माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-27
(Maa Beti Ko Chodne ki Ichcha-27)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-26
-
keyboard_arrow_right माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-28
-
View all stories in series
अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…
फिर उस रात मैंने थोड़ी-थोड़ी देर रुक रूककर माया की गांड और चूत मारी.. करीब पांच बजे के आस-पास हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में निर्वस्त्र ही लिपटकर सो गए।
अब फिर करीब 11 बजे के आस-पास मेरी आँख खुली तो देखा माया कमरे में नहीं थी, तो मैं उठा और उसको आवाज़ दी।
जब कोई जवाब न मिला तो मैंने सोचा कहीं विनोद लोग आ तो नहीं गए..
जल्दबाज़ी में बिना चड्डी के ही लोअर डाला और और चड्डी को लोअर की जेब में रख ली।
मैं फ्रेश होने सीधा वाशरूम गया.. फिर फ्रेश होकर बाहर के कमरे की ओर चल दिया और देखने का प्रयास करने लगा कि ये लोग आए कि नहीं..
पर घर की शांति बता रही थी कि अभी वो लोग नहीं आए हैं।
तो मैं बिना किसी आवाज़ किए रसोई की ओर चल दिया.. तो पाया कि माया बालों को खोले और बहुत ही सरीके से साड़ी पहने हुए खाना पकाने में जुटी थी।
गर्दन से लेकर कमर तक का उसका हिस्सा खुला था.. जिस पर ब्लाउज की मात्र तीन इंची पट्टी थी।
उसके खुले बाल भीगे नज़र आ रहे थे.. जैसे कुछ ही देर पहले नहा कर आई हो..
उफ.. क्या माल दिख रही थी.. जैसे कि कोई हुस्न की परी जन्नत से उतर आई हो..
मैं उसके इस रूप-सौंदर्य को देखते ही अपना आपा खो बैठा और जाते ही लपककर उसको पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया.. उसकी भीगी गर्दन पर जीभ फिराते हुए चुम्बन करने लगा।
उसके बालों से आ रही मादक खुशबू ने मुझे इतना मदहोश कर दिया कि मैं उसे अपनी ओर घुमाकर उसके सर को पकड़ कर उसके होंठों को चूसते हुए तो कभी उसके कानों और गालों में चूमते हुए उसकी पीठ सहलाते-सहलाते.. उसके ब्लाउज में पीछे की ओर से ऊँगलियां डालते हुए उसकी ब्रा का हुक खोलने लगा.. जो कि कुछ ही पलों में खुल गया।
जिसका पता माया को भी तभी चला, जब ब्रा का हुक खुलते ही उसकी पीठ पर थोड़ा रगड़ सा गया।
वो भी मेरी इस क्रिया में मेरा साथ देते-देते इतना मदहोश हो चुकी थी कि वो भी अपना होश खो कर मुझे अपने सीने से लगाकर.. अपनी चूचियों को मेरी छाती से रगड़ते हुए मेरे होंठों को चूसे जा रही थी।
फिर जब उसे हुक की रगड़ से होश आया तो मुझसे बोली- राहुल जाओ.. जल्दी जाकर नहा लो.. ये लोग अभी आते ही होंगे।
तो मैंने बोला- क्या उनसे बात की?
बोली- नहीं.. अभी नहीं की।
तो मैंने पूछा- अच्छा मेरा फ़ोन कहाँ है रात को तो बिस्तर पर ही था.. पर जब सो कर उठा तो वहाँ मेरा फ़ोन नहीं दिखाई दिया।
माया बोली- अरे वो विनोद के कमरे में चार्जिंग पर लगा है.. तुम्हारा बैग वहीं था और सुबह जब उठी तो तुम्हारा फोन ‘लो-बैटरी’ की वार्निंग दे रहा था। तो मैंने उसे चार्जिंग पर लगा दिया।
मैं आप सबको बता दूँ कि विनोद और रूचि दोनों का एक ही दो बिस्तरों वाला कमरा था और उसी को उन्होंने स्टडी-रूम भी बनाया हुआ था।
खैर.. मैंने माया से बोला- ओके.. मैं अभी देखता हूँ कि ये लोग कहाँ पहुँचे।
तो माया बोली- हाँ.. पूछ लो वक्त तो हो गया.. पर अभी तक नहीं आए..
मैंने माया को फिर से गले लगाया और उसके होंठ को चुम्बन देते हुए बोला- माया ये हसीन पल.. पता नहीं कब मेरी जिंदगी में आएंगे.. मैं बहुत ही याद करूँगा।
तो माया ने मेरे लहराते हुए मदमस्त नाग के समान लौड़े को पकड़ते हुए मुझसे बोली- राहुल तुम्हें नहीं पता.. तुमने इन दो दिनों में मुझे क्या दिया है.. आज इतना अच्छा लग रहा है, जितना कि पहले कभी न लगा, काश.. हम साथ रह पाते.. पर तुम परेशान न हो, तुम्हें मैं कैसे भी करके मज़ा देती और लेती रहूँगी।
यह कहते हुए उसने अपनी आँखों को बंद करते हुए गर्मजोशी के साथ मेरे लबों पर अपने लबों को चुभाते हुए चुम्बन करने लगी।
मैं और वो दोनों एक-दूसरे को बाँहों में जकड़े हुए प्यार कर रहे थे.. तभी माया ने अचानक अपनी आँखें खोलीं और बोली- राहुल तुम्हारा तो नहीं पता.. पर मेरा छोटा राहुल (लण्ड) हमेशा मेरे लिए बेकरार रहता है.. देखो कैसे तुम्हारे लोअर के अन्दर से ही फुदक-फुदक कर मेरे पेट को छेड़ रहा है।
मैंने बोला- सही ही तो है.. अब पता नहीं कब मौका मिले.. चलो एक बार मिलन करवा ही दें।
तो माया डरते हुए लहज़े में बोली- अरे नहीं.. अभी नहीं.. उनका आने का समय हो चुका है।
तो मैंने बोला- तो कौन से वो लोग आ गए.. तुम तो बेकार ही घबरा रही हो.. अब एक काम करो.. मैं फ़ोन करने जा रहा हूँ.. अगर मैं पांच मिनट में न आऊँ.. तो समझ लेना अपना मिलन होकर ही रहेगा।
तुम गैस बंद करके वहीं विनोद के कमरे में आ जाना।
तो वो बोली- हाँ.. ये सही रहेगा.. तुम उन लोगों की लोकेशन लो.. तब तक मैं भी बचे काम खत्म करके आती हूँ।
फिर मैं ख़ुशी से झूमते हुए मतवाले हाथी के समान विनोद के कमरे की ओर चल पड़ा और जाते ही फ़ोन लगाया और काल की.. तो विनोद ने ही फ़ोन उठाया।
मैंने उससे पूछा- अबे तू अभी तक न आया.. कहाँ फंसा है?
तो विनोद बोला- अरे कोई नहीं यार.. आ तो गया हूँ.. पर पिछले दस मिनट से गाड़ी आउटर पर खड़ी है.. प्लेटफॉर्म में पहुँचे.. तो काम बने।
तो मैंने पूछा- अरे कोई सिग्नल हुआ अभी कि नहीं?
तो वो बोला- शायद माल गाड़ी की वजह से रुकी पड़ी है.. लोडिंग-अनलोडिंग का लफड़ा लग रहा है.. अब देखो कितना समय लगता है.. हो सकता है तीस मिनट और लग जाएँ।
मेरा मन उसकी यह बात सुनकर ख़ुशी में झूम उठा और मैंने मन ही मन खुश होकर विनोद से बोला- अरे कोई बात नहीं आराम से आओ वैसे भी आज का खाना मैं खा कर ही जाऊँगा..
इस तरह दो-अर्थी शब्दों में बाते करते हुए मैंने फोन रख दिया.. तब तक माया आई और मेरे चेहरे के भावों से भांप गई कि विनोद लोग अभी और देर में आएंगे।
वो मुझसे बोली- क्या बात है.. लगता है तुम्हें अब मन चाहा फल देना ही पड़ेगा..
तो मैंने भी उससे झूट बोलते हुए कहा- अभी उनको दो घंटे और लगेंगे.. उनकी ट्रेन शहर से दूर कहीं सिग्नल न मिलने के कारण खड़ी हो गई है..
अब अगर मैं ये कहता कि गाड़ी स्टेशन के आउटर पर खड़ी है.. तो शायद वो कुछ भी मन से न करती और डरते हुए चुदाई करने में वो मज़ा कहाँ.. जो पूरे इत्मीनान के साथ करने में मिलता है।
खैर.. माया भी ख़ुशी से फूली न समाई और आकर मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठों को चूमने लगी।
मैं भी उसे अपनी बाँहों में जकड़े हुए प्यार से चूमने-चाटने लगा और उसकी गर्दन पर जैसे ही चूमा.. वैसे ही उसके बालों से आ रही खुश्बू जो कि आज ही उसने धोए थे..
तो उसके बालों से आ रही खुश्बू से मैं मदहोश सा हो गया और उसे अपनी गोद में उठा कर उसे रूचि वाले बिस्तर पर लिटा दिया।
अब मैं उसके भीगे बालों की खुशबू लेने लगा।
उसके बाल भीगे होने से तकिया भी गीला होने लगा.. मैं उसे और वो मुझे बस पागलों की ही तरह चूमे-चाटे जा रहा था।
फिर उसने मुझे ऊपर की ओर धकेला और मुझे नीचे लेटने को बोला।
मैं कुछ समझ पाता.. उसके पहले ही उसने अपनी पैंटी निकाली और फिर मेरा लोअर हटा के वहीं पलंग के नीचे डाल दी और मेरे ऊपर आकर मेरी जांघों पर बैठते हुए अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी।
मैं इतना बेताब हो गया कि बिना उसके खोले ही उसके चूचे नोचने-दबाने लगा।
जिससे उसके मुँह से चीख निकल गई और बोली- यार दो मिनट रुक नहीं सकते।
तो मैंने बोला- इतना मदहोश कर देती हो कि होश ही नहीं रहता।
तभी माया ने ब्लाउज निकाल दिया और मेरे होंठों को चूसते हुए मेरा सर सहलाने लगी।
फिर मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर ले जाकर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए सके चूतड़ों को रगड़ते हुए उन पर चाटें मारने लगा..
जिससे माया चिहुँक उठी।
अब तो उसे भी मेरी इस अदा पर मज़ा आने लगा था और मेरे हर तरीके का मज़े से स्वागत करने लगी थी..
जैसे कि वो मेरी आदी हो चुकी हो।
उधर मेरा लण्ड जो कि अब बेकरार हो चुका उसकी चूत से रगड़ खाते हुए उसकी चूत के मुहाने पर तन्नाते हुए अपना सर पटकने लगा था.. मानो कह रहा हो कि अब तुम लोगों का हो गया हो तो अब मेरी बारी आ गई है।
तभी मुझे भी होश आया कि वो लोग कभी भी घर पहुँच सकते हैं.. तो मैंने धीरे से अपने हाथों से उसके मम्मे दबाने चालू किए.. जिससे माया की सीत्कार निकलने लगी।
वो भी गर्म जोशी के साथ अपनी गर्दन उठा कर लहराती हुई जुल्फों से पानी की बूँदें टपकाती हुई ‘आआह.. उउउम्म्म्म और जोर से राहुल.. आआआह.. ऐसे ही करो.. आआअह..’ बोलने लगी।
तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है।
फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट करने लगा।
तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’ से बैठ गई।
चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी।
यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया।
उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई।
जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़ और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया कि भी गति अब बढ़ चुकी थी।
वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को अपने हाथों से सहला रही थी..
जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता..
इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया।
अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर सर टिका कर झुक गई।
अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर-बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं.. जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं।
उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को.. और कर दो ठंडा..
मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा गई।
वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर-बेल बजे ही जा रही थी।
मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ.. पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए बाथरूम में चला गया।
जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई थी।
वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही चिल्लाते हुए चली गई।
‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’
उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी।
खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता।
खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है?
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
इतने में मैंने अपनी मौजूदगी को जाहिर करते हुए तेज़ी से बाथरूम का गेट बंद किया.. जिससे रूचि भी हड़बड़ा गई और उस चड्डी को बिस्तर पर फेंकते हुए मुझसे बोली- तुम यहाँ क्या कर रहे थे?
तो मैंने बाथरूम की ओर इशारा करते हुए बोला- यहाँ क्या करते हैं?
वो बोली- मैं उसकी बात नहीं कर रही हूँ।
‘तो किसकी बात कर रही हो?’
वो बेड को दिखाते हुए बोली- यहाँ की..!
तो मैंने सोचा.. इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा.. मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- यहाँ सोता था..
तो मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?
वो गीला तकिया जो कि माया के गीले बालों से भीगा सा लग रहा था।
अब मैंने मन ही मन सोचा कि विनोद के यहाँ आने के पहले इसका कुछ तो करना ही पड़ेगा..
तो दोस्तो, आज के लिए इतना ही..
अब रूचि से मैं क्या बोलूँगा.. कैसे उसे पटाऊँगा.. ये सब जानने के लिए थोड़ा सा सब्र करें.. जल्द ही आप लोगों को आगे की कहानी पढ़ने को भेजूंगा.. तब तक के लिए धन्यवाद।
कृपया ध्यान रखते हुए कहानी का आनन्द लें और ऐसा समझने की कोशिश करें कि इस घटना-क्रम को तेज़ी से बयान नहीं किया जा सकता.. क्योंकि यह घटना जैसी घटी थी वैसी ही मैंने अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश की है।
पुनः धन्यवाद।
आप अपने सुझावों को इसी तरह मेरे मेल पर साझा करते रहें.. और आप इसी मेल आईडी के माध्यम से फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं।
अगले भाग तक के लिए सभी चूत वालियों और सभी लौड़े वालों को मेरा चिपचिपा नमस्कार।
मेरी चुदाई की अभीप्सा की यह मदमस्त कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments