शादीशुदा पड़ोसन की मस्त चुदाई- 1

(Hot Bhabhi Boob Story)

मयंक भवसर 2021-02-22 Comments

हॉट भाभी बूब स्टोरी में पढ़ें कि मेरी पड़ोसन भाभी अपने पति से दुखी थी. मैंने उससे दोस्ती करके उसके नर्म गर्म बदन का मजा लिया. आप कहानी पढ़ कर मजा लें.

दोस्तो, आशा करता हूँ कि आप लोगों को मेरे पुराने अनुभवों की सेक्स कहानियां पसंद आई होंगी.
मेरी पिछली कहानी थी: देवर भाभी एक दूसरे के काम आये

मुझे अपनी फेसबुक आइडी पर भी पाठकों की काफ़ी रिक्वेस्ट भी मिलीं और टेलीग्राम पर भी लोगों के कमेंट्स पढ़ कर अच्छा लगा.
सभी को मेरा धन्यवाद.

मैंने वो पुराना फ्लैट छोड़ दिया था और अब मैं एक नयी जगह पर शिफ़्ट हो गया हूँ.
मैं अपनी पुरानी सैटिंग निशा को बहुत मिस करता हूँ और वो भी मुझे मिस करती है.
हालांकि अभी भी वो कभी कभी मुझसे चुदने के लिए आ जाती है.

दोस्तो ये हॉट भाभी बूब स्टोरी श्वेता की है, जो मेरे पड़ोस मैं रहने आयी है. उसके परिवार मैं उसका पति और एक बेटा है.
उस परिवार से मेरा परिचय हुआ, तो जानकारी हुई कि श्वेता का पति किसी बैंक मैं मैनेजर है और बेटा स्कूल में पढ़ता है.

जब भी मैं ऑफिस के लिए निकलता था, उसके पति से हाय हैलो हो जाती थी.

मेरे पड़ोस में श्वेता की फैमिली के साथ एक वकील की फैमिली भी है. हालांकि वकील साहब से मेरी ज्यादा बात नहीं होती थी.
इस नयी जगह पर मैं अकेला ही हूँ इसलिए मुठ मारकर अपना काम चलाता हूँ.

मैं आपको श्वेता के बारे में बता दूं कि वो 35 साल की दुबली पतली महिला है. उसकी हाइट यही कोई 5 फुट 5 इंच की होगी और 34-30-36 का फिगर होगा. भाभी के बूब बहुत सुंदर थे एकदम गोल और उठे हुए.

एक दिन की बात है, मैं ऑफिस के लिए अपने फ्लैट के हॉल में तैयार हो रहा था तो मुझे कुछ आवाज़ आने लगी.
ये आवाज कुछ तेज थी और ऐसा लग रहा अता जैसे किसी कपल में बहस हो रही हो.

मेरे हॉल की खिड़की और श्वेता के फ्लैट के हॉल की खिड़की पास पास ही हैं … जिसमें से मैं उसे अक्सर देखा करता था.
मुझे आवाज़ उसी के फ्लैट से आ रही थी.

मैं तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया.

शाम को घर पहुंचा, तो मैंने देखा कि श्वेता पास में शीतल (वकील की बीवी) से बात कर रही थी और परेशान लग रही थी.

मैं अपने फ्लैट में अन्दर चला गया. मैंने दरवाज़ा थोड़ा सा बंद कर दिया था, जिससे कि मेरे घर का अन्दर का कुछ न दिखे.

मैंने अपना बैग रखा और कपड़े बदल कर चुपचाप उन दोनों की बातें सुनने लगा.

वो दोनों सुबह की बहस पर बात कर रही थीं.

श्वेता बोली- मेरे पति ऐसे ही हैं, छोटी छोटी बात पर ग़ुस्सा करते हैं.
फिर शीतल उसे समझाने लगी- कोई बात नहीं … सब ठीक हो जाएग, सब भूल जाओ. जब वो वापस आएं, तो उससे प्यार से बात करना.

कुछ देर बाद उन दोनों की बातें बंद हो गईं और वो दोनों अपने अपने फ्लैट में चली गईं.

मैं अपने फ्लैट के हॉल में बैठकर कुछ खा रहा था और अपने फोन में मैसेज चैक कर रहा था.

तभी मुझे फिर से कुछ बहस होती सुनाई दी.
मैंने सुनने की कोशिश की, मगर मैं ठीक से तो नहीं सुन पाया … पर इतना जरूर समझ गया था कि श्वेता की उसके पति से कुछ गड़बड़ चल रही है.

कुछ देर बाद सब शांत हो गया और मैं भी सो गया.

सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकला, तो मैंने देखा कि श्वेता के फ्लैट का दरवाज़ा बंद था.
मुझे लगा कि शायद उसका पति सुबह जल्दी ही निकल गया है.

मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैं भी अपने ऑफिस चला गया.

शाम को जब मैं वापस आया, तो वही दोनों महिलाओं आपस में बात कर रही थीं.

शायद उनके बीच में वही सब कल सुबह वाली बात चल रही थी.
श्वेता कुछ उदास लग रही थी.

मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गया.

उस रात को मैंने एक मस्त सेक्स मूवी देखी और मुठ मारकर सो गया.

अगले दिन शनिवार था, सो ऑफिस का टेंशन नहीं था. मैं सुबह देर से उठा और अपने हॉल की खिड़की में ऐसे ही खड़ा था.

आदतन श्वेता की खिड़की में झांका तो देखा कि श्वेता कुछ काम कर रही थी, लेकिन वो कुछ उदास लग रही थी.

मुझे उसका पति भी नहीं दिख रहा था.

थोड़ी देर में शीतल ने बेल बजायी, श्वेता ने दरवाज़ा खोला और वो दोनों बैठकर बातें करने लगीं.
मैं खिड़की से थोड़ा अलग होकर उन दोनों की बातें सुनने लगा.

वो दोनों श्वेता और उसके पति के बीच हुई बहस के बारे में बात करी थीं.

थोड़ी देर बाद शीतल चली गयी और मैं भी नहा कर नाश्ता करने लगा.

नाश्ते के बाद मैं हाल की खिड़की के नजदीक खड़े होकर फ़ोन पर बात करने लगा.

तभी श्वेता भी उसकी खिड़की में आ गयी. मैं फ़ोन पर बात करते करते उसको देखने लगा.
एक बार तो उसने भी मेरी तरफ देखा … लेकिन उसे कोई रिऐक्शन नहीं दिया.
वो अन्दर चली गयी … मैं अपने फ़ोन पर बात करके अपने काम में लग गया.

उसके बाद कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, पर श्वेता से मेरी कोई बात नहीं हो पायी.

फिर एक रविवार के दिन उसके पति अमितेश ने मुझसे बात की. मेरे बारे में पूछा और अपने बारे में बताया.
उसने मेरा फ़ोन नम्बर भी लिया और उस दिन मैंने चाय भी उनके यहां ही पी.

श्वेता चाय देने आई तो उसने मुझसे ज्यादा कुछ बात नहीं की … बस हाय बोला और कुछ नहीं.
वो चाय देकर चली गयी और अपने काम में लग गयी.

मैंने भी कुछ देर तक अमितेश से बात की और अपने फ्लैट पर आ गया.

फिर कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा. अब अमितेश से बात होने लगी और थोड़ी बहुत श्वेता से भी.
धीरे धीरे श्वेता से और भी बातें होने लगीं, साधारण सी कुछ हंसी मज़ाक़ भी चलने लगा.

मैंने महसूस किया कि ये देखकर शीतल को कुछ जलन सी होने लगी थी. खैर मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.
अब मैं अपने हॉल की खिड़की से श्वेता को देख लेता था और उससे कभी कभी बात भी हो जाती थी.

इसी बीच अमितेश और श्वेता के बीच के झगड़े के कारण उन्होंने अपने बेटे को उसके दादा-दादी के पास आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया था.

एक दिन मैंने ऑफिस से छुट्टी ली हुई थी, मैं घर पर ही था. दोपहर का टाइम था … मैं अपनी खिड़की में खड़ा था.

मैंने देखा कि श्वेता अभी-अभी नहा कर निकली थी और उसके बाल भी गीले थे. अपने बाल सुखाने के लिए वो खिड़की में आ गयी.

उसने मुझे देख कर स्माइल दी, तो मैंने भी स्माइल दे दी.

इस वक्त उसने टी-शर्ट और लोवर पहना हुआ था. वो नहाकर आयी थी … तो उसके कपड़े ठीक से नहीं थे. उसके कंधे पर ब्रा की काली पट्टी चमक रही थी.

मैं उसे ही देख रहा था. उसकी इस टी-शर्ट का गला भी थोड़ा बड़ा था, जिससे भाभी के बूब के बीच की लाइन थोड़ी ज्यादा ही दिख रही थी.
इस वक्त उसके फूले हुए स्तन मुझे बेहद उत्तेजित कर रहे थे.

कुछ देर तक श्वेता की जवानी को निहारने के बाद मैं वहां से हट गया.
मेरे लंड में कुछ कुछ हलचल होने लगी थी.

मैं अभी भी उसकी वो ब्रेजियर की काली पट्टी और दूधिया बूब की लाइन को ही याद करते हुए गर्मा रहा था.

तभी मेरे फ्लैट की घंटी बजी, मैंने देखा तो श्वेता ही थी.

उसने पूछा- आज आप ऑफिस नहीं गए?
मैंने बोला- हां ऐसे ही … आज जाने का मन नहीं था.

श्वेता- अकेले हो तो खाने का क्या करोगे?
मैं बोला- मैं बना लेता हूँ, खाना बनाना आता है मुझे.

वो बोली- शादी नहीं की?
मैं बोला- हां नहीं की.

अब उसे मैं वो सब नहीं बताना चाहता था कि शादी क्यों नहीं की. मैं उसे बैठने का कहा तो वो सोफे पर बैठ गई.

उसके बाद हम दोनों ऐसे ही बातें करने लगे और फिर अपने अपने फ्लैट में चले गए.

उस दिन के बाद से हमारी काफ़ी बातें होने लगीं. हम दोनों थोड़ा और पास आ गए थे.

एक दिन हम दोनों ऐसे ही बात कर रहे थे, तो श्वेता बोली- वैसे तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड तो होगी!
मैं- मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है. वैसे बुरा नहीं मानो तो एक बात कहूँ.

श्वेता- हां कहो न!
मैं- आप ही मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ ना!

श्वेता- क्या बोल रहे हो, पता है ना कि मैं शादीशुदा हूँ … और अब ऐसा मज़ाक़ भी किया … तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.
मैं- सॉरी … अब ऐसा नहीं बोलूंगा.

श्वेता कुछ ग़ुस्से में अपने फ्लैट के अन्दर चली गयी.
मुझे तो डर ही लग रहा था कि श्वेता अपने पति या शीतल को ना बात दे.

ऐसे ही कुछ दिन और निकल गए, मैंने अमितेश और श्वेता से कोई ज्यादा बात नहीं की.
मैंने अब जब भी श्वेता को देखा, तो वो हमेशा मुझे नज़रंदाज़ कर देती थी.
मैं भी कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता था.

फिर ये शनिवार सुबह की बात है. मैं हर बार की तरह अपनी खिड़की में खड़ा था, तभी मुझे कुछ झगड़ने की आवाज़ें आने लगीं.
शायद अमितेश और श्वेता फिर से लड़ रहे थे.

कुछ देर बाद मैंने देखा कि अमितेश ग़ुस्से में कहीं बाहर चला गया.
मैंने खिड़की से देखा कि श्वेता उदास बैठी है और उसकी आंखों में आंसू थे.

पहले मैंने सोचा कि बात करूं या ना करूं … कहीं उस दिन जैसे नाराज़ हो गयी तो?

संयोग से उस दिन शीतल भी घर पर नहीं थी, तो फिर मैंने सोचा कि जो होगा सो देखा जाएगा.

मैं उसके फ्लैट पर चला गया.
मुझे देख कर वो कुछ सोचने लगी. फिर बोली- अन्दर आओ … रुक क्यों गए!

मैं अन्दर आ गया और मैंने हिम्मत करके पूछा- क्या हुआ उदास क्यों हो?
वो बोली- कुछ नहीं, बस ऐसे ही!

मैं बोला- कुछ तो बात है … मैंने सुना था सुबह आप दोनों किसी बात पर बहस कर रहे थे.

मेरी इस बात पर वो थोड़ी देर तो कुछ नहीं बोली, फिर एकदम से रोने लगी.

मैंने पूछा- क्या हुआ कुछ तो बोलो!
उसने बोला- अमितेश बात बात पर नाराज़ हो जाते हैं … और बहुत कुछ बोल देते हैं.

फिर उसने सुबह हुई बहस के बारे में भी बताया.

सब सुनने के बाद मैं उससे बोला- जाने दो, जितना ज़रूरी हो उतनी बात करो. थोड़ा तुम भी बताओ कि तुम्हें भी बुरा लगता है.

उसका मूड ठीक करने के लिए मैं इधर उधर की बातें करने लगा और उसे कुछ हंसाने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद वो नॉर्मल हुई और हंसने लगी. उसका मूड ठीक होते ही मैं वापस अपने फ्लैट पर आ गया.

उस दिन के बाद से श्वेता और मैं बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे.
अब हम फ़ोन पर भी मैसेज करके बात करने लगे थे. इससे हम दोनों और क़रीब आ गए थे.

एक दिन की बात है, श्वेता की खिड़की में कुछ कपड़े सूख रहे थे. मैं अपनी खिड़की में खड़ा था.

तभी श्वेता ने मुझे आवाज़ लगायी- मयंक.
कपड़े टंगे होने की वजह से हम एक दूसरे को देख नहीं पा रहे थे.
श्वेता अपनी खिड़की में झुकी और टंगे हुए कपड़ों के नीचे से इशारा किया.

मैंने भी थोड़ा झुक कर बोला- क्या हुआ?

श्वेता झुकी हुई थी, तो उसके आधे बूब उसके टॉप में से दिख रहे थे.

मैं बात भी कर रहा था और भाभी बूब भी देख रहा था.

वो बोली- क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ ख़ास नहीं, कुछ काम है क्या?

वो बोली- कुछ नहीं, अमितेश आज भी ऑफिस गए हैं … और मैं अकेली बोर हो रही हूँ. आ जाओ, चाय पी लेते हैं.
मैंने कहा- ठीक है आता हूँ.

ये सब बात करने के दौरान मेरा पूरा ध्यान भाभी बूब पर ही था.
शायद उसने भी ये समझ लिया था कि मैं क्या देख रहा हूँ.

खैर … मैं उसके घर चाय के लिए पहुंचा और हम बात करने लगे.

दोस्तो, मुझे श्वेता के मिजाज को समझने में कुछ समय अवश्य लग रहा था. मगर ये आप भी समझते हैं कि ऐसे किसी को चुदाई के लिए नहीं बोला जा सकता है.

आपको हॉट भाभी बूब स्टोरी का पूरा रस मिलेगा, ये मेरा वायदा है. आप बस मुझे ईमेल करना न भूलें.
आपका मयंक भवसर
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हॉट भाभी बूब स्टोरी का अगला भाग: शादीशुदा पड़ोसन की मस्त चुदाई- 2

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