तरक्की का सफ़र-5
(Tarakki Ka Safar- Part 5)
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सुबह मैंने देखा कि प्रीती हाथ में चाय का कप लिये मुझे उठा रही थी, “उठो! कितनी सुबह हो गयी है, क्या ऑफिस नहीं जाना है?” उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि उसने हालात से समझौता कर लिया था। कल रात के किस्से को उसने अपना लिया था। मैं मन ही मन खुश हुआ पर ये मेरी खुशी कितनी गलत थी ये मुझे बाद में पता चला।
मैंने उसे काफी समझाने की कोशिश की पर मेरी हर कोशिश के बावजूद उसने मेरे साथ सोने से साफ इनकार कर दिया।
हम लोग हमारे नये नियापेनसिआ रोड के फ्लैट में शिफ़्ट हो गये। घर काफी बड़ा था। एक दिन ऑफिस से घर लौटते हुए मैंने देखा कि एक ३०-३५ साल का आदमी घर से बाहर निकल रहा है।
घर में घुस कर मैंने देखा कि प्रीती नाइटी पहने हुए है और बिस्तर काफी सलवटों से भरा पड़ा था।
“वो आदमी कौन था जो अभी यहाँ से गया?” मैंने पूछा।
“अरे वो? वो हमारा बनिया था”, प्रीती ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा।
“वो हमारा बनिया तो था पर वो हमारे घर में क्या कर रहा था, और ये बिस्तर ऐसा क्यों हुआ पड़ा है?” मैंने गुस्से में कहा।
“मुझे उसे तीन महीने का बिल देना था, और मैं उसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकती थी।”
“तो?” मैंने पूछा।
“तो क्या? मैंने उसका हिसाब अपनी चूत देकर चुक्ता कर दिया”, प्रीती ने एक बदमाशी भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया।
“तुमने क्या किया?” मैं जोर से चिल्लाया।
“राज! चिल्लाने की जरूरत नहीं है, तुम ही हमेशा कहा करते थे कि पैसा संभाल कर खर्चा करा करो, देखो मैंने अपनी चूत से तुम्हारे कितने पैसे बचा दिये।”
पहली बार मुझे अपने आप पर अफ़सोस हो रहा था कि मैंने उसे एम-डी के साथ क्यों सोने दिया।
जो होना था वो हो गया। अब मुझे इस नयी प्रीती के साथ ही निभाना पड़ेगा। ज़िंदगी रूटीन की तरह चल पड़ी। प्रीती आज भी मुझे उसे चोदने नहीं देती थी, पर हाँ! मेरी तीनों एसिस्टेंट्स मुझसे बराबर चुदवाती रहती थी। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
एक दिन शाम को महेश ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और मेरी तरफ एक प्रिंटेड फोर्म बढ़ाते हुए कहा कि “राज! इस भर के दे दो।”
“सर ये क्या है? ये तो नेशनल क्लब का एपलीकेशन फोर्म है”, मैंने आश्चर्य में कहा।
“हाँ! हमारे एम-डी तुम्हारे काम से बहुत खुश हैं, इसलिये वो चाहते है कि तुम इस क्लब के मेंबर बन जाओ।”
मैंने खुश होते हुए फोर्म भर के दे दिया।
करीब एक महीने बाद महेश मुझसे बोला, “राज तुम्हारी क्लब की एपलीकेशन मंजूर हो गयी है और अब तुम उस क्लब के मेंबर हो। और क्लब की परंपरा के अनुसार नये मेंबर्स को एक गेट-टू-गेदर में बुलाया जाता है…. जहाँ उनका सबसे परिचय कराया जाता है। तुम शनिवार को शाम को क्लब पहुँच जाना और प्रीती को लान ना भूलना। पार्टी शाम आठ बजे है।”
मैंने घर पहुँच कर ये खबर प्रीती को सुनायी और पूछा, “क्या तुम चलोगी?”
“क्यों नहीं चलुँगी?” उसने जवाब दिया। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
शनिवार को हम लोग पार्टी में पहुँचे, जहाँ एम-डी ने हमारा परिचय सबसे कराया। वहाँ उनकी वाइफ, ’मिसेज मिली’ और हमारे एक्स एम-डी की वाइफ ’मिसेज योगिता’ भी थी। एम-डी और प्रीती काफी घुल मिल कर बातें कर रहे थे और प्रीती ड्रिंक्स में एम-डी का पूरा साथ दे रही थी। पार्टी में बहुत मज़ा आया।
घर लौटते वक्त मैंने प्रीती से पूछा, “पार्टी कैसी लगी?”
“अच्छी थी!” उसने जवाब दिया।
एक दिन महेश ने मुझसे कहा, “राज! इस शनिवार को प्रीती को ठीक आठ बजे क्लब भेज देना। मैं कार भेज दूँगा।”
मैंने प्रीती को बताया और कहा, “प्रीती तुम्हें वहाँ नहीं जाना चाहिये।”
“क्यों नहीं जाना चाहिये? अब मैं बड़ी हो गयी हूँ! एम-डी से कहना, मैं पहुँच जाऊँगी।”
शनिवार को शाम प्रीती काफी सज़ धज़ कर तैयार हो गयी। मैंने कहा, “प्रीती! तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिये, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।”
“नहीं! तुम चल कर क्या करोगे? वैसे भी एम-डी की कार आ चुकी है।” उसने जाते हुए कहा, “हाँ!!! मेरा इंतज़ार मत करना, हो सकता है मुझे लेट हो जाये।”
मैं काफी देर तक जागता रहा। करीब आधी रात को वो नशे में धुत्त हो कर लड़खड़ाती हुई घर आयी। मैं सोने का बहाना करे बिस्तर पे पड़ा रहा। मुझे सोता समझ वो भी सो गयी। सुबह उसने मुझे ढेर सारे रुपये पकड़ाते हुए कहा, “राज। इन्हें संभाल कर रखो, ये तुम्हारी राँड की पहली कमाई है।”
मैं आश्चर्य चकित था। उससे अपने व्यवहार की माफी माँगना चाहता था मगर उसने बीच में ही कहा, “कुछ कहने की जरूरत नहीं है, अब बहुत देर हो चुकी है, तुम अपनी तीनों एसिसटेंट को चोदते हो, इस बात का मैंने तो कभी बुरा नहीं मना।”
“कौन कहता है?” मैंने विरोध करना चाहा।
“रहने दो! मुझे सब पता है। मुझे वो तस्वीरें मिल गयी थी जो तुमने अपनी मोटर-साइकल की डिक्की में छुपायी थीं। तुम्हारे दिल में जो आये उसे चोदो पर मेरे काम में डिस्टर्ब मत करो, जो मेरा दिल चाहेगा मैं करूँगी। मैं जिससे जी चाहेगा चुदवाऊँगी और खुलेआम शराब सिगरेट पीयूँगी… तुम्हें मुझे टोकने का कोई हक नहीं है।”
“राज एक बात बताओ, उस रात मेरे कोक में क्या मिला था जिसकी वजह से उस रात को मेरी चूत में इतनी खुजली हो रही थी?” उसने पूछा।
अगर मुझे प्रीती को वापस पाना है तो उसे सब सच बताना ही पड़ेगा। मैंने यह सोचते हुए कहा, “क्योंकि उस कोक में उत्तेजना की दवा मिली हुई थी।”
“इसलिये उस रात मेरी चूत में इतनी खुजली हो रही थी, और चुदवाने के लिये दिल मचल रहा था…, अब समझी मैं, राज! मैं तुम्हारा ये एहसान कभी नहीं भूलूँगी।”
इसके बाद वो हफ़्ते में तीन-चार बार क्लब जाने लगी और हर बार जाने से पहले वो स्पेशल दवा मिली शराब पीकर जाती। रात को लौटती तो शराब के नशे में चूर होकर, ढेर सारा पैसा लेकर लौटती। घर में पैसा बढ़ने लगा।
एक दिन उसने मुझे कहा, “राज मैं चाहती हूँ कि आज तुम मुझे होटल शेराटन लेकर चलो, वहाँ एम-डी और महेश हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।”
मैं प्रीती को लेकर होटल शेराटन पहुँचा। सूईट में एम-डी और महेश इंतज़ार कर रहे थे। हमें देखते ही एम-डी खुशी से बोला, “आओ प्रीती आओ, ये भी अच्छा है तुम राज को साथ ले आयी, पिछली बार की तरह आज मज़ा आयेगा।”
प्रीती ने सीधे बार की तरफ बढ़ कर तीन ड्रिंक्स बनाये और हम लोगों को पकड़ा दिये और खुद के लिये शराब में स्पेशल दवाई मिला कर पीने लगी। हम लोग थोड़ी देर तक बातें करते रहे। फिर एम-डी ने कहा, “प्रीती! मैंने अपने दोस्तों से सुना है कि तुम्हारा एक अलग अंदाज़ है कपड़े उतरने का, हमें भी दिखाओ ना।”
बिना कुछ कहे हुए प्रीती खड़ी हुई और एक झटके में अपना ड्रिंक पी कर उसने म्यूज़िक लगा दिया। फिर एक और बड़ा सा ड्रिंक बना कर एक ही साँस में गटकने के बाद अब वो म्यूज़िक पर थिरक रही थी।
“महेश! इसे जरा ध्यान से देखना, मेरे दोस्त कह रहे थे कि ये बहुत अच्छा करती है, मैं भी देखना चाहता था।”
प्रीती का अंदाज़ जरा ज्यादा ही निराला था। उसका झटक कर अपनी साड़ी का पल्लू गिराना और खुद से कहना, “प्लीज़ ऐसा मत करो ना मुझे शरम आयेगी।”
मैं समझ गया वो नयी दुल्हन की तरह पेश आ रही थी जैसे उसका पति उसे नंगा करना चाहता है। वो पति और पत्नी दोनों की आवाज़ में बोल रही थी।
“प्लीज़ मेरे कपड़े मत उतारो ना।” उसने अपने दांये हाथ से अपना पल्लू ठीक किया।
“प्लीज़ डार्लिंग उतारने दो ना”, और अपने बांये हाथ से फिर पल्लू गिरा दिया।
इसी तरह से अपना उत्तेजनात्मक नाटक करते हुए प्रीती अब सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और हाई-हील सैंडल में खड़ी थी।
एम-डी और महेश दोनों गरम हो चुके थे और अपनी पैंट के ऊपर से ही अपना लंड सहला रहे थे।
“प्रीती! बाकी के कपड़े भी उतार दो, रुक क्यों गयी?” एम-डी ने कहा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
“बाकी के मैंने तुम्हारे लिये छोड़ दिये हैं।” ये सुनते ही एम-डी ने खड़े होकर प्रीती को बाँहों में भर लिया और उसकी ब्रा उतार दी। वो उसके मम्मे दबाने लगा।
महेश ने भी घुटनों के बल बैठ कर उसकी पैंटी उतार दी और उसकी चूत पर अपनी जीभ फेरने लगा। तीनों काफी उत्तेजित हो चुके थे और लंबी-लंबी साँसें ले रहे थे।
“प्रीती अब और मत तरसाओ, हमें चोदने दो ना प्लीज़”, एम-डी ने अपने कपड़े उतारते हुए कहा।
“हाँ प्रीती! देखो मेरा लंड कैसे भूखे शेर की तरह खड़ा है।” महेश ने अपने कपड़े उतार कर अपना खड़ा लंड प्रीती को दिखाया।
“ठीक है! तुम लोग मुझे चोदना चाहते हो?” प्रीती ने पूछा।
“हाँ! हम तुम्हें चोदना चाहते हैं!!” दोनों ने साथ जवाब दिया।
“और गाँड भी मारना चाहते हो?” उसने फिर पूछा।
“हाँ हाँ!!!” दोनों ने फिर जवाब दिया।
“तो ठीक है पहले पैसे कि बात तय हो जाये”, उसने एक दम प्रोफेशनल की भाषा में बात की।
“क्या तू चाहती है कि हम तुझे चोदने के पैसे दें”, एम-डी ने चौंकते हुए कहा।
“हाँ! याद है तुम्हें? एक दिन अपने दोस्त को तुमने क्या कहा था? दोस्त इस दुनिया में कुछ भी मुफ़्त में नहीं मिलता, अगर तुम इसे चोदना चाहते हो तो इसकी कीमत देनी पड़ेगी, सो नो पैसा, नो चूत!!!” प्रीती ने जवाब दिया।
“पर प्रीती लास्ट बार तो हमने कोई पैसा नहीं दिया था”, एम-डी बोला। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
“आपकी याद्दाश्त खराब है शायद, लास्ट बार आपने दूसरे तरीके से कीमत चुकायी थी और वो कीमत आप आज भी हर महीने चुका रहे हैं”, प्रीती ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“ठीक है!!! कितना पैसा चाहिये?” एम-डी एकदम व्यापारी कि तरह कहा।
“वही जो सब देते हैं, दस हज़ार एक आदमी का!” प्रीती ने जवाब दिया।
“मगर इतना पैसा मेरे पास अभी इस वक्त नहीं है, मैं कल दे दूँगा”, एम-डी ने कहा।
“मेरे पास भी नहीं है, मैं भी कल दे दूँगा, प्रॉमिस!” महेश भी झट से बोला।
“सॉरी फ्रैंड्स, आज पैसा… आज चूत। अगर कल पैसा तो चूत भी कल।” कहकर प्रीती अपने कपड़े उठाने लगी।
“ठहरो! मेरे पास मेरी चेक बुक है, मैं तुझे चेक दे देता हूँ”, एम-डी ने अपनी पॉकेट से चेक बुक निकाली।
“मैं भी तुम्हें चेक दे देता हूँ!” महेश भी चेक निकाल कर लिखने लगा।
“ठीक है! लेकिन एक बात याद रखना कि अगर ये चेक कल सुबह पास नहीं हुए तो मैं तुम दोनों पर मुकदमा करूँगी और देखुँगी तुम दोनों जेल में जाओ…, चाहे इसके लिये मुझे पूरे पुलीस डिपार्टमेंट से क्यों ना चुदवाना पड़े”, प्रीती ने जोर से कहा।
“चिंता मत करो, पास हो जायेंगे”, एम-डी ने अपनी ड्रिंक का घूँट भरते हुए कहा।
“ठीक है!” प्रीती ने भी अपना दवा मिला तीसरा ड्रिंक पूरा किया।
“जब सब तय हो गया तो देर किस बात की है?” एम-डी ने पूछा।
“किसी बात की नहीं, बस मुझे राज से कुछ कहना है”, प्रीती मुझे कोने में ले जाते हुए बोली, “राज! इन दोनों हरामियों को कमरे में लेकर जा रही हूँ, तुम अंदर जो भी हो रहा है, वो सब टीवी चालू कर वी-सी-आर से रिकॉर्ड कर लेना”, मैंने कुछ ना समझते हुए भी हाँ कर दी।
“और हाँ!! ये चेक संभालो”, कहकर प्रीती दोनों को उनके लंड से पकड़ कर कमरे में खींच के ले गयी।
उनके जाने के थोड़ी देर बाद मैंने टीवी चालू किया और देखा कि एम-डी जोर-जोर से अपना लंड प्रीती की चूत में पेल रहा था और प्रीती महेश के लंड को प्रीती मुँह में लेकर चूस रही थी। पिक्चर इतनी क्लीयर थी कि क्या कहूँ। मैं सब रिकॉर्ड करने लगा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
दो घंटे बाद प्रीती कमरे से बाहर निकली और कपड़े पहन कर एक और ड्रिंक बनाकर पीते हुए बोली, “चलो राज! घर चलते हैं।”
वो नशे में चूर लड़खड़ा रही थी। घर जाते वक्त उसने पूछा, “टीवी पर शो कैसा लगा और तुमने सब रिकॉर्ड कर लिया ना? ”
जब मैंने बताया कि बहुत ही क्लीयर पिक्चर थी और मैंने सब रिकॉर्ड कर लिया है तो उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। उसके कहने पर मैंने अपने और उसके लिये एक-एक सिगरेट सुलगा दीं।
“प्रीती! तुमने बिना एम-डी की जानकारी के ये सब इक्यूपमेंट कैसे इंस्टाल कर लिये?” मैंने पूछा।
“राज! तुम औरत की चूत की ताकत का अंदाज़ा नहीं लगा सकते, पहले तो होटल के मैनेजर ने मना कर दिया पर जब मैंने उससे चुदवा लिया तो वो मान गया”, उसने हँसते हुए जवाब दिया।
“लेकिन तुम ये सब क्यों कर रही हो, तुम्हारा मक्सद क्या है?” मैंने उत्सुक्ता से पूछा।
“पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लग रहा है कि भविष्य में ये सब हमारे काम आयेगा। मेरा मक्सद क्या है ये समय आने पर तुम जान जाओगे”, प्रीती ने फिर हँसते हुए कहा।
दो महीने बाद तक, सब कुछ ऐसे ही चलता रहा। प्रीती इसी तरह हफ्ते में तीन-चार बार क्लब जाती और रात को नशे में धुत्त पैसे से भरा पर्स लेकर लौटती। उसने घर पर भी शराब-सिगरेट पीनी शुरू कर दी।
एक दिन प्रीती बोली, “राज! चलो हम कुछ दिन के लिये अपने घर हो आते हैं, तुम्हारी माताजी भी कई बार लिख चुकी हैं।”
ये सुन कर मुझे एक बहाना मिल गया प्रीती को यहाँ से भेजने का। कुछ दिन के लिये तो इस दलदल से बाहर निकलेगी। मैंने कहा, “प्रीती तुम हो आओ, मैं काम की वजह से नहीं जा पाऊँगा।”
हम लोगों ने बहुत शॉपिंग की। मैंने सबके लिये तोहफ़े खरीदे और प्रीती को ट्रेन मैं बिठा कर विदा कर दिया।
एक महीने बाद आज प्रीती लौटने वाली थी। मैं उसे लेने स्टेशन पहुँचा तो देखा कि वो आ चुकी थी और मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैंने माफी माँगते हुए कहा, “सॉरी प्रीती! ट्रैफिक में फँस गया था, आओ चलते हैं।”
इतने में मैंने आवाज़ सुनी, “भैया”, और पीछे मुड़ कर देखा तो मेरी दोनों बहनें अंजू और मंजू हँसते हुए खड़ी थी। मैंने दोनों को बाँहों में भरके चूमा। “प्रीती! अच्छा किया जो तुम इन दोनों को साथ ले आयी, मैं इन्हें मिस कर रहा था”, मैंने कहा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
हम लोग घर पहुँचे। अंजू और मंजू दोनों खुश थी। मेरी नयी कार और फ्लैट की बहुत तारीफ कर रही थी। हम लोग जब खाना खा रहे थे तो मैं उनसे उनके बारे में पूछने लगा। वो दोनों सब बता रही थी: घर के बारे में, अपनी सहेलियों के बारे में।
“तुम दोनों ने एक बात तो बतायी ही नहीं”, मैंने कहा।
“क्या नहीं बताया भैया?” अंजू ने कहा।
“अपने बॉय फ्रैंड्स के बारे में…” मैंने हँसते हुए कहा।
वो दोनों सोच में पड़ गयी और प्रीती की तरफ देखने लगी। फिर मंजू मुँह बनाकर बोली, “भैया आपको मालूम है कि हम ऐसी लड़कियाँ नहीं हैं।”
“फिर तो तुम लोगों के लिये लड़के ढूँढने पड़ेंगे, है ना प्रीती?” मैंने हँसते हुए कहा।
“मैं भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी”, प्रीती ने जवाब दिया।
अगले दिन तक मैं अपनी बहनों को घुमाता फिराता रहा, सिनेमा दिखाया। दोनों बहुत खुश थीं, किंतु मेरे और प्रीती में सब कुछ वैसा ही था। शायद उसने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया था।
मैं सुबह रोज़ की तरह ऑफिस पहुँच चुका था। दोपहर के करीब चार बजे प्रीती ने फोन किया और घबरायी आवाज़ में कहा, “राज तुम जल्दी घर आ जाओ, अंजू और मंजू…..।”
मैंने घबरा कर पूछा, “क्या हुआ अंजू और मंजू को?”
“बस तुम जल्दी आ जाओ”, कहकर प्रीती ने लाईन डिसकनेक्ट कर दी।
मैं अपना सब काम छोड़ कर घर पहुँचा और प्रीती से पूछा, “क्या हुआ? कहाँ हैं वो दोनों?”
प्रीती ने शरारती मुस्कान के साथ उन दोनों के बेडरूम की तरफ इशारा किया। मैंने देखा बेडरूम का दरवाजा आधा खुला हुआ था और उसमें से मादक सिसकरियों की आवाज़ आ रही थी।
“क्या हो रहा है वहाँ?” मैंने घबरा के पूछा।
“क्या हो रहा है? अरे यार, चुदाई हो रही और क्या…” प्रीती मुस्कुराते हुए बोली।
“किसके साथ?” मैं चिल्लाया।
“एम-डी और महेश के साथ और किस के साथ…” प्रीती ने सिगरेट का धुँआ छोड़ते हुए जवाब दिया।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। एम-डी और महेश मेरी बहनों को चोद रहे थे। “उनकी हिम्मत कैसे हुई उन्हें चोदने की। मुझे उन्हें रोकना होगा….” मैं जोर से चिल्लाते हुए खुले दरवाजे की और बढ़ा।
“अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो उन्हें नहीं रोकती”, प्रीती ने कहा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
“क्या मतलब है तुम्हारा? मैं यूँ ही चुपचाप खड़ा रहूँ और देखता रहूँ अपनी बहनों की बरबदी को?” मैंने गुस्से में कहा।
“यह कोई तुम्हारे लिये नयी बात नहीं है, इसके पहले भी तुम चुपचाप खड़े अपनी बीवी को दूसरे मर्दों से चुदवाते देख चुके हो, लेकिन मेरा ये मतलब नहीं है….” उसने मुझ पर ताना कसते हुए कहा।
“तो तुम्हारा क्या मतलब है?” मैंने पूछा।
“ज़रा ठंडे दिमाग से सोचो, अगर तुमने एम-डी को उसके इस आनंद में बीच में ही रोक दिया तो ना सिर्फ तुम अपनी नौकरी से हाथ धो बैठोगे बल्कि इस नियापेनसिआ रोड का फ्लैट भी हाथ से जाता रहेगा जिसे तुमने अपनी बीवी की चूत कुर्बान कर के पाया है…” प्रीती ने समझाया।
हाँ… प्रीती सच कह रही थी। मैंने सोचा, अगर एम-डी चाहे तो ये सब कर सकता था। हे भगवान! मैं क्या करूँ? क्या ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूँ। अपनी लाचारी देख मुझे रुलाई फ़ूट पड़ी।
“अब तुम कर भी क्या सकते हो…? उन दोनों का लंड तुम्हारी दोनों बहनों कि चूत में घुस चुका है। ये सच्चाई है और इसे बदला नहीं जा सकता, मैं तो कहती हूँ कि उन लोगों का काम खत्म होने तक इंतज़ार करो…” प्रीती ने सलाह दी। प्रीती के हाथ में ड्रिंक का ग्लास था और वो सिगरेट के कश लेते हुए धीरे-धीरे ड्रिंक सिप कर रही थी।
“ओह गॉड ये सब क्या हो रहा है?” मैंने अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए कहा।
तभी मुझे अंजू की मादकता भरी आवाज़ सुनाई दी, “हाँ डालो…. और जोर से डालो… हाँआंआँआँआँ इसी तरह चोदते रहो…. बहुत अच्छा लग रहा है… हाँ मेरा छूटने वाला है….।”
अपने कानों पर हाथ रखते हुए मैंने प्रीती से कहा, “मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है”, और मैं सोफ़े पर बैठ गया। मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे।
इतनी देर में मुझे अंजू की तरह ही मंजू कि भी आवज़ सुनाई दी। वो भी मादकता में चिल्ला रही थी, “और ज़ोर से चोदो मुझे… हाँ इसी तरह हाँआंआंआं… बहुत अच्छा लग रहा है…. और तेजी से डालो अपना लंड… आआआआआआआआआआहहहह मेरा भी छूटने वाला है।”
“वाह क्या टाईट चूत है…. हाँ! ले मेरे लंड को अपनी चूत में… पूरा समा ले और मेरा सारा पानी पी ले…” कहकर महेश ने उसकी चूत में अपना पानी छोड़ दिया।
मैं चुपचाप बैठा अपने आप को कोस रहा था। ना मुझे माँ ने जनम दिया होता, ना मैं यहाँ नौकरी करने आता, ना मेरी इच्छायें बढ़ती और ना ही मैं प्रीती के साथ ऐसा व्यवहार करता। इससे तो अच्छा था कि मैं पैदा होते ही मर जाता।
“राज सुना! एम-डी अब अंजू की गाँड मारना चाहता है….” प्रीती चुलबुलाती हुई बोली।
“अंजू! अब तुम घोड़ी बन जाओ…, मैं अब तुम्हारी गाँड मारूँगा”, एम-डी ने कहा।
“नहीं! मैं तुम्हें अपनी गाँड नहीं मारने दूँगी, सुना है बहुत दर्द होता है…” अंजू ने जवाब दिया।
“गाँड तो तुम्हें मरवानी पड़ेगी! हाँ, तुम्हें दर्द होगा तो मैं रुक जाऊँगा”, एम-डी ने उत्तर दिया।
“प्रॉमिस???”
“प्रॉमिस!!! कसम ले लो”, कहकर एम-डी ने अपना लंड अंजू की गाँड में घुसा दिया। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
“ओहहहह प्लीज़ रुक जाइये! मुझे बहुत दर्द हो रहा है”, अंजू दर्द से कराही।
“थोड़ी देर की बात है जानू, मेरा लंड तुम्हारी गाँड में घुस रहा है”, कहकर एम-डी ने पूरा लंड उसकी गाँड में घुसा दिया।
“ऊऊऊऊऊईईईईईईईई माँ…. मर गयी….” अंजू जोर से चिल्लायी।
“डरो मत! मेरा लंड पूरा का पूरा तुम्हारी गाँड में है, सब ठीक हो जायेगा”, एम-डी जोर से कहकर अपना लंड अंदर बाहर करने लगा।
“राज… डरो मत! अंजू की गाँड तो बहुत पहले फट चुकी थी”, प्रीती ने हँसते हुए कहा।
“अब तुम्हारी बारी है गाँड में लंड लेने की….” मैंने महेश को मंजू से कहते सुना, “चलो बिस्तर पर पेट के बल लेट जाओ।”
“नहीं मैं तुम्हें अपना इतना मोटा लंड मेरी गाँड में नहीं डालने दूँगी…. बचाओ बचाओ… भाभी!!! मुझे बचाओ…. ” मंजू जोर से चिल्लायी।
“जितना चिल्लाना है जोर से चिल्ला, आज तेरी प्यारी भाभी भी तुझे बचाने के लिये नहीं आ सकती, तुम्हारी भाभी ने तुम्हारी गाँड मारने की पूरी कीमत मुझसे वसूल की है। मैं आज तुम्हारी गाँड मार के रहुँगा, चाहे तुम राज़ी हो या न हो। अगर खुशी से मरवाओगी तो तुझे मज़ा भी आयेगा और दर्द भी कम होगा”, महेश ने कहा।
क्या प्रीती ने इस सब के पैसे लिये हैं? मैं फिर समझ गया कि इन सब में प्रीती का ही हाथ है।
“ठीक है… जरा धीरे-धीरे करना, और जब मैं कहूँ तो रुक जाना”, मंजू ने महेश से विनती करते हुए कहा।
“ठीक है तुम जैसा कहोगी… वैसा ही करूँगा”, कहकर महेश अपना लंड मंजू की गाँड पर रगड़ने लगा।
“देखो राज! अब मंजू की गाँड भी फटने वाली है… ये फटी…… फटी…” प्रीती ड्रिंक पीते हुए मज़े ले-ले कर बोल रही थी।
“ओहहहहह मर गयी…. हरामी साले निकाल ले…. बहुत दर्द हो रहा है”, मंजू जोर से चिल्लायी, पर उसकी आवाज़ ना सुन कर महेश ने एक करारा धक्का मार कर अपना पूरा लंड मंजू की गाँड में घुसा दिया।
अंजू की मादक सिसकरियाँ और मंजू की दर्द भरी चीखों ने मेरा दिमाग सुन्न कर दिया था। मुझे कुछ होश नहीं था कि मैं कब तक यूँ ही बैठा सब सुनता रहा।
जब होश आया तो देखा कि एम-डी अपनी बाँहें फैलाये मेरी तरफ बढ़ रहा था। “ओह मॉय राज! तुम कितने अच्छे हो, तुमने स्पेशियली अपनी बहनों को अपनी बीवी द्वारा बुलवाया जिससे हम उन्हें चोद के मज़ा ले सकें….” उसने मुझे बाँहों में भरते हुए कहा। मैं कुछ कहना चाहता था पर मेरी आवाज़ गले में ही घुट कर रह गयी।
“कुछ कहने की जरूरत नहीं! हमें प्रीती ने सब समझा दिया था। हम उनकी कुँवारी चूत नहीं चोद पाये तो क्या…. पर कुँवारी गाँड तो चोद ही ली। वैसे उनकी चूत बहुत टाइट थी, हमें खूब मज़ा आया। तुम्हारी इस उदारता और नेक काम के लिये तुम्हें इनाम मिलना चाहिये, क्यों महेश क्या कहते हो?”
हमेशा की तरह महेश ने एम-डी की हाँ में हाँ मिलायी और फिर दोनों चले गये।
अब सब कुछ शीशे की तरह साफ़ था। प्रीती ने ही सब किया था किंतु उसने अंजू और मंजू को चुदाई के लिये तैयार कैसे किया? एम-डी ने कहा कि दोनों कुँवारी नहीं थी और उस दिन ही जब मैंने उनसे बॉय फ्रैंड्स के बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा था कि वो वैसी लड़कियाँ नहीं हैं? कई सवाल मेरे दिमाग में रह-रह कर आ रहे थे।
इतने में मेरी सोच टूटी। अंजू और मंजू कमरे से सिर्फ सैंडल पहने ही नंगी ही बाहर आ रही थी और उनकी चूत से पानी टपक रहा था। दोनों हँसते हुए आयी और प्रीती से पूछा, “क्यों भाभी कैसा रहा?” दोनों की चाल और हाव-भाव से साफ पता चल रहा था कि उन दोनों ने भी शराब पी हुई थी।
“शानदार!!! बल्कि मैं कहुँगी लाजवाब”, प्रीती भी खुशी से बोली, “मंजू यहाँ आओ… मुझे तुम्हारी गाँड देखने दो… कहीं इसमें से खून तो नहीं आ रहा, जब गाँड मारने की बात आती है तो महेश का भरोसा नहीं कर सकती।” इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
मंजू झुक कर अपनी गाँड प्रीती को दिखाने लगी। “शुक्र है!!! कुछ खास नहीं हुआ है, थोड़ी सी सूजन है… वो कुछ घंटों में ठीक हो जायेगी”, प्रीती ने उसकी गाँड को परखते हुए कहा और सिगरेट का धुँआ उसकी गाँड में छोड़ दिया।
“मुझे भी यही लगता है, कि कुछ लगाने की जरूरत नहीं है, इतनी सारी दवाई जो अंदर गयी हुई है”, मंजू ने हँसते हुए कहा, “भैया आपको हमारी चुदाई कैसी लगी?”
ओह गॉड कितनी सुंदर थी दोनों। उनके उभरे और भरे हुए मम्मे और उस पर काले निप्पल गज़ब ढा रहे थे। उनकी बिना बालों की चूत ऐसे निखर रही थी क्या कहना। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि प्रीती के कहने पर ही उन्होंने अपनी झाँटें साफ़ करी होंगी। मुझे शर्म आ रही है ये कहते हुए कि उनका गोरा बदन देख कर मेरा लंड भी एक दम तन कर खड़ा हो गया था।
“चुप रहो और जाके कपड़े पहनो”, मैं चिल्ला कर बोला।
“देखो इसके तने हुए लंड को”, प्रीती ने मेरे खड़े लंड की और इशारा करते हुए कहा, “जाओ जा कर कपड़े पहनो इसके पहले कि तुम्हारे भैया का सब्र टूटे और ये तुम्हें चोदने लगे।”
“मुझे बुरा नहीं लगेगा”, अंजू ने कहा, “आओ भैया और अपना लंड मेरी चूत में डाल दो, भाभी ने बताया है कि इन्होंने जितने भी लंड का स्वाद चखा है उसमें तुम्हारा लंड सबसे जानदार और अच्छा है।”
“हाँ भैया! हम दोनों को चोदो… हम तैयार हैं…” मंजू ने भी कहा।
“इससे पहले कि मैं तुम दोनों की पिटायी करूँ, यहाँ से दफ़ा हो जाओ और जा कर कपड़े पहनो…” मैं जोर से चिल्लाया। वो दोनों घबरा कर रूम में भाग गयीं।
थोड़ी देर बाद वो अपने कपड़े पहन कर आ गयी और सोफ़े पर बैठ गयी। मैंने प्रीती की तरफ देखते हुए कहा, “प्रीती!!! अब इनकार मत करना! मैं समझ गया हूँ कि इस सब के पीछे तुम्हारा हाथ है।” इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!
“इनकार कौन कर रहा है, बल्कि मैं तो खुश हूँ कि मैंने अकेले ही ये सब कर दिखाया”, उसने जवाब दिया।
“लेकिन प्रीती तुमने ऐसा क्यों किया? झगड़ा तुम्हारे मेरे बीच था, उसमें मेरी बहनों को घसीटने की क्या जरूरत थी?” मैंने सवाल किया।
“जरूरत थी राज!!! मैं भी तुम्हें उतना ही दुख देना चाहती थी जितना तुमने मुझे दिया था। मुझे मालूम है तुम अपनी बहनों से बहुत प्यार करते हो, इसलिये जो आज हुआ इसी से मेरा बदला पूरा हो सकता था”, प्रीती ने जवाब दिया।
“लेकिन क्यों प्रीती, क्यों?” मैं धीरे से बोला।
“भाभी!!! हम बतायें या आप बतायेंगी?” अंजू ने पूछा।
“नहीं अंजू! मुझे ही इसका आनंद लेने दो, तुम लोग भी बैठ जाओ… इस कहानी को सुनने में थोड़ा वक्त लगेगा…” प्रीती ने कहा और अपने लिये एक ड्रिंक बना कर और सिगरेट सुलगा कर बैठ गयी।
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