कोई मिला अपना सा तो दे दी खुशी

(Female Orgasm Sex Kahani)

यह फीमेल ओर्गास्म सेक्स कहानी मेरी मकानमालकिन की चुदाई करके उनको जीवन के पहले चरमसुख देने की है. उनके पति उनको चुदाई में पूरा मजा नहीं दे पाए थे.

नमस्कार दोस्तो, मैं अर्नव एक बार फिर आप सबके बीच अपने जीवन में घटित कुछ यादगार पलों को कहानी के रूप में पिरोने की कोशिश कर रहा हूँ.
आशा करता हूँ कि आप सबको फीमेल ओर्गास्म सेक्स कहानी पसंद आये।

जिन्होंने मेरी पिछली कहानी
पहली चुदाई नवविवाहिता मामी के साथ
नहीं पढ़ी, उन सबसे एक बार फिर मैं अपना परिचय करा दूँ। मेरा नाम अर्नव और मेरी उम्र 26 वर्ष है।

वैसे तो मैं बाँदा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, पर इसे मेरी किस्मत कहिये या वक़्त की मांग कि मैं एक जगह पर ज्यादा समय के लिए नहीं रह पाता।

बारहवीं के बाद मैंने कानपुर से ग्रेजुएशन करने का सोचा.
इसलिए वहाँ जाकर एडमिशन की सारी प्रक्रिया पूरी की और अब बस अपने रहने खाने का इंतजाम करना ही बाकी रह गया था।

यूँ तो वहाँ बहुत से हॉस्टल थे, जिनमें पीजी की सुविधा उपलब्ध थी। पर मुझे इंडिपेंडेंट रहना ज्यादा सुविधाजनक लगा, इसलिए मैं रेन्ट पर कमरा तलाशने लगा और आखिर कर बड़ी मशक्कत के बाद मुझे रहने लायक एक कमरा मिल गया।

आप में से जिन्होनें कभी बाहर रूम लिये होंगे वह इस बात को बखूबी समझेंगें कि सिंगल लड़कों को लोग जल्दी अपने घर में किराये पर कमरे नहीं देते।

मुझे जहाँ कमरा मिला था, उस घर में कुल तीन लोग रहते थे, मकान मालिक जिसकी उम्र लगभग 40 साल, उसकी बीवी जिसकी उम्र 34 साल और एक बेटा जो 12 साल का था।

मकान मालिक की एक छोटी सी दुकान थी जिसकी वजह से वह सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक वापस आता था।

मेरा कमरा बाहर की तरफ था जिसका एक दरवाजा बाहर मेन गेट की तरफ खुलता था और दूसरा दरवाजा उनके घर के अंदर तरफ जो दोनों तरफ से हमेशा बंद रहता था।

खैर मकान मालिक से मेरी बातचीत हुई और मैंने एडवांस देकर दो दिन बाद सामान लाने को बोल दिया।

दो दिन बाद मैं अपना सामान ले आया और पूरा दिन सामान रखने और बाक़ी व्यवस्था में ही लग गया और शाम हो गई।

तभी उनका बेटा मेरे पास आया और बोला- मम्मी ने बोला है आज आप हमारे यहाँ ही खा लीजियेगा।
मैंने हाँ में अपनी स्वीकृति दी और कहा- फ्रेश हो लूँ, फिर थोड़ी देर में आता हूँ.
और मैं बाथरूम में चला गया।

जुलाई का उमस भरा महीना था और बाथरूम के शॉवर में ठंडा पानी आ रहा था।
इसलिये मैं काफी देर तक शॉवर लेता रहा जिससे मुझे नहाने में काफी टाइम लग गया।

जब मैं नहा कर वापस आया तो देखा कि भाभी मेरे गेट पर खड़ी हैं.
उन्हें देख कर मैं थोड़ा झिझका क्यूंकि मुझे ऐसी उम्मीद बिलकुल न थी कि दरवाजे पर कोई खड़ा मिलेगा।

उस दिन पहले पहल मैंने भाभी को देखा था।
उन्होंने लाइट ब्लू कलर की साड़ी और बैकलेस मैचिंग ब्लाउज पहन रखी थी. उनके पतले पतले सुर्ख लाल होंठ, बड़ी बड़ी आँखें और लंबी नाक और हल्का सा मेकअप जिसमें वो बेहद खूबसूरत लग रही थी।

भाभी की इतनी खूबसूरती की उम्मीद मुझे पहले नहीं थी क्योंकि मकान मालिक को देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि इसकी बीवी इतनी खूबसूरत बला हो सकती है।

मुझे देखते ही वह बोल पड़ी- काफी देर हो गई थी इसलिये मैं खाने के लिए पूछने आयी थी।
मैंने कहा- बस 5 मिनट रुकिए, मैं तैयार होकर बस अभी आता हूँ।

मेरे इतना कहते ही वह मुड़ी और अंदर की तरफ जाने लगी.
तो मैंने देखा उनकी उभरी हुई गांड गोते खा रही थी।

यह तो था मेरे पहले दिन का हाल … जिसमें मैं सिर्फ उनकी खूबसूरती का ही कायल हुआ था।
हालांकि मेरे मन में अभी तक उनके लिए कोई कामुक विचार नहीं आया था इसलिए मैंने उनमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और अपनी रोजमर्रा की लाइफ में व्यस्त हो गया।

चूँकि मैं अकेला ही रहता था इसलिए मुझे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे.
इसी के चलते भाभी जब कभी कुछ ख़ास बनाती तो कभी खुद और कभी अपने बेटे से मुझे भी भिजवा देती थी।
और धीरे-धीरे हम काफी घुल मिल गये थे।

पर दोस्तो, मेरा एक छोटा सा फंडा है और वो यह कि मैं कभी किसी की निजी जिंदगी में दखल नहीं देता जब तक कोई खुद एंट्री का पास न दे।
खैर यह तो मेरी अपनी सोच है और वैसे भी किसी के मन में क्या चलता है, यह तो वक़्त जाहिर कर ही देता है।

अब आपका ज्यादा समय न लेते हुए मैं कहानी के मुख्य भाग में आता हूँ.

उस दिन रविवार था और मैं अपने रूम में इयरफोन लगा कर फ़ोन में पोर्न देख रहा था।

वैसे तो मैं हमेशा दरवाजा अंदर से बंद रखता था पर उस दिन मेरी भूल कहिये या फिर मेरी किस्मत का ही दरवाजा खुलने वाला था क्योंकि मैं दरवाजे को अंदर से लॉक करना भूल गया था.

और पोर्न में मैं इतना खो गया कि मुझे दरवाजे में हुई दस्तक भी सुनाई नहीं दी।
मेरे रेस्पांस न देने की वजह से भाभी दरवाजे को धक्का देकर कब मेरे बेड के पीछे आकार खड़ी हो गईं, मुझे पता ही नहीं चला।

जब उन्होंने पीछे से आवाज़ दी तब मैंने चौंक कर पीछे देखा और हड़बड़ा कर फ़ोन एक तरफ रख दिया और उनसे बोला- आ.. आ… आप कब आयीं?
इस हड़बड़ाहट में मैं यह भूल ही गया था कि मेरे साथ लंड महाराज भी सीना ताने खड़े हैं।

उनकी नज़र मेरे खड़े लंड पर ही टिकी थी जो लोअर के अंदर तंबू बनाये खड़ा था।

तो उन्होंने जवाब दिया- जब तुम अपने जरूरी काम में बिजी थे, तभी आयी थी.
और बोली- आज मैंने पनीर बनाया है। तुम्हें आवाज भी दी थी. पर तुम इतने खोये हुए थे कि सुना ही नहीं.
इतना कह कर उन्होंने मेरे हाथ में बाउल थमाया और चली गयी।

एक तरफ मैं थोड़ा सा घबराया हुआ भी था कि पता नहीं भाभी मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी और दूसरी तरफ उनके सहज़ बर्ताव से थोड़ा सुकून भी मिला।

उस दिन शाम को जब मैं छत पर टहलने गया, तब वेभी छत पर अपने कपड़े उठाने आयीं।
मुझे उनसे नज़र मिलाने में थोड़ी हिचक हो रही थी इसलिए मैंने धीरे से खिसकने की सोची.

तभी उन्होंने बोला- कभी-कभी बाहर की थोड़ी ताज़ी हवा भी ले लिया करो या वह भी फ़ोन में ही मिल जाती है।
मैं अभी भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा था।

तभी उन्होंने मुझसे पूछ ही लिया- कॉलेज में कोई गर्लफ्रेंड बनी या है नहीं? या ऐसे ही फ़ोन से काम चला रहे हो।
वो तो जैसे मेरे फ़ोन के पीछे ही पड़ गयी थीं।

मैंने बोला- क्या भाभी जब मेरे टाइप की कोई मिले तब बनेगी न!
तो उन्होंने बोला- ऐसा कौन सा टाइप है जो अभी तक मिल नहीं पाया? अच्छा यह बताओ कैसी लड़की पसंद है तुम्हें?

मैं बोला- पसंद तो सबको ताजमहल भी होता है पर हर कोई उसे अपना तो नहीं बना सकता.
वो तपाक से बोली- फिर भी कोई तो चॉइस होगी ही?

मैंने मौके का फायदा उठाते हुए तुरंत बोला- ऐसे तो आप भी बहुत अच्छी हो और मैं आपको पसंद भी करता हूँ पर मिल तो नहीं सकती न सिर्फ पसंद होने से क्या होता है।
तो वो धीरे से मुस्कुरायी और बोली- बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करते हो. लगता तो नहीं तुम्हारे लिए मुश्किल काम है। कोशिश करोगे तो कोई न कोई मिल ही जायेगी.

मैंने कहा- वो तो ठीक है … पर मैं यहाँ नया हूँ और उस लेवल तक जाने के लिए पहले एक दूसरे को समझना और जान पहचान भी तो जरूरी है. और मुझे तो यह आईडिया भी नहीं की बात किस टॉपिक पर करूँ?
तब उन्होंने बोला- अच्छा तो ये प्रॉब्लम है … कोई बात नहीं, तुम्हारी हिचक हम दूर कर देंगे.
मैंने पूछा- वो कैसे?

तो उन्होंने बोला- बातें तो हम करते ही हैं. और रही हिचक की बात … तो तुम मुझे अपना दोस्त समझ कर बात किया करो. तो वह समस्या भी हल हो जायेगी।

ऐसे ही हमारे बीच बातों का सिलसिला चलता रहा. उनके पास स्मार्टफोन था तो व्हाट्सएप्प और जोक्स वगैरह अब आम हो गए और हम काफी करीब आ गए थे।

एक दिन मैं बोला- हम इतनी सारी बातें करते हैं पर बातों के अलावा भी तो इंसान की कुछ जरूरतें होतीं है। आपकी तो पूरी हो जाती होंगी पर यहाँ सूखा पड़ा है।

तब वे मायूस होकर बोली- अब क्या बताऊँ … मेरी शादी कम उम्र में ही कर दी गई थी और शादी के दूसरे साल ही मयंक पैदा हो गया। उसके बाद जब इनका मन करता तो मुझे नींद से जगा कर अपना काम करते हैं और फिर सो जाते हैं। मैं कर्तव्य से बंधी हूँ इसलिए कभी न भी नहीं करती। सच बताऊँ तो मुझे चरम सुख के बारे में भी अपनी सहेलियों से ही पता चला क्योंकि आज तक मैं ऐसा कुछ महसूस ही नहीं कर पायी और मैंने कभी किसी को इस बारे में बताया भी नहीं। आज तुमने पूछा तो….

और इतना कह कर वो चुप हो गईं।

मैं बोला- इतने दिन से मैं यहाँ हूँ और आप भी मेरा कितना ख्याल रखती हैं; एक बार तो कहा होता!
उन्होंने बोला- तुम भी मुझे अच्छे लगते हो. पर मैं शादीशुदा हूँ और इन्हें धोखा कैसे दे सकती हूँ?

मैंने कहा- आप मुझे बेहद पसंद हैं और आपको मैं … और इसमें हम दोनों की रजामंदी भी है। अब इससे ज्यादा आपको क्या चाहिए। पर इंसान को अपने अंदर की लड़ाई खुद लड़ना चाहिए इसलिए यह फैसला मैं आप पर छोड़ता हूँ क्योंकि जिंदगी में जो भी काम करो पूरे मन से ही करना चाहिए. तभी हम उसकी सच्ची ख़ुशी का एहसास कर पाते हैं।

कुछ दिन बाद मेरी छुट्टियां हो गयीं इसलिए मैं घर चला आया।
पर व्हाट्सएप्प के जरिये हमारी बात होती रही।

मैंने सोचा कि जब तक ये खुद राज़ी नहीं हो जाती तब तक मैं भी पहल नही करूँगा.
क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि जल्दबाज़ी में लिए फैसले की वजह से उसे बाद में अफसोs करना पड़े।

जब मुझे घर आये तीन-चार दिन हो गए तो वो बोली- इतने दिन लगा दिये. वापस कब आओगे? तुम्हारी बहुत याद आती है. जल्दी आ जाओ न!
मैं बोला- हम तो सिर्फ दोस्त ही हैं. बात यहाँ रह कर करें या वहां … बात तो एक ही है।

उसने कहा- यहाँ तुम्हारे बिना एक-एक दिन काटना मुश्किल है और तुम हो कि समझते ही नहीं कुछ भी करो बस जल्दी से जल्दी यहाँ आ जाओ.
मैंने कहा- कल से मेरी छुट्टियां ख़त्म हो रही हैं. तुम कहो तो मैं कल ही आ जाऊं.
उसने बोला- मुझे तुम्हारा इंतज़ार रहेगा।

अगले दिन मैं पहली ही ट्रेन से निकल गया।

जब मैं अपने रूम में पहुंचा तो उसने मेरे हाल चाल पूछे और हमनें कुछ देर बातें की.
भाभी बोली- सफर से आये हो, थक गए होगे. आज आराम कर लो। मेरे पास तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है. पर आज नहीं कल मिलेगा.
और मेरे होंठों पर एक चुम्मा जड़ कर चली गयी।

मैं बेसब्री से अगले दिन का इंतज़ार करने लगा।

अगली सुबह मैंने खुद को अच्छे से साफ़ किया अपने लंड को चमकाया और अब तो बस इंतज़ार था लंड और चूत के मिलन का!

सुबह के लगभग 10 बजे थे, तभी भाभी मेरे कमरे में आयी।
उन्होंने लाल रंग की नयी साड़ी पहनी हुई और चेहरे पर लाइट मेकअप किया था जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं।

भाभी के आते ही मैंने लपक कर उनको अपनी बांहों में भर लिया।
तभी भाभी ने बोला- थोड़ा सब्र करो!
और बोली- पहले मेन गेट को अंदर से बंद कर दो.

और खुद मेरे रूम के अंदर वाले दरवाजे को दोनों तरफ से खोल दिया ताकि अचानक कोई आ भी जाये तो कोई प्रॉब्लम न हो.
फिर मेरे ही रूम से होकर मुझे अपने कमरे में ले गयीं।

उनका पूरा कमरा बहुत अच्छे से सजा हुआ था और परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी जो मूड बनाने के लिए काफी था।

मैंने उन्हें पीछे से पकड़ा और बड़े प्यार से उनकी गर्दन में चूमने लगा।
वह धीरे से पलटी और मेरे होंठ से अपने होंठ मिला दिये और मैं धीरे-धीरे उनके गुलाबी होंठों से रस पीने लगा जैसे भवंरा फूलों का रस पीता है।

किस करते-करते मैंने बड़े प्यार से उन्हें बेड पर बिठा दिया और हाथ पीछे डाल कर उनकी ब्लाउज की डोरी खोल दी और धीरे से उनकी ब्लाउज उतार दी।

उन्होंने अंदर नेट वाली डिज़ाइनर ब्रा पहनी हुई थी जिनमें उनके उरोज साफ़ दिख रहे थे।

मैं बोला- इस खूबसूरती को कैद करके रखना अच्छी बात नहीं.
तो उन्होंने जवाब दिया- तो आज़ाद कर दो न … ऱोका किसने है?

यह सुनते ही मैंने उनकी ब्रा के हुक खोल दिए.
ब्रा खुलते ही उनके बड़े बड़े चूचे उछल कर बाहर आ गये।

उनके मम्मे संगमरमर के गुम्मद की तरह सफ़ेद थे, जिन पर किसमिस के आकार के भूरे-भूरे निप्पल … जिन्हें देखकर मैं दोगुने जोश से भर गया।

मैं बिना देर करते हुए अपनी जीभ उनके निप्पल्स के चारों तरफ फिराने लगा और धीरे-धीरे उनके रसीले आम अपने मुँह में भर कर चूसने लगा.
कभी दायें वाले को तो कभी बाएं वाले को!
और उनके दोनों हाथों को खोल कर अपनी हथेलियों से जकड़ लिए.

अब वो जोर जोर से मोन कर रही थीं- अहह अर्नव … जोर से चूसो खा जाओ इन्हें!
वो काफ़ी उत्तेजित हो रही थीं।

पर अभी भी उनका आधा जिस्म साड़ी से ढका हुआ था.
मैंने प्यार से उन्हें खड़ा किया और साड़ी खोल दी और पेटीकोट को नीचे खिसका दिया।

अब वो सिर्फ अपनी पैंटी में थी.
मैं उनकी कमर से होते हुए उनकी नाभि और फिर उनकी चिकनी टांगों को बेतहाशा चूम रहा था।

तभी वे बोली- थोड़ा मुझे भी तो मौका दो तुम्हें प्यार करने का!
और मुझे नीचे लिटा कर एक-एक करके मेरे सारे कपडे उतार दिये और मेरा लंड उछल कर बाहर गया।

वे मेरे पूरे बदन को चूम रही थी और मेरा खड़ा लंड उनके बदन में घिस रहा था।

चूमते चूमते वो नीचे आयीं और मेरे लंड पर अपनी जीभ फिराई और फिर मुँह में भर कर जोर जोर से चूसने लगी.
मैं तो जैसे जन्नत में था।

मैंने दोनों हाथों से उनका सिर पकड़ा और उनके मुँह में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा और करीब 5 मिनट बाद अपना गाढ़ा वीर्य उनके मुँह में भर दिया।
उन्होंने बड़े प्यार से मेरे वीर्य की एक-एक बूँद चाट कर लंड को एकदम साफ कर दिया।

दोस्तो, वो मेरा आज तक का सबसे यादगार ओरल सेक्स था।

कुछ देर बाद मेरा लंड फिर हरकत में आ गया.

भाभी ने उसे चूस-चूस कर फिर से खड़ा कर दिया और बोली- अब देर मत करो; जल्दी से अंदर डाल दो।

उनकी पैंटी कामरस से बिलकुल गीली हो चुकी थी और चूत से बिलकुल चिपक गयी थी।
मैंने उनकी पैंटी उतारी और उनके दाने को अपनी खुरदुरी जीभ से छेड़ने लगा और एक उंगली उनकी रसीली चूत के अंदर बाहर करने लगा।

वो आँख बंद करके आहें भर रही थी।
मैंने उनकी टाँगें खोल दीं और और अपना 7 इंच का लंड उनकी चूत पर रगड़ने लगा।
उन्होंने बोला- अब और नहीं रहा जाता … जल्दी से अंदर डाल दो।

मैंने लंड का टोपा उनकी चूत के मुहाने में रखा और धीरे धीरे अंदर डालने लगा.
भाभी की चूत काफी कसी हुई थी।

अभी आधा लंड ही गया होगा कि भाभी जोर से चिहुँक उठी और बोली- आराम से … दर्द हो रहा है।
मैं कुछ पल के लिये रुका और फिर धीरे धीरे झटके लगाने शुरू कर दिए.
वो भी नीचे से अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।

अब मेरा लंड उनकी चूत में जड़ तक जाने लगा. और जैसे ही उनकी बच्चेदानी से टकराता तो उनकी आह निकल जाती।
भाभी मुझे किस किये जा रही थी और बड़बड़ाये जा रही थी.

और मैं सटासट लंड को उनकी चूत के अंदर बाहर कर रहा था।

तभी वो अपनी टाँगें मेरी कमर में जकड़ने लगी और अपने दांतों से मेरे कंधे में जोर से काटने लगी और कांपने लगी.
मैं समझ गया कि भाभी का रस निकलने वाला है.

मैंने धक्के तेज़ कर दिये और कुछ देर में भाभी निढाल होकर लेट गयी।

पर मैं रुका नहीं … बस अपनी रफ़्तार बहुत धीमी कर दी और धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करता रहा।

कुछ देर बाद भाभी फिर जोश में आ गयीं तो मैंने उन्हें डॉगी स्टाइल में चोदने को बोला।
उन्होंने बिना देरी किये अपने घुटने मोड़े और अपनी गदरायी गांड मेरी तरफ कर दी।

मैंने लंड का सुपारा उनकी चूत पर रखा और अंदर डाल कर लंड को पिस्टन की तरह चलाने लगा।

इस बीच वो एक बार और झड़ गयीं और चित होकर लेट गयीं.
मैं पीछे से उनके ऊपर लेट कर लंड अंदर बाहर कर रहा था.

भाभी की चूत से इतना रस निकल रहा था कि अब लंड बार-बार फिसल कर बाहर आ जाता था।
मैंने उन्हें सीधा किया और दोनों टांगों आपस में जोड़ के लिटा दिया जिस से थोड़ा ज्यादा ग्रिप बनें और फिर लंड डाल दिया.

लगभग 2-3 मिनट बाद हम दोनों साथ-साथ झड़े और मैंने अपने वीर्य से उनकी चूत भर दी।

उनके चेहरे में सम्पूर्ण संतुष्टि के भाव थे जो मेरे लिए बेहद सुकून भरे थे।

उन्होंने मुझसे कहा- मैंने ऐसे फीमेल ओर्गास्म सेक्स की केवल बातें सुनी थी जब मेरी सहेलियाँ इसके बारे में बात करती थीं। आज एहसास हुआ कि वो सिर्फ बातें नहीं. बल्कि हकीकत में इस ओर्गास्म के अहसास से बेहतर और कुछ भी नहीं। मैं इस अहसास को कभी नहीं भूल सकती.
और प्यार से मुझे चूमने लगी।

मैंने कहा- मैं जब तक तुम्हारे पास हूँ तुम्हें जी भर के प्यार करूँगा।

अब तो वो हर दूसरे तीसरे दिन मुझसे चुदवाती और यह सिलसिला लगभग दो साल तक चला.
उसके बाद मुझे बाहर जाना पड़ा।

पर अब भी मैं जब कभी कानपुर जाता हूँ तो उनसे जरूर मिलता हूँ।

दोस्तो, मैं अर्णव अब आपसे विदा लेता हूँ।
आपको मेरी फीमेल ओर्गास्म सेक्स कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताइयेगा। मुझे आपके सुझाव और प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।
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