पर-पुरुष आकर्षण

(Par Purush Aakarshan)

मधुरेखा 2013-03-24 Comments

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दोस्तो, आपने मेरी पिछली कहानियों में मेरे कई सेक्सी कारनामे पढ़े !

वो सब मैंने अपने एक पुरुष मित्र से जिद कर कर के पूछे थे, मेरे वो मित्र विदेश में हैं तो वे दूर रह कर ही मेरी जिद पर मुझे निर्देश दे रहे थे।

पर अब मैं इससे आगे जाना चाहती थी जिसमें वास्तविक चुदाई का भी कुछ मज़ा हो !

लेकिन मेरे मित्र ने हमेशा मुझसे यही कहा कि सेक्स का मज़ा लेने के लिए अपने पति से सम्बंध सुधारो, गैर मर्द से सेक्स उचित नहीं !

लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे पति को अब मुझसे में वो बात नहीं लगती, उन्हें तो ताजा माल चाहिए तो मेरी जिद पर उन्होंने मुझे राह दिखानी शुरू की।

सबसे पहले उन्होंने पूछा- तुम्हारा कोई देवर है?

मैंने कहा- नहीं !

फिर उन्होंने पूछा- तुम्हारा कोई जीजा है?

मैंने कहा- नहीं !

फिर उन्होंने फिर पूछा- कोई पड़ोसी या दोस्त होगा?

तो मैंने उन्हें बताया कि मेरे पति को पसन्द नहीं कि मैं किसी से बात भी करूँ इसलिए कोई ऐसा नहीं है। हाँ, मेरे घर के पास सामने कुछ दूर एक युवक रहता है वो मुझे देखता रहता है, जब भी मैं अपनी बालकॉनी, छत पर होती हूँ तो मैं उसे अपनी ओर देखते हुए ही पाती हूँ।

उन्होंने पूछा- तुम्हें वो अच्छा लगता है?

मैंने बताया कि मैंने उसे समीप से कभी नहीं देखा पर शायद वो मुझे चाहता है।

तो उन्होंने पूछा- तुम उस युवक को अपने आप को समर्पित करना चाहोगी?

मैंने कहा- शायद हाँ !

तो उन्होंने कहा- आज जब वो तुम्हें देख रहा हो तो उसे हाथ के इशारे से अपने पास बुलाना !

मैंने कहा- वो आएगा?

इस पर मेरे मित्र ने कहा- अगर वो तुम्हें चाहता है तो जरूर आएगा।

“अगर वो आया तो मैं क्या करूँगी?”

“उससे कहना कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मुझे एक सामान बाज़ार से ला दोगे?”

“फ़िर?”

“पहले ही एक पर्ची पर ‘विस्पर’ लिख कर रख लेना, उसे वो पर्ची और साथ में पैसे देकर कहना कि ‘ये ला दो !”

“लेकिन मेरा मासिक तो अभी कल ही खत्म हुआ है?”

इस पर मेरे मित्र ने मेरी खिल्ली उड़ाते हुए मुझे कहा- तुम भी ना ! अरे यह बात तुम जनाती हो कि तुम्हारा मासिक नहीं चल रहा, वो थोड़े ही जानता है?

मुझे अपनी बेवकूफ़ी पर खुद ही हंसी आ गई, पर मैंने पूछा- इस सब से क्या होगा?

“इससे यह होगा कि तुम उसे पास से देख लोगी, उससे दो बातें भी कर लोगी, अगर तुम्हें अच्छा लगे तो ठीक नहीं, तो किस्सा खत्म !”

“अगर वो मुझे अच्छा लगा तो?”

“तो तुम उसका धन्यवाद करके उसे अन्दर बुला कर चाय कॉफ़ी के लिए पूछना और पूछना कि उसे बुरा तो नहीं लगा इस तरह से किसी काम को कहना? वो तुम्हें यही कहेगा कि नहीं, कोई बात नहीं, आप जब चाहें मुझे किसी भी काम के लिए कह सकती हैं। तब तुम उससे उसका फ़ोन नम्बर ले लेना।”

“फ़िर?”

“बस फ़िर कुछ नहीं करना है।”

“लेकिन अगर यह सब ऐसे ही हो गया तो भी हुआ तो कुछ भी नहीं !”

“अरे तुम भी ना ! बीज बोया नहीं कि फ़ल खाने की सोच रही हो ! अगर यह योजना सफ़ल होती है तो भी इसके कई हफ़्ते बल्कि 2 महीने भी लग सकते हैं।”

“इतना लम्बा समय?”

“अगर तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा व नारी सुलभ लज्जा बनाये रखनी है तो इतना समय देना ही पड़ेगा, नहीं तो पहली बार में उसे बुला कर उसके सामने नंगी होकर लेट जाना और कह देना- मुझे चोदो !”

मेरे मन में अपने मित्र के प्रति सम्मानजनक भाव उभरे, मैंने उन्हें धन्यवाद किया कि उन्हें मेरी प्रतिष्ठा का कितना ख्याल है।

मैंने पूछा- इसके बाद?

तो उन्होंने कहा- पहले इतना करो, आगे क्या करना है वो बाद में बताऊँगा।

शाम के चार बज रहे थे, श्रेया छः बजे तक कॉलेज से लौटती है तो मैंने सोचा कि अगर वो मुझे दिख गया तो इस कार्य को अभी अन्जाम देती हूं, मैं बाहर निकली तो वो अपनी बालकॉनी से मेरे घर की तरफ़ ही देख रहा था, मैंने हिम्मत करके उसे हाथ से बुलाने का इशारा कर दिया।

वो एक पल को ठिठका और साथ ही चल पड़ा।

मैं तुरन्त अन्दर गई और एक कागज पर ‘विस्पर’ लिखा, सौ का नोट निकाल लिया और बाहर आ गई।

3-4 मिनट में वो आ गया।

मैंने उसे कहा- मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मुझे एक सामान मंगाना है, तुम ला दोगे क्या?

उसने कहा- हाँ हाँ, बताइये।

मैंने उसे वो पर्ची और पैसे दे दिये। उसने पर्ची को पढ़ा और उसे फ़ाड़ कर फ़ेंकते हुए कहा- अभी लेकर आता हूँ।

इतना कह कर वो चला गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं भी घर के अन्दर चली गई और सोचने लगी- क्या बांका जवान है ! लम्बा गठीला बदन !

मुझे वो अच्छा लगा।

दस मिनट बाद ही मुख्य द्वार पर घण्टी बजी, मैं समझ गई कि वो ही होगा।

मैं एकदम उठी और धीरे धीरे जाकर दरवाजा खोला, वही था।

उसने खाकी लिफ़ाफ़े में वो सामान मुझे पकड़ाया और बोला- बाकी के पैसे भी इसमें हैं।

मैंने उसे कहा- शुक्रिया ! अन्दर आ जाओ, कॉफ़ी पी कर जाना !

वो बोला- नहीं, कोई बात नहीं !

फ़िर मैंने पूछा- तुम्हें बुरा तो नहीं लगा जो मैंने इस तरह तुमसे काम के लिए कहा तो? असल में मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी बाज़ार जाने की और घर में कोई नहीं है जिससे कुछ कहती !

वो बोला- जी कोई बात नहीं, आगे भी अगर मेरी जरुरत पड़े तो मुझे बुला लीजिएगा।

मैं बोली- तुम बहुत अच्छे लड़के हो ! तुम मुझे अपना फ़ोन नम्बर दे दो तो मैं तुम्हें फ़ोन कर सकती हूँ।

उसने अपना फ़ोन निकाला और मुझ से पूछा- आप अपना नम्बर बता दीजिए, मैं मिस काल दे देता हूँ, आपके पास मेरा नम्बर आ जाएगा।

मैंने उसे अपना नम्बर बोल दिया तो उसने उस पर मिस काल कर दी। मेरा मोबाइल मेरे हाथ में नहीं था तो मैंने कहा- ठीक है, मेरा फ़ोन अन्दर है, मैं देख लूंगी। तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया !

बस वो चला गया।

कहानी जारी रहेगी।

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