लखनऊ के नवाब की चुदास-1
Lucknow ke Navab ki Chudas-1
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ इसकी सारी कहानियाँ मुझे अच्छी लगती हैं, मैंने कई बार सोचा कि मैं भी इस पटल पर कहानी लिखूँ, पर लिख नहीं पाया.. पता है क्यों?
क्योंकि मेरी कोई कहानी थी ही नहीं.. अब हुई है तो मैंने सोचा सबसे पहले आपके साथ साझा करूँ।
तो सबसे पहले मैं आप लोगों को अपना परिचय दे दूँ।
मेरा नाम समीर है और मैं लखनऊ में रहता हूँ, मेरी उम्र 26 साल है और मेरा व्यक्तित्व आकर्षक है।
बचपन से ही मेरी रूचि सेक्स चुदाई में थी। जब मैं नौवीं कक्षा में था तभी से मुझे नंगी फिल्में देखने की आदत पड़ गई थी, मगर जीवन में कुछ ऐसे उतार-चढ़ाव आए जिसकी वजह से मैं कभी सेक्स की तरफ जा न सका।
जैसा मैंने बताया कि दिल ही दिल में मेरी चुदाई करने की चाह बढ़ती जा रही थी, मैंने कई लोगों को छुप-छुप कर चुदाई करते हुए देखा था।
खैर.. डैड के गुजर जाने के बाद जब मैं व्यापार के क्षेत्र में आया तो मुझे कई जगह से चुदाई के लिए लाइन मिली, ज़्यादातर शादी-शुदा औरतों ने मुझसे इस सम्बन्ध में निकटता बनाने का प्रयास किया।
मगर मेरी इतनी फटती थी कि क्या बताऊँ।
व्यापार करने के दौरान मैंने घर के पास एक जमीन खरीद कर उस पर मकान बना लिया और उसमें रहने लगा।
अब मैं अकेला था दिल ही दिल में सोचता था कि कोई मिल जाए..
मगर अपनी इज्ज़त के डर से कभी कुछ नहीं किया क्योंकि व्यापार में आने के बाद समाज में मेरी इज्जत और बढ़ गई थी।
दोस्तों ने कहा कि यार कोई लड़की का जुगाड लगाया जाए, मगर मेरी फटती थी और मैं मना कर देता था।
खैर ऐसे ही चलता रहा और चुदाई के बारे में उत्सुक होता गया, मैंने चुदाई के बारे में बहुत कुछ पढ़ा था।
मुझे पता था एक दिन तो करना ही है इसलिए मैं अपने ‘सामान’ को बहुत संभाल कर रखता था और वो भी धीरे-धीरे बहुत मोटा और लम्बा हो गया था, जैसे कि पोर्न मूवी में होता है..
मगर किस काम का..?
खैर अब आते है’ अपनी कहानी पर, मेरे घर के बगल में एक घर था जिसमें एक लड़की थी प्रीति (बदला हुआ नाम) जो किसी अस्पताल में नर्स का काम करती थी।
उसके पिता भारत के बाहर थे, एक भाई बंगलूरु में था और वो अकेले ही अपनी माँ के साथ रहती थी। मैं उसे अक्सर देखता था मगर मैंने अपने दिल में कोई ऐसी बात नहीं सोची।
एक दिन उसकी मम्मी मेरे पास आई और बोली- मेरी बेटी को अस्पताल जाने में परेशानी होती है इसलिए उसको तुम साथ चल कर, एक गाड़ी दिला दो।
मैंने कहा- ठीक है.. मैं आपके साथ चल कर दिला दूँगा।
उसने एक एक्टिवा स्कूटर खरीदा मगर उनके घर में स्कूटर खड़ा करने की जगह ही नहीं थी इसलिए वो मेरे ही घर में ही स्कूटर खड़ा करने लगी।
अब रोज वो सुबह 8 बजे एक्टिवा उठाने आती और रात 10 बजे खड़ी करने।
उससे मेरा हर रोज सामना होता रहा तो ‘हैलो-हाय’ भी बढ़ी।
मगर एक दिन मैं छत पर टहल रहा था, वो एक्टिवा खड़ी करने आई। अचानक मैंने देखा कि उसके झुकने से उसकी चूचियाँ दिख रही हैं, बस फिर क्या था मैंने उससे ज्यादा बातें करनी शुरू कर दीं।
एक दिन उसने कहा- मुझे कुछ इन्टरनेट पर काम है।
तो मैंने कहा- आ जाना।
वो शाम को आई, मेरा कम्प्यूटर बिस्तर के पास ही है और मैं बिस्तर पर बैठ कर ही उस पर काम करता था।
जब वो आई तो मेरी फटी कि यार कोई देख लेगा, तो क्या सोचेगा, सो मैं छत पर चला गया।
अब जब भी वो आती, मैं उससे कहता तुम कमरा बंद कर लो, मैं एक घंटे बाद आऊँगा और वो आराम से अपना काम करती रहती।
एक दिन उसके जाने के बाद मैंने कम्प्यूटर पर इन्टरनेट की हिस्ट्री देखी तो दंग रह गया।
उसने चुदाई की साइट खोली हुई थी, मुझे विश्वास सा नहीं हुआ पर मैंने वो हिस्ट्री मिटा दी।
अब जब भी वो आती.. मैं चेक करता। मैं समझ गया कि यह तो बड़ी चालू चीज़ है।
मेरी बरसों की भूख जाग गई और मैंने सोच लिया कि इसे चोदना है।
अब मेरा ध्यान सिर्फ उसकी चूचियों और गाण्ड पर ही रहने लगा।
मैंने भी उससे थोड़ा हँसी-मजाक चालू कर दिया।
उसको देखते ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता.. मेरा जी करता था कि बस इसको पकड़ कर चोद डालो।
मगर दिल में सोचता कि अगर यह चिल्ला पड़ी तो मेरी इज्जत तो मिटटी हो जाएगी।
फिर एक दिन वो बोली- मेरे अस्पताल का वक्त बढ़ गया है तो अगर आप बुरा न माने, तो मैं सुबह के वक्त आ जाया करूँ.. मुझे नेट में कुछ काम रहता है।
उन दिनों वो किसी और अस्पताल में सीनियर नर्स के लिए अपना बायोडाटा भेज रही थी।
फिर दूसरे दिन जब वो आई तो मैं उस समय सो रहा था और कम्प्यूटर मेरे ही कमरे में था, पर पहले की तरह आज मैं उसको छोड़ कर बाहर नहीं गया क्योंकि अब तो मैं उसको चोदने की खिचड़ी पका रहा था।
वो काम करती रही और मैं सो जाने का नाटक करता रहा, मगर नींद किसको आनी थी।
खैर एक दिन सुबह सवा सात बजे उसका फ़ोन आया कि मुझे कुछ काम है क्या मैं आ जाऊँ?
मैंने कहा- क्यों नहीं..
मगर आज मैं सोच चुका था कि क्या करना है मैंने एक तौलिया बांधा और सो गया.. सुबह वो आई तो मैंने सोने का नाटक किया मगर अपनी तौलिया को ऐसे किया कि वो खुल जाए और ऐसा लगे कि मै तो सो रहा हूँ और तौलिया गलती से खुल गया है।
मैंने अपनी आँखें बंद रखीं।
कुछ देर बाद मुझे ऐसा लगा कि वो आकर चली भी गई।
फिर मैंने देखा कि मेरी एक टांग पूरी नंगी थी और लौड़ा दिख रहा था।
इतना तो पता था कि उसने मुझे देख लिया था मगर मैं सोचने लगा और किया क्या जाए?
वो शाम को एक्टिवा खड़ी करने आई ऐसा लगा कि कुछ हुआ ही न हो।
अब मैंने दूसरी योजना बनाई।
दो दिन बाद मैंने घर पर जहाँ पर वो एक्टिवा खड़ी करती थी, वहाँ के फर्श की टाइल्स पर तेल गिरा दिया ताकि वो फिसल जाए!
वो नौ बजे आई और एक्टिवा चढ़ाने लगी और अचानक से उसका संतुलन बिगड़ गया और मैं तो वहाँ हाथ साफ़ करने के लिए खड़ा ही था।
मैंने ‘अरे.. अरे..’ करते हुए उसको ऐसे पकड़ा कि मेरा एक हाथ उसकी चूची पर और दूसरा उसकी चूत के पास था।
फिर मैंने उसको संभाला और कहा- बच गई.. नहीं तो चोट लग जाती।
उसने हँसते हुए मेरी तरफ देखा और कहा- आपके ‘पकड़ने’ के कारण मैं बच गई..
वो हँसते हुए अपने घर चली गई। मैंने पहली बार किसी को पकड़ा था, मुझे रात भर नींद नहीं आई, मगर उसको चोदने का दिल कर रहा था।
दूसरे दिन जब वो एक्टिवा खड़ी करने आई तो मैंने कहा- आराम से..
उसने कहा- जी.. ‘आराम’ से ही करना चाहिए।
मेरे कहने का मतलब था कि एक्टिवा आराम से खड़ी करना, मगर उसका इशारा मैं समझ गया।
उसने जाते हुए पूछा- क्या मैं सुबह आ जाऊँ.. मुझे नेट पर काम है।
मैंने कहा- हाँ ‘काम’ तो करना ही चाहिए।
वो हँसते हुए चली गई।
कहानी जारी रहेगी।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर मेल करिएगा।
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