मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -12
(Main Apne Jeth Ki Patni Ban Kar Chudi- Part 12)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -11
-
keyboard_arrow_right मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -13
-
View all stories in series
अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार।
अब तक आपने पढ़ा..
मैं चाचा को याद करके चूत के लहसुन को रगड़ने लगी और यह सोचने लगी कि चाचा मेरी रस भरी चूत को चाट रहे हैं और मैं सेक्स में मतवाली होकर चूत चटा रही हूँ। मैं अपने दोनों हाथों से बिना किसी डर लाज शर्म के अपने मम्मे मसकते हुए सिसकारी ले-ले कर चूत को खुली छत पर नीलाम करती रही।
अब आगे..
मैं जल्द से जल्द वासना के सागर में गहरे गोते लगना चाहती थी। मैं सेक्स के नशे में इतनी चूर थी कि मुझे कुछ ख्याल ही नहीं रह गया था, मैं कल्पनाओं में खोई हुई चूत में लण्ड लेना चाहती थी, मैं बाहरी दुनिया से बेखबर आँखें बंद किए हुए मुझे बस यही दिख रहा था कि मेरी चूत को चाचा अपने जीभ से चाटे जा रहे हैं।
मैं यही सोचती रही और मुझे मेरी कल्पना हकीकत लगने लगी, मुझे सच में लगने लगा कि चाचा मेरी चूत को चाटते हुए बुर की नरम और मुलायम पंखुड़ियों को अपने मुँह में भर कर चूसे जा रहे हैं। मैं उनसे चूत चटवाने का मजा लेती रही और चाचा का हाथ मेरी पूरे शरीर की मालिश करते हुए मेरी बुर में जीभ डालकर मेरी चूत की पोर-पोर को उत्तेजित करते हुए मुझे मेरी चरम सीमा के करीब लाते जा रहे थे।
‘आहह्ह.. उफ्फ.. सीसीसीइ इइइ.. ओह्ह्ह्ह्ह सीई..’
चाचा एक हाथ से मेरी चूचियों को पकड़ कर मसकते हुए मेरी चूत को कुत्ते की तरह चाटते जा रहे थे और मैं चाचा के सर को पकड़ कर अपनी बुर पर चांपते जा रही थी।
तभी चाचा का एक हाथ मेरे पिछवाड़े पर घूमने लगा। अब वे मेरे चूतड़ों की दरार को मसकते हुए मेरी गाण्ड के छेद में एक उंगली डाल कर मेरी चूत का रस पीते जा रहे थे।
मैं खुली छत पर सब कुछ भूली हुई.. बस अपनी बुर को राहत देना चाहती थी, मैं बस चाहती थी कि कब बुर में चाचा का मस्ताना लण्ड घुस जाए और मैं चाचा के लण्ड को बुर में लेते हुए भलभला कर झड़ जाऊँ ‘आहह्ह्ह सीसी सीसी स्स्स्स्सीइइ इई..’
चाचा का हाथ मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था और होंठ मेरी बुर को चाट रहे थे।
‘आहह्ह्ह..’
जब चाचा मेरे कड़े-कड़े चूचुकों को मसलते.. तो मेरी सिसकी निकल जाती। मेरी बुर हरपल झड़ने के करीब हो रही थी.. कभी भी मेरी चूत से रस निकल सकता था। कभी भी मेरी चूत पानी छोड़ सकती है।
तभी एकाएक मुझे महसूस हुआ कि कोई ने मेरी जाँघों पर अपना हाथ रख कर कसके दबोच लिया हो.. मुझे सेक्स की जगह जाँघ पर चिकोटी काटने से पीड़ा हुई.. और मुझे महसूस हुआ कि मेरी बुर पर अब कोई हरकत नहीं हो रही है। मैं कल्पना में जिस सर को पकड़ कर बुर पर दाब कर चटा रही थी.. वह हकीकत लगने लगा।
मेरे मन मस्तिष्क में बातें चलने लगीं क्या यह हकीकत में हो रहा था? सच में कोई है?
कोई है तो क्या हुआ.. मुझे मेरी मंजिल चाहिए.. चाहे जो हो.. है तो मर्द.. पर तभी दुबारा दबाव देते हुए उसने मुझे झकझोर दिया और अब मैं सेक्स से कांपते हुए ना चाहते हुए भी मैंने आँखें खोलीं..
मेरे दोनों जाँघों के बीच में चाचा बैठे थे.. यानी मेरी कल्पना हकीकत हो गई थी। मेरी चूत मेरी चूचियों और मेरे चूतड़ चाचा के हाथों से रोंदे जा रहे थे।
‘आअअअ अअआप?’
‘हाँ मेरी जान.. आपका दीवाना..’
यह कहते हुए चाचा ने एक बार फिर मेरी बुर पर मुँह लगा दिया..
मेरे ऊपर तो सेक्स हावी था ही.. मैं सिसकारी लेकर एक बार फिर सब भूल कर चाचा का सर चूत पर दाबने लगी ‘आहह्ह्ह.. सीईईई.. ऐसे ही चाटो.. मैं झड़ जाऊँगी.. आहह्ह्ह.. मेरी प्यास बुझा दो.. आहसीईईई.. आहह्ह्ह..’
एक बार फिर चाचा मेरी चूत पीना छोड़ कर खड़े हो गए और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया।
‘चच्च्च्च्चाचा.. यय्य्य्य्ह कक्क्क्क्क्या.. कर रहे हो.. मेरी प्यासी चूत को चाटो न.. ऐसा ना करो!’
मैं चाचा के चूत पीना छोड़ने से पागल हो उठी थी.. मुझे सेक्स चाहिए था.. मुझे इस टाईम सेक्स के सिवा कुछ दिख सुन नहीं रहा था।
तभी चाचा मेरे होंठों के पास अपने होंठ सटाकर बोले- अच्छा.. सच-सच बताओ.. मेरी जान.. तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं मुझसे मिलने को.. मेरे लण्ड को अपनी चूत में लेने को.. बोलो ना? जब तुम खुल कर बोलोगी.. तभी मैं तेरी चूत की सारी गरमी को चोद कर ठंडी कर दूँगा… बोल मेरी जान..
चाचा मेरे तमतमाते होंठों को चूमने लगे और मैं सेक्स में मान-मर्यादा भूल कर अपने ससुर के समान बुढ्ढे से बेहया बन गई थी ‘हाँ.. कर रहा था.. बहुत कर रहा था.. इसी लिए मैं यहाँ आई थी.. आपका प्यार पाने..’
मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी।
चाचा के होंठ अब मेरे गालों पर थे- और क्या करवाने को कर रहा है?
मेरे गालों को काटते हुए चाचा ने पूछा।
‘वही सब करवाने को.. जो आप करने को आप यहाँ आए हैं..’
‘नहीं.. आज तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा.. नहीं बोलना चाहती हो तो मैं चला जाऊँगा।’
‘नन्..न..नहीं.. रुको मैं बताती हूँ.. मेरा मन कर रहा था चुदवाने का.. तुमसे आज अपनी चूत चुदवाने ही तो आई हूँ!’
और यह कह कर मैंने भी चाचा के गालों पर कस के चुम्मी लेकर उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया- तो अब चोदो ना.. अब तो मेरे मन की बात तो जान ली ना.. अब चोदो ना..
‘ले.. अभी चोदता हूँ.. अपनी रानी को..’
और चाचा वहीं बगल में ले जाकर के मुझे खड़े-खड़े ही मेरे जोबन को कसके रगड़ने.. मसलने और चूमने लगे और मेरी जवानी को चाचा हाथों से कस-कस कर रगड़ते जा रहे थे, मेरे चूचुकों को पकड़े हुए और मेरे उत्तेजित अंगूरों को कस-कस के चूसते लगे।
चाचा मेरी दोनों जांघों के बीच मेरी योनि प्रदेश पर अपना लण्ड नेकर से निकाल कर लगा करके मेरे भगनासे को लण्ड से रगड़ने लगे। चाचा के ऐसा करने से लण्ड मेरी योनि रस से भीग कर मेरी चूत पर फिसलने लगा।
मैं चाचा के लण्ड से चुदने के लिए व्याकुल हो कर सिसकारी लेते हुए बोली- प्लीज.. आहह्ह्ह् सीईईई.. चोदो ना.. मेरी बुर.. आहह्ह्ह् अब इन्तजार नहीं हो रहा.. डाल दो मेरी चूत में अपना लण्ड..
और मैं चूत चुदाने के नशे में अंधी होकर पूरी जांघें खोल कर लण्ड के अन्दर जाने का इन्तजार साँसें रोक कर करने लगी।
मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी ‘बस.. बस करो ना.. अब और कितना.. उह्ह्ह.. उह्ह्ह.. ओह्ह्ह.. बस्स्स्स.. और मत तड़पाओ.. डाल दो ना…’
शायद मेरी फरियाद सुन कर चाचा को मेरे ऊपर दया आ गई। मेरी फड़कती चूत को देखकर चाचा ने मेरी बुर में अपना लण्ड घुसाने के लिए मेरी चूत के मुहाने पे लण्ड लगा कर.. मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर पूरी ताकत से धक्का लगा दिया।
चाचा का सुपाड़ा मेरी चूत के अन्दर घुस गया था।
‘उह.. उफ्फ्फ उह आहह्ह्ह..’ करते हुए चाचा से लिपट कर पूरी चूत चाचा के हवाले करके मैं बुर को चाचा की तरफ करके दूसरे शॉट का इंतजार करने लगी।
चाचा मेरी चूचियों को मुँह में भरकर लण्ड को चूत पर दबाने लगे।
तभी मेरे कानों में पति के बुलाने की आवाज सुनाई पड़ी- नेहा कहाँ हो.. मुझे जाना है.. मैं सो गया और तुमने जगाया भी नहीं.. नेहा कहाँ हो?
मेरी तो वासना काफूर हो गई.. अब क्या करूँ मैं?
मैंने चाचा को जाने को बोला.. पर चाचा छोड़ ही नहीं रहे थे।
‘प्लीज चाचा जाओ.. वोव्व्व्व्वो हह्हस्बेण्ड आ जाएंगे।’
तभी मुझे लगा कि पति सीढ़ी चढ़ रहे हैं ‘वो आ रहे हैं प्लीज छोड़ो.. नहीं तो बवाल हो जाएगा।’
यह कहते हुए पता नहीं कहाँ से मेरे अन्दर इतनी ताकत आ गई कि मैंने चाचा को दूर ढकेल दिया।
जैसे ही चाचा दूर हुए.. ‘फक्क’ की आवाज के साथ सुपारा बाहर निकल गया।
मैं बोली- जाओ आप.. मैं भी प्यासी हूँ व्याकुल हूँ.. आपसे चुदने को.. पर अभी आप भागो यहाँ से..
और चाचा तुरन्त दीवार फांद कर छत पर बने कमरे के पीछे चले गए। पर अब एक और मुसीबत थी.. मैं सेक्स के नशे में इतनी अंधी हो गई थी कि मैं बिना कपड़े पहने ही छत पर आ गई थी और पति एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए ऊपर आ रहे थे.. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मुझे ऐसी हालत में देख कर वे क्या सोचेगें और अब क्या होगा?
तभी शायद एक या दो बची हुई सीढ़ी से ही उन्होंने आवाज दी- नेहा कहाँ हो.. छत पर हो क्या?
तभी मुझे याद आई नाईटी तो मैं सूखने को डाली थी.. वही पहन लेती हूँ।
मैं यहाँ पति का जबाब देना उचित समझ कर बोल पड़ी- हाँ.. मैं यहाँ हूँ.. आई..!
ये कहते हुए मैं नाईटी लेने को लपकी और नाईटी लेकर बगल में होकर पहन कर.. मैं अपने घबड़ाहट पर कंट्रोल कर रही थी कि पति सामने आ गए।
कहानी कैसी लग रही है.. जरूर बताना और हाँ.. आप लोग मुझे बहुत प्यार करते हो.. मुझे पता है.. पर आप लोग अंतर्वासना पर आकर मेरी कहानी प्लीज लाईक और कमेन्ट जरूर करें ताकि मुझे प्रोत्साहन मिले और मैं आपका अधिकाधिक मनोरंजन कर सकूँ।
आपकी नेहा रानी..
[email protected]
What did you think of this story??
Comments