पतिव्रता नारी-2
लेखिका : नेहा वर्मा
मैं बहुत देर तक उन दोनों के नंगे बदन को निहारती रही। मेरे दिल में उनसे लिपटने की इच्छा होने लगी,”उफ़्फ़ ! चुदवा लूँ क्या? भीतर तक चोद डालेंगे मुझे !!! शान्ति तो मिल जायेगी… दो दो लौड़े मिल जायेंगे।”
“अरे नहीं ! किसी दूसरे से… फिर मेरी पत्नीव्रता धर्म का क्या होगा? यदि वे मुझे ऊपर से ही रगड़ डाले तो…?”
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी… जाने कब मेरी मेरी एक अंगुली मेरी चूत में घुस गई। उन दोनों को नंगे देख कर मेरा मन भटकने लग गया था। खासे मोटे लण्ड थे… चुद लेती तो मस्ती आ जाती। मैं जोर जोर से अपनी चूत को घिसने लगी और फिर अपना ढेर सारा यौवन रस निकाल दिया।
मैंने एक गहरी सांस ली और स्नान करने चली गई। मैंने नाश्ता वगैरह बना लिया फिर दोनों को जगाया। वे भी अपनी नग्न दशा को देख कर शरमा गये। फिर स्नान आदि से निवृत हो कर नाश्ता करने बैठ गये। दस बजे हम तीनों ही ऑफ़िस चले आये। वहाँ पर भी मेरी नजरें बार बार रोहन या मोहित को ढूंढती रही। मेरे उरोज दबने के लिये कसकते रहे। मुझे बहुत खराब लग रहा था कि उन दोनों को रात को बेकार ही तड़पाया… चुदा भी लेती तो मेरा क्या बिगड़ जाता? मेरे मन की तड़प भी मिट जाती। अब देखो तो चूत कैसी लप लप कर रही है।
तभी मेरी सहेली मेघा आ गई, मुझे परेशान देख कर बोली- किस सोच में हो? अरे तीन महीने तो यूं ही कट जायेंगे देखना…
“अरे नहीं… आज तो तीन चार दिन ही हुए हैं… मेरी तो रात ही नहीं कटती है राम।”
“ऐसा कर… तेर कोई दोस्त हो तो बुला ले उसे… राते मस्त कटेंगी…”
“चल हट… पति के साथ बेवफ़ाई… ना बाबा ना…”
“कैसी बेवफ़ाई ! चुदवाने से बेवफ़ाई हो गई… अच्छा इधर तो आ…”
उसने सावधानी से यहाँ-वहाँ देखा… मेरे केबिन की तरफ़ किसी की नजर नहीं थी। उसने झट से मेरी साड़ी के भीतर हाथ डाल दिया। मैं उछल सी पड़ी।
“अरे क्या कर रही है मेघा?”
उसने मेरी चूत में अंगुली घुसा कर बाहर निकाल ली, फिर अपनी गीली अंगुली दिखा कर बोली-नेहा जी… रस से भरी है आपकी चूत… इसे लौड़ा चाहिये… कड़क और लम्बा लण्ड…
फिर उसने बहुत चाव से उसे अपने मुख में डाल कर उसे चूस लिया।
“चल चल… ऐसा क्या बोलती है…”
‘सच नेहा दी… अब ढूंढो लौड़ा… मेरा दोस्त चलेगा क्या। साले का सॉलिड लण्ड है !”
मेरा तो चेहरा लाल हो गया। मेघा तो सब समझ गई थी… मेरा दिल अब गुदगुदी से भर गया। मेरी आँखों के आगे अब तो मोहित और रोहन के लण्ड लहराने लगे थे। मैंने मुस्करा कर मेघा को देखा। उसने अपने हाथ की हथेली को लण्ड का आकार बना कर हिला कर मुझे एक अश्लील इशारा किया और मेरे केबिन से बाहर निकल गई।
अब तो मन में रोहन और मोहित अपना लण्ड चुभा रहे थे। मेर दिल लहूलुहान हो रहा था। मेरा तो समय काटना ही मुश्किल हो रहा था। जैसे तैसे पाँच बजे, हम तीनो ऑफ़िस से निकले। मेरे मन में तो अब चोर था सो नजर भी नहीं मिला पा रही थी। घर पहुँची, मेरा तो खाना पकाने का मन ही नहीं हो रहा था। मोहित तेज था वो मेरे की बात शायद समझ गया था। वो बाजार जाकर भोजन पैक करवा कर ले आया।
मैंने अपनी साड़ी फ़ेंकी और पैंटी उतार कर हल्की हो गई और मात्र पेटीकोट में सोफ़े पर बैठ गई। मैंने अपने मांसल उभरे हुये उरोजों को देखा को उनकी तड़प देखी। उफ़्फ़्फ़ ! मैंने उन्हें जोर से दबा लिया।
“बस बस दीदी… इन बेचारों का क्या दोष… इन पर तो रहम करो !”
मैं एकदम से घबरा गई… फिर सोचा शरमाना क्या… कल रात तो मैंने अपनी चूत तक इन्हें खोल कर दिखा दी थी।
“मोहित जी… मुझे तो बार बार बस अपने पति के बारे ख्याल आता है, क्या करूँ?”
“दीदी, आप तो पत्नीव्रता का मतलब ही नहीं जानती हैं।”
“कैसे नहीं जानती… बस पति की होकर रहना और क्या?”
“बिल्कुल सही… पति तो दिल में होता है… उसका मान रखना… उसकी हर बात मानना… दिल से उसकी पूजा करना… उसकी सेवा करना…”
“वही तो… यही सब तो मैं करती हूँ… तो हूँ ना पतिव्रता !”
“जी हाँ… पर खुशियाँ भी तो कुछ होती हैं… छोटी छोटी खुशियाँ कहीं से भी मिलें, कितना अच्छा लगता है…!”
“जैसे… कैसी छोटी छोटी खुशियाँ… मतलब?”
“अब जैसे कल रात को आप अपना मन मार कर दिल जलाती रही…”
“तो क्या चुदा लेती? ले लेती लौड़ा…?”
“क्या फ़र्क पड़ता… इससे आपका धर्म तो नहीं टूटता ना… मन में तो वही रहते ना… पति भी वही रहते…”
“पर कोई दूसरा चोद जाये? हाय राम… कैसा लगेगा? सुनने में तो मजा आता है पर चोदना?”
“चोदने से क्या होता है? बस आपको आनन्द ही तो आयेगा ना… इससे आपको खुशी ही तो मिलेगी ना?”
मोहित ने मुझे पीछे से थाम लिया और अपना कड़क लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे अन्दर एक आनन्द भरी सिरहन उठ गई। उई माँ ! यह तो मार डालेगा मुझे… यह तो चोदेगा ही… चुदा लूँ? कैसा लण्ड ठोक रहा है मेरी गाण्ड में…
“मजा आया ना दीदी… अब बताइये… आपके पति को क्या मालूम चलेगा?”
उसके लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ कर मुझे रोमांचित कर रहा था।
उसने मेरे मम्मे दबा दिये… मेरे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई। मुझे उसकी बातों में सच्चाई नजर आने लगी। वो मेरे साथ बिस्तर पर बैठ गया। मेरा शरीर एक मीठी सी कसक से भर उठा।
“अब बताओ दीदी… हमने आपका भोसड़ा देखा… कैस रसीला… गुलाबी सुन्दर सा था… यदि लण्ड खा भी लेती तो क्या बिगड़ जाता।”
“उफ़्फ़… कैसी बातें करते हो? चुद नहीं जाती मैं?” मेरे मुख से एक ठण्डी आह निकल गई।
“नहीं दीदी नहीं… बस चमड़ी से चमड़ी रगड़ा जाती और क्या? खुजली मिट जाती फिर मजा कितना आता?”
“मोहित… चमड़ी से चमड़ी… मीठी मीठी सी खुजली… उफ़्फ़… लण्ड… मोहित… बस करो… मुझे कुछ कुछ होने लगा है।”
उसने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। रोहन भी मेरे बालों से खेलने लगा। मुझ पर एक नशा सा छाने लगा। उसकी बातों से मुझे बहुत आनन्द आने लगा था। मेरा शरीर वासना के मारे कड़कने लगा था। अब तो मुझे उसकी बातें सही लगने लगी थी। उसने धीरे धीरे मेरा पेटीकोट ऊपर सरकाना चालू कर दिया था। मैंने तो आज अन्दर पेन्टी भी नहीं पहनी थी। रोहन भी मेरे ऊपर झुक सा गया था। फिर उसने मुझे प्यार से चूम लिया।
“मेरी प्यारी दीदी… सुन्दर सी दीदी…”
मैंने भी वासना में रोहन को चूम लिया। अब रोहन का हाथ मेरे सीने पर मांसल उरोज पर गुदगुदी करने लगा था। मोहित ने इतनी देर में मेरा पेटीकोट कूल्हों से ऊपर कर दिया था। मेरी सुन्दर सलोनी गाण्ड ट्यूब लाईट की रोशनी में चमक उठी थी। मुझे लगा मेरा शरीर आग सा हो गया था।
“दीदी, पता है आपने हमें रात को कितना तड़पाया था?”
मोहित का कड़क लण्ड मेरी गाण्ड की दरार को कुरेदने में लगा था। मुझे उसके लण्ड का स्पर्श घायल किये दे रहा था।… घुसा क्यों नहीं देता साले… कैसे कहूँ… उफ़्फ़ कितनी प्यारी गुदगुदी कर रहा है। डाल दे अन्दर… ।
तभी उसके सुपाड़े का नरम दबाव मेरी गाण्ड के छल्ले पर महसूस हुआ।
“क्या करती मोहित… बस पति की याद में… कैसे करने देती… हाय रे… ये क्या कर रहा है तू जानू?”
“दीदी भोसड़ा तो पति का है ना… ये तो हमारी है… इसे तो उनसे मुक्त रहने दो…”
तभी उसके नरम सुपारे ने जोर लगाया और मेरी गाण्ड का छल्ला फ़ैलता चला गया। उसका लण्ड मेरी गाण्ड को छेदता हुआ मुझे घायल कर गया। मन में आनन्द की… वासना की तेज लहरें उमड़ पड़ी। तभी रोहन मेरे सामने आ गया… उसने अपना पायजामा उतार दिया था। उसका मोटा लण्ड सख्त हो कर बहुत ही लहरा रहा था।
मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका लिया। अब तो दोनों ही मुझसे चिपके जा रहे रहे थे। मेरी टांगें अपने आप ही चौड़ी हो कर खुलने लगी। चुदने को आतुर मेरी जवानी… लण्ड और चूत का मधुर मिलन… रोहन के लण्ड का दबाव भी मेरी पनीली चूत पर पड़ने लगा।
“नेहा दीदी… ध्यान से कही लण्ड भोसड़े में घुस ना जाये… वो तो…”
“आह्ह्ह रोहन ! मां चुदने दे पत्निव्रता की… लौड़ा घुसा ही दे यार… जल्दी कर… मेरी चूत तो लण्ड खाने के लिये तड़प रही है।”
“ओह्ह्ह्ह… मेरी मैया… और अन्दर… उफ़्फ़… पूरा डाल दे यार…”
उसका लण्ड अन्दर सरक कर गहराइयों में बैठने लगा। पीछे से मोहित का लण्ड मेरी गाण्ड के पैंदे तक में बैठ गया था।
“बस… बस… अब ऐसे ही पड़े रहो… मोहित जी… बहुत आनन्द आ रहा है… रोहन… मेरी चूत तो बस मीठी मीठी सी गुदगुदी से पागल हुई जा रही है… बस आनन्द लेने दो…”
मुझे तो मोहित और आनन्द दोनों ही अपने दिल के टुकड़े लगने लगे थे। धीरे धीरे उनके लण्ड मेरी चूत और गाण्ड में अन्दर बाहर होने लगे… मेरा आनन्द बढ़ने लगा था। दोनों के मुख से जोर की सिसकारियाँ निकलने लगी थी। मैं तो लगभग खुशी के मारे चीखने लगी थी।मेरी एक टांग रोहन की कमर से जोर से लिपटी हुई थी। मैं अपनी चूत उछाल कर चुदने में तेजी नहीं ला पा रही थी… दोनों ओर से वे दोनों बुरी तरह से चिपक कर मुझे चोद रहे थे। इस दौरान मैं तीन बार स्खलित हो चुकी थी। बारी बारी से एक एक करके दोनों ने अपना प्रेम रस जब पिचकारी के रूप में छोड़ा तब जाकर मैं उनसे आजाद हुई। पर हाँ ! उन दोनों ने मुझे ऐसा कस कर चोदा कि मेरे शरीर के कस बल सब निकल गये।
मेरे पति के आने तक दोनों ने मुझे जी भर कर चोदा… मेरा तो दिल खिल कर बाग बाग हो गया था। चुदाई का भूखा मेरा शरीर शान्त होने के बदले उसकी भूख और भी बढ़ गई थी… उसे तो अब दो दो लण्ड खाने की आदत पड़ गई… अब तो छुप छुप कर मौका मिलने पर चुदाना पड़ता है… मेरा पति अब टूर पर जयपुर, मुम्बई कोलकाता, चेन्नई भी जाता है… उनके जाते ही फिर से मुझे दो दो लण्ड खाने को मिल जाता है। पर सच कहती हूँ जब जब पति घर पर होते हैं, मैं तो उनकी ही बन कर रहती हूँ… मैंने पतिव्रता रहने की जो ठान रखी है ना…
नेहा वर्मा
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