जिस्म से रूह तक का सफर- 1
(My Love Girl Story In Hindi)
माय लव गर्ल स्टोरी में मेरे पड़ोस में एक नवविवाहित कपल रहने आया. लड़की को देखते ही मैं उस पर आसक्त हो गया. मैंने उससे दोस्ती की और एक दिन अपने दिल की बात उसे कह दी.
दोस्तो, मैं अर्णव!
मेरी पिछली कहानी
मामी की बहन की प्यार भरी चुदाई
पर मुझे आप सभी के संदेश मिले जिसमें आप सभी ने मेरी लेखन शैली की प्रसंशा की साथ ही मेरी लिखी गयी कहानियों में काफी रुचि दिखायी।
इसके अतिरिक्त कुछ पाठकों ने सेक्स के प्रति मेरे व्यक्तिगत विचार जानने में भी उत्सुकता व्यक्त की।
मेरा आप सभी को व्यक्तिगत रूप से उत्तर देना संभव नहीं है इसलिए मैंने इस कहानी के माध्यम से सेक्स को लेकर जो मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, उन्हें आपके समक्ष प्रकट करने की कोशिश की है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं मेरा नाम अर्णव है और मैं उत्तर प्रदेश से हूँ। मेरी उम्र 28 साल व कद 5′ 10″ है।
इससे पहले अन्तर्वासना पर मेरी 4 कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिन्हें आप मेरे नाम ‘अर्णव त्रिपाठी’ द्वारा अन्तर्वासना पटल में सर्च करके पढ़ सकते हैं।
मैं आपको यह भी बताना चाहूँगा कि कुछ महीने पहले तकनीकी कारणों के चलते मेरी पिछली मेल आईडी अब काम नहीं कर रही है।
अगर आप में से किसी को मुझसे संपर्क करने में कोई असुविधा हुई तो उसके लिये मैं क्षमा चाहूंगा।
मेरी नयी मेल आईडी नीचे लिखी है.
एक बार फिर आप सभी के बीच अपनी नयी कहानी साझा करने जा रहा हूँ।
माय लव गर्ल स्टोरी शुरू करने से पहले मैं आपके समक्ष सेक्स को लेकर अपने कुछ विचार प्रकट करना चाहूँगा।
इस से आप कहानी में मेरी परिस्थिति समझने और आम ज़िंदगी में होने वाली कुछ छोटी-मोटी बातों से भी रूबरू हो पायेंगे।
सेक्स के प्रति अत्यधिक रुचि होने के बाद भी मैं बेहद संजीदा और अन्तर्मुखी स्वभाव का लड़का हूँ और मुझे किसी के साथ संबंध बनाने से पहले उसे भली भांति समझना और दोस्ती करना पसंद है।
भले ही हमारे बीच कितने भी गहरे संबंध क्यूँ न स्थापित हो जायें पर मैं सदैव अपनी और अपने साथी की निजी जिंदगी एवं उसकी गोपनीयता को लेकर बेहद संजीदा रहता हूँ।
फिर चाहे हमारे बीच का संबंध कुछ महीनों का हो या कुछ सालों का पर उसके उपरांत भी हम बिना किसी की निजी जिंदगी में दख़ल दिये सदैव अच्छे मित्रों की तरह रहते हैं।
मेरे विचार में संभोग सिर्फ शारीरिक संतुष्टि तक सीमित न हो बल्कि सदैव किसी अच्छे दोस्त की तरह रहें, जो खुल कर अपनी भावनाओं को आपके सामने रख सके और आप बेहद संजीदगी से एक दूसरे की इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान कर सकें।
सच पूछिये तो आज के दौर में किसी को अपनी भावनायें समझाना भी बेहद कठिन कार्य है।
क्योंकि बहुतायत लोग सेक्स को सिर्फ क्षणिक सुख तक ही सीमित समझते हैं।
और उनके लिये केवल उन क्षणों के ही मायने होते हैं, जब उनके मन में किसी के प्रति सेक्स के लिये अभिरुचि पैदा होती है।
इसे लेकर मेरी धारणा थोड़ी अलग है।
मेरे लिए मेरे साथी के साथ आत्मीयता और लगाव होना बहुत जरूरी है।
क्योंकि केवल सेक्स की भूख मिटाने के लिये तो अनेक साधन हैं, उसके लिये हमें किसी को जानने समझने और उनकी इच्छाओं का ख्याल रखने की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।
पर मेरी दॄष्टि में ऐसा सेक्स निरर्थक है जिसमें कोई आत्मीयता का भाव न हो, मात्र हवस और क्षणिक सुख के भोग की लालसा हो।
अब मैं आप सभी का ज्यादा समय न लेते हुये सीधे अपनी कहानी पर आता हूँ, जो कि अभी हाल में हुई घटनाओं पर आधारित है।
जैसा कि मैंने आप सभी को अपनी पिछली कहानियों में भी बताया है कि मैं ज्यादा समय तक एक स्थान में नहीं रह पाता और इसके कई सार्थक कारण हैं जैसे कि मेरी स्कूलिंग जो कि कई अलग-अलग जगहों से हुई एवं मास्टर्स कम्पलीट होने तक लगभग हर 2 से 3 सालों में जगह बदलती रही हैं।
आप सभी इस बात को भली-भांति समझते ही होंगें कि जीवन का असली संघर्ष तो डिग्री कम्पलीट होने के बाद ही शुरू होता है। जिसमें हर कोई अपनी पहचान बनाने के इरादे से निकलता है ताकि वो एक बेहतर कैरियर बना सकें।
एक सही कैरियर की तलाश में न जाने कहाँ-कहाँ भटकना पड़ता है।
बस यही सिलसिला मुझे हिमाचल की वादियों तक ले गया।
इंटरव्यू और कुछ औपचारिकताओं के बाद मैंने वहाँ रह कर अपनी जॉब शुरू कर दी।
मेरा फ्लैट एक सोसाइटी बिल्डिंग के दूसरे तल में था।
नौकरी के ही सिलसिले में वहाँ बहुत से परिवार और सिंगल लड़के-लड़कियाँ भी रहते थे।
वहाँ सबकी ज़िंदगी कामकाज की व्यस्तता में उलझी हुई थी, सभी अपने-अपने समयानुसार काम पर आते जाते थे।
मैं भी रोज सुबह ऑफिस निकलता और दिन ढलने के बाद घर वापस आता।
सेक्स तो जैसे मेरे जीवन से खत्म ही होता जा रहा था।
क्योंकि एक नयी जगह में बिना किसी परिचय के साधारण बातचीत भी संभव नहीं हो पाती।
कुछ महीनों बाद मेरे बगल वाले फ्लैट में एक शादीशुदा लड़की अपने पति के साथ रहने आयी।
उसे देख कर मेरी नीरस ज़िन्दगी में थोड़ा सुकून आ गया।
उसका नाम श्रुति था।
उसकी उम्र 26 साल और लंबाई लगभग 5’1″ थी।
उसका फिगर 34-30-36 था जो मुझे बाद में पता चला।
उसकी हाइट बेशक कम थी पर एकदम गोरा रंग, गदराया शरीर, भरी हुई मांसल जाँघे और उभरे हुये नितम्ब से साफ पता चलता था कि जवानी पूरे उफ़ान में बह रही है।
उसे देखकर शायद ही कोई ऐसा होता जो कामाग्नि की आग से जल न उठता।
इतना सब मेरे सामने था, पर अपने अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण मैं किसी भी भावना को व्यक्त करने में असमर्थ था।
मैं उस लड़की से कैसे भी कर के बात करना चाहता था।
पर अभी तक उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता था और दूसरी तरफ वो अभी नयी-नयी विवाहिता थी।
तो मेरे द्वारा की गयी एक छोटी सी पहल भी मुसीबत खड़ी कर सकती थी।
मैं ऐसा कोई भी कृत्य नहीं करना चाहता था जिस से बेवजह कोई समस्या खड़ी हो जाये।
कई हफ्तों तक मैं उसे सिर्फ दूर से ही देखता रहा और उसके स्वभाव को समझने की कोशिश करता रहा।
उसी बीच मेरे कुछ एग्जाम थे तो मैंने कुछ समय के लिये अपनी जॉब छोड़ दी और अपने फ्लैट में ही पूरा दिन बिताने लगा।
श्रुति के पति की जॉब एक एम एन सी कंपनी में थी और लगभग हर हफ्ते शिफ्ट बदलती रहती थी।
एक हफ्ते डे शिफ्ट चलती तो अगले हफ्ते नाईट शिफ्ट।
मैंने नोटिस किया कि वो दिन भर अपने फ्लैट में अकेली रहती है और जब कभी बोर हो जाती है तो बाहर निकल कर टहलने लगती और कभी कभार दोपहर में सीढ़ियों में बैठ कर अपने फ़ोन में गेम भी खेलती है।
एक दिन दोपहर को जब वो बालकनी में खड़ी थी तो मैंने थोड़ी हिम्मत कर के उस से पूछा- क्या आप भी यह वाला गेम खेलती हैं?
मैंने आते जाते देख लिया था कि वो कौन सा गेम खेलती है और मैंने इसी बात के बहाने उस से बात करने की कोशिश की.
यह पहली बार था जब हम बात कर रहे थे तो वो थोड़ा झेंप सी गयी फिर धीरे से बोली- हाँ।
मैंने फिर उससे बोला- मैं भी यही गेम खेलता हूँ, क्या आप मेरे साथ खेलेंगीं?
उसने बोला- ठीक है, और अपने रूम में जाकर अपना फोन ले आयी और गेम ओपन कर के सीढ़ियों में बैठ गयी।
मैं भी उसके करीब जा कर ऊपर वाली सीढ़ी में बैठ गया।
और हमने गेम खेलना शुरू कर दिया।
उसकी बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था जैसे वो मुझसे शरमा रही है।
गेम खेलना तो एक बहाना था मुझे तो उस से बस ढेर सारी बातें करनी थी और उसे थोड़ा करीब से जानना था।
मेरे मन जितने भी सवाल थे मैंने एक-एक कर के सारे उस पर दाग दिये।
जैसे वो कहाँ से है, उसकी शादी कब हुई, उसको क्या क्या पसंद है वगैरह वगैरह।
वह बेहद शर्मीली स्वभाव की थी और सब कुछ बड़ी सौम्यता से बता रही थी।
और पता नहीं क्यूँ वो हर 15 मिनट में उठकर वाशरूम जा रही थी।
लगभग एक घंटे बाद जब हमने गेम खेल लिया तो मैंने उसे बताया इस गेम को हम ऑनलाइन भी खेल सकते हैं और उसके फोन में खुद को ऐड कर दिया।
उसके बाद मैंने बोला- आप जब भी बोर हों और आपका गेम खेलने का मन करे तो मुझे इनविटेशन सेंड कर दीजियेगा।
उसने मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है।
मुझे उस से बात करके काफी अच्छा लग रहा था।
हम काफी दिनों तक गेम के माध्यम से थोड़ी बहुत चैटिंग कर लेते थे।
फिर मैंने एक दिन उस से इंस्टाग्राम में बात करने के लिये बोला तो उसने मेरा यूजर नेम पूछा और एक मैसेज भेज दिया।
अब हमारी काफी बातें होने लगी थी।
मैंने उस से बोला- मुझे प्राइवेसी बहुत पसंद है इसलिये हमारे बीच की बातें कभी किसी से शेयर मत करना। और अगर मेरी किसी भी बात से कोई प्रॉब्लम हो तो डायरेक्टली मुझसे बोल देना मैं आगे से कभी डिस्टर्ब भी नहीं करूँगा।
उसने बोला- ठीक है।
एक बार मैंने बोला- मुझे आपसे कुछ कहना है।
उसने बोला- क्या कहना है?
मैंने जवाब दिया- अब तो हम अच्छे दोस्त बन गये हैं, तो क्या मैं आप की जगह तुम बोल सकता हूँ? क्योंकि मुझे बार बार आप बोलना बहुत फॉर्मल लगता है।
उसने कहा- इरादा क्या है?
मैंने बोला- फिलहाल तो अच्छे दोस्त बनने का ही है। आगे का जो होगा देखा जायेगा।
उसने बोला- इतने में ही ठीक है, अब आगे और कुछ नहीं समझना।
मैं उसे नाराज नहीं करना चाहता था तो मैंने कहा- ठीक है, पर मुझे एक और बात कहनी थी?
उसने पूछा- अब क्या है?
मैंने बोला- मैं तुम्हें अच्छे से देखना चाहता हूँ।
उसने कहा- सामने तो होती हूँ, अब और कैसे देखना है?
मैंने बोला- तुम मुझे बहुत प्यारी लगती हो। इसलिये जी भर के देखना चाहता हूं। तुम्हें इस से कभी असहजता न महसूस हो इसलिए पहले परमिशन मांग रहा हूँ।
उसने बोला- तुम वाकई बहुत अजीब हो।
मैंने कहा- मैं ऐसा ही हूँ, क्या करूँ … शायद मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट है।
उसने बोला- ठीक है, पर जरूरी नहीं मैं भी तुम्हें देखूँ या कोई जवाब दूँ।
मैंने उसे इसके लिये थैंक्स बोला।
हमारी बातें तो काफी होती थी पर अभी तक कोई ऐसी बात नहीं हुई थी कि जिस से कोई ग्रीन सिग्नल मिलने की उम्मीद हो।
कुछ दिन बाद मैंने बातों ही बातों उस से बोल ही दिया कि मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ।
तो उसने बोला- यह सब किसलिये?
मैंने बोला- ये बात मेरे मन में बहुत टाइम से थी। और मेरे मन में जो भी बात आती है मैं डायरेक्टली बोलना पसंद करता हूँ। मैं मन में कुछ और सोच कर किसी और चीज़ का दिखावा नहीं कर सकता इसलिये जो मन में था बोल दिया।
फिर उसने मुझसे पूछा- और भी कुछ है बताने के लिये इसके अलावा?
मैं बोला- एक बात और है, पर अगर बुरा न मानो तो ही बताऊंगा।
उसकी काफी तसल्ली के बाद आखिरकार मैंने उस से अपने जज्बात ज़ाहिर कर दिये।
मैंने बोला- मैं तुम्हारे थोड़ा करीब आना चाहता हूँ, तुम्हें छूना चाहता हूं और महसूस करना चाहता हूँ।
उसने बोला- तुम भी बाकी लड़को की तरह ही हो। आखिरकार जो बाकी सब को चाहिये होता है तुम भी घुमा फिरा कर वहीं आ गये। अब मुझे कभी मैसेज मत करना न ही बात करने की कोशिश करना।
मैंने तो उस पर भरोसा कर के अपने मन की बात बता दी थी।
पर वो गुस्सा न करने वाली बात से पलट गयी थी।
मैंने उसकी बात का मान रखा और बिल्कुल वैसा ही किया जैसा उसने मुझसे करने को कहा और हमारी बातें पूरी तरह से बंद हो गयीं।
और हम फिर से एक दूसरे के लिये अंजान बन गये।
उसके दो-तीन हफ्ते बाद उसने मुझे इंस्टाग्राम में मैसेज कर के मेरा हाल चाल पूछा।
तो मैंने बोला- सब ठीक है।
उसने कहा- मैं अपने घर से इतनी दूर अपने पति के साथ रह रही हूँ और मेरे पति मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मैं किसी और से कोई भी रिश्ता कैसे रख सकती हूं, यह गलत होगा।
मैंने कहा- मैं तुम्हें चाहता हूँ, और मेरे मन में तुम्हारे लिये जो भी था वो सब मैंने तुम्हें बता दिया और जरूरी नहीं मुझे बदले में तुमसे कुछ मिले ही। मैं तुम पर किसी चीज़ के लिए दबाव नहीं बना रहा। मुझे बस लगा अपने अंदर इस बात को रखकर सुलगने से अच्छा तुमसे बोल ही दूँ। बाकी तुम्हें जो सही लगे वैसा ही करो, कोई जोर जबरदस्ती नहीं है, हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगें।
उसने बोला- तुम भी मुझे अच्छे लगते हो। इतने दिन तुमसे बात नहीं हुई तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं तुम्हें गले से लगाना चाहती हूँ।
मैंने बोला- मेरे लिये इतना भी बहुत है। तुम जितने में सहज रहो मैं उतने में खुश रहूंगा।
उसने बोला- क्या मैं अभी तुम्हें कस के गले लगा सकती हूँ?
मैंने कहा- तुम्हें मुझसे किसी चीज़ के लिये पूछने की जरूरत नहीं। बस हुकुम करो, बंदा हाज़िर है।
उसने बोला- ठीक है, गेट खुला है मेरे फ्लैट में आ जाओ।
मैं टीशर्ट और शॉर्ट्स में था, और वैसे ही उसके फ्लैट की तरफ चल दिया।
उसका फ्लैट मेरे बगल में ही था तो मुझे वहाँ पहुँचने में ज्यादा से ज्यादा कुछ सेकंड्स ही लगे होंगे।
मैं उसके फ्लैट में पहुँचा और अंदर से लॉक कर के सीधा उसके रूम में आ गया।
वो वहीं खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मैंने उसे देखते ही पकड़ कर अपनी बाहों में भर लिया।
उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थीं।
उसके बड़े बड़े मम्मे मेरी छाती से चिपके ऊपर नीचे हो रहे थे।
मैंने उस से पूछा- क्या मैं तुम्हें चूम सकता हूँ?
उसने सर झुका कर अपनी सहमति जतायी।
तो मैंने उस पर चुम्बनों की बारिश कर दी।
कभी उसके माथे को चूमता तो कभी उसके गालों को तो कभी उसकी गर्दन में।
वो मुझसे हाइट में काफी छोटी थी तो मेरे कंधे तक ही आ रही थी।
मैंने कहा- बेड पर लेट जाओ, मुझे तुम्हें अच्छे से किस करना है।
वो बिना कुछ बोले बेड पर लेट गई।
मैं उसके ऊपर आ गया।
वो बहुत ज्यादा शरमा रही थी और उसका पूरा चेहरा पूरा लाल पड़ गया था।
मैंने धीरे से उसके नाजुक होंठों पर अपने होंठ रखे और उसके फूल से होठों से रसपान करने लगा।
धीरे धीरे माय लव गर्ल भी मेरा साथ देने लगी और हम कुछ ही पलों में एक अलग ही दुनिया में पहुँच गये।
जब आपके मन में किसी के लिये चाहत हो तो सबसे अच्छा एहसास उसे चूमने का ही होता है।
और मेरे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा था।
हम लगभग 10-15 मिनट तक ऐसे ही किस करते रहे और फिर अलग हो गये।
साथ बैठ कर हमने ढेर सारी बातें की।
मैं किसी बात के लिये जल्दी नहीं करना चाहता था, न ही जंगलियों की तरह पेश आना चाहता था।
क्योंकि सेक्स के हर चरण में लयबद्ध तरीके से अपनी भावनायें व्यक्त करना चाहिये।
जहाँ जितनी उग्रता और जोश की जरूरत हो वहाँ उसी प्रकार उसका उपयोग करना चाहिये।
दूसरे शब्दों में कहें तो जब भावनात्क सेक्स चल रहा हो तब अपने साथी की किसी नाजुक फूल की तरह देखभाल करनी चाहिये।
वहीं जब सेक्स रोमाचंक मूड में हो रहा हो तो अपने साथी को आगोश में लेकर उसके हर अंग का मर्दन करते हुए ताबड़तोड़ चुदाई के साथ उसे चरम सुख तक ले जाना चाहिये।
कहानी के अगले भाग में मैं आपको बताऊंगा कि हमने जिस्म से रूह तक का सफर कैसे तय किया।
और अपनी हर चुदाई बड़ी शिद्दत से की और साथ मिलकर बेहद खूबसूरत यादें बनायी।
माय लव गर्ल स्टोरी पर आप मेरी मेल आईडी के द्वारा अपने विचार और सुझाव व्यक्त कर सकते हैं।
साथ ही आप मुझे मेरी इंस्टाग्राम यूजर आईडी Arnav9k7 के द्वारा भी संदेश भेज सकते हैं।
मुझे आप सभी के संदेश का इंतजार रहेगा।
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माय लव गर्ल स्टोरी का अगला भाग: जिस्म से रूह तक का सफर- 2
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