नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 3
(Meri Antar Vasna Ki Kahani)
मेरी अंतर वासना की कहानी में पढ़ें कि मेरी किरायेदार लड़की का पति उसे संतान नहीं दे सका तो उसने मुझे इस काम के लिए पटाना शुरू किया. उसने शुरुआत मेरा लंड चूसने से की.
दोस्तो, मैं आपका साथी चाहत आनन्द एक बार पुनः आपकी सेवा में अपनी सेक्स कहानी का अगला भाग पेश कर रहा हूँ.
कहानी के दूसरे भाग
जवान पड़ोसन को औलाद की चाहत
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं रम के नशे में कमरे में आया और मैंने वनिता को अपनी बीवी अनिमा समझ कर दबोच लिया.
परंतु जैसे ही मैंने उसे पलट कर देखा तो मेरे होश फाख्ता हो गए.
वह कमरे से बाहर चली गई.
अब आगे मेरी अंतर वासना की कहानी:
मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझाई और सोचने लगा कि मुझे एकदम से धोखा कैसे हो गया.
इसने अनिमा के कपड़े कैसे पहन लिए?
और ये ठीक अनिमा की तरह कैसे खड़ी थी?
मैं सोच ही रहा था कि अचानक अनिमा का फ़ोन आ गया.
अचानक से फ़ोन की घंटी बजने से मैं डर गया इसलिए पहली बार मैंने फ़ोन नहीं उठाया.
मगर जब दूसरी बार फोन बजा तो मैंने बात की.
अनिमा से मैंने कह दिया कि मेरी आंख लग गई थी.
मगर फिर भी हमारी बातें होने लगीं जो चहक के स्वर्गवासी ससुर जी से होते हुए बच्चों पर आ गई.
जब सारे सार समाचार ख़त्म हो गए तो मैंने अनिमा से थोड़ा झिझकते हुए पूछा- आज मैंने वनिता को तुम्हारी नाइटी पहने हुए देखा.
अनिमा ने सोचा कि मैं वनिता पर चोरी का शक कर रहा हूँ तो उसने बताया कि निकलने से एक दिन पहले ही वनिता ने मुझसे एक पुरानी नाइटी मांगी थी इसलिए मैंने खुद ही वह नाइटी वनिता को दे दी थी.
अब जाकर थोड़ा थोड़ा मुझे समझ आने लगा था.
आंखों से नींद बहुत दूर जा चुकी थी.
बार बार हाथों में उसके मुलायम मगर कठोर गुब्बारे और नथुनों में उसकी खुशबू घूम रही थी.
मैं न चाहते हुए भी केवल यही सोच रहा था कि कल क्या होगा.
डर और रोमांच ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया था.
अगली सुबह जब मेरी नींद खुली.
तब पापा दोपहर का खाना खा रहे थे.
मैंने आंख मलते हुए घड़ी देखी तो दोपहर साढ़े बारह बज रहे थे.
खाना पकाना तो पापा को आता नहीं है, फिर उनको खाना किसने दिया!
मैंने पापा से पूछा- आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?
पापा ने कहा- तुम्हें नौ बजे के करीब उठाने गया था लेकिन तुमने कहा कि तुम सारी रात सो नहीं सके. सुबह पांच बजे ही तुम सो सके हो. मैंने भी सोचा कि चहक के घर के हादसे की वजह से तुम्हें टेंशन हुई होगी इसलिए मैंने तुम्हें आराम करने के लिए छोड़ दिया.
मैंने अगला सवाल किया- खाना कौन ने बनाया?
तभी किचन से आवाज आई- मैंने!
यह वनिता की आवाज थी.
‘मैंने सुबह ही दीदी से पूछ लिया था.’ अनिमा को वह दीदी ही कहती थी.
‘आप चिंता मत कीजिए. अभी का खाना तैयार है. मगर शाम की सब्जी बाजार से लानी होगी. अभी आप खा लीजिए.’
मैंने खाना खाया और बाहर अपने दोस्तों के पास चला गया.
लॉकडाउन खुलने की वजह से सागर अब काम पर जाने लगा था.
मैं अगर समय पर जाग गया होता तो मैं भी काम पर जाता.
पापा रिटायर हो चुके थे इसलिए ज्यादातर वे अपने दोस्तों के साथ ही समय बिताते थे.
घर पर मां और बच्चे कोई नहीं थे इसलिए शाम तक वे बाजार निकल गए.
कुछ चार बजे तक मैं घर आया तो देखा कि दरवाजा सटा हुआ है और अन्दर कोई नहीं है.
वनिता भी शायद पड़ोस में गई थी.
मैंने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया और कमरे में घुस कर मोबाइल चलाने लगा.
थोड़ी देर में ही कॉल बेल बजी.
मैंने दरवाजा खोला तो सामने वनिता ही थी.
मैंने अब दरवाजा बंद नहीं किया और कमरे में चला गया.
मैं कल की घटना से बहुत डर गया था.
इतने महीनों में वनिता ने कभी भी मुझे कोई हिंट नहीं दी थी.
मैं बिल्कुल सटीक नहीं कह सकता था कि बाथरूम के अन्दर कौन झांक रहा था.
क्या वनिता मुझसे नाराज़ है?
क्या वह अनिमा को सब कुछ सच सच बता देगी.
मुझे कुछ पता नहीं था.
मैं इतना सब कुछ सोच ही रहा था कि इतने में वनिता कमरे में अन्दर दाखिल हुई.
इससे मैं सतर्क हो गया.
भगवान जाने अब ये क्या कहने वाली है!
तभी उसने पूछा- उस दिन आपको टेस्ट रिपोर्ट के कितने रुपए देने पड़े थे?
मैंने कहा- कोई बात नहीं, जाने दो.
उसने कहा- नहीं, मैं पैसे जरूर देना चाहती हूं. क्योंकि मैंने आपसे वादा किया था. ये मेरे आत्मसम्मान की बात है.
जब उसने जोर देकर मुझसे पूछा तो मैंने उसे बताया कि 500 रुपए और देने पड़े.
उसने कहा कि वह मुझे कल लाकर सारे पैसे दे देगी.
मैंने कहा- मुझे पैसे नहीं चाहिए. तुम केवल इतना बता दो कि सागर की रिपोर्ट तुमने क्यों बदलवाई?
उसने जवाब दिया- क्योंकि वह बच्चे के लिए कोई कोशिश करता ही नहीं है.
मैंने कहा- अगर तुम रिपोर्ट में सब कुछ ठीक कर दोगी तो वह और भी कोशिश नहीं करेगा. तब तुम्हें बच्चा कैसे होगा?
उसने मुझसे तब कहा कि उसे सागर से न तो बच्चे होने की कोई उम्मीद है और न ही कोई जरूरत है!
मैं सदमे में आ गया था.
मैंने फिर से पूछा- तो तुम क्या करोगी?
‘मैं आपसे बच्चा चाहती हूं.’
जब उसने मुझसे यह कहा तो मैं अकबका गया.
‘तुम पागल तो नहीं हो गई हो!’ मैं इतना कहकर चीखा ही था कि उसने मेरे मुँह पर अपनी उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया.
फिर वह मुझसे लिपट गई.
मैंने उसे धकेल कर दूर कर दिया और उससे कहा- तुम पागल हो गई हो.
वह मेरे सामने ही अपने घुटनों पर बैठ गई.
उसकी आंखें निराशा से भर आई थीं.
उसने मुझसे बहुत मिन्नतें की मगर मैं तन मन से अब भी अपनी अनिमा का ही था.
आखिरकार वनिता मेरे विरोध को समझ गई.
वह कहते हैं न कि एक औरत अगर चाह ले तो यमराज को भी अपनी बात मानने पर मजबूर कर सकती है.
वनिता आज लगभग उसी मूड में मेरे पास आई थी.
वह अब भी इसी पोजीशन में मेरे सामने बैठी थी.
उसने आंसू छलकाते हुए कहा- आपने मेरे लिए इतना सब कुछ किया है. मुझे बांझपन के दोष से बाहर निकालकर इस लायक बनाया है कि मैं मां बन सकूं. आपने मुझे इतना सब कुछ दिया है, तो क्या मैं इस लायक भी नहीं कि आपको कुछ दे सकूं!
‘मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए वनिता. तुम प्लीज उठ जाओ.’
मैंने उससे यह कहा.
तो वह नजरें झुकाकर रोने लगी और कहने लगी- आप मुझे किसी लायक नहीं समझते हैं.
वनिता की आंखों से गिरते हुए आंसू मेरे पैरों को भिगो रहे थे.
मैंने उसके सर को पकड़कर नज़रें उठाईं और कहा- तुम जो भी दोगी, मुझे मंजूर होगा. पर वादा करो कि तुम मुझे सेक्स के लिए मजबूर नहीं करोगी.
वह धीमे से मुस्कुराई.
उसने रोना बंद कर दिया था.
मैं उसके जाल में फंस चुका था.
उसने सबसे पहले अपने दोनों हाथों से मेरे पैर छुए और अपने माथे पर लगाकर मुझे नमन किया और मुझे थैंक्यू कहा.
उसने फिर मेरे दोनों पैर बारी बारी से चूमे और फिर से थैंक्यू कहा.
अब उसने मेरे दोनों घुटने चूमे और फिर थैंक्यू कहा, मेरी दोनों जांघें चूमी और फिर से थैंक्यू कहा.
यह सब उसने मेरे लोअर के ऊपर से ही किया था. मेरी संवेदनशीलता बढ़ती जा रही थी.
अबकी बार उसने कपड़े के ऊपर से ही मेरे लंड को चूमा, तो मेरा लंड मारे उत्तेजना के फुंफकारने लगा.
पर इस बार उसने थैंक्यू बोलने की बजाय कुछ और ही कहा.
उसने कहा- कोई लड़की पूरे मन से आपके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसे, यही आपकी इच्छा है, है ना?
मैं चौंका- तुम्हें यह बात कैसे पता?
मैंने उससे यह पूछा तो उसने जवाब दिए बिना मुझ पर अगला बम फिर गिराते हुए कहा- और अनिमा दीदी आपके लंड को पूरे मन से चूसकर कभी भी आपको यह सुख नहीं दे सकी हैं … है ना?
उसके इस वार से मैं पूरी तरह खत्म हो गया था.
उसके बाद उसने मुझसे कोई बात नहीं की. बस मेरे लोअर की गांठ खोली, एक साथ लोअर और अंडरवियर नीचे खिसका दिया.
अगले ही पल उसने मेरे फनफनाते लंड के सुपारे पर चढ़े चमड़े की चादर को अपनी नाजुक अंगुलियों से पीछे खिसकाया और अपनी जीभ को मेरे सुपाड़े के छोटे मुख पर चलाना शुरू कर दिया.
मेरा सारा विरोध खत्म हो चुका था.
मैं जान चुका था कि उस दिन कमरे के दरवाजे की छेद से अन्दर झांकने वाली नजर वनिता की ही थी.
उसने उस कमरे के अन्दर मेरी और अनिमा की बातें दरवाजे के बाहर छुप कर सुन ली थीं.
मेरे सुपारे के चारों ओर अपनी जीभ को घुमाते हुए अपने दोनों हाथों को धीरे से सरकाकर उसने मेरे चूतड़ पकड़ लिए और वहीं गोल गोल घुमाकर सहलाना शुरू कर दिया.
मुझे एक साथ लंड और चूतड़ दोनों ही जगह उसकी छुअन का अहसास हो रहा था.
मैं मदहोश होने लगा था कि तभी मुझे होश आया कि मैंने मेन गेट तो बंद किया ही नहीं है.
मैंने उसे अलग करना चाहा तो उसने इशारे से पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- दरवाजा खुला है, पापा अन्दर आ गए तो क्या होगा?
‘मैंने अंकल को फोन करके सब्जी लाने को कह दिया है और यहां आने से पहले मेन गेट भी बंद कर दिया है.’
इतना कहकर वापस से वह अपने काम में लग गई.
मैं समझ गया कि यह पूरी तरह तैयार हो कर आई है.
मैं मन ही मन एक अपराध बोध से भरता जा रहा था कि कहीं मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं.
दूसरी ओर वनिता लगातार मेरे सुपारे पर जीभ फिराए जा रही थी.
लंड बढ़ते बढ़ते पूरे आकार में आ चुका था.
मेरे लंड ने प्रीकम यानि स्खलन पूर्व कामरस छोड़ना शुरू कर दिया था.
उसकी तीखी गंध से वनिता जरा भी बेचैन नहीं हुई और उस प्रीकम को अपने थूक से मिलाकर पूरे सुपारे को गीला करना शुरू कर दिया.
जैसे जैसे मेरा प्रीकम निकलता जा रहा था, वैसे वैसे सेक्स मेरे अपराधबोध पर हावी होता जा रहा था.
बस फिर एक क्षण में ही मैंने अपने दोनों हाथों से उसके बालों को पकड़ा और एक झटके में ही पूरा लंड उसके मुँह में ठेल दिया.
वह गूं गूं करने लगी मगर मैं अब रुकने वाला नहीं था.
यह मेरे लिए एक कामुक सपने के सच होने जैसा था.
मैं लंड को अन्दर बाहर करते हुए पूरी ताकत से उसके सर को खींचने लगा और अपने लंड को धकेलने लगा.
कई दिनों से अनिमा साथ नहीं थी.
मैं पूरी तरह भरा हुआ था.
इसी लिए बस दस बारह शॉट लगाते ही मैं स्खलित होने लगा.
उसका पूरा मुँह वीर्य से भर गया, उसे उल्टियां होने लगीं.
मगर एक बार उगलकर, फिर से बिना मेरे लंड को साफ किए … उसने फिर से लंड को चूसना शुरू कर दिया.
वह अपनी जिद पर आ चुकी थी.
हर हाल में उसे इस मामले में अनिमा को हराना ही था और मेरा यकीन हासिल करना था.
वह तब तक लंड चूसती रही, जब तक मेरे अंडकोष से वीर्य का अंतिम कतरा भी बाहर नहीं निकल गया.
मैं चरम सुख के मारे निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ा.
वह अब भी नहीं हट रही थी.
मैंने उसे धकेलकर अलग किया, तब जाकर वह मानी.
मुझे पूरी तरह संतुष्ट देखकर उसने कहा- मुझे आपके बच्चे की ही मां बनना है. मगर ऐसा तभी होगा, जब आप चाहेंगे.
इतना कहकर वह वहां से चली गई.
मैं अभी इस अवस्था में बिल्कुल नहीं था कि मैं कुछ भी सोच समझ पाता. मैं बुरी तरह निचुड़ चुका था.
थोड़ी देर में ही मुझे नींद आ गई.
मेरे साथ ये क्या हो गया, मैं समझ नहीं पा रहा था.
पूरी शाम मैं सोता रहा.
रात नौ बजे जब मेरी नींद खुली, तब पापा खाना खाकर बिस्तर पर जा चुके थे.
मैंने किचन में जाकर देखा तो मेरा खाना रखा हुआ था.
मोबाईल देखा तो अनिमा के कई फ़ोन आ चुके थे.
मैं बेसुध होकर पड़ा हुआ था तो मुझे कुछ भी सुनाई कैसे पड़ता.
खैर … मैं अभी बिखरा हुआ था तो अनिमा से क्या बात करता.
अब कल क्या होने वाला है, मैं यही सोच रहा था.
मैं यह तय नहीं कर पा था कि मुझे वनिता की पेशकश को स्वीकार करना चाहिए या नहीं.
अगर हां … तो आगे के प्लान मुझे ही बनाने थे.
वनिता ने गेंद अब मेरे पाले में डाल दी थी.
क्या मैं भी सारे मर्दों की तरह हूं? क्या सारे मर्द कुत्ते कमीने होते हैं?
मैं तुरंत ही पापा से बात करना चाहता था.
पापा अब भी जाग रहे थे.
मैंने पापा से पूछा- मां कब तक आएंगी?
पापा ने कहा- मैं कल ही मां को लेने चहक के घर जा रहा हूँ. परसों सुबह तक हम दोनों लौट आएंगे.
यानि मेरे पास केवल कल तक का ही वक्त था.
कल क्या होने वाला था, मैं इसकी कल्पना में ही मैं घूमने लगा.
अगली सुबह सुबह ही पापा घर से निकल गए.
नौ बजते बजते सागर भी काम पर जाने के लिए तैयार हो गया.
मैं भी ट्रेनिंग क्लास जाने के लिए तैयार होकर निकल पड़ा.
मैं अभी तक कोई फैसला नहीं ले सका था. मैं बहुत उधेड़बुन में था.
योग की क्लास शुरू हुई.
आज मेरी एक असिस्टेंट ट्रेनर जो मुझसे उम्र में बहुत बड़ी थीं, अपने हाथों में मिठाई का डब्बा लेकर आई थीं.
मैंने उनसे खुशखबरी पूछी तो उन्होंने बताया कि उनकी बहू को दस सालों के बाद कल ही लड़का हुआ है, इसलिए आज वह योग क्लास अटेंड नहीं कर पाएंगी.
उनके चेहरे पर ऐसी खुशी थी जो आज से पहले मैंने कभी नहीं देखी थी.
उनकी आंखें मारे खुशी के डबडबा आई थीं.
इतना कहकर वे वहां से चली गईं.
मैं स्तब्ध रह गया.
आज पहली बार शायद वनिता के दर्द को मैंने महसूस किया था.
मेरी उलझन अब खत्म हो गई.
मैंने वनिता को उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी देने का मन बना लिया और आज क्लास में छुट्टी कर दी.
मैं मिठाई का डब्बा हाथ में लिए भागा भागा घर पहुंचा.
वनिता दूर से ही मुझे आता देखकर घर में कहीं छिप गई.
दरवाजा आधा खुला था, मैं अन्दर घुसा और बिना शोर किए दरवाजा बंद कर दिया.
मेरी नजरें उसे ही खोज रही थीं और शायद वह मुझे थोड़ा सताने के मूड में थी.
दोस्तो, अब आपको और ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
मेरी अंतर वासना की कहानी के अगले भाग में आपको मेरी और वनिता की चुदाई की कहानी पढ़ने को मिलने वाली है.
आप अपने कमेंट्स और मेल जरूर भेजें.
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मेरी अंतर वासना की कहानी का अगला भाग: नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 4
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