम को वो मधु की बच्ची आये तो मिट्ठू में उसे चोदने की ताक़त और हिम्मत ही बाकी ना बचे।
मिट्ठू कोई डेढ़ बजे चुपके से आ गया। मैंने देखा उसका चेहरा उदास था। मैंने उससे इसके बारे में पूछा तो उसने रुकते रुकते बताया ….
“वो. वो. दरअसल ….”
“क्या हुआ..? कुछ बताओ तो सही ?
“वो. वो …. मधु..”
“क्या हुआ उसको वो तो आज आने वाली है ना ?”
“नहीं अब वो नहीं आ रही है..”
“ओह तो तुम उसके लिए उदास हो रहे हो ?”
“नहीं ऐसी बात नहीं है ?”
“अरे तुम चिंता क्यों करते हो मैं हूँ ना ? उसकी सारी कमी दूर कर दूँगी “
“ओह वो बात नहीं है दरअसल मुझे नई नौकरी मिल गई है और मुझे परसों ही यहाँ से उदयपुर जाना पड़ेगा !”
मुझे तो ऐसे लगा जैसे हजारों वाट की बिजली मेरे ऊपर आ गिरी है। मेरी तो जैसे जान ही किसी ने निकाल दी है नसों से सारा खून ही निचोड़ लिया है। जैसे हजारों बिच्छुओं और जहरीले साँपों ने एक साथ मुझे डस लिया है। मेरी हालत तो उस पंखहीन मैना जैसी हो गई थी जिसका मिट्ठू कहीं दूर पहाड़ी पर बैठा है और वो नीचे गहरी खाई में पड़ी है। मेरा तो जैसे सब कुछ लूट कर ले गया है कोई। मुझे तो कितनी ही देर कुछ सूझा ही नहीं।
“ओह. कहीं तुम मज़ाक तो नहीं कर रहे ?” बड़ी मुश्किल से मेरे मुंह से आवाज निकली। मेरा गला तो जैसे सूख ही गया था।
“नहीं मैं सच बोल रहा हूँ !”
“ओह. प्लीज कह दो ये झूठ है। ओह …. ये मैना तो मर ही जायेगी तुम्हारे बिना” मुझे लगा जैसे मैं रो ही पडूँगी।
“मैं जानता हूँ आपने मुझे वो सुख दिया है जो मधु ने भी नहीं दिया पर मेरी विवशता है ?
“ऐसी क्या मजबूरी है ? ओह. वहाँ ना जाने से तुम्हें जितना नुक्सान होगा मैं तुम्हें हर महीने उस से दुगना दे दूँगी …. प्लीज मुझे मझधार में छोड़ कर मत जाओ। ये मैना तुम्हारे बिना नहीं जी पाएगी। पहले तो मैं उस मधु से बदला लेना चाहती थी पर अब सचमुच मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ। ओह. तुम बोलते क्यों नहीं. ?” मैंने उसे जोर से झिंझोडा।
“नहीं मुझे जाना ही होगा …. पर आप चिंता ना करें मैं आपसे मिलता रहूँगा “
“ओह. मेरे प्रेम दीवाने, मेरे मिट्ठू मुझे अकेला मत छोडो मुझे भी अपने साथ ले चलो मैं तुम्हारी गुलाम बन भी रह लूंगी । प्लीज …………”
वो तो बस मेरी ओर देखता ही रह गया बोला कुछ नहीं। मैं उसकी हालत जानती थी। मैं भी इस ४ दिन के प्रेम प्रसंग को सचमुच का प्यार समझ बैठी। ये मर्द होते ही बेवफा हैं। इन्हें नारी जाति के प्यार का अहसास कहाँ हो पाता है। वो तो बस उसे कोई सेक्स ऑब्जेक्ट या गुदाज बदन ही समझते हैं। इस के अन्दर मन में छिपे उन अहसासों और प्रेम की अनंत परतों को भला वो कैसे जान सकते हैं। मेरी रुलाई आखिर फूट ही पड़ी और मैं भाग कर बेड रूम में आ गई और औंधे मुंह बिस्तर पर गिर कर ना जाने कितनी देर रोती रही। मिट्ठू अपने फ्लैट में लौट गया वो भला मेरे पीछे क्यों आता। उसे मेरी इस विरहाग्नि से क्या सरोकार था भला ?
मोहल्ले के लोग और साथ काम करने वाले सभी कहते हैं कि ये सक्सेना (हमारा पडोसी बाँके बिहारी सक्सेना) एक नंबर का लोल है साला रात में ११ बजे भजन सुनेगा और सुबह सुबह ग़ज़ल। पर उसके मन की पीड़ा और दुःख मुझे आज समझ लगा है। आज उसने दोपहर में एक विरह गीत लगा रखा है
जे मैं ऐसा जाणती प्रेम किये दुःख होय
नगर ढिंढोरा पीटती प्रेम ना कीजे कोय
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं ! अब आप ही बताओ मैं प्रेम विरह की अग्नि में जलती एक बेबस अबला क्या करुँ, कहाँ जाऊं, किसका सहारा लूं ? अब आप ही इस मिट्ठू को समझाओ या कम से कम उसे मेल ही कर दो ना कि मुझे चोद कर (ओह बाबा छोड़ कर) ना जाए ? ….
सोने के पिंजरे में बंद एक मैना- निर्मला बेन पटेल [email protected]
What did you think of this story??
Comments