मस्त आंटी की चुदास-1
विशाल लोगान
दोस्तो, मेरा नाम विशाल है, उमर 19 साल है, आजमगढ़ का रहने वाला हूँ और इलाहाबाद में एक कालेज से बी.टेक. कर रहा हूँ, पार्ट टाईम कालबॉय का काम भी करता हूँ।
मैं 5 फुट 4 इँच का हैंडसम ब्वाय हूँ। मेरे लण्ड की लम्बाई 6.3 इन्च और मोटाई 2.2 इन्च है।
अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है और यह कहानी मेरे पहले सेक्स के बारे में और इस बारे में भी है कि कैसे मैं एक कालबॉय बन गया।
बात उस समय की है जब मैं 12वीं के इम्तिहान दे चुका था। मेरे लगभग सारे दोस्त आगे की पढ़ाई के लिए कहीं न कहीं जा रहे थे। मुझे भी इन्जीनियरिंग की तैयारी के लिए कहीं न कहीं जाना था क्योंकि आजमगढ़ में कोई अच्छी कोचिंग नहीं है। अन्त में कानपुर जाना तय हुआ। कानपुर में मेरा एक दोस्त राजेश पहले से ही था इसलिए मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं थी।
अप्रैल के मध्य में मैं कानपुर गया। दोस्त का कमरा हितकारी नगर, छपेड़ा मार्केट के पास में था। उसने अपने लॉज में ही एक रूम दिला दिया। चूँकि वो पहले से ही कोचिंग कर रहा था, इसलिए उसी की कोचिंग में दाखिला ले लिया, क्लासेज 10 मई से चलने वाली थीं।
चूंकि मैं पहली बार अपने घर से बाहर आया था इसलिये बहुत अजीब लग रहा था। पढ़ने में मन नहीं लगता था, बार-बार घर की याद आती थी। इसलिये मैं और राजेश घूमने निकल जाते थे।
मैं ऐसे शहर से आया था जहाँ पर बहुत ज्यादा खुलापन नहीं है, पर कानपुर में अलग ही नजारा था। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली नज़र आती थी।
क्या गजब गजब का नजारा होता था जब लड़कियाँ हाफ पैन्ट-जीन्स में सामने से गुजरतीं तो पैन्ट में उफान आ जाता था, मन करता था कि पकड़ कर अभी चोद दूँ। रूम पर पहुँच कर मुठ मारने के बाद भी साला लण्ड में अकड़पन बरकरार रहता।
हम लोग रोज शाम को घूमने जाते थे, जे.के.मन्दिर, माडल पार्क, विश्नोई पार्क पसन्दीदा जगहें थीं। वहाँ जाने के दो फायदे थे, एक तो सैर हो जाती थी और दूसरे मन भी बहल जाता था।
वहाँ पर लड़के-लड़कियाँ का पेड़ों की आड़ में चुम्बन करना आम बात थी, पर हम लोगों के लिये बिल्कुल नई बात थी। कहीं-कहीं पर तो शर्ट में हाथ डालकर चूचियाँ दबाते और लन्ड चुसवाते हुए भी मिल जाते थे। उन्हें देखकर लण्ड उफान मारने लगता था।
अब हम लोगों ने तय किया कि ऐसी जगह रूम लेते हैं जहाँ पर चूत का इन्तजाम हो सके। हमारे लॉज के बगल में ही एक दो मन्जिला मकान था।
कहने को तो वो दो मन्जिला था पर बहुत संकरा था, उसमें ऊपर के मन्जिल पर मकान मालिक रहते थे और नीचे के मन्जिल पर एक रुम और एक रसोई था जो कि खाली था और वो किरायेदार खोज रहे थे। हम दोनों ने उसे ले लिया।
मकान मालिक के परिवार में अंकल-आंटी और दो बच्चे जिसमें एक 3 साल का और एक 5 साल का था। अंकल की उमर लगभग 40 साल और आंटी की उमर 28 साल थी। अंकल की यह दूसरी शादी थी। उनकी पहली पत्नी का देहान्त हो चुका था जिससे तीन बच्चे थे पर वो अपने ननिहाल में रहते थे। अंकल और आंटी में कोई मेल नहीं था, अंकल देखने में ही चूतिया लगते थे।
और आंटी.. क्या गजब की माल थीं.. आंटी..!
बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मोटे-मोटे चूतड़.. साली को देखते ही मुँह में पानी आ जाए। जब चलती थी तो उसके चूतड़ ‘लद-पद’ हिलते थे। मन करता था कि साली को पकड़ कर खड़े-खड़े ही चोद दूँ।
अंकल, आंटी जल्दी ही हम लोगों से घुल-मिल गए। अंकल एक कपड़ा मिल में कामगार थे। उनकी ड्यूटी सुबह 8 बजे से 11 बजे तक और शाम को 3 बजे से 8 बजे तक रहती थी।
अक्सर रात को ऊपर से अंकल, आंटी के लड़ने की आवाजें आती थीं। हम लोगों को समझ नहीं आता था कि ये रात को ही क्यों लड़ते हैं, पर धीरे-धीरे हम समझ गए कि शायद अंकल, आंटी को खुश नहीं कर पाते हैं।
एक दिन दोपहर को अंकल जब ड्यूटी से वापस आए तो हम लोगों से बोले कि उन्हें एक रिश्तेदार के घर 3-4 के लिए शादी में जाना है। इसलिए अगले महीने का किराया एडवांस में चाहिए।
चूँकि उतना पैसा पास नहीं था अतः हमने कहा- शाम तक ए.टी.एम. से निकाल कर देंगे।
एक घण्टे बाद राजेश ए.टी.एम. से पैसा निकाल कर लाया। अंकल को देने के लिए आवाज लगाई, लेकिन ऊपर से कोई जबाब नहीं मिला क्योंकि टीवी की आवाज तेज आ रही थी।
उसने मुझसे कहा- ऊपर जाकर पैसा दे आ..!
मैं ऊपर गया और ‘अंकल..अंकल’ पुकारा लेकिन कोई नहीं बोला। फिर मैं कमरे के पास गया, कमरे से टीवी की आवाज आ रही थी, दरवाजे के बगल में खिड़की थी, जो थोड़ी सी खुली थी। मैंने खिड़की से अन्दर झाँका। अन्दर का नजारा देखकर मैं खड़ा का खड़ा रह गया। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। अंकल-आंटी दोनों नँगे थे, एक-दूसरे के ऊपर-नीचे गुंथे हुए थे।
अंकल, आंटी की चूत चाट रहे थे और आंटी, अंकल के लण्ड को चूस रही थीं।
मैं आंटी को देखकर हैरान था, उनको बहुत सीधा समझता था पर वो गपागप लण्ड ले रही थीं।
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मेरा हाथ अपने आप लण्ड पर चला गया और मैं खड़े-खड़े मुठ मारने लगा। अंकल अपनी दो ऊँगलियाँ आंटी की चूत में पेल रहे थे, आंटी जोर जोर से सीत्कार रहीं थीं।
अचानक अंकल जोर से ‘आह.. आह’ चीखे और उनका माल आंटी के मुँह पर गिरा। कुछ मुँह में चला गया और कुछ चूचियों पर। अंकल बगल में लेट गए और अब आंटी अपने हाथों से जोर-जोर से चूत को रगड़ने लगीं, साथ ही साथ बड़बड़ाने लगीं।
‘साले भड़वे नामर्द… अब मेरी प्यास कौन बुझाएगा.. साला रोज जल्दी झड़ जाता है और मैं प्यासी रह जाती हूँ..!’
आंटी को मुठ मारते देख मेरा हाथ भी तेजी से चलने लगा और मैं भी झड़ गया।
अंकल को बिना रुपये दिए मैं नीचे आ गया। नीचे आकर पार्टनर को सारी बात बताई और एक बार फिर से मुठ मारी। शाम को अंकल नीचे आए और पैसे लेकर अपने रिश्तेदार के यहाँ चले गए। अंकल के शादी में चले जाने के बाद हम लोगों के पास तीन दिन का समय था। हम रात भर योजना बनाते रहे कि आंटी को कैसे पटाया जाए।
अगले दिन आंटी दोपहर में नीचे आईं तो पार्टनर उनसे बात करने लगा, बातों ही बातों में मैंने पूछा- अक्सर रात में आप लोग झगड़ा क्यों करते हैं?
यह सुनकर आंटी उदास हो गईं और कुछ नहीं बोलीं। कई बार पूछने पर बोलीं- कोई बात नहीं है, वैसे ही झगड़ा हो जाता है।
जब पार्टनर ने देखा कि आंटी बताने में झिझक रहीं हैं तो फ्लर्ट करता हुआ बोला- अंकल का आपको डाँटना मुझे अच्छा नहीं लगता, आप इतनी अच्छी हैं, हम लोगों ने आपके कारण ही यहाँ कमरा लिया है, हमें पता है कि अंकल आपको खुश नहीं कर पाते हैं और जल्दी झड़ जाते हैं।
पार्टनर बिना रुके बोलता रहा, आंटी यह सुन कर आश्चर्यचकित होकर पूछने लगीं- तुम्हें कैसे पता?
तब मैंने पूरी बात बताई कि कल कैसे मैंने उन्हें देखा था।
आंटी यह सुनकर सर नीचे करके मुस्कुराने लगीं। ऐसा लग रहा था कि मानो पार्टनर आज आंटी को चोदने के लिए तत्पर था, वह तुरन्त आंटी को पकड़ कर चुम्बन करने लगा। आंटी थोड़ा झिझकीं लेकिन जल्दी ही जबाब देने लगीं। मैं जल्दी से गया और गेट अन्दर से बँद कर दिया। मैं आंटी के पीछे से चिपक गया और उसकी गाँड को मसलने लगा। आंटी हम दोनों के बीच में पिसने लगीं।
मैंने आंटी के सलवार का नाड़ा खोल दिया, अब वो नीचे से नँगी थीं। मेरे हाथ आंटी की चूत पर रगड़ने लगे और मुँह में एक चूची लेकर चूसने लगा।
आंटी मजे से सीत्कारने लगीं, आंटी ने हम दोनों के लौड़ों को दोनों हाथों से पकड़ लिया और हिलाने लगीं।
करीब 8-10 मिनट तक यह सब चलता रहा और हम तीनों के मुँह से सीत्कारें निकलती रहीं। अचानक आंटी जोर-जोर से मचलने लगीं और अपना हाथ तेजी से चलाने लगीं। हम दोनों के लण्ड उनकी तेजी बर्दाश्त नहीं कर पाए और झड़ने लगे। आंटी की चूत ने भी पानी छोड़ दिया।
जीवन में पहली बार झड़ने में इतना मजा आया था। थोड़ी देर तक वैसे ही खड़े रहने के बाद हम तीनों बिस्तर पर लेट गए, कोई किसी से कुछ नहीं कह रहा था बस तीनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
आंटी हम दोनों के ऊपर हाथ फिरा रही थीं, थोड़ी ही देर में जोश फिर से वापस आ गया। दूसरा दौर शुरू हो चुका था। पार्टनर चूचियाँ पीने में व्यस्त था, मैं चूत पर टूट पड़ा।
जैसे ही मैंने चूत पर मुँह लगाया आंटी तड़प उठीं। पहली बार किसी चूत को इतने करीब से देख रहा था, छू रहा था, चूस रहा था। दो ऊँगलियों से चूत के दोनों फांकों को फैलाया और जीभ को अन्दर तक पेल दिया। कभी चूस रहा था, कभी दाँतों से काट रहा था।
आंटी की सीत्कारें पूरे कमरे में गूँज रही थीं। उधर आंटी पार्टनर का लण्ड चूस रही थीं, वह लण्ड गचागच मुँह में पेले जा रहा था।
आंटी बार-बार चोदने के लिए कह रही थीं, पर हम लोगों के पास कन्डोम नहीं था इसलिए हम दोनों ने पहले से तय किया था कि कोई रिस्क नहीं लेंगे, आज केवल ऊपर से मजा लेते हैं।
हम दोनों आंटी को जम कर मसल रहे थे, अब दोनों ने अदला-बदली कर ली, वो चूत पर आनन्द लेने लगा और मैं चूचियाँ पीने लगा व चूमने लगा।
मैं और आंटी एक-दूसरे के जीभ का रस पी रहे थे मानों अमृतरस का पान कर रहे हों। अब मैंने अपना लौड़ा आंटी के मुँह में पेल दिया, आंटी एक माहिर खिलाड़ी की तरह गपागप लण्ड चूस रही थीं। आंटी लण्ड चूसते-चूसते जब कभी अँडकोषों को पकड़ कर दबा देतीं तो मारे उत्त्तेजना के साँस ही अटक जाती।
मैं धीरे-धीरे चरम सीमा पर पहुँचने वाला था। मैं पूरी स्पीड से पेलने लगा कुछ ही झटकों बाद झड़ने लगा और पूरा माल आंटी के मुँह में उड़ेल दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आज इतना माल कैसे निकला!
मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ा। अब आंटी और पार्टनर गुत्थमगुत्थी करने लगे और थोड़ी देर में दोनों झड़ गए।
हम तीनों बुरी तरह हांफ रहे थे, तीनों एक-दूसरे को तृप्त निगाहों से देखकर मुस्कुरा रहे थे। मैं और पार्टनर अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहे थे और आंटी महीनों बाद सन्तुष्ट होने पर मुस्कुरा रही थीं।
थोड़ी देर आराम करने के बाद आंटी ऊपर चली गईं और हम दोनों नँगे ही लेटे-लेटे सो गए।
शाम को हम मार्केट गए और एक कन्डोम का पूरा डिब्बा करीब 40 पीस वाला लिया। रूम पर आकर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया गया कि चुदाई का कार्यकम रसोई में किया जाएगा। रसोई में एक बिस्तर अस्थाई रूप से बिछा दिया गया। चूत मिलने की खुशी में अब पढ़ाई तो होने से रही। सो खाना-पीना खाकर सोने की तैयारी करने लगे। सोने से पहले इन्टरनेट से चुदाई की छोटी-छोटी फिल्में डाउनलोड करके आंटी को दे दीं।
मुझे जल्दी ही नींद आ गई। रात को पेशाब करने के लिया उठा तो देखा कि पार्टनर बिस्तर पर नहीं है, पेशाब करने के बाद रसोई के पास गया तो पता चला कि अन्दर चुदाई लीला चालू है।
उनकी चुदाई देखकर मेरा भी लण्ड अँगड़ाई लेने लगा पर मैंने उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया बल्कि उनकी सीधी ब्लू-फिल्म देख कर मुठ मारकर वापस आकर सो गया।
सुबह करीब 6 बजे नींद खुली, पार्टनर बगल में सो रहा था। नित्यक्रिया से होने फारिग होने के बाद आंटी को फोन करके नीचे बुलाया। आंटी के दोनों बच्चे अभी सो रहे थे। आंटी फटाफट नीचे आ गईं, वो तो विडियो देख कर पहले से ही गर्म थीं। आंटी को विडियो देने का सबसे बडा फायदा समझ में आ गया था कि अब हमें उन्हें बुलाना नहीं पड़ेगा बल्कि वो खुद गर्म होकर हमें बुलाएंगीं। आंटी रसोई में चली गईं, पीछे-पीछे मैं भी आ गया।
हम दोनों ही बेसब्र हो रहे थे, एक-दूसरे पर टूट पड़े। काफी देर तक चुम्बन करते रहे। होठों का रसपान करने के बाद चूचियों का रस पीने लगा। साथ ही साथ उनके नितम्बों को मसलने लगा, आंटी मेरे लण्ड को मसल रही थीं। अचानक आंटी ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और लण्ड चूसने लगीं। हम दोनों 69 की अवस्था में हो गए।
आंटी ने लौड़ा चूसते-चूसते अचानक मेरी गाँड में ऊँगली पेल दी, मैं मारे उत्तेजना के चिहुंक गया। जवाब में मैंने भी दो ऊँगलियाँ आंटी की गाँड में पेल दीं, वो भी मजे से उछल पड़ीं। चूत और गाँड की ऐसी चुसाई और गुदाई की कि चूत ने पानी छोड़ दिया। आंटी ने भी चूस-चूस कर लौड़े का पानी निकाल दिया और पूरा रस गटक गईं।
कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद दूसरा दौर शुरू हुआ। एक-दूसरे को सहलाते-सहलाते फिर से गरम हो चुके थे। कन्डोम निकाल कर लौड़े पर पहना और आंटी जो कि पीठ के बल लेटी हुई थीं, की चूत में पेल दिया।
एक पल को ऐसा लगा कि जैसे लौड़ा किसी भट्ठी में डाल दिया हो। मेरी तो ‘आह’ निकल गई, मैं तेजी से पेलने लगा। दो मिनट तक पेलने के बाद लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ, तो मैंने लन्ड बाहर निकाल लिया और आंड को दबा कर पकड़ लिया। अब मैंने आंटी को घोड़ी बनने के लिये कहा।
आंटी घोड़ी बन गईं और मैं पीछे से चूत पेलने लगा। चूचियाँ पकड़ कर पीछे से धक्के लगाने का मजा ही कुछ और होता है। पीछे से धक्का लगता ‘भच्चाक-भच्चाक’ और आंटी के मुँह से निकलता ‘आह-आह’..! यही कोई 7-8 मिनट पेलने के बाद जब झड़ने को हुआ तो चूत से निकाल कर कन्डोम निकाल कर आंटी के मुँह में लन्ड डाल दिया। आंटी एक-एक बूंद निचोड़ कर पी गईं।
दोस्तों ये थी मेरी पहले सेक्स की कहानी। इसके बाद तो लगभग रोज ही मैं और पार्टनर आंटी चुदाई करने लगे। इसके आगे क्या-क्या हुआ वो बाद में फिर कभी लिखूँगा।
कहानी कैसी लगी, ईमेल करके जरूर बताइएगा मुझे आपके इमेल्स का इन्तजार रहेगा।
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