मकान मालकिन की अन्तर्वासना का इलाज
(Desi Aunty Ki Chut Chodi)
देसी आंटी की चुत चोदी गांव के एक चोदू लड़के ने! वो शहर में पढ़ने आया तो कमरा किराये पर लिया. उसने अपनी ही मकान मालकिन को कैसे चोदा? पढ़ें इस कहानी में!
नमस्कार दोस्तो, कामुक सेक्स कहानियों की इस वेबसाइट पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है।
मेरा नाम विक्की है।
मैं अपनी कहानी के माध्यम से आपकी जिन्दगी में कुछ कामरस घोलने की कोशिश करूंगा।
हो सकता है कि मेरी यह कामुक कहानी पढ़कर आपका मन भी सेक्स के लिए करे और आप भी जिन्दगी के मजे लेने के बारे में सोचें।
आशा करता हूं कि मेरी यह कोशिश सफल होगी।
दोस्तो, यह मेरी अपनी कहानी नहीं है। यह कहानी रमेश की है जिसकी उम्र 55 साल के लगभग होगी। जबकि मेरी उम्र 28 साल है।
मेरी रमेश से दोस्ती हो गई। रमेश सरकारी विभाग में नौकरी करता था। उम्र का बहुत ज्यादा फासला होते हुए भी रमेश और मैं बहुत अच्छे दोस्त बन गए।
रमेश बहुत रंगीला किस्म का आदमी है। इस उम्र में भी वह सेक्स का बहुत भूखा रहता है। देखने में वह जवान दिखता है क्योंकि उसने अपने शरीर को अच्छी तरह से संभाल कर रखा हुआ है।
कई सारी लड़कियां अभी भी उसके साथ रात बिताने के लिए तैयार हो जाती हैं।
रमेश की जिन्दगी में ऐसी कई सारी लड़कियां आईं जो मर्द के लंड से चुदने के लिए व्याकुल थीं।
मैं उन कहानियों को एक एक करके आप लोगों को सुनाऊंगा।
हालांकि सारी कहानियों को लिखना संभव नहीं है लेकिन कुछ चुनिंदा कहानियां मैं आपके सामने जरूर लेकर आऊंगा।
यह देसी आंटी की चुत चुदाई भी उन्हीं में से एक है।
रमेश की यह कहानी शुरू होती है उसकी स्टूडेंट लाइफ से, जब वह भाड़े पर रूम लेकर रहकर पढ़ाई करता था।
उससे पहले भी उसके गांव में बहुत सारी चुदाई की कहानियां उसने रच डाली थीं।
जब वो गांव में से शहर में निकल कर आया तो उसके लंड को चूत मारने की बुरी लत लग चुकी थी।
बात आज से करीब 30 साल पहले की है। उस वक्त उतने लोग पढ़ने के लिए बाहर भी नहीं जाते थे और रूम किराये पर ज्यादा मिलते भी नहीं थे।
रमेश की किस्मत यहां पर बहुत अच्छी थी कि उसे जान पहचान के द्वारा ही एक रूम मिल गया।
पाँच रूम का मकान था। एक रूम बाहर बना हुआ था और उस मकान में सिर्फ एक औरत ही रहती थी।
उसका नाम रेखा था और वह अकेली रहती थी।
उस वक्त उसकी ऊम्र 45 से 50 साल के बीच होगी।
उसकी चार बेटियां थीं।
दो की शादी हो गई थी और दो बाहर रहकर तैयारी कर रही थीं।
रेखा के पति भी बाहर रहते थे। रेखा यहां पर सरकारी विभाग में नौकरी करती थी। कहने का तात्पर्य है कि रेखा का पूरा परिवार नौकरी-पेशा वाला था और सभी लोग पढ़े लिखे थे।
उस वक्त के हिसाब से वह काफी मॉडर्न परिवार था। रेखा भी बहुत खुले विचारों की थी। यह कहानी रेखा और रमेश के बीच की ही है।
रमेश की उम्र उस वक्त 20-22 साल रही होगी। चूंकि रमेश गांव से था तो दिखने में हट्टा कट्टा था और बॉडी अच्छी थी।
तो रमेश वहां रहने लगा।
रेखा और रमेश की मुलाकात कभी कभार ही होती थी। वो दिन में अपने रूम पर अकेला रहता था।
दिनभर रेखा अपने ऑफिस के कारण बाहर ही रहती थी।
इसके चलते सिर्फ सुबह में दोनों की नाम मात्र की हाय-हैलो हो जाती थी।
कुछ दिन तो समय यूं ही समय बीतता गया।
धीरे धीरे रमेश को अब चुदाई की याद सताने लगी।
उसका लंड उसको परेशान करने लगा तो वह यहां वहां चूत की खोज करने लगा।
वह कोचिंग लेता था। वो समय ऐसा था कि लड़कियां पढ़ने के लिए ज्यादा बाहर नहीं जाती थीं।
केवल इक्का दुक्का लड़कियां ही घर से बाहर पढ़ने जाया करती थीं। उस वक्त उसको कोई लड़की भाव नहीं दे रही थी और अपनी ही शर्म में सिमटी रहती थीं।
जबकि इस वक्त रमेश को एक चूत की सख्त जरूरत थी।
इधर धीरे-धीरे वक्त के साथ रेखा को भी लगा कि चलो बात करने के लिए कोई एक इंसान तो घर में है।
धीरे धीरे रेखा ने उससे बातचीत करनी शुरू की और एक दो बार शाम के समय उसको चाय पर बुलाया भी।
अब वो दोनों शाम में कई बार चाय पी लिया करते थे।
रेखा का पति भी बहुत लंबे समय के बाद घर आता था। रेखा भी सेक्स के लिए प्यासी तो थी।
इतने अच्छे परिवार से होने के कारण कहीं बाहर मुंह मारना उसके लिए खतरे से कम नहीं था।
तो वह अपनी सेक्स इच्छाएं दबा कर रखे हुए थी।
शायद वह किसी अच्छे मौके की तलाश में थी ताकि चुदाई की इच्छा भी पूरी हो जाए और किसी को पता भी न चले।
रमेश तो देखने में शारीरिक रूप से हट्टा कट्टा था।
धीरे धीरे दोनों अब एक साथ चाय पीने लगे।
फिर रात को भी कभी कभार साथ में समय बिताने लगे।
धीरे धीरे रेखा रमेश के प्रति आकर्षित होने लगी।
इस दरमियान वह रमेश का ख्याल भी रखने लगी। कभी कभी उसको रात के खाने पर भी बुला लेती थी।
जहां रेखा अब रमेश के लंड की आस लगाए बैठी थी, वहीं रमेश की नजर भी रेखा आंटी की चूत पर टिकी रहने लगी थी।
रमेश भी उसके नजदीक आने की कोशिश करने लगा था।
कभी कभी रेखा जब ऑफिस से थक कर आती तो रमेश उसके पैर दबाने की पेशकश करता।
शुरुआत में तो रेखा मना करती रही लेकिन बाद में धीरे-धीरे रेखा भी मानने लगी।
दोनों ही तरफ आग लग चुकी थी।
रमेश के हाथ रेखा के पैर दबाते हुए उसकी चूत का रास्ता बनाने लगते।
मगर पहल करने की हिम्मत किसी में नहीं हो रही थी।
हवस दोनों के मन में थी।
रमेश जहां पहले रेखा को केवल ‘आंटी’ कहता था, अब उसे ‘रेखा जी’ कहने लगा था।
रेखा भी जहां पहले उसे बेटा कहती थी, अब केवल रमेश कहकर पुकारा करती थी।
मतलब दोनों तरफ से शब्दों की बराबरी हो गई थी और अब सिर्फ जिस्म का मिलना बाकी रह गया था।
अब अक्सर रमेश रेखा के पैर दबाता और उसकी मस्त सुडौल जांघों को देखकर गर्म हो जाता।
पैर दबाने के बाद अपने रूम में आकर वो अपना पानी निकाल कर अपने आप को शांत किया करता था।
रेखा आंटी की चूत भी रमेश के हाथों के कड़ेपन से पानी पानी हो जाया करती थी।
वो भी अब रमेश के नाम से अपनी चूत को सहलाकर सोने लगी थी।
नजदीकियां बढ़ाने के लिए अब वो रमेश को अपने साथ बाजार भी लेकर जाने लगी।
वो पहले से ज्यादा सज संवरकर रहती थी ताकि अपनी चूत की खुशबू रमेश तक पहुंचा सके।
जब रेखा से रुका न गया तो एक दिन उसने ठान लिया कि आज रमेश का लंड चूत में लेना ही है।
यही हाल रमेश का भी था। उस दिन उसने भी सोच लिया था कि आज रेखा आंटी की चूत की चुदाई मैं करके ही रहूंगा।
आंटी ब्यूटी पार्लर में जाकर बाकी दिनों से ज्यादा सज-संवरकर आई।
उस रोज आंटी ने बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाया और रमेश को भी बुलाया।
खाने के दौरान दोनों एक दूसरे को हवस भरी नजरों से देख रहे थे।
खाने के बाद उसने रमेश से कहा- आज मेरे पैरों में कुछ ज्यादा ही दर्द हो रहा है। आज मेरी अच्छे से मालिश कर देना।
रमेश मन में सोचते हुए बोला- आज तो आपके शरीर और आपकी बुर दोनों की अच्छे से मालिश कर दूंगा अपने लंड का पानी डाल डालकर।
उसके बाद वो अपने रूम में गया और बॉडी पर अच्छी खुशबू वाला सेंट लगाकर आया।
रेखा अपने बेड पर लेटी हुई रमेश के आने का ही इंतजार कर रही थी।
रमेश के आते ही बोली- जल्दी से आ जाओ, आज रुका नहीं जा रहा, मतलब कि दर्द चैन से लेटने नहीं दे रहा … मेरी मालिश कर दो अच्छे से।
रमेश ने भी देरी नहीं की और सीधा बेड पर जाकर उसके पैरों की मालिश करने लगा।
रेखा रमेश की ओर हवस भरी नजरों से देख रही थी।
धीरे धीरे रमेश उसकी साड़ी को ऊपर करते हुए जांघों तक हाथ फिराने लगा।
उसका लंड अब खड़ा हो चुका था और उसकी उंगलियां बार बार रेखा आंटी की चूत को छूने की कोशिश कर रही थीं। मगर वो हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
इधर रमेश के हाथों का अहसास चूत तक पाकर रेखा की हालत भी खराब होने लगी थी।
रेखा आंटी की चूत पानी पानी हो रही थी।
वो बोली- थोड़ा और ऊपर तक करो ना … साड़ी उठा लो … कोई दिक्कत नहीं है।
अब रेखा आंटी साफ तौर पर रमेश को चुदाई का न्यौता दे रही थी।
रमेश ने भी अब हिम्मत की और साड़ी को ऊपर तक उठाकर आंटी की जांघों को नंगी कर लिया.
आंटी की पैंटी भी रमेश को दिख रही थी। आंटी की चूत पर चिपकी पैंटी में से आंटी की चूत की शेप भी वो देख पा रहा था।
ये नजारा देखकर उसका लंड पैंट को फाड़ने को हो रहा था।
रमेश ने जब रेखा की आंखों में देखा तो जैसे वो उससे पहल करने की मिन्नतें कर रही थी।
अब रमेश भी काबू न रख पाया और उसने आंटी की पैंटी के ऊपर चूत पर हाथ रख दिया और सहलाने लगा।
जैसे ही रमेश ने पहल की आंटी ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी पैंटी के अंदर डलवा लिया और अपनी चूत रगड़ने का इशारा किया।
रमेश उसकी चूत को हथेली से रगड़ने लगा और उसकी हथेली गीली होने लगी।
अब दोनों के होंठ मिलते देर न लगी।
दोनों एक दूसरे के बदन को बेतहाशा चूमने लगे।
जल्दी से रमेश ने आंटी का ब्लाउज, साड़ी और पेटीकोट उतार डाले।
अब आंटी केवल ब्रा पैंटी में थी।
उसने ब्रा को खोला और बड़े बड़े चूचे बाहर आकर झूल गए।
रमेश उन पपीतों को दोनों हाथों में संभालते हुए उनका मर्दन करने लगा।
आंटी की आहें निकलने लगीं।
वो रमेश के लंड को पैंट के ऊपर से ही सहलाने लगी।
जब उससे रुका न गया तो उसने रमेश की पैंट खोलना शुरू कर दी।
जल्दी से रमेश भी नंगा हो गया और दोनों एक दूसरे नंगे जिस्मों पर टूट पड़े।
दोनों नाग-नागिन के जैसे लिपटने लगे। रमेश आंटी की चूचियों को पीने लगा।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद दोनों 69 में आ गए और एक दूसरे के सेक्स अंगों को चूसने लगे।
दोनों इतने खो गए कि तीन-चार मिनट में ही एक दूसरे के मुंह में स्खलित हो गए।
मुंह की प्यास तो बुझ गई थी, अब लंड और चूत की प्यास बुझाने की बारी थी।
स्खलन के बाद भी दोनों ने एक दूसरे के चूत-लंड को चूसना-चाटना बंद नहीं किया।
धीरे धीरे रमेश का लंड फिर से तनाव में आने लगा।
रेखा ने उसके लंड को अपनी चूत में सेट करवा लिया।
रमेश ने भी मौका देखा और उसकी चूत में लंड का जोरदार धक्का दे दिया।
रेखा की चूत में लंड एकदम से घुसा तो उसकी चीख निकल गई मगर उसके होंठ रमेश के होंठों के नीचे दबे थे इसलिए आवाज बाहर नहीं जा पाई।
धीरे धीरे रमेश ने पूरा लंड रेखा की चूत में उतार दिया।
अब रमेश उसकी भरपूर चुदाई करने लगा।
रेखा भी जैसे रमेश का लंड पाकर तृप्त होने लगी।
रमेश की स्पीड फिर तेजी से बढ़ने लगी और चार-पांच मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद रेखा की चूत झर झर करके झड़ने लगी।
उसका वीर्य पहले ओरल राउंड में निकल चुका था इसलिए उसको समय लग रहा था। उसके धक्के आंटी की चूत में लगातार जारी थे।
दस मिनट तक चोदने के बाद आंटी की चूत में फिर से चुदास जागने लगी।
वो फिर से गांड उठाकर रमेश का साथ देने लगी।
15-20 मिनट की चुदाई के बाद जब रमेश का पानी निकलने को हुआ तो रेखा से उसने पूछा- पानी कहां निकालूं?
आंटी ने कहा- अंदर ही निकालो।
इस प्रकार 10-15 जोरदार धक्के देने के बाद रमेश ने जोर-जोर से झटके लेते हुए देसी आंटी की चुत में अपना पानी निकाल दिया और उसके ऊपर लेट गया।
रेखा रमेश के बालों को सहलाने लगी और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान तैर गई।
इधर रमेश अभी भी हांफ रहा था और अपनी सांसें सामान्य होने के इंतजार में पड़ा था।
कुछ देर के बाद वो शांत हो गया।
अब दोनों के बदन सामान्य हो चुके थे।
चुदाई के बाद दोनों एक दूसरे की आंखों में देखकर मुस्कराने लगे।
फिर उसके बाद एक दूसरे को लंबा चुम्बन किया और रेखा रमेश की बाहों में लेट गई।
वो बोली- रमेश, जब तक तुम यहां हो, तब तक तुम मेरी चूत की आग शांत करते रहो।
रमेश भी तो यही चाहता था।
उसने उसके माथे पर चूमते हुए कहा- हां मेरी जान … मैं तुम्हारी इस चूत को कभी लंड की कमी महसूस नहीं होने दूंगा।
तो दोस्तो, रमेश के शहर में आने के बाद यह उसका पहला सेक्स अनुभव था।
इस कहानी को मैं यहीं पर विराम दे रहा हूं।
आपको कहानी पसंद आई या नहीं … इसके बारे में अपनी राय जरूर देना। आपकी राय के आधार पर मैं रमेश की जिन्दगी के चुदाई के और भी किस्से आप तक लाता रहूंगा। आपको रमेश और रेखा की जिन्दगी में चुदाई से जुड़ी कई कहानियां यहां पर पढ़ने को मिलेंगी।
मुझे ईमेल करें या फिर कमेंट्स सेक्शन में जाकर देसी आंटी की चुत की कहानी के बारे में फीडबैक दें।
मेरा ईमेल है- [email protected]
What did you think of this story??
Comments