मनोचिकित्सक की चूत चुदाई

(Manochikitsak Ki Chut Chudai)

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
मेरा नाम सोनू है.. मेरी लम्बाई 5’11” है.. कसा हुआ शरीर.. लंड 6″ इंच लंबा और 2″ इंच मोटा है। मैं देखने में भी ठीक-ठाक ही हूँ। ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर न कहूँ.. तो मैं किसी भी औरत को संतुष्ट करने का दम रखता हूँ।

मैं आज आपके सामने अपनी पहली चुदाई की कहानी पेश करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ आप सबको मेरी कहानी पसंद आएगी। यदि कहानी में कोई गलती हो तो मुझे माफ़ करें और अपनी अपनी झाटें साफ़ करें।

बात उस समय की है.. जब मैं अपने मम्मी-पापा के साथ गाजियाबाद में रहता था, उस समय मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। हमारे घर के सामने एक आयुर्वेदिक डॉक्टर रहा करती थी। मेरे मम्मी-पापा भी डॉक्टर हैं.. तो हमारे परिवारों की आपस में अच्छी बनती थी।

अब आपको अपनी कहानी की नायिका से रूबरू करवाता हूँ। वो देखने में बहुत सुन्दर थी, उसकी उम्र करीब 40 साल की थी.. पर देखने में 30-35 साल की लगती थी। उसके 36 के उठे हुए चूचे.. 38 की गाण्ड और गदराई हुई जाँघें.. जब भी मैं देखता था तो मुठ मारने को मजबूर हो जाता था.. मन तो करता था कि उसे वहीं पकड़ कर चोद दूँ.. पर मजबूर था।

उसके परिवार में बस वो उसका पति और उन दोनों का 14 साल का बेटा ही रहते थे। पति अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहता था और बेटा या तो स्कूल या टयूशन पर व्यस्त रहता था।
‘वो’ अक्सर काम से हमारे घर आया करती थी.. अक्सर उस वक़्त.. जब मैं घर पर अकेला होता था।
मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि जैसे वो खुद मुझसे चुदने आती हो.. पर मैं खुद कुछ करने से डरता था।
मैं कभी-कभी उसकी छत पर उसकी टंगी हुई ब्रा और पैंटी में मुठ्ठ मारकर खुद को शांत करता था।

जब मेरी बारहवीं की परीक्षा समाप्त हुई तो मुझसे रहा न गया और मैं उसे चोदने की तैयारी करने में लग गया।
हालांकि अब तक मेरी उम्र 18 साल ही थी.. लेकिन ब्लू-फ़िल्में वगैरह देख कर और अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ कर मैं चुदाई में ज्ञान और महारथ हासिल कर चुका था।

मैं अब सारा दिन अपने घर पर रहता था और उसकी सारी हरकतों पर नज़र रखता.. जैसे उसके पति के ड्यूटी जाने का टाइम.. उसके बेटे के स्कूल जाने का टाइम.. वगैरह वगैरह..
वो एक मनोचिकित्सक थी.. तो मैंने एक सोचा-समझा प्लान बनाया।
एक दिन जब वो घर पर अकेली थी तो मैंने अपने काम को अंजाम देने का फैसला किया।
मैं दबे पाँव उसके घर की ओर बढ़ चला। इस वक्त सच कहूँ तो मेरी गाण्ड फट रही थी.. लेकिन मैं मन में ठान चुका था कि आज तो इसकी चूत का रस चख कर ही वापस आऊँगा।

मैं उसके घर के गेट कर पास खड़ा था.. घंटी बजाने ही वाला था कि अन्दर से कामुक आवाजें सुनाई देने लगीं।
मैंने खिड़की की तरफ से जाकर देखा तो पाया कि आंटी बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई अपनी चूत में लम्बा वाला बैंगन डाल रही हैं और ज़ोर-ज़ोर से सिसकारी ले रही हैं.. साथ ही टीवी पर ब्लू-फिल्म भी चल रही है।

मेरे मन में ख्याल आया कि मौका अच्छा है।
मैंने आव देखा न ताव.. झट से जाकर घंटी बजा दी.. कोई जवाब न मिलने पर मैंने फिर घंटी बजा दी.. अन्दर से आंटी की दबी हुई आवाज़ सुनाई पड़ी- कौन है?
मैंने चहकते हुए कहा- मैं हूँ आंटी.. सोनू..
आंटी- ओह.. अभी आई.. रुको..

मैं समझ गया कि आंटी को कपड़े डालने में टाइम लगेगा। फिर 5 मिनट बाद जब आंटी ने दरवाज़ा खोला.. तो मैं दंग रह गया। उन्होंने बस एक मखमल का गाउन डाल रखा था.. उनके चूचे कड़क और उभरे हुए थे.. जिससे पता चल रहा था कि उन्होंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी। उनके बाल खुले हुए थे और साँसें फूली हुई थीं.. साथ ही मुझे देख कर उनके चेहरे पर एक हल्की सी वासनात्मक मुस्कान थी।

आंटी ने कहा- बोलो बेटा.. कैसे आना हुआ?
मैं- आंटी आपसे कुछ बात करनी थी।
यह सुनकर आंटी ने मुझे अन्दर बुलाया और बैठने को कहा। मैं अन्दर जाकर सोफे पर बैठ गया। आंटी भी दरवाज़ा बंद करके मेरे सामने आकर बैठ गईं।

आंटी- बोलो बेटा क्या बात है?
मैं- कुछ नहीं आंटी.. दरअसल मैं पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान हूँ।
आंटी- क्यों.. क्या बात है?? अगर कोई दिक्कत है.. तो तुम मुझसे एक दोस्त की तरह बता सकते हो बेटा.. बोलो?
मैं- दरअसल आंटी पिछले कई दिनों से मैं जब भी कुछ ‘ऐसा-वैसा’ देखता हूँ.. तो मुझे कुछ होने लगता है। अजीब सा लगने लगता है.. जैसे मेरे अन्दर कुछ हो रहा हो।

आंटी मेरी बात को भाँप गईं.. लेकिन मुझसे जोर देकर पूछने लगीं- ऐसा-वैसा मतलब?
मैंने बहुत बार मना किया- नहीं आंटी.. मुझे शर्म आती है..
लेकिन मैं तो बस नाटक कर रहा था।

फिर आंटी के जोर देने पर मैं आखिर बोल ही पड़ा- वो ‘वैसी’ वाली.. गन्दी चीज़ें.. जो पति-पत्नी रात को करते हैं.. ‘वैसी’ वाली।
यह सुनकर आंटी खिलखिला कर हँस दी और बोलीं- बस इतनी सी बात.. अरे पगले.. इस उम्र में ये सब होता है। अच्छा.. ये बता.. तेरी कोई गर्लफ्रेंड है?
मैंने सच बोलते हुए ‘नहीं..’ में ज़वाब दिया।

आंटी बोलीं- बस यही तो दिक्कत है बेटा जी.. एक गर्लफ्रेंड बना लो.. तो ये दिक्कत भी दूर हो जाएगी। अच्छा मुझे बता.. कोई पसंद तो होगी?
मुझे न जाने क्या हुआ मैंने कहा- आंटी मुझे आप बहुत पसंद हो। क्या आप मेरी गर्लफ्रेण्ड बनोगी?
यह सुनकर आंटी फिर हँस पड़ीं और बोलीं- चल झूठा..

अब मैं समझ गया कि आंटी की हंसी में ही ग्रीन सिग्नल है.. पर ये भाव खा रही हैं, मैंने कहा- नहीं आंटी.. मैं सच कह रहा हूँ आपकी कसम.. आई लव यू..
आंटी- अच्छा चल ले.. मैं बन गई तेरी गर्लफ्रेंड.. अब बता अपनी गर्लफ्रेंड को कैसे खुश करेगा?

मैंने समय न गंवाते हुए आंटी के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूसने लगा।
आंटी पहले से ही गरम होने के कारण मेरा साथ देने लगीं।
मेरा हाथ आंटी के चूचों पर चला गया।
क्या बड़े और मस्त चूचे थे उनके..

मैंने उनका गाउन एक झटके में उतार फैंका और अब आंटी मेरे सामने बिलकुल नंगी थी। उनका बदन रोशनी में चमक रहा था। मैंने उनके मम्मे चूसने शुरू किए। मैं उनके एक मम्मे को चूसता और दूसरे के चूचक को अपने हाथ से मसल देता।
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अब आंटी गरम हो उठीं और उन्होंने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए।

थोड़ी ही देर में हम आंटी के बेडरूम में 69 की अवस्था में थे.. जहाँ टीवी पर अब भी ब्लू-फिल्म चल रही थी।
आंटी मेरा लंड बड़े मज़े से चूस रही थीं और मैं आंटी की चूत को अपनी ज़ुबान से चोद रहा था।

आंटी की सिसकारियाँ पूरा कमरे मैं गूँज रही थीं, आंटी हवस में मदहोश हुए जा रही थीं। वो मज़े के मारे मेरे सर को अपनी टाँगों के बीच में दबा रही थीं।

थोड़ी ही देर में आंटी ने कामरस छोड़ दिया और मैं न चाहते हुए भी उसे पूरा पी गया लेकिन मेरा लंड आंटी के चूसने की वजह से और भी सख्त हो चला था।

मैं समय न गंवाते हुए आंटी के पैरों के बीच में आ गया, अपने लंड को आंटी की चूत के छेद पर सैट किया और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. पर मेरा आधा लंड ही आंटी की चूत में गया और आंटी की चीख निकल पड़ी।

उम्र के हिसाब से आंटी की चूत काफी टाइट थी। उन्होंने अपने पैरों को मेरी कमर पर कस लिया और तभी मैंने एक और ज़ोरदार शॉट मारा और मेरा पूरा लंड आंटी की चूत को चीरता हुआ अन्दर तक चला गया।

आंटी की आँखों से आँसू निकल आए लेकिन चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी। दो मिनट बाद जब आंटी नीचे से कमर हिलाने लगीं.. तो मैंने भी ऊपर से ताबड़तोड़ शॉट मारने चालू कर दिए।

‘थप.. थप..’ की आवाज़ से कमरा गूँज रहा था। इसके साथ-साथ आंटी की सिसकारियां भी चुदाई का मज़ा दोगुना कर रही थीं।

‘आह.. ऊह्ह.. उफ्फ्फ.. ओह्ह..’
करीब 10 मिनट तक मैं आंटी को यूँ ही चोदता रहा.. मैं बीच-बीच में आंटी के चूचुकों को अपने दांतों से काट भी लेता और आंटी बस कसमसा कर रह जातीं।

तभी अचानक मेरे धक्कों की रफ़्तार बढ़ गई और में तेज़ी से धक्के मारने लगा। आंटी ने भी मुझे कस कर पकड़ लिया उनका शरीर अकड़ने लगा और हम दोनों एक साथ झड़ गए।

मैं कुछ देर आंटी के ऊपर यूँ ही लेटा रहा। जब मैंने अपना लंड बाहर निकाला तो आंटी की चूत से हम दोनों का कामरस बह निकला।
अब आंटी खुश लग रही थीं। आंटी ने बाद में मुझे बताया कि उसका पति बिजनेस के चक्कर में उसे खुश ही नहीं रख पाता है।

जब मैंने समय देखा तो उसके पति के आने का समय हो चुका था। मैंने फटाफट कपड़े पहने और आंटी को एक चुम्बन दिया और ‘बाय आंटी’ बोला.. तो आंटी ने कहा- अब से तुम मुझे मंजू बुलाना.. अब मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ.. आंटी नहीं।

उस दिन से लेकर आज तक मैंने मंजू आंटी को बहुत बार चोदा है। आंटी ने अपनी भतीजी को भी मुझसे चुदवाया। और भी बहुत लड़कियों की चूत की प्यास बुझा चुका हूँ.. पर वो सब अगली बार।

आज भी जब मैं मेरठ से वापस अपने घर जाता हूँ.. तो मंजू को खूब चोदता हूँ।
आपके सुझाव और ईमेल सादर आमंत्रित हैं।
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