कमाल की हसीना हूँ मैं -3

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai-3)

शहनाज़ खान 2013-04-25 Comments

This story is part of a series:

‘देखो तुम मेरे बेटे से मिलो, उसे अपना बॉय फ्रेंड बना लो। बहुत हेंडसम है वो। मेरा तो अब समय चला गया है तुम जैसी लड़कियों से फ्लर्ट करने का…’ उन्होंने मुझे अपनी गोद से उठाते हुए कहा- देखो यह ऑफिस है। कुछ तो इसकी तहज़ीब का ख्याल रखा कर। मैं यहाँ तेरा बॉस हूँ। किसी ने देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा कि बुड्ढे की मति मारी गई है।’

इस तरह अक्सर मैं उनसे चिपकने की कोशिश करती थी मगर वो किसी मछली की तरह हर बार फ़िसल जाते थे।

इस घटना के बाद तो हम काफी खुल गये। मैं उनके साथ उलटे-सीधे मजाक भी करने लगी। लेकिन मैं तो उनकी बनाई हुई लक्ष्मण रेखा क्रॉस करना चाहती थी। मौका मिला होली को।

होली के दिन हमारे ऑफिस में छुट्टी थी। लेकिन फैक्ट्री बंद नहीं रखी जाती थी, कुछ ऑफिस स्टाफ को उस दिन भी आना पड़ता था। मिस्टर ताहिर हर होली को अपने स्टाफ से सुबह-सुबह होली खेलने आते थे। मैंने भी उनके साथ होली का हुड़दंग करने के प्लान बना लिया।

उस दिन सुबह मैं ऑफिस पहुँच गई। ऑफिस में कोई नहीं था। सब बाहर एक दूसरे को गुलाल लगा रहे थे। मैं लोगों की नज़र बचाकर ऑफिस के अंदर घुस गई। अंदर होली खेलने की अनुमति नहीं थी।

मैं ऑफिस में अंदर से दरवाजा बंद करके उनका इंतज़ार करने लगी। कुछ ही देर में मिस्टर ताहिर की कार अंदर आई।

वो कुर्ते पायजामे में थे, कर्मचारी उनसे गले मिलने लगे और गुलाल लगाने लगे। मैंने गुलाल निकाल कर एक प्लेट में रख लिया और बाथरूम में जाकर अपने बालों को खोल दिया। रेशमी ज़ुल्फें खुल कर पीठ पर बिखर गईं। मैंने एक पुरानी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी थी। स्कर्ट काफी छोटी थी। मैंने शर्ट के बटन खोल कर अंदर की ब्रा उतार दी और शर्ट वापस पहन ली। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले रहने दिये जिससे मेरे आधे उरोज झलक रहे थे। शर्ट छातियों के ऊपर से कुछ घिसी हुई थी इसलिये मेरे निप्पल और उनके चारों ओर का काला घेरा साफ़ नज़र आ रहा था। उत्तेजना और डर से मैं मार्च के मौसम में भी पसीने-पसीने हो रही थी।

मैं खिड़की से झाँक रही थी और उनके फ्री होने का इंतज़ार करने लगी। उन्हें क्या मालूम था कि मैं ऑफिस में उनका इंतज़ार कर रही हूँ। वो फ्री हो कर वापस कार की तरफ़ बढ़ रहे थे। तो मैंने उनके मोबाइल पर रिंग किया।

‘सर, मुझसे होली नहीं खेलेंगे।’

‘कहाँ हो तुम? शहनाज़… आ जाओ मैं भी तुमसे होली खेलने के लिये बेताब हूँ,’ उन्होंने चारों तरफ़ देखते हुए पूछा।

‘कहाँ हो तुम? शहनाज़… आ जाओ मैं भी तुमसे होली खेलने के लिये बेताब हूँ,’ उन्होंने चारों तरफ़ देखते हुए पूछा।

‘ऑफिस में आपका इंतज़ार कर रही हूँ!’

‘तो बाहर आजा ना ! ऑफिस गंदा हो जायेगा !’

‘नहीं! सबके सामने मुझे शरम आयेगी। हो जाने दो गंदा। कल करीम साफ़ कर देगा।’ मैंने कहा।

‘अच्छा तो वो वाली होली खेलने का प्रोग्राम है?’ उन्होंने मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया और ऑफिस की तरफ़ बढ़े। मैं लॉक खोल कर दरवाजे के पीछे छुप गई। जैसे ही वो अंदर आए, मैं पीछे से उनसे लिपट गई और अपने हाथों से गुलाल उनके चेहरे पर मल दिया।

जब तक वो गुलाल झाड़ कर आँख खोलते, मैंने वापस अपनी मुठ्ठियों में गुलाल भरा और उनके कुर्ते के अंदर हाथ डाल कर उनके सीने में लगा कर उनके सीने को मसल दिया। मैं उनके सीने की दोनों घुण्डियों को दोनों अपनी मुठ्ठी में भर कर किसी औरत की छातियों की तरह मसलने लगी।

‘ए..ए… क्या कर रही है?’ वो हड़बड़ा उठे।

‘बुरा ना मानो होली है !’ कहते हुए मैंने एक मुठ्ठी गुलाल पायजामे के अंदर भी डाल दी। अंदर हाथ डालने में एक बार झिझक लगी लेकिन फिर सब कुछ सोचना बंद करके अंदर हाथ डाल कर उनके लंड को मसल दिया।

‘ठहर अभी बताता हूँ।’ वो जब तक संभले, तब तक मैं खिलखिलाते हुए वहाँ से भाग कर मेज के पीछे हो गई।

उन्होंने मुझे पकड़ने के लिये मेज के इधर-उधर दौड़ लगाई। लेकिन हाई-हील पहने होने के बावजूद मैं उनसे बच गई। लेकिन मेरा मकसद तो पकड़े जाने का था, बचने का थोड़ी। इसलिये मैं मेज के पीछे से निकल कर दरवाजे की तरफ़ दौड़ी।

इस बार उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ कर मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल दिये। मैं खिलखिला कर हँस रही थी और कसमसा रही थी। वो काफी देर तक मेरे वक्ष-उभारों पर रंग लगाते रहे, मेरे निप्पलों को मसलते और खींचते रहे। मैं उनसे लिपट गई और पहली बार उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। मेरे होंठ थोड़ा खुले और उनकी जीभ को अंदर जाने का रास्ता दे दिया।

कई मिनट तक हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे। मेरा एक हाथ सरकते हुए उनके पायजामे तक पहुँचा और फिर धीरे से पायजामे के अंदर सरक गया। मैं उनके लंड की तपिश अपने हाथों पर महसूस कर रही थी। मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उनके लंड को थाम लिया।

मेरी इस हरकत से जैसे उनके पूरे जिस्म में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। उन्होंने मुझे एक धक्का देकर अपने से अलग किया।

मैं गर्मी से तप रही थी, लेकिन उन्होंने कहा- नहीं शहनाज़ ! नहीं, यह ठीक नहीं है।’

मैं सर झुका कर वहीं खड़ी रही।

‘तुम मुझसे बहुत छोटी हो !’ उन्होंने अपने हाथों से मेरे चेहरे को उठाया- तुम बहुत अच्छी लड़की हो और हम दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हैं।’

मैंने धीरे से सर हिलाया। मैं अपने आपको कोस रही थी। मुझे अपनी हरकत पर बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। मगर उन्होंने मेरी कश्मकश को समझ कर मुझे वापस अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे गालों पर दो बोसे जड़ दिये।

इससे मैं वापस नॉर्मल हो गई। जब तक मैं संभलती, वो जा चुके थे।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। लेकिन उस दिन के बाद उन्होंने मेरे और उनके बीच में एक दीवार बना दी।

मैं शायद वापस उन्हें कामोत्तेजित करने का प्लान बनाने लगती लेकिन अचानक मेरी ज़िंदगी में एक आँधी सी आई और सब कुछ बदल गया। मेरे सपनों का सौदागर मुझे इस तरह मिल जायेगा, मैंने कभी सोचा ना था।

मैं एक दिन अपने काम में लीन थी कि लगा कोई मेरी डेस्क के पास आकर रुका।

‘आय वांट टू मीट मिस्टर ताहिर अज़ीज़ खान !’

‘ऐनी अपायंटमेंट?’ मैंने सिर झुकाये हुए ही पूछा।

‘नो !’

‘सॉरी ही इज़ बिज़ी,’ मैंने टालते हुए कहा।

‘टेल हिम, जावेद, हिज़ सन वांट्स टू मीट हिम।’

मैंने एक झटके से अपना सिर उठाया और उस खूबसूरत और हेंडसम आदमी को देखती रह गई। वो भी मेरी खूबसूरती में खो गया था।

‘ओह मॉय गॉड ! क्या चीज़ हो तुम। तभी डैड आजकल इतना ऑफिस में बिज़ी रहने लगे हैं।’ उन्होंने कहा- बाय द वे, आपका नाम जान सकता हूँ?’

‘शहनाज़ !’

‘शहनाज़ ! अब ये नाम मेरे ज़हन से कभी दूर नहीं जायेगा।’

मैंने शरमा कर अपनी आँखें झुका ली। वो अंदर चले गए। वापसी में उन्होंने मुझसे शाम की डेट फिक्स कर ली।

इसके बाद तो हम रोजाना मिलने लगे। हम दोनों पूरी शाम एक दूसरे की बाँहों में बिताने लगे। जावेद बहुत खुले ख्यालात के आदमी थे।

एक दिन ताहिर जी ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और एक लेटर मुझे दिया- यह है तुम्हारा टर्मिनेशन लेटर। यू आर बींग सैक्ड !’ उन्होंने तेज़ आवाज के साथ कहा।

‘ल… लेकिन मेरी गलती क्या है?’ मैंने रुआंसी आवाज में पूछा।

‘तुमने मेरे बेटे को अपने जाल में फाँसा है !’

‘लेकिन सर…!’

‘कोई लेकिन-वेकिन नहीं !’ उन्होंने मुझे बुरी तरह झिड़कते हुए कहा- नाओ गेट लॉस्ट !’

मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैं रोती हुई वहाँ से जाने लगी। जैसे ही मैं दरवाजे तक पहुँची, उनकी आवाज सुनाई दी।

‘शाम को हम तुम्हारे अब्बू-अम्मी से मिलने आ रहे हैं। जावेद जल्दी निकाह करना चाहता है।’

मेरे कदम ठिठक गये। मैं घूमी तो मैंने देखा कि मिस्टर ताहिर अपनी बांहें फैलाये मुस्कुरा रहे हैं। मैं आँसू पोंछ कर खिलखिला उठी और दौड़ कर उनसे लिपट गई।

आखिर मैं ताहिर अज़ीज़ खान जी के परिवार का एक हिस्सा बनने जा रही थी।

जावेद मुझे बहुत चाहता था। निकाह से पहले हम हर शाम साथ-साथ घूमते फिरते और काफी बातें करते थे। जावेद ने मुझसे मेरे बॉय फ्रेंड्स के बारे में पूछा। और उनसे मिलने से पहले की मेरी सैक्सुअल लाईफ के बारे में पूछा। जब मैंने कहा कि अभी तक कुँवारी हूँ तो हंसने लगे और कहा- क्या यार, तुम्हारी ज़िंदगी तो बहुत बोरिंग है। यहाँ ये सब नहीं चलेगा। एक दो भंवरों को तो रखना ही चाहिये। तभी तो तुम्हारी मार्केट वेल्यू का पता चलेगा है।’

मैं उनकी बातों पर हँस पड़ी।

निकाह से पहले ही मैं जावेद के साथ हमबिस्तर हो गई। हम दोनों ने निकाह से पहले खूब सैक्स किया। जावेद के साथ मैं शराब भी पीने लगी और लगभग रोज ही किसी होटल में जाकर सैक्स इन्जॉय करते थे। एक बार मेरे पेरेंट्स ने निकाह से पहले रात-रात भर बाहर रहने पर ऐतराज़ जताया था। लेकिन जताया भी तो किससे, मेरे होने वाले ससुर जी से जो खुद इतने रंगीन मिजाज़ थे। उन्होंने उनकी चिंताओं को भाप बना कर उड़ा दिया।

ताहिर अज़ीज़ खान जी ने मुझे फ्री छोड़ रखा था लेकिन मैंने कभी अपने काम से मन नहीं चुराया। अब मैं वापस सलवार कमीज़ में ऑफिस जाने लगी।

जावेद और उनकी फैमिली काफी खुले विचारों की थी। जावेद मुझे एक्सपोज़र के लिये जोर देते थे। वो मेरे जिस्म पर रिवीलिंग कपड़े पसंद करते थे। मेरा पूरा वार्डरोब उन्होंने चेंज करवा दिया था। उन्हें मिनी स्कर्ट और लूज़ टॉप मुझ पर पसंद थे। सिर्फ मेरे कपड़े ही नहीं बल्कि मेरे अंडरगार्मेंट्स और जूते-सैंडल तक उन्होंने अपनी पसंद के खरीदवाए।

अधिकतर आदमियों की तरह उन्हें भी हाई-हील सैंडलों के लिये कामाकर्षण था।

वो मुझे माइक्रो स्कर्ट और लूज़ स्लीवलैस टॉप पहना कर डिस्को में ले जाते, जहाँ हम खूब फ्री होकर नाचते, शराब पीते और मस्ती करते थे। अक्सर लोफर लड़के मेरे जिस्म से अपना जिस्म रगड़ने लगते। कई बार मेरे बूब्स मसल देते। वो तो बस मौके की तलाश में रहते थे कि कोई मुझ जैसी सैक्सी हसीना मिल जाये तो हाथ सेंक लें।

मैं कई बार नाराज़ हो जाती लेकिन जावेद मुझे चुप करा देते। कई बार कुछ मनचले मेरे साथ डाँस करना चाहते तो जावेद खुशी-खुशी मुझे आगे कर देते। मुझ संग तो डाँस का बहाना होता। लड़के मेरे जिस्म से जोंक की तरह चिपक जाते। मेरे पूरे जिस्म को मसलने लगते। बूब्स का तो सबसे बुरा हाल कर देते।

मैं अगर नाराज़गी ज़ाहिर करती तो जावेद अपनी टेबल से आँख मार कर मुझे शांत कर देते। शुरू-शुरू में तो इस तरह के खुलेपन में मैं घबरा जाती थी। मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन धीरे-धीरे मुझे इन सब में मज़ा आने लगा और मैं हल्के-फुल्के नशे में खुल कर इस सब में भाग लेने लगी।

मैं जावेद को उत्तेजित करने के लिये कभी-कभी दूसरे किसी मर्द को सिड्यूस करने लगती। उस शाम तो जावेद में कुछ ज्यादा ही जोश आ जाता।
कहानी जारी रहेगी।
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