अंतहीन प्यास-4
आपकी सारिका कंवल
उसने पजामे के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाते हुए पैंटी को खींच कर किनारे कर दिया। वो अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरे कूल्हों के बीच दबाने लगा साथ ही मुझे जोरों से पकड़ अपनी और खींच रहा था और दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था।
उसने अपने मुँह से मेरे बालों को किनारे किया और गर्दन पर अपनी जीभ घुमाने लगा, जैसे कि मुझे चाट रहा हो।
तभी अचानक उसने मेरी योनि से हाथ हटाया और मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया।
मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया, वो भी समझ गया कि मैं नहीं चाहती सो उसने मुझे छोड़ दिया। पर अब भी वो अपना लिंग रगड़ रहा था और थोड़ी देर में शांत हो गया।
मैं समझ गई कि वो झड़ गया है।
उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी, पर हम उसी अवस्था में खड़े रहे, न वो कुछ मुझे कह रहा था.. न मैंने उससे कुछ कहा।
करीब एक घंटे बाद बारिश रुकी तो हमने चलने की सोची।
उसने मेरी तरफ देखा मैंने उसकी तरफ देखा। उसे देख कर लगा जैसे वो मुझसे बहुत सी उम्मीदें कर रहा हो।
मैंने तुरंत अपनी नजरें नीची की और चुपके से अपने पजामे के नाड़े को बाँधा और वहाँ से चल दी। रास्ते भर मैं खुद को कोसती रही कि मैं यह आज क्या कर रही थी। सही समय पर खुद को न रोका होता तो पता नहीं क्या हो जाता।
पर आप कितना भी खुद को रोको जो होना होता है, वो होकर ही रहता है। चाहे वो आपकी ख़ुशी से हो या मज़बूरी बन जाए।
मैं दिन भर यही सोचती रही, मेरा मन पूरा दिन बैचैन रहा और मैंने ठान ली कि मैं उससे दुबारा नहीं मिलूँगी।
अगले दिन वो मेरे पास आया, पर मैंने उससे दूर रहने की सोची, सो मैं थोड़ा अलग व्यवहार किया। दो दिन बाद तो हमने बातें करना भी बंद कर दीं।
फिर इस बीच पति एक दिन आए और चूंकि मेरी सम्भोग की इच्छा उसी दिन से बहुत थी पर पति का साथ तो न मिलने के बराबर था। हमने सम्भोग किया, पर पति तो झड़ते ही सो गए और मैं रात भर तड़पती रही।
पति के जाने के बाद एक दिन मुर्तुजा ने मुझे फिर से टोका, मैंने भी ‘हाय-हैलो’ किया बस.. और घर चली आई।
मेरी बैचैनी बढ़ती जा रही थी, मुझसे अकेले रात कट नहीं रही थी। मुझे एक साथी की जरुरत महसूस होने लगी थी। बैचैनी में मुझे नींद नहीं आ रही थी सो मैंने सोचा कि मुर्तुजा से बात करूँ।
मैंने फोन करने की सोची तो देखा रात के दो बज रहे थे। सो मैंने अपना निर्णय बदल दिया और सोने का प्रयास करने लगी पर नींद तो जैसे अब मेरी दुश्मन बन गई थी, आने का नाम ही नहीं ले रही थी।
मैंने मुर्तुजा को एक ‘मिस कॉल’ दे दिया, मैंने सोचा कि इतनी रात को कोई फोन नहीं करता, सोने की कोशिश करने लगी।
करीब दस मिनट के बाद मेरा फोन बजा मैंने देखा तो मुर्तुजा का था।
सोचा कि फोन नहीं उठाऊँ, पर पता नहीं.. फिर क्या दिल में आया कि फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो कैसी हो.. सोई नहीं अभी तक?
मैंने कहा- नहीं.. नींद नहीं आ रही थी, पर आप अभी तक क्यों नहीं सोये?
उसने जवाब दिया- मैं तो सोया था, पर आपका ‘मिस कॉल’ देख कर उठ गया। आप शायद मुझसे नाराज़ हैं उस दिन के लिए!
मैंने कहा- नहीं.. मैं नाराज़ नहीं हूँ!
उसने फिर कहा- देखिए उस दिन के लिए माफ़ी चाहता हूँ.. मैं बहक गया था। आप प्लीज हमसे दोस्ती न तोड़िए। आप इस तरह से मुझे दरकिनार कर रही हैं.. मुझसे बात नहीं कर रही, मुझे अच्छा नहीं लगा।
मैंने कहा- मुझे शर्म आ रही थी इसलिए आपसे बात नहीं कर रही थी और इसमें आपका क्या दोष गलती मेरी है।
उसने कहा- जी.. मैं माफ़ी चाहता हूँ ऐसी गलती दुबारा कभी नहीं होगी, पर आप उस दिन इतनी खूबसूरत लग रही थीं कि खुद को रोक न सका।
मैं अपनी तारीफ़ सुन कर खुश हुई और फिर सोचा कि ठीक ही तो कह रहा है इसमें गलती उसकी क्या थी.. गलती तो मेरी थी, मैं उसे रोक लेती तो उसकी हिम्मत नहीं होती!
हम इसी तरह से बातें करने लगे और बात उस दिन की आई-गई हो गई। उसने मुझे बताया कि वो अपनी बीवी से खुश नहीं है और पता नहीं उसे कैसे यह आभास हो गया कि मैं भी अपने पति से से खुश नहीं हूँ।
करीब 5 बजे तक हम बातें करते रहे और उसने मुझे अगले दिन मिलने के लिए बुलाया पहले तो मैं ‘न’ करती रही फिर बाद में ‘हाँ’ कह दिया।
मेरे बच्चे का स्कूल 12 बजे खत्म होता था तो मैं 11.30 बजे घर से निकलती थी, पर आज मुर्तुजा के कहने पर मैं 9 बजे ही घर से निकल गई।
मैं उससे बाज़ार में मिली वह हमने एक जगह चाय पी फिर उसने कहा- स्कूल के पास लगभग एक किलोमीटर दूर एक पार्क है, वहाँ चल कर बातें करते हैं, फिर वहीं से बच्चों को वापस ले आयेंगे।
हमने एक रिक्शा लिया और चले गए। वहाँ पहुँच कर देखा तो वो पार्क कोई पार्क जैसा नहीं लग रहा था, खुला जंगल सा था पास में ब्रह्मिनी नदी बह रही थी।
एक पुराना मन्दिर था जिसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं था, मन्दिर की सीढ़ियाँ नदी में जाती थीं, जिस पर घास और पेड़-पौधे उग गए थे और चारों ओर पेड़ और जंगल सा लग रहा था, दूर-दूर तक कोई नहीं था।
मैंने पूछा- पार्क तो कही नजर नहीं आ रहा?
उसने जवाब दिया- पहले यह पार्क ही था, पर शहर से काफी दूर है इसलिए यहाँ कोई आता-जाता नहीं है और यह अब बंद हो चुका है, अब यहाँ कभी-कभार ही कुछ प्रेमी जोड़े आते हैं।
मैंने फिर पूछा- तो आप मुझे यहाँ क्यों लाए हैं?
उसने मुस्कुराते हुए कहा- देखिए मेरा कोई गलत मकसद नहीं है, हम दोनों शादीशुदा हैं और शहर में मिलना ठीक नहीं क्योंकि लोग फिर आपके बारे में गलत सोचेंगे, तो मैं आपको यहाँ ले आया ताकि हम बातें कर सकें और किसी को कुछ कहने का मौका न मिले। अगर आपको अच्छा नहीं लगा हो तो हम वापस चलते हैं।
मैंने उसकी ऐसी बातें सुन कर ठीक ही लगा और कहा- नहीं, ठीक है यहीं बातें करते हैं… एकांत है और नजारा भी अच्छा है।
हम थोड़ी देर इधर-उधर टहलते हुए बातें करते रहे फिर नीचे उतर कर नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठ गए और फिर बातें करने लगे।
हम इधर-उधर की बातें करते रहे फिर अचानक उसने मुझसे पूछा- आप उस दिन के लिए मुझसे नाराज़ तो नहीं है न… मैं उस दिन बहक गया था।
मैं उससे नजरे छिपाती हुई बोली- अब जो हो गया सो भूल जाइए… गलती हर इंसान से होती है, मैं भी भूल चुकी हूँ।
तब उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मेरी तारीफ़ करने लगा- आपके बाल कितने लम्बे और घने हैं, आप बहुत खूबसूरत हैं।
मैं भी अपनी तारीफ़ सुन कर खुश थी और धीरे-धीरे हम खुलते चले गए।
मैं उस दिन पीले रंग की साड़ी में थी। अचानक पेड़ से एक गिरगिट मेरे पैर के पास कूद कर भागा, मैं डर के मारे चिल्लाते हुए मुर्तुजा से जा लिपटी।
मुर्तुजा ने हँसते हुए मुझे देखा और कहा- कुछ नहीं.. गिरगिट था।
उसने मुझे अपनी बांहों में थामा हुआ था और फिर अचानक हमारी नजरें मिलीं।
कुछ देर तक हम एक-दूसरे को ऐसे ही देखते रह गए, फिर उसने मुझसे कहा- तुम्हारे बदन की खुश्बू कितनी मादक है… मुझे दीवाना कर रही है।
मैं उसकी बांहों में समाई, उसकी बातें सुन रही थी और हमारी नजरें एक-दूसरे को देख रही थीं। तभी उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को लगा दिया और चूमने लगा।
उसके होंठ मेरे होंठों से लगते ही मेरी आँखें बंद हो गईं, मेरे हाथों ने उसे कस कर पकड़ लिया जैसे कोई डरा हुआ बच्चा अपनी माँ को पकड़ता है, फिर मैंने भी उसे चूमना शुरू कर दिया, मुझे मेरी काम-भावना ने मुझे विवश कर दिया था।
हम जैसे-जैसे एक-दूसरे को चूमते जाते वैसे-वैसे एक-दूसरे को अपनी बांहों की कैद में और कसते जा रहे थे।
जब वो मेरा ऊपर का होंठ चूसता तो मैं उसके नीचे के होंठ को चूसती और जब वो नीचे का चूसता तो मैं ऊपर का.. फिर कभी वो मेरी जीभ को चूसने लगता, तो कभी मैं उसके जीभ को… तो कभी हम एक-दूसरे की जुबान को जुबान से रगड़ते। हम दोनों को बहुत मजा आने लगा था और हम दोनो एक-दूसरे में खो गए थे।
अब उसके हाथ भी हरकत करने लगे। उसने एक हाथ से मुझे सहारा दिया था और दूसरे हाथ को मेरे बदन पर फिराने लगा था, उसने मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। वो मुझे चूमता साथ ही मेरे स्तनों को दबाता… उन्हें सहलाता… मुझे मस्ती सी छाने लगी।
उसने अब अपना हाथ मेरी कमर के आस-पास फिराने में लगा दिया, फिर मेरी नाभि को एक उंगली से सहलाने लगा मैं तो जैसे पागल सी हुई जा रही थी और उसे और जोरों से पकड़ कर चूमने में लगी थी।
मेरी नाभि से खेलने के बाद उसने अब मेरी जांघों को साड़ी के ऊपर से ही छूना शुरू किया। फिर साड़ी को ऊपर उठाने लगा। साड़ी को मेरी जांघों तक उठा कर उसने मेरे पैरों और जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
मैं अपनी टाँगें सटा कर बैठी थी और मस्ती में अपनी योनि को जांघों के बीच दबाने लगी।
उसने अपना हाथ ऊपर किया और मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए योनि को सहलाने लगा। उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने लिंग के ऊपर पैन्ट पर रख दिया। मैंने भी लिंग को ऊपर से दबाना शुरू कर दिया।
हम काफी देर तक इसी तरह दुनिया भूल कर एक-दूसरे की बाँहों में एक-दूसरे के अंगों को सहलाते और प्यार करते रहे। फिर अचानक उसके हाथ मेरी पैंटी को उसे उतारने के लिए खींचने लगे।
मैंने झट से उसका हाथ थाम लिया यह सोच कर कि यह जगह ठीक नहीं।
तभी उसने कहा- क्या हुआ मैं बैचैन हूँ मुझे और मत तड़पाओ।
मैंने कहा- यह ठीक नहीं!
उसने कहा- देखो आप भी अपने पति से खुश नहीं हो.. मैं भी अपनी बीवी से.. इससे अच्छा मौका और क्या होगा?
मैंने कहा- नहीं… यह जगह ठीक नहीं है कोई देख लेगा!
उसने कहा- आज कोई छुट्टी का दिन नहीं है, कोई यहाँ नहीं आ सकता और ऐसी जगह में कोई देख भी नहीं सकता। यह तो पूरा जंगल है।
मैंने कहा- नहीं कहीं और चलो या फिर बाद में कभी मौका मिलेगा तब करेंगे!
उसने कहा- मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता और अब समय भी नहीं है कि कहीं और चलें… प्लीज मुझे मत तड़पाओ!
वो मेरे सामने घुटनों के बल मुझसे विनती करने लगा। कभी मुझे चूमता तो कभी मेरे बालों को सहलाता और मनाने की कोशिश करने लगा।
काफी कहने और मनाने के बाद मेरा भी दिल पिंघल सा गया, यूँ कहिए कि मेरे अन्दर की वासना भी शायद मुझसे संभल नहीं रही थी,
मैंने कहा- समय बहुत हो गया है, सो जल्दी से करना होगा।
उसने कहा- ठीक है और अपने पैन्ट को खोल कर नीचे कर दिया और मुझसे कहा आप अपनी पैंटी निकाल दीजिए।
मैंने अपनी साड़ी को कमर तक ऊपर उठाया और पैंटी निकालने लगी, पर मैंने फिर उसे ऊपर चढ़ा दिया।
इस पर उसने कहा- क्या हुआ.. पैंटी क्यों पहन ली?
मैंने अपनी पैंटी को खींच कर एक तरफ कर दी और अपनी योनि उसे दिखाते हुए कहा- ऐसे कीजिए पैंटी निकालने और पहने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
उसने कहा- आपकी पैंटी गीली हो जाएगी।
मैंने कहा- कोई बात नहीं, जल्दी-जल्दी में और क्या किया जा सकता है।
उसने मेरी बात सुन कर अपना अंडरवियर नीचे सरका दिया और शर्ट को ऊपर किया उसका लिंग तनतनाया हुआ मेरे सामने दिखा। पर उसके लिंग को देख कर मैं हैरान रह गई। लम्बा मोटा घने बालों में ढंका सा जो लिंग से होते हुए छाती तक थे।
मैंने पूछा- यह क्या है… ऐसा तो कभी नहीं देखा मैंने पहले किसी का?
उसने बताया कि उनके लंड का खतना कर दिया जाता है।
मैंने पूछा- वो क्या होता है?
उसने मुझे बताया- लंड के ऊपर के चमड़े को काट दिया जाता है और सुपाड़े को खुला छोड़ दिया जाता है!
मैंने उससे पूछा- ऐसा क्यों?
तो उसने कहा- बहुत लम्बी कहानी है बाद में कभी बताऊँगा फिलहाल चोदने दो..!
उसने अपने लंड को हाथ से हिलाया और कहा- अपनी टाँगें फैलाइए और मोड़ लीजिए।
मैंने अपनी टाँगें फैला लीं और घुटनों से मोड़ लिया। मुर्तुजा मेरी टांगों के बीच आया उसने अपने लिंग को मेरी योनि के पास रखा और हाथ से लिंग को पकड़ कर मेरी योनि के बीच ऊपर-नीचे रगड़ने के बाद सुपाड़े को योनि की छेद में टिका दिया।
मेरी अंतहीन प्यास की कहानी जारी रहेगी।
आप मुझे ईमेल कर सकते हैं।
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