मैं पूरे परिवार से चुदी-3

यश ठाकुर 2014-04-09 Comments

प्रेषिका : आशा
संजय यह देख कर पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था, इससे पहले मैं कुछ कहती वो मेरे बदन पर चढ़ गया और मेरे मम्मे दबाने लगा। मैंने उसका सर पकड़ और अपनी एक चूची उसके मुँह में चूसने के लिए दे दी।
मैंने बोला- शाबाश संजय, तू जल्दी सीख गया, बोल चोदेगा अब मुझे?
संजय ने मुझे बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया और बोला- हाँ आंटी, कहाँ डालना है लंड बताओ?
मैंने बोला- अपनी चूत की पंखुड़ियों को फैला के, जहाँ उंगली डाली दी थी, बस वहीं पर डालना है.. धीरे-धीरे घुसाना !
संजय मेरी टाँगों के बीच में बैठ गया और मैंने उसका लंड धीरे से अपने चूत में डाल लिया, उसके मुँह से आह निकल पड़ी।
वो बोला- आह.. आंटी यह तो बहुत ही मज़ा देती है।
मैं मुस्कुरा दी और बोली- देख तू दो बार पानी छोड़ चुका है, अब तू जल्दी नहीं झडेगा, मैं अपनी टाँग उठाती हूँ और तू कोशिश कर कि तेरा लंड ऊपर की तरफ मेरी बच्चेदानी के छेद पर रगड़ खाए, ऊपर की तरफ धक्के लगाएगा तो औरतों को ज्यादा मज़ा आएगा, समझा !
वो बोला- समझ गया आंटी।
और उसने फिर तो जोर-जोर के धक्के लगा कर मुझे चोदा।
मैंने बोला- संजय तुझे एक बात और सिखाती हूँ, लंड पेलते समय अगर तू औरत की चूत का दाना मसलेगा तो उसका पानी जल्दी निकलेगा और औरत को और मज़ा आएगा लेकिन औरत उत्तेजना सहन नहीं कर पाती और वो तुझे रोकेगी क्योंकि नसों में खिंचाव होता है, पर तुझे रुकना नहीं है।
वो समझ गया और उसने लंड पेलते हुए मेरी चूत का दाना भी मसलना शुरू कर दिया, मेरी चूत रस छोड़ रही थी उसके लंड के ऊपर।
मुझे उसके लंड की नसें सिकुड़ती और फैलती हुई महसूस हुई चूत में, तो मैंने तुरंत उसका लंड बाहर निकाल लिया क्योंकि मैं उसकी मलाई को चूत में नहीं झड़ने देना चाहती थी।
उसने मेरे मम्मों पर पूरे मलाई छोड़ दी और निढाल हो कर बिस्तर पर गिर पड़ा। मैं समझ गई कि उसमें अब और ताकत नहीं बची है, मैंने उसको दवाई सिर्फ 50 मिलीग्राम की दी थी, 100 मिलीग्राम की देती तो शायद दो बार तो मेरी और लेता। मैंने सोचा, चलो कुछ तो शांती मिली मेरी चूत को।
संजय निढाल हो कर थोड़ी देर लेटा रहा और कल फिर आने का वादा कर के अपने घर वापस चला गया।
मैंने चुदवा तो लिया था पर जैसे मुझे पूरी संतुष्टि नहीं हुई थी, मैं सोचने लगी, अगर संपत या शर्मा जी चुदवाने को मिल जाएँ तो मज़ा आ जाएगा।
मैंने सोचा, अगर मैं बीमार होने का नाटक करूँ तो रेणुका को बोल कर रात को संपत या शर्मा जी को अपने घर में सोने के लिए बोल सकती हूँ और शायद रात को कोई मौका मिल जाए।
बस फिर क्या था, संजय के जाने के एक घंटे बाद ही मैंने ऐसा ड्रामा करना शुरू किया, जैसे कि मुझे हाई ब्लड-प्रेशर हो गया हो और मैंने सांस तेज़ चलने का और घबराहट होने का नाटक किया और फ़ोन कर के रेणुका को बताया कि मेरी तबियत खराब हो गई है।
रेणुका ने शर्मा जी और संपत को बुलाया और बोला कि मुझे तुरंत ही हस्पताल ले जाएँ। मैं घबरा गई, मुझे हस्पताल तो जाना नहीं था, ड्रामा करने का कारण संपत को रात में अपने घर में सुलाना था।
लेकिन रेणुका मानी नहीं और बोली- मेरी तबियत ज्यादा खराब लग रही है और तुरंत हस्पताल ले कर जाना पड़ेगा।
मैंने अभी भी वही शॉर्ट् नाइटी पहनी थी जिसमे मैंने घंटे भर पहले संजय से चुदवाया था। संजय अपने कमरे में सो रहा था इसलिए उसको मेरे इस ड्रामे के बारे में कुछ भी नहीं पता था। अब सवाल यह उठा कि हस्पताल लेकर कैसे जाया जाए? शर्मा जी के पास कार तो थी नहीं, बस एक बजाज का स्कूटर ही था।
रेणुका ने बोला- मुझे बीच में बिठा कर संपत पीछे से पकड़ लेगा और शर्मा जी थोड़ा संभाल कर चला लेंगे।
एम्बुलेंस का इंतज़ार करने से रेणुका डर रही थी कि मेरी तबियत और खराब ना हो जाए। मैंने भी ज्यादा मना करना ठीक नहीं समझा क्योंकि उनको शक हो जाता कि मैं ड्रामा कर रही हूँ।
रेणुका ने एक चादर लपेट दी और मुझे संभाल कर सहारा देते हुए बाहर तक ले आईं। बजाज का स्कूटर तो दो सीटर ही होता है और मुझे अपने पैर फैला कर बीच में बैठना पड़ा।
संपत मेरे पीछे बैठा था और जब मैं बैठी तो मेरे और संपत के बीच में चादर ऊपर हो गई। चड्डी तो मैंने अपने शॉर्ट् नाइटी के नीचे वैसे ही नहीं पहनी थी और मेरी गांड सीधे संपत के लंड को दबाने लगी।
मैंने शर्मा जी के कंधों को पकड़ा हुआ था और संपत ने पीछे से मेरी कमर को। शर्मा जी ने स्कूटर स्टार्ट किया और धीरे-धीरे चलाने लगे। सड़क खराब थी और मेरी गांड के दबाव से मुझे जल्दी ही कुछ चुभता हुआ महसूस होने लगा अपनी गांड में। मुझे समझते देर ना लगी कि संपत का लंड पैंट में खड़ा हो गया था। स्कूटर रोड पर धीरे-धीरे बढ़ रहा था और मैंने अपना हाथ संपत के हाथ के ऊपर रखा और उसको ऊपर मेरी छाती के पास पकड़ने को बोला।
मेरी छाती पकड़ने के बहाने और सड़क पर गड्डे होने के कारण संपत ने मेरे मम्मे मसलने शुरू कर दिए थे। मैंने भी उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर उसे ग्रीन सिगनल दे दिया था। अब तो मुझे ऐसा लग रहा था कि बस किसी तरह यह अपना लंड पैंट से बाहर निकाल के डाल दे। मेरी किस्मत साथ दे रही थी।
संपत ने बोला- पापा एक मिनट स्कूटर रोकना, वो आंटी को जो चादर लपेटी थी, वो खुल रही है।
शर्मा जी ने दो मिनट के लिए स्कूटर रोका, संपत ने चादर मेरे अगल-बगल तो लपेट दी पर ऐसे लपेटी कि पीछे से मेरी गांड पूरी खुली और नंगी थी।
मैंने देखा उसने अपनी पैंट की जिप को खोल दिया था। उसने मेरे चूतड़ को उठा कर अपने लिए जगह बनाई और धीरे से मुझे अपने खड़े लंड पर बिठा लिया।
उसका लंड बाहर निकला हुआ था और मेरी गांड की दरार में चुभा, मैं समझ गई संपत मेरी स्कूटर पर बैठे-बैठे ही ले लेगा।
मैं भी तो कहीं भी चुदने को तैयार थी। शर्मा जी ने स्कूटर चलाना शुरू किया और संपत ने बिना देर किए एक झटके में मेरी गांड में लंड अन्दर डाल दिया।
मैंने अपने सिसकारी को रोका और शर्मा जी का कन्धा जोर से दबा दिया।
शर्मा जी बोले- क्या हुआ? आप ठीक तो है ना बहन जी?
मैंने बोला- हाँ.. भाई साहब, मैं ठीक हूँ आप स्कूटर चलाते रहिए।
शर्मा जी स्कूटर चला रहे थे और स्कूटर खराब सड़क पर धक्के खा रहा था और संपत पीछे से मेरी गाण्ड मार रहा था। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था स्कूटर पर बैठ के चुदवाने में। संपत के हाथ मेरे मम्मे दबा रहे थे और उसका लंड स्कूटर के धक्को के साथ मेरी गांड में अन्दर-बाहर हो रहा था।
मैंने सोचा अगर शर्मा जी को भी मैं चोदने के लिए तैयार कर लूँ तो मज़ा आ जाएगा, मैंने सोचा कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है। फिर क्या था, मैंने अपना हाथ शर्मा जी के कंधे से हटा के उनके कमर पर रख दिया और फिर जैसे स्कूटर धक्के खाने लगा, मेरा हाथ सामने की तरफ उनके लंड के ऊपर चला गया।
शर्मा जी कुछ नहीं बोले और स्कूटर चलाते रहे। फिर क्या था एक थोड़ा सा बड़ा गड्ढा आया तो मैंने बस शर्मा जी का लंड पकड़ कर पैंट के ऊपर से ही दबा दिया। शर्मा जी को मजा आ गया, उन्होंने मुझसे कहा- आप मुझे जरा ठीक से पकड़ लो न !
अबकी बार उन्होंने मुझे बहन जी नहीं कहा था। संपत का लंड तो मेरी गांड में था ही, फिर मैंने शर्मा जी की पैंट की ज़िप खोल कर अपना हाथ अन्दर डाल कर उनके लंड को मसलना शुरू कर दिया।
मैं धीरे से शर्मा जी के कान में फ़ुसफुसाई- मज़ा आ रहा है क्या शर्मा जी? आज रात को मेरे घर में रुकने का बहाना बना लो।
हस्पताल आने वाला था और संपत ने मेरी गांड में अपने लंड की पिचकारी छोड़ दी थी, शर्मा जी का लंड मैंने पैंट में ही झड़ा दिया।
दोनों ने मुझे डाक्टर को दिखाया, डाक्टर ने कुछ चेकअप किए और दवाई लिख कर दे दी और बोला- अगर कल भी ऐसा ही होता है तो फिर और चेकअप के लिए लाना पड़ेगा।
क्योंकि डाक्टर को कुछ समझ में ही नहीं आया कि बीमारी क्या है। समझ में आता भी कैसे जब कोई बीमारी थी ही नहीं, शर्मा जी और संपत मुझे वापिस घर लेकर आ गए और रेणुका को बताया कि डाक्टर ने आज भर ध्यान रखने को बोला है, तो मुझे अकेला नहीं छोड़ सकते। रेणुका का घर छोटा था और मैं अकेली रहती थी तो मेरे घर में ज्यादा जगह थी।
मैंने कहा- अगर रेणुका को कोई ऐतराज ना हो तो आज शर्मा जी मेरे घर पर ही दूसरे कमरे में सो जाएँ।
रेणुका मान गई। शर्मा जी का दिल बल्लियों उछलने लगा। अब शर्मा जी मेरी चूत के नए शिकार थे। रेणुका और संपत अपने घर ले गए।
शर्मा जी ने मेन गेट बन्द किया और मुझे आँख मारते हुए लौड़ा सहलाने लगे और बोले- मैं भी अभी गुसलखाने से होकर आता हूँ।
वे जब तक गए तब तक मैंने अपनी अल्मारी से वोदका की बोतल निकाली और बोतल से ही एक लम्बा घूँट खींचा और फिर 555 सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकाली और लाइटर से जला कर सोफे पर अपनी टाँगें पसार कर चूत को हवा खिलाने लगी।
आज मेरी चूत की रात रंगीन होने वाली थी। शर्मा जी गुसलखाने से बिल्कुल नंगधडंग अपना मस्त लौड़ा हिलाते हुए मेरे सामने पेश हुए। उन्होंने जब मुझे चूत पसारे सिगरेट पीते हुए देखा और सामने टेबल पर वोदका की भरी बोतल देखी तो किलकारी मार कर बोले- वाह जानेमन आज तो फुल मस्ती का इंतजाम है।
मैं उनका लौड़ा निहार रही थी- सुन बे बकलोल, ज्यादा चुदुर चुदुर मत कर, दारु पी ले सिगरेट पी ले पर मेरी चूत की सेवा में तूने कोई कसर छोड़ी तो मैं तेरी माँ चोद दूँगी…।”
मेरे इस बदले हुए स्वरूप को देखकर शर्मा जी की सिट्टी-पिट्टी गम हो गई। खैर फिर उनने खुद और मुझे वोदका पिलाई, सिगरेट फूँकी… और लग गए मेरी चूत चाटने में।
उस पूरी रात मैंने शर्मा जी के लण्ड का भुरता बना दिया और अब मेरे लिए वे एक अच्छे चोदू के रूप में मुझ मिल गए थे।
अभी के लिए फिलहाल इतना ही आप लोगों के इमेल प्राप्त होने के बाद मैं अपनी आगे की कथा लिखूँगी, तब तक के लिए नमस्कार।
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