अभी ना जाओ चोद के ! -2
(Abhi Na Jao Chod Ke-2)
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अभी ना जाओ चोद के !-1
मैंने साइड टेबल पर पड़ा थर्मोस उठाया और उसमे रखा गर्म दूध एक गिलास में डाल कर मिट्ठू की ओर बढ़ा दिया ‘चलो अब ये गरमा गरम दूध पी लो !’
‘इससे क्या होगा ?’ उसने मेरी ओर हैरत से देखा।
‘इससे तुम्हारा मिट्ठू फिर से गंगाराम बोलने लगेगा !’
‘ओह..’ उसकी हंसी निकल गई ‘क्या तुम नहीं लोगी ?’
‘मेरी मुनिया तो पहले से ही पीहू पीहू कर रही है मुझे इसकी जरुरत नहीं है ?’ और मैंने उसकी नाक पकड़ कर दबाते हुए उसकी ओर आँख मार दी। वो तो बेचारा शरमा ही गया।
‘चलो तुम फटाफट दूध पीओ, मैं अभी आती हूँ !’ मैंने शहद वाली कटोरी और तौलिया उठाया और बाथरूम में घुस गई। सबसे पहले मैंने शीशे में अपनी शक्ल देखी। मेरी आँखे कुछ लाल सी लग रही थी। होंठ कुछ सूजे हुए और गाल एकदम लाल। आज पहली बार मुझे अपनी सुहागरात याद आ गई।
मैं अपने आप को शीशे में देख कर शरमा गई। मैंने बड़ी अदा से अपना घाघरा और कुर्ती उतारी। अब मैं शीशे के सामने केवल काली पैंटी और ब्रा में खड़ी थी। काली ब्रा और पैंटी में मेरा बदन ऐसे लग रहा था जैसे खजुराहो की मूर्ति हो।
शायद आप यकीन नहीं करेंगी मेरी संगेमरमर सी मखमली जांघें और काली पैंटी में फंसी पाँव रोटी की तरह फूली हुई चूत के निकलते सैलाब से पूरी पैंटी ही गीली हो गई थी। मैंने पैंटी उतार दी।
आईइला… शीशे में अपनी चूत… अरे नहीं बुर… अरे ना बाबा मेरी मुनिया तो इस समय अपने पूरे शबाब पर थी। जैसे कोई छोटी सी चिड़िया अपने पंख सिकोड़ गर्दन अन्दर दबाये चुपचाप बैठी हो। दोनों बाहरी होंठ तो किसी संतरे की फांकों की मानिंद लग रहे थे और अन्दर के दोनों होंठों पर सोने की छोटी छोटी बालियाँ (मेरे पहले प्यार की निशानी) तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई नथ पहन रखी हो।
आज तो इस नथ को उतरना है ना ? मैंने दोनों हाथों से उन सोने बालियों को पकड़ कर चौड़ा किया। आईईला… एक दम गुलाब की सी पंखुडियां तितली के पंखों की मानिंद खुल गई। मदन-मणि तो किशमिश के दाने जितनी बड़ी एक दम सुर्ख। मैंने अपनी तर्जनी अंगुली हौले से मुनिया के छेद में डाल दी जो कि कामरस से सराबोर उस छेद में बिना किसी रुकावट के जड़ तक अन्दर चली गई।
मैंने उसे बाहर निकाला और अपने मुंह में डाल लिया। हाईई. क्या खट्टा, मीठा, नमकीन, नारियल पानी जैसा लेसदार स्वाद था। मैंने एक चटखारा लिया। या अल्लाह…
मैंने अब अपनी ब्रा भी उतार दी। दोनों परिंदे जैसे कबसे आज़ादी की राह देख रहे थे। डेढ़ इंच का गहरे कत्थई रंग का एरोला और उनके चूचुक तो एक दम गुलाबी थे बिलकुल तने हुए। मैंने एक निप्पल को थोड़ा सा ऊपर उठाया और उस पर अपनी जीभ लगा दी। इन मोटे मोटे और गोल उरोजों को देख कर तो कोई जन्नत में जाने का रास्ता ही भूल जाए।
अब मैंने अपनी मुनिया को पानी से धोया। मुझे थोड़ा पेशाब आ रहा था पर मैंने जानकर अभी नहीं किया। मेरी पाठिकाएं मेरी इस बात पर हंस रही होंगी और मेरे पाठक हैरान हो रहे होंगे। ओह्ह… आप भी बस.. ? चलो मैं ही बता देती हूँ… सुबह सुबह जब पेशाब की तलब (हाजत) होती तो लंड और मुनिया में भारी तनाव आ जाता है ? और ऐसी अवस्था में अगर चुदाई की जाए तो हमारे मस्तिस्क में दो बातें एक साथ चलती है कि पहले पेशाब किया जाए या वीर्य और कामरस छोड़ा जाए।
अब दोनों चीजें तो एक साथ निकलती नहीं हैं तो दिमाग की इसी उलझन (कन्फ्यूज़न) के कारण चुदाई को लम्बा खींचा जा सकता है। जिनको शीघ्रपतन की आदत होती है उनके लिए तो ये टोटका जैसे रामबाण है। मुझे ये बात तो डॉक्टर रस्तोगी ने बताई थी जब गणेश को सेक्स थेरेपी दिलवाई थी।
अब मैंने अपनी मुनिया की फांकों और पंखुडियों पर गुलाबजल और शहद लगाया। थोड़ा सा शहद अपने उरोजों के निप्पल्स पर और अपने होंठों पर भी लगाया। और फिर टॉवेल स्टैंड पर रखी रेशमी टी शेप वाली पैडेड पैंटी और डोरी वाली ब्रा पहन ली।
आप तो शायद जानती होंगी ये जो ब्रा और पैंटी होती हैं इनमे हुक्स की जगह डोरी होती है। पैंटी को दोनों तरफ डोरी से बाँधा जाता है। बस आगे कोई २ इंच की पट्टी सी होती है जिसमे चूत की फांके ही ढकी जा सकती हैं। अक्सर ऐसी ब्रा पैंटी फ़िल्मी हीरोइने पहनती हैं। एक ही झटके में डोरी खींचो और ब्रा पैंटी किसी मरी हुई चिड़िया की तरह फर्श पर। कोई झंझट परेशानी नहीं।
आप सोच रही होंगी ओफो… क्या फजूल बातें कर रही हूँ। बाहर मिट्ठू बेचारा मेरा इंतज़ार कर रहा होगा। हाँ आप ठीक सोच रही हैं पर मेरे देरी करने का एक कारण है ? आशिक़ को थोड़ा तरसाना भी चाहिए ना ? अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी। असल में मैं उसे चुदाई के लिए तैयार होने के लिए कुछ समय देना चाहती थी।
कोई १० मिनट के बाद मैं जब बाथरूम से निकली तो वो बेड पर अपने पप्पू को हाथ में लिए बैठा था। वाह. देखा केसर, बादाम और शिलाजीत मिले दूध का कमाल। मैं अपने कूल्हे मटकाते हुए बड़े नाज़-ओ-अंदाज़ से धीरे धीरे चलती हुई आ रही थी। वो तो बस मुंह बाए मेरी ओर देखता ही रह गया। फिर एक झटके में उसने मुझे बाहों में दबोच लिया और तड़ातड़ कई चुम्बन मेरे गालों और मुंह पर ले लिए।
इस आपाधापी में मैं बेड पर गिर पड़ी और वो मेरे ऊपर आ गया। ओह… उसके बदन के भार से मेरी छाती और मेरे उरोज तो जैसे दब ही गए। मैं भी तो यही चाहती थी कि कोई मुझे कस कर दबोच ले। उसकी बेसब्री तो देखने लायक थी। वो तो कपड़ों के ऊपर से ही धक्के लगाने लगा। कोई और होता तो मेरे इस गदराये बदन का स्पर्श पाते ही उसका पानी निकल जाता। पर मैंने तो पूरी तैयारी और योजना से सारा काम किया था ना ?
‘ओह क्या करते हो? पहले कपड़े तो निकालो !’ मैंने उसे परे हटाते हुए कहा।
‘ओह… हाँ ‘ और उसने अपना कुरता और पाजामा निकाल फैंका। अब वो मेरे सामने बिलकुल मादरजात नंगा खडा था। उसने मेरी भी नाइटी की डोरी खोल दी। अब मैं सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में ही रह गई। मैंने शर्म के मारे अपनी पिक्की वाली जगह पर हाथ रख लिया। आप शायद हैरान हो रही होंगी। भला अब पिक्की पर हाथ रखने की क्या जरुरत रह गई थी ?
अरे मेरी भोली पाठिकाओं इन मर्दों की कैफियत (आदत) आप नहीं जानती। किसी चीज के लिए जितना तरसाओ या मना करो उसे पाने के लिए उतनी ही ज्यादा उनकी बेकरारी बढ़ जाती है। मैं भी तो यही चाहती थी कि आज की रात ये मेरा गुलाम बन कर जैसा मैं चाहूँ वैसा ही करे। मेरी मिन्नतें करे और फिर जब मैं उसे मौका दूं तो वो बिना रहम किये मेरे सारे कस बल निकाल दे।
उसने फिर मुझे बाहों में भर लिया। मेरी आँखें रोमांच और उत्तेजना से अपने आप बंद हो गई। पता नहीं कितनी देर वो मुझे चूमता ही रहा। कभी गालों पर, कभी होंठों पर, कभी ब्रा के ऊपर से उरोजों पर और कभी कानों की लोब को।
मैं तो बस मस्त हुई उसकी बाहों में समाई आँखें बंद किये सपनीली और रोमांच की जादुई दुनियां में डूबी हुई पड़ी ही रह गई। मुझे तो पता ही नहीं चला कब उसने मेरी ब्रा और पैंटी की डोरी खींच दी। मुझे तो होश तब आया जब उसने मेरे एक उरोज की घुंडी को अपने मुंह में लेकर जोर से चूसा और फिर थोड़ा सा दांतों से दबाया।
‘ऊईई… माआ…’ मेरी तो एक सीत्कार ही निकल गई। अब उसने दूसरे उरोज को मुंह में ले लिया और चूसने लगा। उसका एक हाथ अब मेरी मुनिया को टटोल रहा था। मैंने अपनी जांघें जोर से कस ली ताकि वो अपनी अंगुली मेरी पिक्की में न डाल पाए। आप सोच रही होंगी भला ये क्या बात हुई। पिक्की में अपने प्रेमी की अंगुली का पहला स्पर्श और अहसास तो जन्नत का सुख देता है फिर उसके रास्ते में अड़चन क्यों ?
ओह अभी आप इस बात को नहीं समझेंगी। मैं चाहती थी कि वो पहले मुझे चूमे चाटे और मेरे शरीर के सारे अंगों को सहलाए और उन्हें प्यार करे। उसे भी तो पता चलना चाहिए कि औरत के पास लुटाने के लिए केवल चूत ही नहीं होती और भी बहुत कुछ होता है। उसने भी मेरी पिक्की को ऊपर ही ऊपर से सहलाया। वो मेरे उरोजों की घाटियों को चूमता हुआ मेरी गहरी नाभि चूमने लगा। उसके छेद में अपनी जुबान ही डाल दी। उईई… मा… ये मिट्ठू तो मुझे पागल ही कर देगा।
धीरे धीरे उसकी जीभ नीचे सरकने लगी। जब उसने मेरे पेडू (चूत और नाभि के बीच का थोड़ा सा उभरा हिस्सा) पर जीभ फिराई तो मेरे ना चाहते हुए भी मेरी दोनों जांघें अपने आप चौड़ी होती चली गई। मेरी पिक्की पर जब उसकी गर्म साँसें और जीभ ने पहला स्पर्श किया तो रोमांच और उत्तेजना के कारण मेरी तो किलकारी ही निकल गई।
मैंने उसका सिर जोर से अपने हाथों में पकड़ कर अपनी पिक्की की ओर दबाना चाहा पर ये प्रेम का बच्चा तो पूरा गुरुघंटाल था जैसे। किसी औरत को कैसे कामातुर किया जाता है उसे अच्छी तरह पता है। उसने कोई जल्दी नहीं दिखाई।
‘ओह मेरे मिट्ठू जल्दी करो ना मेरी मुनिया को चूसो जल्दी !’ मैंने अपने नितम्ब ऊँचे करके उसके सिर को जोर से अपनी मुनिया पर लगा ही दिया।
उसने एक चुम्बन उस पर ले लिया। मैं जानती हूँ मेरी पिक्की से निकलती मादक महक ने उसको भी एक अनोखी ठंडक से सराबोर कर दिया होगा। उसने मेरी मुनिया की मोटी मोटी फांकों पर लगी सोने की बालियों को दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी अँगुलियों से पकड़ कर चौड़ा कर दिया। मैं जानती हूँ वो जरूर मेरी मुनिया और उस हरामजादी मैना की चूत की तुलना कर रहा होगा। मेरी पिक्की के अंदरूनी गुलाबी और चट्ट लाल रंगत को देख कर तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गई होंगी।
उसके मुंह से एक एक निकला ‘वाह… क़यामत है…’ और झट से उसने अपने होंठ मेरी बरसों की तरसती मुनिया पर रख दिए। उसके होंठों का गर्म अहसास मुझे अन्दर शीतल करता चला गया। अभी तो उसने मेरी मदनमणि के दाने को अपनी जीभ की नोक से छुआ ही था कि मेरी पिक्की ने काम रस की २-३ बूंदे छोड़ ही दी। इतनी जल्दी तो मैं आज से पहले कभी नहीं झड़ी थी। ये मिट्ठू तो पूरा कामदेव है।
अब उसने अपनी जीभ धीरे से मदनमणि के नीचे मूत्र-छेद पर फिराई और फिर नीचे स्वर्ग गुफा के द्वार पर ! ओह. मैं तो जैसे निहाल ही हो गई। उत्तेजना में मैंने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिए और उसकी गर्दन के गिर्द कस लिए। मैं तो चाहती थी कि मेरी मुनिया को पूरा का पूरा मुंह में लेकर एक जोर की चुस्की ले पर ये साला मिट्ठू तो मुझे पागल ही कर देगा।
उसने फिर अपनी जीभ एक बार नीचे से ऊपर और फिर ऊपर से नीचे तक फिराई। मैं जानती हूँ मेरी पिक्की की फांकों पर लगे शहद और कामरस का मिलाजुला मिश्रण वो मजे से चाट रहा है पर मेरी पिक्की में तो जैसे आग ही लगी थी। मैं हैरान थी कि वो उसे पूरा मुंह में क्यों नहीं ले रहा है। ये तो मुझे उसने बाद में बताया था कि वो मुझे पूरी तरह उत्तेजित करके आगे बढ़ाना चाहता था।
मेरी कसमसाहट और बेकरारी बढ़ती जा रही थी। अब मेरे लिए बर्दाश्त करना मुश्किल था। मैंने एक झटके से उसका सिर पकड़ा और एक तरफ धकेलते हुए उसे चित्त लेटा दिया। उसे बड़ी हैरानी हुई होगी। अब मैं झट से उसके ऊपर आ गई और उसके मुंह पर उकडू होकर बैठ गई। अब मेरी मुनिया ठीक उसके मुंह के ऊपर थी। मैं कोई मौका नहीं गंवाना चाहती थी। मैंने अपनी पिक्की को जोर से उसके मुंह पर रगड़ना चालू कर दिया।
उसकी नाक मेरे मदनमणि के दाने से लगी हुई थी और पिक्की के होंठ उसके होंठों पर। अब भला उसके पास सिवाय उसे पूरा मुंह में लेने के क्या रास्ता बचा था। उसने मेरी मुनिया को पूरा अपने मुंह में भर लिया और एक जोर कि चुस्की ली। ‘आईईइ…’ मेरी तो हलकी सी चीख ही निकल गई और इसके साथ ही मैं दूसरी बार झड़ गई।
अब वो कहाँ रुकने वाला था। उसे तो जैसे रसभरी कुल्फी ही मिल गई थी। मेरी मुनिया को पूरा मुंह में लेकर चूसता ही चला गया। मैं भला कंजूसी क्यों दिखाती। मेरी मुनिया तो बरसों के बाद अपना रस बहा रही थी। वो चटखारे लेता उस कामरस को पीता चला गया। कोई ८-१० मिनट तक तो उसने मेरी मुनिया को जरूर चूसा होगा। इस दौरान मैं २ बार झड़ गई।
अब जाकर उसे मेरे गोल मटोल नितम्बों का ख़याल आया तो उसने अपने हाथ उन पर फिराने चालू कर दिए। ये मिट्ठू तो पूरा गुरु निकला। वो तो नितम्बों को सहलाते सहलाते मेरी मुनिया की सहेली के पास भी पहुँच गया। जैसे ही उसने एक अंगुली मेरी गांड के छेद में डालने की कोशिश की, मैं झट से उछल कर एक ओर लुढ़क गई। मैं इतनी जल्दी इस दूसरे छेद का उदघाटन करवाने के मूड में कतई नहीं थी।
अब वो मेरे ऊपर आ गया और अब तो बस भरतपुर लुटने ही वाला था। उसने एक चुम्बन मेरे होंठों पर लिया। मेरी तो आँखें बंद सी हुई जा रही थी। फिर उसने दोनों उरोजों को चूमा और नाभि को चुमते हुए पिक्की का एक चुम्मा ले लिया। उसने एक हाथ बढ़ा कर क्रीम की डिब्बी उठाई और ढेर साड़ी क्रीम मेरी मुनिया पर लगा दी बड़े प्यार से।
मैंने आपको बताया था ना कि ये जानबूझ कर लोल बना है वैसे है पूरा गुरुघंटाल। मैं भी कतई उल्लू थी उसकी इस चाल को नहीं समझ पाई। हौले हौले क्रीम लगाते हुए उसने एक अंगुली मेरी पिक्की के छेद में घुसा ही दी। ‘उईई.. माँ… मा… ‘ मेरी तो हलकी सी सीत्कार ही निक़ल गई। हालंकि मेरी पिक्की पूरी तरह गीली थी फिर भी कई दिनों से सिवा मेरी अँगुलियों के कोई चीज अन्दर नहीं गई थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की लेकिन इस बीच उसने अपनी अंगुली दो तीन बार जल्दी जल्दी अन्दर बाहर कर ही दी। फिर उसने अपनी अंगुली को अपने मुंह में डाल कर एक जोर का चटखारा लिया। ‘वाऊ…’
अब उसने अपने पप्पू पर थूक लगाया और मेरी मुनिया के होंठों पर रख दिया। मेरा दिल धड़कता जा रहा था। हे भगवान् ७ इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा ये लंड तो आज मेरी मुनिया की दुर्गति ही कर डालेगा। आज तो २-३ टाँके तो जरूर टूट ही जायेंगे। पर इस तरसते तन मन और आत्मा के हाथों मैं मजबूर हूँ क्या करुँ।
मैंने उस से कहा ‘प्लीज जरा धीरे धीरे करना ?’
‘क्यों डर रही हो क्या ?’
ये तो मेरे लिए चुनौती थी जैसे। मैंने कहा ‘ओह. नहीं मैं तो वो. वो… ओह… तुम भी..’ मैंने २-३ मुक्के उसकी छाती पर लगा दिए।
मेरी हालत पर वो हंसने लगा। ‘ओ.के ठीक है मेरी मैना रानी..’
फिर उसने मेरे नितम्बों के नीचे २ तकिये लगाये और अपना लंड मेरी मुनिया के होंठों के ऊपर दुबारा रख दिया। लोहे की सलाख की तरह अकड़े उसके पप्पू का दबाव तो मैं अच्छी तरह महसूस कर रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने एक हाथ से अपना लंड पकडा और दूसरे हाथ से मेरी मुनिया की फांकों को चौड़ा किया और फिर दो तीन बार अपने लंड को ऊपर से नीचे तक घिसने के बाद छेद पर टिका दिया।
उसके बाद उसने एक हाथ मेरी गर्दन के नीचे ले जाकर मेरे सिर को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया और दूसरे हाथ से मेरी कमर पकड़ ली। उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और चूसने लगा। मुझे बड़ी हैरत हो रही थी ये लंड अन्दर डालने में इतनी देर क्यों कर रहा है।
होंठों को पूरा अपने मुंह में लेकर चूसने के कारण मैं तो रोमांच से भर गई। मेरा जी कर रहा था कि मैं ही नीचे से धक्का लगा दूं। इतने में उसने एक जोर का धक्का लगाया और फनफनाता हुआ आधा लंड मेरी मुनिया के टाँके तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया और मेरी एक घुटी घुटी चींख निकल गई। मुझे लगा जैसे किसी ने जलती हुई सलाख मेरी मुनिया के छेद में डाल दी है। कुछ गरम गरम सी तरल चीज मेरी मुनिया के मुंह से निकलती हुई मेरी जाँघों और गांड के छेद पर महसूस होने लगी।
मुझे तो बाद में पता चला कि मेरी मुनिया के ३ टाँके टूट गए हैं और ये उसी का निकला खून है। मैं दर्द के मारे छटपटाने लगी और उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश करने लगी। मेरी आँखों में आंसू थे। उसने मुझे जोरों से अपनी बाहों में जकड़ रखा था जैसे किसी बाज़ के पंजों में कोई कबूतरी फंसी हो। उसका ५ इंच लंड मेरी चूत में फंसा था। आज पहली बार इतना बड़ा और मोटा लंड मेरी चूत में गया था। उसने मेरे होंठ छोड़ दिए और आँखों में आये आंसू चाटने लगा।
मैंने कहा ‘तुम तो पूरे कसाई हो ?’
‘कैसे ?’
‘भला ऐसे भी कोई चोदता है ?’
‘ओह.। मेरी मैना तुम भी तो यही चाहती थी ना ?’
‘वो कहने की और बात होती है। भला ऐसे भी कोई करता है ? तुमने तो मुझे मार ही डाला था ?’
‘ओह.। सॉरी… पर अब तो अन्दर चला ही गया है। जो होना था हो गया है अब चिंता की कोई बात नहीं। अब मैं बाकी का बचा लंड धीरे धीरे अन्दर डालूँगा ?’
‘क्या ? अभी पूरा अन्दर नहीं गया ?’ मैंने हैरानी से पूछा।
‘नहीं अभी २-३ इंच बाकी है ?’
‘हे भगवान् तुम मुझे मार ही डालोगे क्या आज ?’
‘अरे नहीं मेरी बुलबुल ऐसा कुछ नहीं होगा तुम देखती जाओ !’
अब उसने धीरे धीरे अपना लंड अन्दर बाहर करना चालू कर दिया। उसने पूरा अन्दर डालने की कोशिश नहीं की। मैंने उसके आने से पहले ही दर्द की दो गोलियाँ ले ली थी जिनकी वजह से मुझे इतना दर्द मससूस नहीं हो रहा था वरना तो मैं तो बेहोश ही हो जाती। पर इस मीठे दर्द का अहसास भला मुझसे बेहतर कौन जान सकता है। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया।
उसने भी अब धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। और ये तो कमाल ही हो गया। मेरी चूत ने इतना रस बहाया कि अब तो उसका लंड आसानी से अन्दर बाहर हो रहा था लेकिन कुछ फंसा हुआ सा तो अब भी लग रहा था। हर धक्के के साथ मेरे पैरों की पायल और हाथों की चूड़ियाँ बज उठती तो उसका रोमांच तो और भी बढ़ता चला गया।
मैंने जब उसके गालों को फिर चूमा तो उसके धक्के और तेज हो गए। उसने थोड़ा सा नीचे झुक कर मेरे एक उरोज की घुंडी को अपने मुंह में भर लिया। दूसरे हाथ से मेरे दूसरे उरोज को मसलने लगा। मेरे हाथ उसकी पीठ पर रेंग रहे थे। मैं तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी। काश ये लम्हे ये रात कभी खत्म ही ना हों और मैं मेरा मिट्ठू क़यामत तक इसी तरह एक दूसरे की बाहों में लिपटे चुदाई करते रहें।
हमें कोई २० मिनट तो जरूर हो गए होंगे। आप हैरान हो रहे हैं ना भला पहली चुदाई में इतना समय तो नहीं लगता ? ओह… आप तो कुछ जानते ही नहीं ? अरे भई जब आदमी एक बार झड़ चुका होता है तो दूसरी बार उसका बहुत देर से निकलता है। और मैंने तो इसकी तैयारी पहले ही कर ली थी ना ? ओहो आप भी कहाँ मिनटों सेकिंडों के चक्कर में पड़ गए।
उस समय हमें इन बातों से क्या लेना देना था। अब तो फिच्च… खच्च… के मधुर संगीत से पूरा कमरा ही गूँज रहा था। मेरी चूत से निकलते कामरस से तकिया पूरा भीग गया था। मैं तो अपनी जाँघों और गांड पर उस पानी को महसूस कर रही थी। अब आसान बदलने की जरुरत थी।
अब मिट्ठू बिस्तर के पास फर्श पर खडा हो गया और उसने मुझे एक किनारे पर लिटा दिया। नितम्बों के नीचे दो नए तकिये लगा दिए और मेरे दोनों पैर हाथों में पकड़ कर ऊपर हवा में उठा दिए। हे भगवान् ! खून और मेरे कामरस और क्रीम से सना उसका लंड तो अब पूरा खूंखार लग रहा था। पर अब डरने की कोई बात नहीं थी। उसने मेरी ओर देखा।
मैं जानती थी वो क्या चाहता था। ये तो मेरा पसंदीदा आसन था। मैंने उसके लंड को अपने एक हाथ में पकड़ा और अपनी चूत के मुहाने पर लगा दिया। उसके साथ ही उसने एक धक्का लगाया और पूरा का पूरा लंड गच्च से अन्दर बिना किसी रुकावट के बच्चेदानी से जा टकराया।
आह ! मैं तो जैसे निहाल ही हो गई। मुझे आज लम्बे और मोटे लंड के स्वाद का मज़ा आया था वरना तो बस किस्से कहानियों या ब्लू फिल्मों में ही देखा था। उसका लंड कभी बाहर निकलता और कभी पिस्टन की तरह अन्दर चला जाता।
वो आँखें बंद किये धक्के लगा रहा था। इस बार उसने कोई जल्दी नहीं की और ना ही तेज धक्के लगाए। जब भी उसका लंड अन्दर जाता तो मेरी दोनों फांके भी उसके साथ चिपकी अन्दर चली जाती और मेरी पायल झनक उठती। मैं तो जैसे किसी आनंद की नई दुनिया में ही पहुँच गई थी।
कोई ७-८ मिनट तो ये सिलसिला जरूर चला होगा पर समय का किसे ध्यान और परवाह थी। पैर ऊपर किये मैं भी थोड़ी थक गई थी और मुझे लगाने लगा कि अब मिट्ठू भी सीता राम बोलने वाला ही होगा मैंने अपने पैर नीचे कर लिए। मेरे पैर अब जमीन की ओर हो गए और मिट्ठू मेरी जाँघों बे बीच में था। मुझे लगा जैसे उसका लंड मेरी चूत में फंस ही गया है।
अब वो मेरे ऊपर झुक गया और अपने पैर मेरे कूल्हों के पास लगाकर उकडू सा बैठ गया। इस नए आसन में तो और भी ज्यादा मजा था। वो जैसे चौपाया सा बना था। उसके धक्के तो कमाल के थे।
१५-२० धक्कों के बाद उसकी रफ़्तार अचानक बढ़ गई और उसके मुंह से गूं… गूं… आआह्ह. की आवाजें आने लगी तब मुझे लगा कि अब तो पिछले आधे घंटे से उबलता लावा फूटने ही वाला है तो मैंने अपने पैर और जांघें चौड़ी करके ऊपर उठा ली ताकि उसे धक्के लगाने में किसी तरह की कोई परेशानी ना हो। मैंने अपने आप को ढीला छोड़ दिया।
वैसे भी अब मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी। मैंने अपनी बाहों से उसकी कमर पकड़ ली और नीचे से मैं भी धक्के लगाने लगी। ‘बस मेरी रानी अब तो…। आआईईईइ…’
‘ओह… मेरे प्रेम, मेरे मिट्ठू और जोर से और जोर से उईई… मैं भी गईईईई…’
और फिर गरम गाढ़े वीर्य की पहली पिचकारी उसने मेरी चूत में छोड़ दी और मेरी चूत तो कब की इस अमृत की राह देख रही थी, वो भला पीछे क्यों रहती उसने भी कामरस छोड़ दिया और झड़ गई।
मिट्ठू ने भी कोई ८-१० पिचकारियाँ अन्दर ही छोड़ दी। मेरी मुनिया तो उस गाढ़ी और गरम मलाई से लबालब भर गई। मैंने उसे अपनी बाहों में ही जकड़े रखा। उसका और मेरा शरीर हलके हलके झटके खाते हुए शांत पड़ने लगा। कितनी ही देर हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे इसी तरह पड़े रहे।
‘ओह.। थैंक्यू मैनाजी ?’
‘थैंक्यू मिट्ठूजी ! मेरे प्रेम देव !’ मैंने उसकी ओर आँख मार दी।
वो तो शरमा ही गया और फिर उसने मेरे होंठ अपने मुंह में लेकर इस कदर दांतों से काटे कि उनसे हल्का सा खून ही निकल आया पर उस खून और दर्द का जो मीठा अहसास था वो मेरे अलावा भला कोई और कैसे जान सकता था। उसका लंड फिसल कर बाहर आ गया और उसके साथ गरम गाढ़ी मलाई भी बाहर आने लगी।
अब मैं उठकर बैठ गई। पूरा तकिया फिर गीला हो गया था। चूत से बहता जूस मेरी जाँघों तक फ़ैल गया। मुझे गुदगुदी सी होने लगी तो मरे मुंह से ‘आ..। ई इ इ ‘ निकल गया।
‘क्या हुआ ?’
‘ओहो, देखो तुमने मेरी क्या हालत कर दी है अब मुझे उठा कर बाथरूम तक तो ले चलो !’
‘ओह हाँ..’
और उसने मुझे गोद में उठा लिया और गोद में उठाये हुए ही बाथरूम में ले आया। मुझे नीचे खड़ा कर दिया। मुझे जोरों की पेशाब आ रही थी। पर इससे पहले कि मैं सीट पर बैठती वो खड़ा होकर पेशाब करने लगा। मैं शावर के नीचे चली गई और अपनी मुनिया को धोने लगी। उसे धोते हुए मैंने देखा की वो बुरी तरह सूज गई और लाल हो गई है। मैंने मिट्ठू को उलाहना देते हुए कहा ‘देखो मेरी मुनिया की क्या हालत कर दी है तुमने ?’
‘कितनी प्यारी लग रही है मोटी मोटी और बिलकुल लाल ?’ और वो मेरी ओर आ गया। अब वो घुटनों के बल मेरे पास ही बैठ गया और मेरे नितम्बों को पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींच लिया। मेरी मुनिया के दोनों होंठ उसने गप्प से अपने मुंह में भर लिए.
‘ओह… छोड़ो… ओह. क्या कर रहे हो? ओह… आ ई इ ‘ मैं तो मना करती ही रह गई पर वो नहीं रुका और जोर जोर से मेरी मुनिया को चूसने लगा। मेरी तो हालत पहले से ही खराब थी और जोरों से पेशाब लगी थी। मैं अपने आप को कैसे रोक पाती और फिर मेरी मुनिया ने पेशाब की एक तेज धार कल कल करते ही उसके मुंह में ही छोड़नी चालू कर दी।
वो तो जैसे इसी का इन्तजार कर रहा था। वो तो चपड़ चपड़ करता दो तीन घूँट पी ही गया। मूत की धार उसके मुंह, नाक, होंठो और गले पर पड़ती चली गई। छुर्रर.। चुर्र… पिस्स्स्स्स… का सिस्कारा तो उसे जैसे निहाल ही करता जा रहा था। वो तो जैसे नहा ही गया उस गरम पानी से। जब धार कुछ बंद होने लगी तो फिर उसने एक बार मेरी मुनिया को मुंह में भर लिया और अंतिम बूंदे भी चूस ली। जब वो खड़ा हो गया तो मैंने नीचे झुक कर उसके होंठो को चूम लिय।
आह… उसके होंठों से लगा मेरे मूत्र का नमकीन सा स्वाद मुझे भी मिल ही गया।
तीसरे भाग की प्रतीक्षा करें।
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