लंड तो खड़ा होता ही नहीं

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को संजय राजपूत का शत-शत नमन

मेरा नाम संजय राजपूत है और मैं दिल्ली के एक कॉल-सेन्टर में नौकरी करता हूँ।

मेरी उम्र २३ साल है और मेरा रंग गोरा है। मेरा लंड वही ८” का है और मोटा भी है।

कुँवारा होने के कारण मैं अपनी भूख नहीं बुझा पाता हूँ, इसलिए मैं अपना लंड हाथ से ही हिला लेता हूँ।

मेरे कॉल-सेन्टर में एक ६० साल की औरत काम करती है। वह मुझे कुछ इस तरह से देखती है कि मानों कि अगर मैं उससे कहूँगा तो वह मुझसे गाँड मरवा लेगी और मज़े भी देगी।

एक रात मैं जब ऑफिस से अपने घर के लिए निकल रहा था तो वह बोली कि मुझे लिफ्ट दे दोगे क्या? मैंने कहा हाँ बिल्कुल। फिर हम दोनों गाड़ी पर बैठ कर निकल गए। और फिर उसके २ किलो के बूम्बे मेरी पीठ से टकराकर मुझे मदहोश कर रहे थे! फिर उसने अपना हाथ धीरे से मेरे लण्ड पर रख दिया और मैं गाढ़ा हो गया। मैंने झट से उसका हाथ हटाया और गाड़ी चलाने लगा। वह बोली, अरे क्या हुआ? मैंने कहा, जी कुछ नहीं। फिर उसने थोड़ी देर बाद फिर से मेरा लौड़ा पकड़ लिया और बोली, चलो आज तुम्हारे घर पर चलते हैं और इस तरह मैं उसे अपने घर ले आया।

घर आकर उसने मेरे लिए चाय बनाई और बोली, “संजय, इतने बड़े घर में तुम अकेले रहते हो, तुम्हें डर नहीं लगता?”

“इसमें डरने की क्या बात है, मैं तो शुरु से ही अकेला रहता आया हूँ।”

“दिन तो कॉल सेन्टर में निकल जाता है, पर रात में क्या होता होगा?”

“कुछ नहीं, सब कट जाती है।”

वह मेरे पास आकर बैठ गई और कहा, “आज मैं यहीं रुक जाती हूँ।”

“क्यों नहीं” – मैंने कहा।

फिर उसकी मस्ती भरी आँखें देखकर भी तो मैं उसे मना नहीं कर सका था। फिर हम बैठ गए और उसने मेरा लंड पकड़ लिया और बोली कितना ढीला है। मैं बोला, क्या कर ही हो? उसने कहा, “करने दे मेरी जान। आज तेरी-मेरी दोनों की भूख मिटाने दे।”

मैं खड़ा हो गया और उसकी चूचियाँ पकड़ लीं और उसके होंठों को चूमने लगा, फिर उसने मेरा लंड चूसा और सारे कपड़े उतार दिए। मैंने भी उसके सारे कपड़े उतार दिए। उसके २ किलो के दूध मानों बाहर आने के लिए तड़प रहे थे। फिर मैंने उसके दूध को बहुत देर तक चूसा और हम 69 की मुद्रा में लेट गए। क़रीब एक घंटे तक चूसने के बाद…

अब भाई तुम ही बताओ मैं क्या करता, क्योंकि मुझे तो कुछ करना आता ही नहीं…

पर हाँ, मैंने मोमबत्ती से उसकी प्यास ज़रूर बुझा दी…

क्योंकि मेरा लंड तो खड़ा होता ही नहीं।

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