पड़ोसन चाची की चुत में मेरा कुंवारा लंड

(Desi Chachi Ki Chudai Hindi Kahani)

यह देसी चाची की चुदाई हिंदी कहानी काल्पनिक है. जवान होते ही मैं किसी चूत की तलाश में था. तो मेरी नजर पड़ोस की चाची पर पड़ी जिनमें मुझे काम देवी दिखने लगी.

मेरे सारे कामुक दोस्तों को मेरा सस्नेह नमस्कार.
मेरा नाम चिंटू है. मैं रायपुर में रहता हूँ.

मैं आपको अपनी सोच की एक ऐसा काल्पनिक देसी चाची की चुदाई हिंदी में सुनाने जा रहा हूँ जिसने मेरे जीने का नजरिया बदल दिया और उसे वासना से भर दिया था.

बचपन से ही मैं एक होनहार, पढ़ाकू और एक आदर्श छात्र था. स्कूल, मोहल्ला, दोस्त, रिश्तेदार सभी में मेरी एक सकारात्मक छवि थी.
साथ ही मैं कला में चित्रकला, मेहंदी, रंगोली बनाने आदि में निपुण होने के कारण इसके लिए आस पास के इलाके में काफी मशहूर भी था.

सब कुछ अच्छा चल रहा था.
पर अठारह साल का होते ही मेरे शरीर में कुछ अलग से बदलाव होने लगे.
हर औरत में मुझे सिर्फ वासना ही दिखने लगी थी.

मेरे पास अपने लौड़े को हिलाने के अलावा (हस्तमैथुन) कोई इलाज नहीं रहता था.
देखते ही देखते मैं पोर्न, कामुक किताबें, सेक्सी कहानियां इनका नियमित एडिक्ट बन गया.
दिमाग में हर घड़ी, हर पहर सिर्फ चुत चोदने के ख्याल आने लगे.

मेरी पड़ोसन चाची का नाम विमला था. और आश्चर्य की बात ये थी कि जिसे मैं सालों से इज्जत की नजर से देखता था, उसमें अब मुझे कामदेवी दिखने लगी थी.

पर वो मुझे अभी भी नटखट, प्यारा और होनहार बच्चा ही समझती थी.
वो मुझे अपने बेटे की तरह मानती थी और अक्सर अपने बच्चों को मेरी मिसाल देती रहती थी.

विमला पैंतालीस साल की महिला थी और उसके दो बेटे और एक बेटी थी. फिर भी उसका जिस्म ऐसा कसा हुआ था कि अच्छे अच्छों के मुँह और लंड में पानी आ जाए.

चाची की शादी बड़ी उम्र के आदमी से हुई थी और वो शायद ही उसे कामसुख दे पाता होगा.

उसकी बेटी की शादी हो चुकी थी.
छोटा लड़का पूना में रहता था और बड़ा लड़का अक्सर अपने बूढ़े बाप के साथ खेत के काम के लिए पास के गांव चला जाता था.
इसलिए मेरी पड़ोसन विमला अक्सर घर पर अकेली ही रहती थी.

मेरे माता-पिता दोनों अपनी ड्यूटी के लिए घर से बाहर रहते थे.
इसलिए मैं बोर होने पर पड़ोसन के घर चला जाता था, जिससे उसका भी मन बहल जाता.

वो मुझसे खुलकर सारी बातें करती थी. वो नयी टेक्नोलॉजी, मोबाईल का इस्तेमाल या अन्य चीजों के लिए हमेशा मुझसे ही सलाह मांगा करती थी.
मैं हमेशा उसकी मदद करता था और उसे नयी नयी चीजें सिखाया करता था.
इसलिए उसका मुझ पर बहुत विश्वास था.

मैं अपनी ज्ञान की बातें बताकर और रोचक तथ्य (फॅक्ट्स) सुनाकर हमेशा उसे प्रभावित करता था.
अब तो वो मेरा आंख बंद करके विश्वास करने लगी थी.

उसका बदन तो क्या कहना, सिर से लेकर पांव तक अप्सरा थी वो!
उसके घने-काले, लंबे-महकते बाल, काजल से सजी पानीदार खूबसूरत आखें.
नाजुक सी नाक, बिना लिपस्टिक के भी जानदार लगें!
ऐसे गुलाब से रसीले होंठ … दिल करे बस चूम लूं उन्हें.

उसके स्तन काफी बड़े और कसे हुए थे. उसकी नाजुक कमर की लचक तो जैसे दिल की धड़कनें तेज कर दे.

विमला की गांड देखो तो लगे कि कोई मस्त शेरनी चल रही हो, बड़ी पर लचकदार गांड थी.
इस सब पर सोने पर सुहागा सा उसके बदन का हल्दी सा गोरापन लिए होना. देखते ही इंसान का रस उसकी चड्डी में छूट जाए, ऐसा जिस्म था उसका.

पर लोगों के लिए दुर्भाग्य की बात ये थी कि वो बहुत कम घर से बाहर निकलती थी और वो लगभग अपने सारे बाहर के काम मुझसे ही करवाती थी. जैसे दुकान से कुछ लाना हो वगैरह वगैरह. इसलिए मेरे दोस्त, यहां तक कि अड़ोस-पड़ोस के बच्चों से लेकर बड़ों तक बहुत से लोग मुझसे जलते थे.

मैं पड़ोसन को जब जब हो सके, निहारता रहता था. कभी प्यार की आंखों से, तो कभी हवस की.

फर्श पर पौंछा लगाते हुए वो अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खौंसे रखती थी.
मैं उसके मम्मों को मिनटों तक निहारता रहता था.
उसके दोनों बम ब्लाउज से जैसे फटे जा रहे हों. उसके गले और दोनों स्तनों के बीच की दरार से बहता हुआ पसीना उसे और मालदार बना देता था.

चाची के घर के बगीचे में एक अमरूद का पेड़ था. उस पर लगने वाले बेहतरीन फल वो मेरे लिए बचाकर रखती थी.
पर मुझे तो उसके उन अमरूदों से मतलब था जो वो अपने आंचल के पीछे छिपाए रखती थी.

मैं सोचता ही रहता था कि आखिर कब इस जिस्म का सुख ले पाऊंगा और अचानक वो दिन आ गया.

कुछ दिनों में विमला के बहन की लड़की की शादी थी. इसके लिए उसे हाथों पर मेहंदी बनवानी थी.
और जैसा कि मैंने बताया कि मैं अच्छी खासी मेहंदी बनाता था पर शादियों के वगैरह ऑर्डर नहीं लेता था.

ये बात विमला को पता थी, फिर भी उसकी विनती पर मैं पिघल गया और उसके हाथों पर मेहंदी बनाने के लिए तैयार हो गया.

दूसरे दिन जब मैं सामान लेकर उसके घर गया, तो वो हमेशा की तरह घर में अकेली ही थी.

मैंने आवाज लगाई- विमला चाचीजी!
वो बोली- चिंटू, मैं नहा रही हूँ, तब तक तुम सोफे पर बैठो. बस पांच मिनट में आई.

मुझे लगा कि ये मेरे लिए सुनहरा मौका है. क्यों ना चुपके से उसके नंगे बदन का दर्शन कर लूं.

मैं दबे पांव गया, पर खिड़की में अन्दर से कांच लगा हुआ था. मैं मायूस होकर लौट ही रहा था कि मुझे बाथरूम के बाहर लगी खूंटी पर टंगे उसके कपड़े दिख गए. जिन्हें वो नहाने के बाद पहनने वाली थी. वो देखते ही मेरे खुरापाती दिमाग में एक जबरदस्त ख्याल आ गया.

मैं तुरंत घर भागा और घर से खुजली वाला पावडर लेकर आया, जो मैं एक दोस्त का मजाक बनाने के लिए लाया था. उसमें अभी बहुत सारा बचा था.

मैंने वो जल्दी से लाकर बराबर बराबर मात्रा में उसकी ब्रा और ब्लाउज पर छिड़क दिया और बाकी बचे पाउडर को एक तरफ छिपा कर रख दिया.

अब मैं जाकर सोफे पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद वो अपने हल्के गीले बदन पर वो खुजली वाले कपड़े पहनकर आ गयी.

मैं जल्दी से अपने काम पर लग गया. मैंने फटाफट विमला के दोनों हाथों पर मेहंदी बनाना शुरू कर दिया.

मैंने दोनों हाथों पर थोड़ी थोड़ी मेहंदी लगा दी थी ताकि उसके दोनों में से कोई भी हाथ खुजली न कर सके.

थोड़ी ही देर बाद पावडर अपना मजा दिखाने लगा. उसकी बेचैनी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी. फिर भी वो सहे जा रही थी.
और करती भी क्या बेचारी!

मैं सब जानकर भी अंजान बन रहा था.

दोनों हाथों पर लगभग आधे से ज्यादा मेहंदी बन चुकी थी.

अचानक वो गहरी, लंबी सांसें लेने लगी. उसने बहुत कोशिश की, पर आखिर उसके बदन ने बता ही दिया कि कुछ तो गड़बड़ है.

मैंने पूछा- क्या हुआ कोई दिक्कत है?
वो बोली- न जाने क्यों बदन एकदम से खुजला रहा है.

वो अपना हाथ खुजाने ले जा ही रही थी कि मैंने उसे रोका.

मैंने कहा- रूकिए आप तो ऐसे मेरी सारी मेहनत बर्बाद कर देंगी, मेहंदी मिट जाएगी.
वो बोली- चिंटू अब तुम ही बताओ, मैं अब क्या करूं?

मैं- वो मैं कुछ नहीं जानता. मैंने पहले ही आपको ना बोला था, फिर भी आपकी जिद पर मैं तैयार हुआ.
वो- ठीक है बाबा, मैं तुम्हारी मेहनत खराब नहीं करूंगी. पर क्या तुम प्लीज मेरी थोड़ी मदद कर दोगे?

मैं- ठीक है. बताइए मैं क्या करूं?
वो- मेरी गर्दन के पास बहुत खुजली हो रही है … थोड़ा खुजा दोगे?

इसी पल का मुझे इंतजार था. मैं उसका बदन खुजाने लगा. धीरे धीरे करते वो मुझे और नीचे और नीचे करती गयी और मैं पूरे प्यार मुहब्बत से खुजाता गया. फिर भी खुजली रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. वो बेचैन हो गई.

फिर मैंने कहा- शायद पानी से खुजली थोड़ी कम हो जाए!
वो बोली- जो तुम ठीक समझो.

मैं कटोरी में पानी तो लाया, पर उसमें भी बचा हुआ थोड़ा सा पावडर छिड़क लाया. वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी और उसे उस जलन के आगे कुछ नहीं दिख रहा था. उसके नाजुक स्तन जलन से लाल हो चुके थे.

मैंने उसका पल्लू हटाया. एक एक करके उसके ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए. धीरे से उसकी ब्रा भी निकाल दी, पर हाथों में मेहंदी होने के कारण कपड़े पूरी तरह नहीं निकल पाए और उसके कंधों पर टंगे रह गए. फिर भी वो कुछ नहीं कह रही थी. उसे लगा कि मैं हमेशा की तरह उसकी मदद कर रहा था.

मैंने उस खुजली वाले पानी से उसके दोनों स्तन मसल कर रख दिए. उसे धीरे धीरे हवस चढ़ रही थी. पर उसे आराम नहीं मिल रहा था.

तब मैंने सुझाया- शायद थूक से काम बन जाए!
वो बोली- कैसे?

मैं- आयुर्वेद में इंसान के थूक से कई इलाज बताए गए हैं.
वो- हां वो तो है … करो, जो तुम्हें ठीक लगे, बस जल्दी आराम दिलाओ.

मैं उसके मम्मों पर लग गया. उन्हें कुत्ते की तरह चाटने चूसने लगा; उसके निप्पलों को दांतों से चबाने लगा.

काफी देर तक ऐसा करने पर हम दोनों ही ‘ऊह … आह … अम..ऊफ्फ …’ करने लगे और दोनों ने अपना रस छोड़ दिया. पर एक दूसरे को पता नहीं चलने दिया.

कुछ देर बाद पावडर का असर उतर गया और उसे ठंडक मिल गई.

फिर हम दोनों ने मेहंदी का अधूरा काम फिर से शुरू कर दिया.

थोड़ी देर बाद उसे जोरों की पेशाब लगी और उसकी तीव्रता बढ़ने पर उसने मुझे बताया.

वो- मुझे पेशाब करने जाना है.
मैं- ठीक है जाओ, पर मेहंदी ना मिटने पाए.

वो पहले से ही बहुत हवस भरी हो चुकी थी, उसने शरारती अंदाज में मुस्कुरा कर कहा- फिर तो तुम्हारी मदद लगेगी.

मैं मन ही मन में उछल रहा था. मैंने कहा- हां ठीक है, चलो.

उसके संग मैं बाथरूम तक गया.
फिर वो बोली- मैं पेशाब करती हूँ, तब तक साड़ी और पेटीकोट उठाकर पकड़ कर रखो.

मैंने एक हाथ से वो पकड़ कर रखा और दूसरे हाथ से उसकी चड्डी उतारने लगा. मुझे उसकी अद्भुत गांड का दर्शन होते ही मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया.

मुझे चोदने की तीव्र इच्छा हुई और मैंने अपना आखरी दांव खेल दिया.

वो पेशाब कर रही थी, तब उसे पता न लगते हुए जेब में से डिब्बी निकाली और पावडर उसकी चड्डी पर भी छिड़क दिया.

फिर कपड़े पहनाकर अपने काम के लिए बैठ ही रहे थे, तो उसे वही तकलीफ होने लगी … पर इस बार चूत में खुजली शुरू हो गई थी.

विमला जलन से तिलमिला उठी. उसने खुद को मेरी बांहों में छोड़ दिया.

वो बोली- जैसी मदद तुमने मेरे मम्मों के लिए की थी, वैसी ही मदद मेरी चूत के लिए भी कर दो. प्लीज … प्लीज़.

मेरी खुशी सातवें आसमान पर थी.
मैं उस पर टूट पड़ा. उसकी साड़ी उठाई, पेटीकोट, चड्डी निकाली और पूरी शिद्दत से अपना मुँह उसकी चूत में लगा दिया.
अपनी जुबान और होंठों से उसकी चूत पर प्यार की बारिश कर दी.

वो बोली- आंह मेरे राजा अब रूको मत. न जाने कितने साल बाद इस बंजर जमीन पर बरसात होने जा रही है.

मेरे लिए तो ये हरा सिग्नल था. मैंने उसके गुलाबी होंठ चूम चूम कर लाल कर दिए. उसकी चूचियां चूस कर, दबा दबाकर और सख्त कर दीं.

मैंने उसके बदन के हर अंग को चूम लिया. उसके हाथों में मेहंदी होने के कारण इस चुदाई का पूरा नियंत्रण मेरे हाथों में था.
मुझे अपनी हर मुराद पूरी करनी थी. मेरा लंड लोहे जैसा सख्त हो गया था.

मैंने उसे बाहर निकाला और लंड देखते ही वो चौंकती हुई बोली- हाय मर गई …. इतना बडा लंड. लगता है इतने सालों के इंतजार का मुझे दुगना फल मिलने वाला है.
मैं- लो मेरी जान … अब ये तुम्हारा ही है.

ये कहकर मैंने अपना लंड उसके मुँह में दे दिया.
विमला मेरा केला चूसने लगी.

मन भर लंड चुसवाने के बाद मैंने उसकी तरफ वासना से देखा.

वो बोली- अब अपने इस मूसल को मेरी चुत में पेलो और मुझे जल्दी से चोद दो.

मैंने पोजीशन बनाई और उसकी चूत में लंड एक ही धक्के में डाल दिया.

वो सिहर गई लेकिन कुछ ही देर में लंड ने चुत को मजा देना शुरू कर दिया था.

मैंने कचाकच गचागच करते हुए उसे धरती पर ही स्वर्ग दिखा दिया.
न जाने कितनी बार जर्क लगे … फिर हम दोनों झड़ गए.

इसके बाद तो विमला मानो बावली हो गई थी.
उसने अपनी गांड में, फिर चूत में, फिर मुँह में लेना शुरू कर दिया.

ऐसा करते करते शाम होने तक घंटों ये सिलसिला चलता रहा.

अब उसके पति और बेटे के वापस आने का समय हो गया था.
हम दोनों ने सब कुछ समेट कर बची मेहंदी पूरी कर ली.

मैं अपने घर जा रहा था, तब वो बोली- धन्यवाद बेटा, आज तुमने सच में मेरी बहुत मदद की. क्या फिर से करोगे?
मैंने कहा- आपके लिए तो जान हाजिर है. आप जब भी कहेंगी, मैं टूट पडूंगा.

फिर हमने एक प्यार भरी झप्पी और चुम्मी ली और मैं अपने घर आ गया.

तब से मैं लगभग हर रोज उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगा.

आपको मेरी ये देसी चाची की चुदाई हिंदी कहानी कैसी लगी, प्लीज़ मुझे बताना न भूलें.
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