पर-पुरुष सम्मोहन
(Par Purush Sammohan)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left पर-पुरुष आकर्षण
-
keyboard_arrow_right पर पुरुष समर्पण-1
-
View all stories in series
मेरे मित्र ने जितना मुझे समझाया था, वो मैंने सफ़लतापूर्वक कार्यान्वित कर लिया था। अब मुझे प्रतीक्षा थी अपने मित्र से आगे के निर्देशों की ! मुझे पता नहीं था कि वे कब ऑनलाइन मिलेंगे मुझे तो मैं खुद ऑनलाइन होकर प्रतीक्षा में बैठ गई।
आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और मैंने अपने मित्र के ऑनलाइन होते ही उन्हें अपनी सफ़लता की सूचना दी और अगले कदम के लिय पूछा तो उन्होंने मुझे डाँटते गुए से कहा- इतनी अधीर मत होओ, अभी कुछ दिन रुको ! तब तुम्हें अगला कदम बताऊँगा।
मेरे ऊपर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया, मैं तो मायूस सी हो कर रह गई।
अगले दिन सुबह साढ़े सात बजे मेरे फ़ोन पर अनजान नम्बर से ‘गुड मॉर्निंग’ का संदेश था। पहले तो मैं समझ नहीं पाई कि किसका संदेश है पर जल्दी ही मैं समझ गई कि यह उसी का संदेश है। तब मैंने सोचा कि इस नम्बर को सेव कर लेती हूँ, तो ध्यान आया कि मैंने तो उसका नाम भी नहीं पूछा। मैं अपनी मूर्खता पर खुद खिन्न हो गई।
उसका नाम जानने के लिये मैंने वापिसी संदेश भेजा- गुड मॉर्निंग बट आई डोन्ट नो यू !
एकदम उसका संदेश आया- दिस इज़ शचित, यूअर नेबर !
मेरे मित्र ने मुझे कुछ दिन रुकने के लिये कहा था पर मेरी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। अगले तीन दिन मैंने अपने मित्र के नाक में दम कर दिया कि मुझे अगला कदम बताइए !
लेकिन वे मुझे टालते रहे।
आखिर एक सप्ताह बाद मेरी जिद पर उन्होंने मुझे अगला कदम बताया- अब तुम्हें बीमारी का बहाना करके उसे बुलाना है। लेकिन तभी बुलाना जब श्रेया अपने घर गई हुई हो, यानि तुम्हारी देखभाल के लिए कोई ना हो !
फ़िर उन्होंने मुझे विस्तार से बताया कि जिस दिन तुमने उसे बुलाना हो, उस दिन घर की सफ़ाई मत करना, घर को, रसोई को अव्यवस्थित रहने देना, खुद को भी मत संवारना, रात वाले गाउन को ही पहन कर रखना, उसके नीचे ब्रा पैन्टी आदि भी मत पहनना, बिस्तर मे लेटी रहना । उसके बाद दोपहर बाद उसे फ़ोन करके कहना कि तुम्हें कल रात से बुखार है, घर में कोई नहीं, तुम्हें उसकी मदद की जरूरत है। इसी तरह उन्होंने मुझे आगे की सारी रणनीति समझा दी।
मैंने सब तैयारी अपने मित्र के निर्देशानुसार करके शचित को दोपहर ढाई बजे फ़ोन किया लेकिन उसका फ़ोन व्यस्त आ रहा था।
फ़िर लगभग दस मिनट बाद उसका ही फ़ोन आया तो कुछ पल रुक कर मैंने फ़ोन उठाया, मरियल सी आवाज में बोली- हेलो, कौन?
उसने कहा- मैं शचित, आपका पड़ोसी ! आपने फ़ोन किया था?
मैंने कहा- हाँ, कल रात से मेरी तबीयत खराब है, क्या तुम मुझे कोई दवाई ला दोगे?
उसने कहा- मैं अभी आता हूँ।
कह कर फ़ोन बन्द कर दिया।
दो तीन मिनट बाद ही घर के मुख्यद्वार की घण्टी बजी लेकिन मैं अस्त व्यस्त होकर लेटी रही, मैंने गाउन के नीचे कुछ नहीं पहना था, गाऊन के सामने के तीन बटन खोल लिए थे, उस पर कम्बल औढ़ कर लेटी रही।
तभी उसका फ़ोन आया- मैं दरवाजे पर घण्टी बजा रहा हूँ, दरवाजा खोलिये।
मैंने कहा- दरवाजा खुला ही होगा, धक्का मार कर खोल लो !
वो दरवाजा खोल कर अन्दर आया मैं लेटी रही। वो फ़िर कमरे के दरवाजे पर रुक गया, आवाज लगाई- मैडम !
मैं फ़िर मरी सी आवाज में बोली- आ आओ !
वो अन्दर आया, मैं वहीं लेटी थी, वो मेरे बैडरूम तक पहुँच गया- क्या हुआ मैडम?
मैंने कहा- कल शाम से तेज बुखार है, कोई गोली ला दोगे क्या?
वो मेरे पास तक आया, वो हिचक रहा था तो मैंने कम्बल से बाहर हाथ निकाल कर उसे कहा- छूकर देखो !
उसने घबराते हुए मेरी कलाई को छुआ, फ़िर माथे पर हाथ छुआ कर देखा, डेढ़ दो घण्टे से बिस्तर में लेटे रहने से मेरा बदन तप चुका था।
वो खड़े पैर बाहर गया और दस मिनट बाद आया, मैं उसके आने की आहट से जानबूझ कर सोने का नाटक करने लगी, वो आया तो उसने मुझे सोये हुए पाया।
उसने फ़िर मुझे पुकारा, मेरी तरफ़ से कोई उत्तर ना पाकर उसने मेरा कम्बल थोड़ा सा हटाया, मेरे कन्धे को छू कर मुझे हिलाया तो जैसे मैं बेहोशी से जागी।
उसने कहा- मैडम, दवाई ले लो !
मैंने कहा- पानी?
मैंने रसोई की तरफ़ इशारा कर दिया।
वो जाकर एक गिलास में पानी लाया, मैंने उठने में असमर्थता दिखाई तो उसने मुझे सहारा देकर उठाया, गोली मेरे हाथ में दी, योजना के अनुसार मुझे गोली को उसकी नजर से छुपा कर गिरा देनी थी पर वो मुझ पर नजर टिकाए था, मुझे गोली खानी पड़ी।
मैंने उसे बैठने को कहा और बोली- मैं कॉफ़ी बनाती हूँ।
वो बोला- नहीं नहीं, आप आराम कीजिए।
मैंने कहा- मुझे अच्छा नहीं लग रहा, उस दिन भी तुम बाहर से ही लौट गए थे, आज भी ऐसे ही।
वो बोला- कोई बात नहीं ! अगर आप कॉफ़ी पीना चाहें तो मैं बना लाता हूँ।
उसने मेरे मन की बात कह दी।
मैंने कहा- चलो, तुम ही बना लाओ, रसोई में सारा सामान मिल जाएगा।
वो रसोई में चला गया और मेरी योजना सफ़ल हो रही थी।
उसके जाते ही मैं आराम से लेट कर सोने का नाटक करने लगी।
आठ दस मिनट के बाद शायद वो दो कप कॉफ़ी लाया लेकिन मैं तो बखूबी गहरी नींद में सोने का नाटक कर रही थी तो उसके कई बार पुकारने पर भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
मुझे सोया जान कर उसने कॉफ़ी का एक कप साइड टेबल पर रखा और खुद पास पड़ी कुर्सी पर बैठ कर कॉफ़ी पीने लगा। दो-तीन सिप के बाद उसने मुझे दोबारा पुकारा मगर मैं तो सो रही थी।
तभी मैंने इस तरह से करवट ली कि मेरे वक्ष से कम्बल हट गया और मेरे अधनंगे उरोज दिखाई देने लगे।
वह कुर्सी से उठा, मेरे पास आया, मेरे कन्धे को पहले एक उंगली से, फ़िर पूरे हाथ से पकड़ कर हिलाया तो मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। उसने मेरे कबल ऊपर सरका कर मेरे उभारों को ढक दिया।
मैंने तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की। वो मुझे देखता रहा और तब उसने पूरी हथेली से मेरे माथे को छुआ, फ़िर वासना के वशीभूत हो उसने मेरे एक गाल को छुआ, फ़िर वो अपना हाथ मेरे कंधे पर लाकर सहलाने लगा। मेरी तरफ़ से निश्चिन्त होकर कि मैं सो रही हूँ, वो अपना एक हाथ कम्बल के अन्दर ले गया और मेरे गले और वक्ष के बीच में छुआ, फ़िर अपना हाथ सरका कर मेरे एक उभार तक लाने की कोशिश में उसक्के हाथ के साथ मेरा गाउन भी सरक गया और हाथ सीधे मेरे नग्न स्तन पर आ गया।
उसने चौंक कर घबरा कर अपना हाथ कम्बल से बाहर निकाला और शायद मेरे चेहरे को ध्यान से देखने लगा।
उसे लगा होगा कि मैं सो रही हूँ तो उसने पास पड़ी शॉल को उठा कर मेरे चेहरे पर बड़े प्यार से औढ़ाया और फ़िर धीरे से मेरे वक्ष पर से कम्बल को उठाया।
मेरे नग्न आमों को देख कर वो अवश्य ही चकित रह गया होगा क्योंकि मेरे गाउन के ऊपर के पाँच बटन खुले हुए थे और कम्बल के अन्दर गाउन अस्त-व्यस्त था। उसे मेरी दोनो चूचियाँ पूर्ण नग्नावस्था में दिख रही होंगी जो मेरी उत्तेजना के कारण कुछ सख्त हो चुकी थी।
उसने एक बार मेरे चेहरे से शॉल हटा कर इत्मिनान किया कि मैं सो रही हूँ तो उसने मेरे वक्ष उभारों पर हाथ फ़िराना शुरु किया। धीरे धीरे उसके हाथों की सख्ती बढ़ी और अब वो आराम से मेरी चूचियाँ सहला रहा था।
तभी मेरे वक्ष से उसके हाथों का स्पर्श गायब हो गया पर आधे मिनट बाद उसकी जीभ ने मेरे एक चुचूक को स्पर्श किया। उसने पहले मेरे एक चुचूक पर, फ़िर दूसरे जीभ फ़िरा कर उन्हें गीला कर दिया।
मेरी तरफ़ से कोई विरोध ना पाकर उसने एक बार पुनः मेरे चेहरे से शॉल हटा कर इत्मिनान किया कि मैं सो रही हूँ। तब वो बड़े प्यार से मेरे चुचूक चूसने लगा। दो तीन मिनट चूसने के बाद वो हटा और मेरे कम्बल को मेरी जांघों तक हटा दिया।
मेरे गाउन के नीचे के तीन बटन बन्द थे, उसने एक एक करके तीनों बटनों को खोला। नीचे मैंने पैन्टी नहीं पहनी थी तो उसे मेरे योनि प्रदेश के साक्षात दर्शन हो गये।
अपने मित्र की सलाह पर श्रेया की मदद से मैंने 2-3 दिन पहले ही अपनी झाँटें संवारी थी, एक ऑनलाइन शॉपिंग साइट से मैंने गुलाबी रंग का एक ट्रिम्मर मंगाया था इस काम के लिए।
मेरी योनि के दर्शन के बाद उसने एक बार फ़िर से मेरे चेहरे से शॉल हटा कर तसल्ली की कि मैं सो रही हूँ, तब उसने अपनी एक उंगली पहले मेरी झांटों में, फ़िर मेरी चूत की दरार में फ़िराई। मेरी जांघें जुड़ी होने के कारन उसकी उंगली मेरी चूत में नहीं जा पा रही थी तो उसने कम्बल के ऊपर से ही मेरा एक पैर पकड़ कर सरकाया तो मेरी जांघें उंगली जाने लायक खुल गई और उसने मेरी योनि में उंगली प्रविष्ट करा ही दी !
शायद वो काफ़ी डर रहा होगा इसलिए उसने दो तीन बार उंगली एक इन्च तक ही अन्दर बाहर की होगी।
फ़िर एक मिनट बाद मुझे मेरे बाथरूम में कुछ आहट महसूस हुई, मुझे लगा कि वो बाथरूम में गया होगा। पर मेरे चेहरे पर शॉल ढकी थी तो मैं कुछ देख नहीं पाई। तीन चार मिनट बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरे बदन पर ऊपर तक कम्बल औढ़ा दिया गया है। उसने एक बार फ़िर मेरे दोनों चुचूक बड़े ध्यान से चूसे कि मैं जाग ना जाऊँ।
फ़िर वो मुझे अच्छे से कम्बल औढ़ा कर, मेरे चेहरे से शॉल हटा कर शायद चला गया।
काफ़ी देर तक कोई हरकत ना पाकर मैंने आँखें खोली, इधर उधर देखा, कोई नहीं था।
पास ही छोटे से टेबल पर दो कप रखे थे, एक आधा और एक पूरा भरा हुआ था कॉफ़ी से !
वो जा चुका था।
मैं उठी, अपने बदन का मुआयना किया कमरे रसोई में देखा फ़िर बाथरूम में गई, मैंने ध्यान से देखा तो बाथरूम के फ़र्श पर कुछ था, मैं समझ गई कि उसने यहाँ आकर अपने हाथ से अपन माल निकाला होगा।
मैंने झुक कर उंगली से उसका माल उठाया, उसे सूंघा, मन तो हो रहा था कि चख कर देखूँ, पर बाथरूम में फ़र्श पर था तो अस्वास्थ्यकर होने का सोच कर नहीं चखा !
फ़िर देर रात मैंने इस सारे घटनाक्रम की जानकारी अपने मित्र को दी और आगे के लिये सलाह मांगी।
मेरे मित्र ने इतना ही कहा- अब कुछ दिन इन्तजार करो और देखो !
कहानी जारी रहेगी !
What did you think of this story??
Comments