प्रगति की आत्मकथा -4

(Pragati Ki Aatmkatha -4)

शगन कुमार 2006-01-12 Comments

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प्रेषिका : शोभा मुरली

उसने बलराम के सुपारे पर थोड़ी और जेली लगाई और एक-दो-तीन कह कर फिर से कोशिश की। इस बार बलराम करीब आधा इंच अन्दर चला गया। प्रगति के मुँह से एक हलकी सी आवाज़ निकली।

शेखर ने एकदम बलराम को बाहर निकाल कर प्रगति से पूछा कि कैसा लगा? दर्द बहुत हुआ क्या?

प्रगति ने पलट कर उसके होटों पर एक ज़ोरदार चुम्मी की और कहा- तुम मेरा इतना ध्यान रख रहे हो तो मुझे दर्द कैसे हो सकता है !! अब मेरे बारे में सोचना बंद करो और बलरामजी को अन्दर डालो।

यह सुनकर शेखर का डर थोड़ा कम हुआ और उसने कहा- ठीक है, चलो इस बार देखते हैं तुम में कितना दम है !!

एक बार फिर जेली गांड और बलराम पर लगा कर उसने एक-दो-तीन कह कर थोड़ा ज्यादा ज़ोर लगाया। इस बार बलराम अचानक करीब डेढ़ इंच अन्दर चला गया और प्रगति ने कोई आवाज़ नहीं निकाली। बस एक लम्बी सांस लेकर छोड़ दी। शेखर ने बलराम को अन्दर ही रहने दिया और प्रगति की पीठ सहलाने लगा। उसने प्रगति को शाबाशी दी और कहा वह बहुत बहादुर है।

थोड़ी देर बाद शेखर ने प्रगति को बताया कि अब वह बलराम को बाहर निकालेगा। और फिर धीरे धीरे बलराम को बाहर खींच लिया। उसने प्रगति से पूछा उसे अब तक कैसा लगा तो प्रगति ने कहा कि उसे दर्द नहीं हुआ और थोड़ा मज़ा भी आया।

शेखर ने प्रगति को आगाह किया कि इस बार वह बलराम को और अन्दर करेगा और अगर प्रगति को तकलीफ नहीं हुई तो बलराम से उसकी गांड को चोदने की कोशिश करेगा। प्रगति ने कहा वह तैयार है।

पर शेखर ने एक बार फिर सब जगह जेली का लेप किया और तीन की गिनती पर बलराम को घुमाते हुए उसकी गांड के अन्दर बढ़ा दिया। प्रगति थोड़ा कसमसाई क्योंकि बलरामजी इस बार करीब चार इंच अन्दर चले गए थे। शेखर ने प्रगति को और शाबाशी दी और कहा कि अब वह तीन की गिनती नहीं करेगा बल्कि प्रगति को खुद अपनी गांड उस समय ढीली करनी होगी जब उसे लगता है कि बलराम अन्दर जा रहा है।

यह कह कर उसने बलराम को धीरे धीरे अन्दर बाहर करना शुरू किया। हर बार जब बलराम को वह अन्दर करता तो थोड़ा और ज़ोर लगाता जिससे बलराम धीरे धीरे अब करीब 6 इंच तक अन्दर पहुँच गया था। प्रगति को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। यह उसके हाव भाव से पता चल रहा था। शेखर ने प्रगति की परीक्षा लेने के लिए अचानक बलराम को पूरा बाहर निकाल लिया और फिर से अन्दर डालने की कोशिश की। प्रगति चौकन्नी थी और उसने ठीक समय पर अपनी गांड को ढील दे कर बलराम को अपने अन्दर ले लिया। शेखर प्रगति की इस बात से बहुत खुश हुआ और उसने प्रगति की जाँघों को प्यार से पुच्ची कर दी।

अब वह बलराम से उसकी गांड चोद रहा था और अपनी उँगलियों से उसकी चूत के मटर को सहला रहा था जिससे प्रगति उत्तेजित हो रही थी और अपने बदन को ऊपर नीचे कर रही थी। कुछ देर बाद शेखर ने बलराम को धीरे से बाहर निकाला और प्रगति को पलटने को कहा। उसने प्रगति के पेट और मम्मों को पुच्चियाँ करते हुआ कहा कि उसके हिसाब से वह गांड मरवाने के लिए तैयार है।

प्रगति ने कहा- हाँ, मैं तैयार हूँ पर शेखर के लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह जनाब तो तैयार नहीं हैं, लाओ इन्हें मैं तैयार करूँ।

शाम के सात बज रहे थे। अभी एक घंटा और बचा था। प्रगति की उत्सुकता देख कर उसका मन भी गांड मारने के लिए डोल उठा। उसके लंड पर प्रगति की जीभ घूम रही थी और उसके हाथ शेखर के अण्डों को टटोल रहे थे। साथ ही साथ गोली का असर भी हो रहा था।

थोड़ी ही देर में शेखर का लंड ज़ंग के लिए तैयार हो गया। पहली बार गांड में घुसने की उम्मीद में वह कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया था। प्रगति ने उसके सुपारे को चुम्बन दिया और शेखर के इशारे पर पहले की तरह उलटी लेट गई। शेखर ने उसके कूल्हे थोड़े और ऊपर की ओर उठाये और टांगें और खोल दी। प्रगति का सिर उसने तकिये पर रखने को कहा और छाती को बिस्तर पर सटा दिया।
अब उसने प्रगति की गांड की अन्दर बाहर जेली लगा दी और अपने लंड पर भी उसका लेप कर दिया। शेखर ने पीछे से आ कर अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर टिकाया और प्रगति को पूछा कि क्या वह तैयार है ।

प्रगति तो तैयार ही थी। शेखर ने धीरे धीरे लंड को अन्दर डालने के लिए ज़ोर लगाया पर कुछ नहीं हुआ। एक बार फिर सुपारे को छेद की सीध में रखते हुए ज़ोर लगाया तो लंड झक से फिसल गया और चूत की तरफ चला गया। शेखर ने एक बार कोशिश की पर जब लंड फिर भी नहीं घुसा तो उसने फिर से बलराम का सहारा लिया। बलराम को जेली लगा कर फिर से कोशिश की तो बलराम आराम से अन्दर चला गया। बलराम से उसकी गांड को ढीला करने के बाद एक और बार शेखर ने अपने लंड से कोशिश की।

पर उसका लंड बलराम से थोड़ा बड़ा था और वह प्रगति को दर्द नहीं पहुँचाना चाहता था शायद इसीलिए वह ठीक से ज़ोर नहीं लगा रहा था। प्रगति ने मुड़ कर शेखर की तरफ देखा और कहा- मेरी चिंता मत करो। मुझे अभी तक दर्द नहीं हुआ है। तुम थोड़ा और ज़ोर लगाओ और मैं भी मदद करूंगी।

शेखर को और हिम्मत मिली और इस बार उसने थोड़ा और ज़ोर लगाया। उधर प्रगति ने भी अपनी गांड को ढीला करते हुए पीछे की तरफ ज़ोर लगाया। अचानक शेखर का लंड करीब एक इंच अन्दर चला गया। पर इस बार प्रगति की चीख निकल गई। इतनी तैयारी करने के बाद भी शेखर के लंड के प्रवेश ने प्रगति को हिला दिया।

शेखर को चिंता हुई तो प्रगति ने कहा- अब मत रुकना।

शेखर ने लंड का जो हिस्सा बाहर था उस पर और जेली लगाई और लंड को थोड़ा सा बाहर खींच कर एक और ज़ोर लगाया।

प्रगति ने भी पीछे के तरफ ज़ोर लगाया और शेखर का लंड लगभग पूरी तरह अन्दर चला गया। प्रगति थोड़ा सा हिली पर फिर संभल गई। शेखर से ज़्यादा प्रगति के कारण उन्हें यह सफलता मिली थी।

अब शेखर को अचानक अपनी सफलता का अहसास हुआ। उसका लंड इतनी टाइट सुरंग में होगा उसको अंदाजा नहीं था। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। ख़ुशी के कारण उसका लंड शायद और भी फूल रहा था जिस से उसकी टाइट गांड और भी टाइट लग रही थी।

थोड़ी देर इस तरह रुकने के बाद उसने अपने लंड को हरकत देनी शुरू की। उसका लंड तो चूत का आदि था जिसमें अन्दर बाहर करना आसान होता है। गांड की और बात है। इस टाइट गुफा में जब उसने लंड बाहर करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो प्रगति की गांड लंड को अपने से बाहर जाने ही नहीं देना चाहती।
फिर भी शेखर ने थोड़ा लंड बाहर निकाला और जितना बाहर निकला उस हिस्से पर जेली और लगा ली। अब धीरे धीरे उसने अन्दर बाहर करना शुरू किया। बाहर करते वक़्त थोड़ा तेज़ और अन्दर करते वक़्त धीरे-धीरे की रफ्तार रखने लगा।

उसने प्रगति से पूछा- कैसा लग रहा है?

तो प्रगति ने बहुत ख़ुशी ज़ाहिर की। उसे वाकई बहुत मज़ा आ रहा था। उसने शेखर को और ज़ोर से चोदने के लिए कहा। शेखर ने अपनी गति बढ़ा दी और उसका लंड लगभग पूरा अन्दर बाहर होने लगा।

शेखर की तेज़ गति के कारण एक बार उसका लंड पूरा ही बाहर आ गया। अब वह इतनी आसानी से अन्दर नहीं जा रहा था जितना चूत में चला जाता है। उसने फिर से गांड में और लंड पर जेली लगाई और फिर पूरी सावधानी से लंड को अन्दर डाला। एक बार फिर प्रगति की आह निकली पर लंड अन्दर जा चुका था। शेखर ने फिर से चोदना शुरू किया। उसके लंड को गांड की कसावट बहुत अच्छी लग रही थी और उसे प्रगति के पिछले शरीर का नज़ारा भी बहुत अच्छा लग रहा था।

अब उसने प्रगति को आगे की ओर धक्का देते हुए बिस्तर पर सपाट लिटा दिया। वह भी उसके ऊपर सपाट लेट गया। प्रगति पूरी बिस्तर पर फैली हुई थी। उसकी टांगें और बाजू खुले हुए थे और उसके चूतड़ नीचे रखे तकिये के कारण ऊपर को उठे हुए थे। शेखर का पूरा शरीर उसके पूरे शरीर को छू रहा था। सिर्फ चोदने के लिए वह अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करता था और उस वक़्त उनके इन हिस्सों का संपर्क टूटता था।

शेखर ने अपने हाथ सरका कर प्रगति के बदन के नीचे करते हुए दोनों तरफ से उसके मम्मे पकड़ लिए। शेखर का पूरा बदन कामाग्नि में लिप्त था और उसने इतना ज्यादा सुख कभी नहीं भोगा था। उधर प्रगति ने भी इतना आनंद कभी नहीं उठाया था। उसके नितम्ब रह-रह कर शेखर के निचले प्रहार को मिलने के लिए ऊपर उठ जाते थे जिससे लंड का समावेश पूरी तरह उसकी गांड में हो रहा था। दोनों सातवें आसमान पर पहुँच गए थे।

अब शेखर चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाला था। उसके मुंह से मादक आवाजें निकलने लगी थी। प्रगति भी अजीब आवाजें निकल रही थी। शेखर ने गति तेज़ करते हुए एक बार लंड लगभग पूरा बाहर निकाल कर एक ही वार में पूरा अन्दर घुसेड़ दिया, प्रगति की ख़ुशी की चीख के साथ शेखर की दहाड़ निकली और शेखर का वीर्य फूट फूट कर उसकी गांड में निकल पड़ा।

प्रगति ने अपनी गांड ऊपर की तरफ दबा कर उसके लंड को जितनी देर अन्दर रख सकती थी रखा। थोड़ी देर में शेखर का लंड स्वतः बाहर निकल गया और प्रगति की पीठ पर निढाल पड़ गया।

दोनों की साँसें तेज़ चल रही थी और दोनों पूर्ण तृप्त थे। शेखर ने प्रगति को उठा कर अपने सीने से लगा लिया। उसके पूरे चेहरे पर चुम्बन की वर्षा कर दी और कृतज्ञ आँखों से उसे निहारने लगा।

प्रगति ने भी घुटनों के बल बैठ कर शेखर के लिंग को पुचकारा और और धन्यवाद के रूप में उसको अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। उसकी आँखों में भी कृतज्ञता के आँसू थे। दोनों एक बार फिर आलिंगनबद्ध होते हुए बाथरूम की तरफ चले गए।

आपको यह कहानी कैसी लगी मुझे [email protected] पर ज़रूर लिख कर बताइए। मुझे आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
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