लखनऊ के नवाब की चुदास-2

समीर नवाब 2014-12-02 Comments

Lucknow ke Navab ki Chudas-2

दूसरे दिन जब वो एक्टिवा खड़ी करने आई तो मैंने कहा- आराम से..

उसने कहा- जी.. ‘आराम’ से ही करना चाहिए।

मेरे कहने का मतलब था कि एक्टिवा आराम से खड़ी करना, मगर उसका इशारा मैं समझ गया।
उसने जाते हुए पूछा- क्या मैं सुबह आ जाऊँ.. मुझे नेट पर काम है।

मैंने कहा- हाँ ‘काम’ तो करना ही चाहिए।

वो हँसती हुई चली गई।

मैं रात भर करवटें बदलता रहा, सुबह छः बजे मेरा फ़ोन बजा।

देखा तो प्रीति का फ़ोन था, वो मेरे घर के दरवाजे पर खड़ी थी।

मैंने जाकर दरवाजा खोला और पूछा- इतनी सुबह?

उसने कहा- मेरी मम्मी सो रही थी तो मैंने सोचा कि मैं थोड़ा जल्दी ‘फारिग’ हो लूँ..

इतना कुछ होने के बाद भी मेरी गाण्ड फट रही थी मगर सोच तो लिया था मैंने कि चोदना है।

वो कम्प्यूटर पर बैठी और मैंने फिर सोने का नाटक किया।

जैसा मैंने पहले बताया था कि कम्प्यूटर पर काम करने के लिए बिस्तर पर ही बैठना पड़ता था।
करीब पाँच मिनट बाद मैंने ऐसे करवट ली कि अपना हाथ उसकी जांघ पर रख दिया, फिर उससे चिपट कर सोने का नाटक किया।
लेकिन देर हो रही थी, मैंने सोचा कहीं आज भी हाथ मलता न रह जाऊँ।

मैंने अपनी आँखें खोलीं तो देखा वो मेरी तरफ ही देख रही थी।

जैसे-जैसे मेरा लंड खड़ा होता जा रहा था, मेरी गाण्ड फटती जा रही थी कि यार अब क्या होगा?

फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ, सब कुछ हो गया।
मगर क्या हुआ.. कैसे हुआ.. कब हुआ क्यों हुआ.. छोड़ो यह न सोचो क्योंकि मैं होश में नहीं था और उसको चोदने का मन बना डाला

और वो चुदने को राजी भी थी।

सब कुछ होता चला गया।

अब मैं शेर था, मेरा हाथ खुल चुका था।

शाम को जब वो एक्टिवा खड़ी करने आई, मैंने पूछा- क्या हाल है?

उसने कहा- ठीक नहीं है।

मैंने कहा- सुबह आ जाना.. ठीक हो जाएगा।

और वो चली गई। मगर मुझे पता था वो आएगी और मुझे अपने दस साल का अनुभव जो कुछ मैंने देखा था.. पढ़ा था.. उसे इस्तेमाल

करना था।

सुबह 4 बजे फ़ोन की घंटी बजी.. मैं तो जाग ही रहा था।

उसने कहा- दरवाजा खोलिए।

मैं गया तुरन्त उसको कमरे में लाया और चूमने लगा.. वो भी मुझको चूमने लगी।

फिर मैंने कहा- रुको।

मैंने उसकी टी-शर्ट में हाथ डाला और उसकी चूचियाँ मसलने लगा।

मैंने चुदाई कभी की नहीं थी, मगर कैसे चोदा जाता है.. यह तो दस साल से सीख रहा था।

फिर मैंने कामसूत्र की तरह उसकी आँखों पर पट्टी बांधी और उसके दोनों हाथ बिस्तर से बाँध दिए।

उसने कहा- यह क्या कर रहे हो.. छोड़ो ना!

मैंने कहा- कुछ न बोलो.. जो हो रहा है बस होने दो।

मैंने उसको चूमना शुरू किया.. उसके कान को काटने लगा.. फिर उसकी रानों को चूमने लगा।

फिर मैंने उसकी टी-शर्ट ऊपर की और उसकी चूचियों को मुँह से चचोरने लगा, अपना दूसरा हाथ मैंने उसके लोअर में डाल दिया।

फिर क्या था उसने कहा- आराम से..

मगर मैं था कि शताब्दी-एक्सप्रेस की गति से उसकी टाँगें सहलाते हुए मैंने उंगली उसकी चूत में डाल ही दी।

मैं एकदम मंजे हुए चोदू की तरह.. जैसा कि मैंने ब्लू-फिल्मों में देखा था, करता गया.. जैसे मैं बहुतों को चोद चुका होऊँ।

उसकी एक चूची मुँह में, दूसरी हाथ में और ऊँगली चूत में.. मैं उसको उत्तेजित करता रहा।

अचानक वो चिल्लाने लगी- बस करो..

साला दस मिनट में ही वो लाल हो गई और चिल्लाने लगी- मेरे हाथ खोल दो..

मैंने हाथ खोल दिए और उसने मेरी उंगली चूत से निकाल दी।

अब उसने मुझे चूमना शुरू किया, मैंने अपनी शर्ट उतारी मगर उससे रहा नहीं जा रहा था।

उसने अपना हाथ मेरे लोवर में डाला और लौड़ा सहलाने लगी, मुझसे रहा नहीं गया मैंने अपना लोअर उतार दिया।

उसने मुझसे कहा- तुम्हारा तो इतना बड़ा है.. तुमने तो बड़े-बड़ों की गाण्ड फाड़ दी होगी।

मगर उसको क्या पता था कि मेरी खुद की गाण्ड इतना फटती थी कि मैं दूसरों की क्या फाड़ूगा।

लेकिन मैंने उसको इतना तड़पा दिया कि मानो बस वो कह रही थी कि डाल दो अपना लवड़ा.. मेरी चूत में..

मैंने उसकी गीली चूत पर अपने लौड़े का लाल-लाल सुपारा रखा और धीरे-धीरे उसको प्यार करता रहा, उसकी चूचियों को काटता रहा

और लंड को आहिस्ता-आहिस्ता अन्दर डालता रहा।

जब लंड पूरा अन्दर चला गया मैंने झटके देना शुरू कर दिए।

कुछ देर बाद उसकी चूत से पानी बहने लगा। मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत को रूमाल से पौंछा जिससे उसकी चूत

एकदम सूखी हो गई।

मैंने पढ़ा था कि लड़की को कैसे संतुष्ट किया जाता है।

मेरा लंड तड़प रहा था मैंने उसको पैर से लेकर चूत तक फिर चूमना शुरू किया और चूत से लेकर चूचियों और होंठों तक उसे चूमना

और चाटना शुरू कर दिया।
वो लगातार तड़प रही थी।

फिर मैंने एक मोटा तकिया उसकी गाण्ड के नीचे लगाया और लौड़ा उसकी आग जैसी चूत में डाल दिया। फिर क्या था वो नीचे से

झटके और मैं ऊपर से लगाता रहा।

मुझे पता नहीं था कि चुदाई में इतना मज़ा आता है.. अगर पहले पता होता तो दस साल तक सोचता न रहता।
लगभग 15 मिनट तक चुदाई करने के बाद.. मेरे लंड से जैसे आग निकलने लगी और मुझे जीवन का असली मज़ा आया।

चुदाई के करने के बाद हम एक-दूसरे के साथ लेट गए और ये सिलसिला अभी चालू था।

मैंने उससे पूछ ही लिया- सच बताओ.. तुमने इससे पहले भी चुदाई की है ना?

उसने कहा- हाँ.. अस्पताल में जाने के बाद जैसे जैसे मेती तरक्की होती रही.. वैसे-वैसे मेरी चुदाई होती रही.. हर प्रमोशन से पहले

डॉक्टरों ने मुझे खूब चोदा।

आमतौर से लोगों के लंड का पानी 5 मिनट में ही निकल जाता है मगर मैंने पढ़ा था कि लंड को डालने के बाद रुक-रुक कर झटके दो

लेकिन लड़की को चूमते-चाटते रहो.. इससे उसको भी पूरा मज़ा मिल जाएगा और आदमी की चुदाई का समय भी बढ़ जाता है।

मैंने अपना लौड़ा पौंछा मगर घड़ी में केवल 6 बजे थे, मैंने सोचा अभी तो वक्त है.. मैं फिर शुरू हो गया मगर अब वो मुझसे खुल चुकी

थी। उसने मेरा लंड अपने मुँह में लिया और चूसने लगी।

क्या बात थी यारों.. लंड चुसाने का अपना अलग ही मज़ा होता है।

दो ही मिनट में मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया, अब मैंने उससे कहा- अब तुम मुझे चोदो।

उसने कहा- क्यों.. क्या हुआ थक गए क्या? तुम तो लखनऊ के नवाब हो।

मैंने कहा- तुम ऊपर आओ तो फिर पता चलेगा कौन थका।

वो मेरे ऊपर आई और मेरे लंड के ऊपर बैठ गई।

मैंने लंड उसकी चूत में डाला और वो अपनी चूत हिलाने लगी।

मैंने उसकी पिछाड़ी को दबाना शुरू किया..
आधे घंटे तक हम लोग एक-दूसरे को चोदते और चूमते रहे, मेरे लण्ड का पानी दूसरी बार फिर निकल गया और मैं भी थक कर नशे में

चूर हो चुका था।

मैंने चूमते-काटते उसका पूरा बदन लाल कर दिया था।
उसके बाद हम लोगों ने कई बार चुदाई की..

हम लोगों में चुदाई के दौरान यह कम्पटीशन होता था कि कौन पहले झड़ता है.. पहले तो मैं हार जाता था मगर 10-15 दिनों बाद मैं

इतना बड़ा चोदू हो गया कि पहली ही चुदाई में उसकी गाण्ड फटने लगती थी।

खैर तीन महीने बाद उसको दिल्ली के एक अस्पताल से ऑफर आया वो मेरे पास आई और बोली- क्या करूँ?

मेरा दिमाग तो बोला कि मना कर दे.. तेरे लण्ड का क्या होगा.. पर दिल ने कहा जाने दो किसी के भविष्य का सवाल है।
मैंने कहा- ठीक है तुमको जाना चाहिए।

वो चली गई.. अब भी कभी-कभी उसका फ़ोन आता है और मैं फ़ोन पर ही उसको चोद देता हूँ।

यह थी मेरी जीवन की पहली और अभी तक की अंतिम कहानी !

आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर मेल करिएगा।

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