वासना की फिसलन भरी राहें- 2
(Indian Bhabi Xxx Story)
इंडियन भाबी Xxx स्टोरी में पढ़ें कि अपनी गलती के कारण पड़ोसी के सामने अर्धनग्न अवस्था में जाने के बाद लड़की स्वयं ही उस गैर मर्द से यौन सम्बन्ध बनाने को आतुर हो गयी.
कहानी के पहले भाग
पर नारी को पर पुरुष का प्रणय निवेदन
में अब तक आपने पढ़ा कि एक नवविवाहिता दीपाली स्वयं की एक चूक के कारण निर्मित विशेष परिस्थिति में, अपने जीवन के प्रथम परपुरुष वैभव के, प्रणय निवेदन को ले कर, बहुत समय तक दुविधाग्रस्त रहती है। अंततः वह वासना के आवेग में, नए आनंद की प्राप्ति हेतु, उसके पास चुदने जाने का निर्णय लेती है।
यह कहानी सुनें.
अब आगे इंडियन भाबी Xxx स्टोरी:
वैभव ने दीपाली को जब सैक्सी नाइटी में आते देखा तो उसका दिल बल्लियों उछलने लगा, अब इस बात में तो कोई संशय नहीं था कि दीपाली चुदने के इरादे से ही, उसके पास खुद चल के आई थी।
वैभव ने अपनी बाहें फैला दी और दीपाली वैभव के सीने से लग के पूरे सुकून के साथ उसके दिल की धड़कनों को सुनने लगी।
दीपाली को वैभव की बाहों में सुरक्षा का वो ही अहसास हो रहा था, जो आदित्य की बाहों में होता है।
वैभव ने कहा- ओह दीपाली, आई लव यू!
और उसके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
दीपाली पहले पर पुरुष के पहले चुम्बन से सिहर उठी; उसकी आंखें बंद हो गईं।
वैभव ने दीपाली की दोनों बंद आंखें भी चूम ली।
दीपाली का समूचा अस्तित्व कमजोर पड़ रहा था, वह फिर सोचने लगी कि हे भगवान, यह मैं क्या करने जा रही हूं?
उसके बाद वैभव ने दीपाली की ठुड्ढी पर हाथ रखकर, दीपाली के चेहरे को ऊपर उठाया.
दीपाली की आंखें बंद थी और होंठ कंपकपा रहे थे।
इतने में वैभव के लरजते होंठ दीपाली के सुर्ख गुलाब की दो पत्तियों जैसे अधरों पर ठहर गए और जुबान दीपाली के नाज़ुक होठों का रस लेने लगी।
जब कोई मर्द किसी स्त्री के होठों को चूमता है तो उसका एक हाथ स्वतः ही उसके बूब्स पर पहुंच जाता है।
वैभव का दाहिना हाथ, दीपाली के बांए उरोज तक पहुंच गया, वैभव होंठ चूसते हुए दीपाली के बांए स्तन को सहलाने लगा।
दीपाली के शरीर का अंग अंग कामाग्नि में सुलगने लगा।
यह वो पल था जहां से अब वापस लौटना असंभव था।
दीपाली ने अब पूरी तरह बहाव के साथ बहने का निश्चय कर लिया और वैभव की काम आसक्ति के सामने समर्पण करने की ठान ली।
वैभव ने दीपाली की नाइटी की डोर खींच दी.
उसकी नाइटी, उसके स्निग्घ बदन से फिसलती हुई नीचे गिर पड़ी।
वैभव के सामने दीपाली, एक बार फिर ब्रा और पैंटी में खड़ी थी।
सुबह तो उसका यह रूप अनायास ही देखने को मिल गया था, वो भी सीमित समय के लिए … तब उसको छूना तो जैसे वर्जित था।
जब कि अभी तो दीपाली आनंद प्राप्ति के उद्देश्य से, स्वेच्छा से अपना रूप, अपनी जवानी लेकर प्रणय लीला के लिए वैभव के सामने प्रस्तुत थी।
वैभव को अपने शहद भरे अधरों का रसपान कराने के बाद दीपाली की नजर पड़ी वैभव की लुंगी पर!
उसको वैभव की लुंगी में तंबू तना हुआ साफ साफ दिखाई दे रहा था।
दीपाली की चूत में गुदगुदी सी हुई।
उसकी इच्छा तो हुई वैभव के लंड को पकड़ने की … पर वह जल्दीबाजी के पक्ष में नहीं थी; वह चुदाई के इस खेल का पूरा आनंद लेना चाहती थी।
उधर वैभव को अब दीपाली के अमृत कलश ललचा रहे थे।
वह पलंग पर बैठ गया और दीपाली को अपनी ओर खींचा.
दीपाली अब वैभव की प्रेम दीवानी बन चुकी थी, वह मंत्रमुग्ध सी उसके इशारों पर नाच रही थी।
वैभव ने दीपाली की छातियों के बीच मुंह देकर उसकी ब्रा के हुक को खोल दिया।
उसके गुलाबी रंगत वाले दूधिया कबूतर आजाद होकर वैभव के हाथों में कुलबुलाहट एवं होठों में सरसराहट पैदा करने लगे।
वैभव ने दोनों हाथों में दोनों स्तनों को थाम कर उनकी कोमलता और उनकी पुष्ट गोलाइयों का स्पर्श सुख लिया।
लेकिन…
वैभव अधिक देर तक इंतजार नहीं कर सका और दीपाली की छोटी छोटी किशमिश जैसी निप्पलों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
उसके दोनों हाथ दीपाली के दोनों स्तनों को बारी बारी से मथ रहे थे।
दीपाली की वासना भी अब पूरी तरह से भड़क चुकी थी.
इस बात का प्रमाण उसकी रिसती हुई चूत थी जो अब पूरी तरह से तर हो गई थी और उसका गीला निशान अब पैंटी पर साफ दिखाई दे रहा था।
दीपाली ने वैभव को खड़ा किया और उसकी लुंगी की गांठ खोल दी.
वैभव का 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड दीपाली के सामने मस्ती में झूम रहा था।
दीपाली ने देखा कि वैभव का लंड आदित्य के लंड जैसा ही लंबा और वैसा ही मोटा भी था।
एकमात्र आकर्षण यह था कि यह उसके पति आदित्य का नहीं, उसके पहले गैर मर्द वैभव का लंड था।
दीपाली की दहकी हुई चूत में सरसराहट बढ़ने लगी।
उसने काम विकल होकर अपने जीवन के पहले पर पुरुष के सांवले सलोने लंड को पकड़ लिया जो लोहे की गर्म छड़ जैसा कड़क हो रहा था।
वैभव का लंड पकड़ते ही दीपाली की कामेच्छा ने उसे विवश कर दिया, उसके होंठ स्वतः ही वैभव के लंड की ओर बढ़ चले।
वह घुटनों के बल होकर लंड के सुपारे को होठों में लेकर उस पर अपनी जुबान गोल गोल घुमाने लगी।
एक दो बार आधे से ज्यादा मुंह में लेकर उसे अपने मुखलार से तर कर के उठ गई।
बेकरार वैभव ने दीपाली की ओर देखा.
वह मुस्कुरा रही थी।
वैभव ने अपने मन को धीरज रखने के लिए समझाया एवं दीपाली की पैंटी को नीचे खींच दिया।
दीपाली की चूत से खुशबू का एक झोंका सा उठा।
पर नारी की चूत की खुशबू से मस्त वैभव ने उस की चिकनी चूत देख कर उससे पूछ ही लिया- दीपाली, एक बात तो बताओ, यह तो आज ही साफ की हुई लगती है?
दीपाली ने बोला- हां, आज ही शाम को साफ की थी।
इस पर वैभव ने फिर पूछा- इसका मतलब तो यह हुआ कि तुम खुद भी चुदने के लिए मानसिक रूप से तैयार थी? फिर मुझे तरसा क्यों रही थी?
दीपाली ने कहा- नहीं, मैं एकदम तैयार नहीं हो गई थी बल्कि दुविधा में थी। मेरा एक मन मुझे तुम्हारी तरफ धकेल रहा था, दूसरा मन मेरे पैरों में नैतिकता की बेड़ी डाल रहा था।
फिर दीपाली हंसकर बोली- लेकिन मुझे पता नहीं क्यों इस बात का अंदाज़ा था मेरे गुंडे … कि तुम अपने मकसद में कामयाब हुए बिना मुझे छोड़ने वाले नहीं हो इसलिए मैंने सोचा कि अपनी तरफ से भी तैयारी तो कर ही ली जाए।
वैभव दीपाली की बातों से खुश था, उसने मुस्कुराते हुए दीपाली को बाहों में भरकर अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और खुद खड़े होकर चुसवाने की लालसा में, अपना लंड फिर से दीपाली के मुंह के सामने लहराने लगा।
दीपाली उसकी मंशा को समझ गई और बोली- यह तो पहले से ही कड़क हो चुका है, एक बार इस को दुलार भी चुकी हूं। यूं भी तुम क्या इतनी जल्दी मानने वाले हो? ओरल को अगली बार के लिए पेंडिंग रखो मेरे राजा!
वैभव ने कहा- चलो ठीक है. ओरल करो मत … पर मुझे तो ओरल का मजा लेने दोगी न?
दीपाली ने कहा- क्यों नहीं, आदित्य भी हमेशा ही ठोकने के पहले ओरल जरूर करता है।
उसके बाद वैभव ने दीपाली को पलंग के किनारे पर बैठे-बैठे ही लेटा दिया जिससे उसकी चूत चाटने में आसानी रहे.
दीपाली के दोनों पैर पलंग से नीचे लटके हुए थे।
वैभव ने दीपाली के दोनों पैरों के बीच घुटनों के बल बैठकर दीपाली की तर चूत पर एक प्रगाढ़ चुम्बन दिया।
दीपाली के मुंह से सिसकारी निकल गई, आखिर उस की चूत को पहली बार किसी पराए मर्द के होठों ने छुआ था।
वैभव भी आदित्य की ही तरह चूत के नमकीन मगर नशीले रस का दीवाना था।
उसके होंठ दीपाली की चूत के रस में भीग चुके थे।
उसको शरारत सूझी, उसने ऊपर उठकर दीपाली के होठों पर अपने होंठ रख दिए।
दीपाली ने वैभव के होंठ चूस कर, स्वयं की चूत से निकले नशीले, दिव्य रस का स्वाद लिया और फिर से वैभव को नीचे की ओर धकेलने लगी जिससे कि वह उसे पूरा ओरल सुख देने के लिए, उसकी चूत में मुंह दे सके।
वैभव ने अब दीपाली की चूत को दोनों हाथों से चौड़ा कर के, उस में अपनी जुबान को प्रवेश कराया।
उसकी लपलपाती जुबान दीपाली की चूत के हर हिस्से में पहुंच रही थी।
वैभव कभी जुबान से चूत रस के चटखारे लेता और कभी चूत के होठों को अपने होठों में जकड़ कर चूसने लगता।
आखिर वैभव की मेहनत रंग लाई।
दीपाली के मुंह से बार-बार सिसकारियां निकलने लगीं, उसकी नसों में रक्त संचार तेज होने लगा।
मस्ती की हिलोरों के कारण उसके शरीर की प्रत्येक मांसपेशी में ऐंठन होने लगी।
जब वैभव ने यह पाया कि दीपाली बस, अब झड़ने ही वाली है तब उसने शरीर के काम ऊर्जा के केंद्र क्लिटोरिस को होठों से पकड़ के जुबान से चूसना शुरू कर दिया।
दीपाली ने अपने दोनों पैर वैभव के कंधों पर रखे और एकदम ऊपर उठ गई.
उसका शरीर तन के एकदम धनुषाकार हो गया, चूत जोर जोर से फड़की, उसमें से आनंद का झरना फूटा और कुछ ही पलों में शरीर शिथिल हो गया।
दीपाली अब पलंग पर पड़ी, आंखें बंद करके लंबी-लंबी सांसें ले रही थी, उसके होंठ सूख गए थे।
उसकी जिंदगी का यह एक विलक्षण अनुभव था जब एक पराए मर्द ने उसकी चूत का चूषण करके उसको इतना शानदार ऑर्गेज्म दिया था।
दीपाली ने अपने आपको धन्यवाद दिया क्योंकि यदि वह पाखंडी समाज की थोपी हुई नैतिकता के वैचारिक जंजाल से बाहर नहीं आती तो आज के इस अनमोल, अनुपम आनंद से वंचित रह जाती।
वह कई मिनट तक इस ऑर्गेज्म के हर स्पंदन का काम सुख लेती रही।
उसने आंखों ही आंखों में वैभव को इस शानदार चरम सुख के लिए धन्यवाद दिया।
दीपाली एक बार तो झड़ चुकी थी किंतु उसकी चूत की चुदाई तो अभी बाकी थी।
उसने वैभव से पानी मांगा, दो घूंट पानी पीने के बाद दीपाली फिर से लेट गई।
वैभव का लंड तो अभी भी खड़ा था, उसने दीपाली से पूछा- चुदाई शुरू करें?
तो दीपाली बोली- अभी अभी तो तुमने मेरा दम निकाला है, थोड़ा ठहरो वरना मुझे तो बिल्कुल मजा नहीं आएगा।
वैभव यह सुनकर दीपाली की बगल में लेट के उसके पूरे बदन को, सहलाते हुए कामुक बातें करने लगा।
बीच-बीच में उसके स्तनों और चूतड़ों को दबाना नहीं भूलता।
दीपाली भी अब उससे खुलकर बात कर रही थी और लगातार उसके लंड को सहलाते हुए उसके अति संवेदनशील कंचों से खेल रही थी।
जिससे उस का लंड कहीं मायूस होकर, सिकुड़ कर अपनी खोल में न चला जाए।
वैभव ने दीपाली से आदित्य के बारे में जानकारी ली कि उसे चुदाई में क्या 2 पसंद है?
इसी प्रकार दीपाली ने भी वैभव से मेनका के बारे में पता किया कि उसे किन पोजीशन में अधिक मजा आता है?
दोनों ने उनकी फेंटेसी के बारे में भी चर्चा की।
थोड़ा आराम और मस्ती भरी बातों का यह असर हुआ कि दीपाली की चूत में फिर से खलबली मचने लगी।
उसकी चूत यह संकेत देने लगी कि वह वैभव के नए लंड से चुदने को अब एकदम तैयार है।
अतः दीपाली ने वैभव से कहा- अब मुझे तपाना शुरू करो और तोड़ दो मेरी सील!
वैभव ने चौंकते हुए कहा- सील? अरे वह तो आदित्य ने कभी की तोड़ दी होगी, अब कहां बची होगी सील?
इस पर दीपाली ने मुस्कुराते हुए कहा- आदित्य ने तो मेरी प्राकृतिक सील तोड़ी है लेकिन हर औरत की एक स्वनिर्मित सील और होती है, जिसे पहला गैर मर्द तोड़ता है। मेरी वह सील आज तुम तोड़ोगे मेरे रा…जा!
वैभव के मुंह से निकला- वाह दीपाली, क्या नई थ्योरी लेकर आई हो मेरी रानी!
दीपाली की बात से वैभव का जोश बढ़ गया।
वह दीपाली के दोनों वोबों को बारी बारी से दबा दबा के चूसने लगा, उसके चूतड़ सहलाने लगा।
बीच-बीच में वह उसकी गांड के छेद को बीच वाली उंगली से कुरेद भी देता तो दीपाली के शरीर में झुर झुरी सी दौड़ जाती।
थोड़ी ही देर में दीपाली चुदने के लिए बेताब होने लगी।
जब उससे रहा नहीं गया तो वह कातर स्वर में बोली- वैभव, अब डाल भी दो ना … प्लीज!
वैभव ने पूछा- क्या?
दीपाली स्त्री सुलभ लज्जा के साथ झूठा गुस्सा करते हुए वैभव के सीने पर मुक्के बरसाती हुई बोली- गंदे आदमी!
वैभव हंस दिया, उसने फिर चुदाई के लिए तकिये के नीचे से कंडोम निकाला।
दीपाली ने जब यह देखा तो वह बोल पड़ी- यह क्या कर रहे हो?
वैभव ने कहा- सावधानी बरत रहा हूं, कहीं ठहर गया तो?
इस पर दीपाली ने मुस्कुराते हुए कहा- अभी मेरा सुरक्षित समय चल रहा है। यूं भी कंडोम मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, अगर तुमने कंडोम पहना तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। तुम्हारे और मेरे बीच में, मुझे एक धागा भी नहीं चाहिए।
वैभव तो यह सुनकर झूम उठा।
क्योंकि यह तो सच है ही कि कंडोम के कारण चुदाई के मजे में निश्चित रूप से कमी आती है।
वैभव ने कहा- दीपाली, मैं तो खुद बिना कंडोम के तुम्हें चोदना चाहता था। तुमने तो मेरे मन की बात कह दी।
फिर वैभव ने दीपाली के बांए पैर को अपने दाहिने कंधे पर रखा और उसकी प्राकृतिक मुख लार से चिकनी हुई चूत पर, अपने लंड का सुर्ख सुपारा टिका के, एक जोर का झटका दिया।
दीपाली के मुंह से एक जबरदस्त सिसकारी निकल गई।
वह बोली- इतनी बेरहमी से ठोकोगे क्या?
हालांकि उसे वैभव का जोश और उस की बेसब्री से आनंद आ रहा था।
पहली बार उसकी देह के ऊपर था नया सुदर्शन चेहरा, नई बलिष्ठ देह और उसकी चूत में था नया सलोना मजबूत लंड।
कितना सुखद अहसास था यह!
वैभव ने कुछ देर ठहर कर दो तीन लंबी लंबी सांसें ली और फिर ‘फूलों से सजी सेज पर दीपाली की गुलाब के फूल सी चूत को को रौंदना शुरू कर दिया।’
दीपाली हर धक्के का जवाब उछल उछल कर दे रही थी।
‘वह चुदाई के इस खेल में अपने वासना भरे तन, नए स्वाद को आतुर दिमाग़ और कामुक मन से शामिल थी’ और जी भर के इस खेल का मजा ले रही थी।
दीपाली सुबह से शाम तक जिस संशय में थी, जिन सवालों से घिरी हुई थी, अब उनसे पूर्णतः मुक्त थी।
‘अभी वह केवल वैभव के प्रयास और उसके दुस्साहस से प्राप्त अवसर से, आनंद उलीचना चाह रही थी।’
वैभव ने 15 – 20 मिनट तक रुक रुक कर दीपाली की भीषण चुदाई की.
जैसे ही दीपाली का चरम उठने वाला होता और वैभव रुक जाता।
पहले तो दीपाली अधिक से अधिक, रगड़ों के मजे लेने के लिए, चाह रही थी कि यह प्रक्रिया चलती रहे पर अब वह झड़ने के लिए बेताब थी।
उसने वैभव को बोला- वैभव अब रुकना मत, अब मैं झड़ना चाहती हूं। अब लगातार करो, रुकना मत, हां … हां … ऐसे ही … कस के … ज़रा कस के … ऐसे ही … ऐसे ही … हां…हां … मैं गई … गई … गई!
उसी समय वैभव ने भी दीपाली की चूत के अंदर बहुत गहरे में अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ी और उसके ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।
दोनों की सांसें उनके काबू में नहीं थीं, दोनों लंबी और गहरी सांसें ले रहे थे.
वासना की आग ठंडी होने के बाद की यह बेचैनी कुदरत ने शायद इसलिए रखी है जिससे स्खलन पश्चात के उन पलों का आनंद बहुत देर तक लिया जा सके।
दोनों पसीने में लथपथ भी हो चुके थे।
कुछ देर पहले वैभव के शरीर का जो भार, दीपाली को अपूर्व सुख पहुंचा रहा था, अब दीपाली को अखरने लगा।
उसने वैभव को अपने ऊपर से नीचे की ओर धकेला, दोनों करवट लेकर संतुष्टि भरी मुस्कान के साथ एक दूसरे को निहार रहे थे।
वैभव बोला- मजा आ गया दीपा … थैंक यू!
दीपाली बोली- जब तुमने इतने प्यार से दीपा बोला है तो मुझे थैंक यू बोलने की कतई जरूरत नहीं है मेरे बलमा!
और वैभव के होंठ चूम लिये।
दीपाली आगे बोली- आज की सारी मस्ती का श्रेय तो तुमको ही जाता है. तुमने संयोग से मिले इस अवसर का लाभ उठाते हुए न केवल पहल की. बल्कि ‘नीचे आ जाओ’ ‘नीचे आ जाओ’ बोलकर मेरी कामुकता को भी जगा दिया। मुझे इतना विवश कर दिया कि मुझे तुम्हारे नीचे आना पड़ा।
वैभव हंसते हुए बोला- मेरे द्वारा बेख्याली में बोले गए इन शब्दों का तुम पर इतना असर इसलिए हुआ क्योंकि हर इंसान किसी ना किसी तरह जीवन में नया सुख चाहता है। तुम्हारे अवचेतन में भी इस तनहाई का फायदा उठाने की हसरत जरूर रही होगी।
इस पर दीपाली ने कहा- हां यार, तुम ठीक कह रहे हो. हमने पोर्न वीडियो देखते हुए कई बार गैर मर्द और पराई औरत के बारे में बातें की थी। तब मुझे लगता था कि मैं शायद ऐसा नहीं कर पाऊंगी. लेकिन तुम्हारे व्यक्तित्व और तुम्हारी बातों ने मुझे मजबूर कर दिया। आज मैं बहुत खुश हूं कि मैं अपने आप को गलत सिद्ध कर पाई।
वह आगे बोली- मैं हम दोनों के बीच अब तक जो भी हुआ उस से बहुत खुश हूं, तुम्हारी बाहों में बहुत संतुष्ट भी अनुभव कर रही हूं और पीछे लौटने के सारे रास्ते मैं बंद कर के आई हूं।
वैभव बोला- दीपाली, हम दोनों भी पोर्न वीडियो देखते हुए इसी प्रकार की बातें करते रहते हैं लेकिन अभी तक कोई ऐसी मिली ही नहीं थी कि जो मेरे दिल में हलचल पैदा कर दे। पर जब से तुम यहां रहने आई, तभी से मैंने यह ठान लिया था कि जब भी मौका मिला, तुम्हें अपने नीचे लाकर मानूंगा। अब तो बस मेरी यही तमन्ना है कि मेरी मेनका तुम्हारे विश्वामित्र की तपस्या भी भंग कर दे! तभी हम चारों निःसंकोच, बिना किसी डर के, जीवन पूरा पूरा आनंद ले पाएंगे।
दीपाली ने कहा- हां सही बात है, मैं भी यही सोच रही थी। यह और भी अच्छी बात है कि मेनका पराए मर्द के साथ खेल खेलने के लिए राजी है। अब आदित्य को मनाना मेरी जिम्मेदारी है।
वैभव और दीपाली दोनों नंगे लिपटे चिपटे सुनहरे भविष्य के रंगीन सपने बुनने लगे।
क्योंकि दोनों जोड़े एक ही बिल्डिंग में रहते हैं तो किसी को भी पता चलने की कोई गुंजाइश भी नहीं रहेगी।
आराम से थ्रीसम, फोरसम, स्वैपिंग, स्विंगिंग, चारों का जैसा मन करेगा, वैसा खेल वे लोग खेल पाएंगे।
दो बार झड़ने के बाद दीपाली की वासना तो शांत हो चुकी थी फिर भी उसे अपने नंगे बदन पर वैभव के हाथों का प्रेमल स्पर्श सुहा रहा था।
वैभव तो ठहरा मर्द, उसका वीर्य तो निकला भी एक ही बार था. फिर उस पर कमाल यह कि उसको मिली दीपाली जैसी परी की नई चूत, उसका लंड शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी प्रबल इच्छा थी कि एक बार दीपाली लंड चूस के उस का वीर्य निकाल दे। वह तभी सुख की नींद सो पाएगा.
वह उठा, वॉशरूम जाकर वापस आया।
उसके बाद उसने दीपाली के चेहरे के सामने अपने लंड को फिर हिलाया और बोला- देख यार दीपा, यह शांत होने का नाम नहीं ले रहा।
दीपाली उसकी भावना को समझ गई कि वह चुसवाना चाहता है।
इसलिए वह शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- तो मैं क्या करूं? बर्फ लगा लो इस पर! शांत हो जाएगा।
वैभव समझ गया कि दीपाली उसको छेड़ रही है।
उसने कहा- दीपा, इसको शांत होने के लिए बर्फ की ठंडक नहीं, तेरे मुंह की गर्मी चाहिए।
दीपाली देख रही थी कि कुछ ही घंटों पहले जो संबंध औपचारिक थे, वासना के खेल के कारण अब अंतरंग हो चुके थे।
वह नहीं चाहती थी कि उसका विभु आज की रात मायूस हो कर सोए।
दीपाली पलंग के किनारे बैठी, उसने मुस्कुरा के विभु के आधे तने हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा और उसके सुपारे पर निकल आए प्रीकम को चाटा; उसके बाद में गोल सुपारे को चारों ओर से जुबान से सहलाया, एक दो बार मुंह के अंदर बाहर किया।
इतना करने के बाद उसने वैभव को चेतावनी दी- खबरदार जो वीर्य मेरे मुंह में निकाला।
उसके बाद दीपाली ने लंड की चमड़ी को आगे पीछे किया।
लंड दीपाली की मुख लार से चिकना हो गया था।
दीपाली के होंठ चूत की तरह बन गए.
अब वैभव की कमर हरकत करने लगी।
वह आगे पीछे होकर लंड को मुंह के अंदर अधिक से अधिक घुसेड़ने की कोशिश करने लगा।
कभी-कभी तो उसका लंड दीपाली के हलक तक जा पहुंचता।
दीपाली समझ गई कि वैभव मानेगा नहीं! यदि उसने चेहरा पकड़ के हलक तक लंड घुसेड़ के वीर्य स्खलित कर दिया तो वो कैसे रोक पाएगी?
इंडियन भाबी Xxx स्टोरी के तीसरे और अंतिम भाग ‘मेनका की तपस्या भंग हुई’ में पढ़िए कि दीपाली, वैभव को कैसे संतुष्ट करती है और घर वापसी पर मेनका की कौन सी पुरानी ख्वाहिश पूरी होती है और उसके साथ क्या कुछ अप्रत्याशित घटता है
आप इंडियन भाबी Xxx स्टोरी पर अपनी प्रतिक्रिया, अपनी सीमाओं में रहते हुए प्रेषित करें।
मैं जवाब अवश्य दूंगी।
मेरी मेल आईडी है
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