सेक्स की शुरुआत ऑफिस की दोस्त के साथ
(Sex Ki Shuruaat Office Ki Dost Ke Sath)
यह सेक्स कहानी दो दोस्तों के बीच पहले प्रेम और बाद में आगे बढ़कर हुए संबंधों के बारे में चर्चा करती है!
मेरा नाम नीरज समझ लो! उम्र 28 साल, दिखने में ठीक-ठाक हूँ! कॉलेज के दिनों से ही मैं बहुत शर्मीला था, कभी लड़कियों से गहरी दोस्ती नहीं की थी पर विज्ञान का छात्र होने के नाते बहुत सारी चीजें जानता था. और मेरी पसंद की कोई मिली भी नहीं थी जो दिखने में चाहे परी ना हो लेकिन अच्छे सोच वाली और नेक दिल वाली होनी चाहिए!
मैं खुले और सच्चे स्वभाव का होने के वजह से भी जो भी दिल में हो सब बता देता था! और इतना सच बहुत कम लोग सुन पाते थे. कई लड़कियों से प्यार और आगे की बातें भी हुई थी, पर शारीरिक रूप से किसी को पास नहीं आने दिया; ना मौके का फायदा उठाने की कोशिशें की!
किन्तु इतने लोगों से अच्छा नाता होने की वजह से लड़कियों को अच्छे से समझने लगा था, उनकी जरूरतें, उनकी अपेक्षाएं, कोई साथ है इस भावना का उनके लिए महत्व, इत्यादि!
पढ़ाई खत्म करके एक दफ्तर में काम शुरू कर दिया! काम काफी मन लगा के करता था, कोई शौक नहीं पालता था.
सब से बोलता भी अच्छा था तो चंद दिनों में ही वहाँ के सारे लोग और कर्मचारियों के साथ घुल मिल गया.
वहीं मेरे ऑफिस में एक लड़की भी थी! चंचल, बड़ी बड़ी आंखें, हमेशा फुर्तीली और तेज! अपना काम बखूबी करती और फिर किसी की एक ना सुनती!
उसके साथ मेरा काफी अच्छा दोस्ताना हो गया! हम दोनों मन लगा कर अच्छा काम करते और फिर कभी कुछ बातें कर लेते!
ऐसे ही कुछ दिन बीते, फिर महीने बीत गए.
एक दिन मैंने उसे मायूस देखा तो उसी शाम को उस से बात की. उसने कहा कि उसके माता पिता उसे कहीं और जॉब करने को कह रहे है! यहाँ की तनख्वाह उन्हें ठीक नहीं लगती और उसे यही काम करने का मन है लेकिन माता पिता की बात ही माननी पड़ेगी!
वो तीन महीने और रूक कर जाने वाली थी.
उसके जाने की बात से मुझे बड़ा दुःख हुआ क्योंकि मैं मन ही मन उसे पसंद करने लगा था!
एक दिन हम ऑफिस के किसी काम से बाहर गए थे, आते वक़्त गाड़ी में बैठे थे, ड्राइवर आगे बैठा गाड़ी चला रहा था! वो मायूस बैठी थी लेकिन बड़े ही सजल नेत्रों से मुझे देखे जा रही थी!
मैं सोच में पड़ गया कि कहीं ये भी मुझे पसंद तो नहीं करती? किन्तु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था उसे कुछ कहने की!
आखिर का एक घंटा बच गया था सफर का! अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा और हम आगे धकेले गए! इसी चक्कर में मेरा हाथ उसके हाथ पे चला गया! मैंने देखा कि उसने अपना हाथ वहीं रखा है! हम संभल कर बैठे पर मैंने अपना हाथ नहीं हटाया और उसने भी अपना हाथ मोड़ दिया ताकि मैं अच्छे से उसका हाथ पकड़ पाऊँ!
बस… बाकी का सारा रास्ता उसका हाथ हाथ में लेकर, आहें भरते हुए और एक दूसरे की नजरें टटोलते हुए निकल गया.
इसके बाद दो दिन बस एक दूसरे को देखना, मुस्कराना, नजरों के तीर झेलना, छूकर चले जाना, इसी में समय जाता रहा!
तीसरे दिन किसी काम के चलते वो मेरे घर शाम को आई! उस समय पर मेरे घर पे कोई नहीं होता तो उस दिन भी कोई नहीं था! सब आठ बजे के बाद लौटते थे, हमने काम की बातें की और काम ख़त्म कर दिया.
फिर वो मुस्करा कर जाने लगी, मैं मन ही मन दुखी हुआ कि आगे का दरवाजा हमेशा खुला हुआ रहने से मैं उसे छू भी नहीं सकता.
फिर कुछ सोच कर बोला- मैंने पानी भी नहीं पूछा!
वो बोली- ये कोई अलग घर थोड़ी है, अपना ही है!
और इतना कह कर वो खुद ही किचन में पानी लेने चली गयी!
मैं भी उसके पीछे गया और उसे पीछे से खींच के घुमा कर अपने सीने से लगा दिया!
मेरे द्वारा की गई इस हरकत वो चौंक गयी!
मैंने धीरे से पानी का ग्लास उसके हाथ से निकाल कर अलग रख दिया और उसे कस कर बांहों में भर लिया, वो भी बहुत खुश थी, हमारे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी थी! सारे बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था. मैं उसे बेतहाशा चूमे जा रहा था.
फिर होंठों की बारी आयी, प्यार से उनको अपनी एक उंगली से छुआ और अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिए! बड़ी आहिस्ता से उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच रख कर उन्हें चूमने लगा, आहिस्ता से चूसने लगा! फिर उन होंठों को अपने दांतो के बीच रख कर हल्के से काट लिया!
प्रेम आसक्ति और कामवासना के वशीभूत वो भी मुझे अपनी बाजुओं में जकड़े हुए थी!
होंठो के साथ खेलते खेलते मैंने अपना हाथ गर्दन से होते हुए उसकी छाती पर पहुँचाया और उन व्याकुल गोलाइयों को अपने हाथों से सहलाने लगा, फिर धीरे से उन पर दबाव बढ़ाते गया.
उसने अपना हाथ पकड़ कर जोर से मेरे हाथ को उन गोलाइयों पर भींच दिया.
मैंने भी फिर उसकी सहमति पाकर उन गोलाइयों को मसलना शुरू किया, उसे पलटा दिया और पीछे से उसकी गर्दन पर चूमने लगा! दोनों हाथ पीछे से उसके उरोजों को एक साथ स्पर्श और दबाव से संतुष्ट एवं उत्तेजित कर रहे थे!
फिर दाहिना हाथ धीरे से नीचे पेट से होता हुआ सलवार के नाड़े तक जा पंहुचा! पहली बार किसी लड़की के इन वस्त्रों को जान रहा था, कोशिश की अंदर हाथ ले जाने की, नाड़ा ढूंढने की, उस गांठ को खोलने की, लेकिन समझ ही नहीं आ रहा था.
वो हंस पड़ी और मेरा हाथ नाड़े की गांठ पे ले गयी! नाड़ा खुलते ही हाथ पेंटी की इलास्टिक पे पहुँच गया! थोड़ा सब्र करके मैंने हल्के से एक उंगली अंदर डाली और फिर पूरा हाथ पेंटी के अंदर डाला, कांपते हाथों से मैंने और अंदर मार्गक्रमण किया! कुछ बालों का स्पर्श होते ही उनमे हाथ फेरने लगा और हल्का सा आगे जाते ही काम-रस में भीगी हुई कमल की पंखुड़ियों का स्पर्श हो गया! मेरा पूरा हाथ उस कामरस में भीग गया था!
हल्के से उन पंखुड़ियों को सहला के अंदर थोड़ी उंगली डाल दी!
वो तड़प उठी और मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया! फिर और धीरे से उंगली और अंदर पहुचाई! उसने अपनी टाँगें जकड़ ली और मेरी उंगली को एक अजीब सी गर्मी का एहसास होने लगा!
धीरे धीरे मैं उंगली अंदर बाहर करने लगा! बाहर आने पर उंगली को अनार-दाने पर हल्के हल्के मसलने लगा!
वो मुख से सिसकारियां भर रही थी!
मेरी कुछ कोशिशों के बाद मेरी पैन्ट भी अब तक जमीन को छू चुकी और मेरा शिश्न पूरी तरह फूल चुका था! अब आगे आकर मैंने शिश्न को उस योनि द्वार पे टिका कर उसके कामरस से पूरी तरह भिगो दिया!
शिश्न के अग्र भाग को योनि के पूरे प्रभाग के ऊपर रगड़ना शुरू था और अंदर से काम रस टपकना बढ़ता ही जा रहा था!
हम दोनों की हालत देख कर उससे इशारों में ही पूछ लिया!
उसने शर्मा कर अपने आंखें नीची कर दी और मुझे और जोर से जकड़ लिया! उसकी हाँ मिलने पर धीरे से मेरे शिश्न को योनिभाग में डालने की कोशिश करने लगा लेकिन एक तो हम खड़े ही थे और दूसरा इतने काम रस के वजह से बार बार शिश्न फिसल कर बाजु निकल जाता!
और मेरे हर असफल प्रयास पर वो खिलखिला कर हंस पड़ती!
फिर मैंने झूठ गुस्सा दिखाते हुए उसे उठाकर बेडरूम में बेड पर लिटा दिया, पूरी तरह उसके कपड़े निकाल दिए! मैं भी पूरा निर्वस्त्र हो गया था!
उसे फिर से एक बार पूछा कि उसे कोई एतराज तो नहीं?
उसके हामी भरते ही मैंने उसके पूरे बदन को चूम लिया, उसकी गोलाइयों को मुख में लेकर धीरे धीरे चूसना, स्तनाग्र को जीभ से टटोलना, चूसते समय स्तन दबाना, पूरा का पूरा स्तन मुख में लेकर अंदर साँस खीच लेना इत्यादि अनेक हरकतें हम मजे में किये जा रहे थे!
अब फिर से शिश्न को एक हाथ में पकड़ते हुए उसके योनिद्वार को दूसरे हाथ से आहिस्ता ही अलग किया! दोनों पंखुड़ियाँ अलग होते ही योनिद्वार का छोटा सा छेद दिख पड़ा! यह उसका पहला मौका था तो सब कुछ नया था!
इस बार ठीक से निशाना साधते हुए शिश्न को अंदर की मंजिल पर पंहुचा ही दिया मैंने!
उसकी चीख निकलने ही वाली थी कि उसने अपने मुंह पर हाथ रख दिया! उसकी दोनों आँखों में आंसू आ गए!
मुझे बहुत बुरा लगा… मैंने उसके चेहरे पर से आंसू पौंछ दिए और उसे सहलाने लगा, उसे चुम्बन देने लगा.
कुछ देर ऐसा होने के बाद वह अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी जिससे मेरे शिश्न में भी एक अजीब सी सनसनी हीने लगी, अब मैं भी धीरे धीरे उससे पूछ पूछ कर आगे बढ़ने लगा! उससे रफ़्तार पूछता, गहराई पूछता, कितना झटका देना है ये पूछता और आगे बढ़ता!
एक समय के बाद उसने रफ़्तार बढ़ाने को कहा और वही कहती रही!
मैं तेजी से अंदर बाहर होने लगा! साथ में एक हाथ पर सारा भार रख दूसरे हाथ से उसके वक्ष को दबाने लगा, स्तनाग्र को दो उंगलियों के बीच में लेकर रगड़ने लगा! वो कमर उठा कर ताल से ताल मिला रही थी और अचानक एक जोरदार अकड़न के साथ उसने मुझे दबोच लिया! उसके सारे शरीर में अकड़न की लहरें दौड़ रही थी और वो झटके मार रही थी और दो मिनट के बाद ही उसने मुझे छोड़ा और निढाल होकर बिस्तर पर गिर गयी!
उसकी आँखों में आंसू थे!
खुशी के ही आंसू होंगे!
मैं उसके ऊपर से उठा और उसे सीने से लगा लिया; उसके आंसू पौंछ कर उसे चूमने लगा, उसके माथे पर अपने होंठों को रख कर हम कुछ देर वैसे ही पड़े रहे!
उसने मुझे पूछा- तुम्हारा नहीं हुआ क्या?
मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया- तुम्हारा होना ही मेरी आज की सबसे बड़ी ख़ुशी है!
और फिर समय भी हो चुका था, हम जल्दी से साफ हुए, कपड़े पहने और फिर सामने वाले रूम में काम करने का नाटक करने लगे.
फिर थोड़ी देर में मैंने ही उससे कहा- तुम अब चली जाओ, काफी शाम हो गयी है, और मेरे घर के लोग आते ही होंगे!
और वो मुस्करा कर आँखों में खुशी के आंसू लिए अपने घर चली गयी!
तो दोस्तो, ये था मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण किस्सा! बहुत दिनों से मेरी चाहत थी कि मैं इसे आप के साथ शेयर करूँ! और अन्तर्वासना से अच्छी जगह इस तरह की बातों के लिए कोई और हो ही नहीं सकती.
आप सब पाठकों को मेरी यह प्रेम भरी सेक्स कहानी कैसे लगी, मुझे जरूर बताएं!
मैंने अपनी इस कहानी में नंगे शब्दों का प्रयोग कम से कम करके का यत्न किया है.
मुझे दोस्ती करना पसंद है किन्तु केवल जिस्मानी तौर पे दोस्ती करना मुझे पसंद नहीं!
मुझे मेरे दोस्त को पूरी तरह समझना, उसे सुनना, सारी बातें बिना किसी पर्दे के करना अच्छा लगता है!
धन्यवाद!
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