काम-देवियों की चूत चुदाई-7

This story is part of a series:

दूसरे दिन साईट पर गया तो वहाँ का काम जिस द्रुतगति से चल रहा था। उसी गति से मेरा दिल गांव की गोरी किरण के हुस्न का दीवाना हुआ जा रहा था।

मैं कमरे में जाकर दरवाजे लगाकर तख्त पर आराम करने लगा। तभी आंगन में मुझे चूड़ियों की खनक सुनाई दी।

मुझसे रहा न गया तो आँगन तरफ के दरवाजे की झिरी से आँगन में झाँकने लगा। वहाँ जमीन पर टाँगें फैलाए किरण बैठी अपने बच्चे की मालिश कर रही थी। वो पेटीकोट और ब्लाउज पहने थी, उसके नागपुरी संतरे जैसे स्तन पानी भरे हुए गुब्बारे की तरह थिरक रहे थे। जब वो झुकती तो आधे से ज्यादा गोलाई बाहर को आ जाती। उसके काले चूचुकों की झलक ब्लाउज में से दिखाई दे रही थी।

मालिश के बाद उसने बच्चे को गोद में लेकर ब्लाउज के बटन खोल कर एक स्तन बच्चे के मुँह में लगा दिया। उस स्तन की नाप 32 से कम नहीं होगी। बीच-बीच में बच्चे के मुँह से स्तन निकल जाता तो उसमें से निकलती दुग्धधारा दिखाई दे जाती।

जब बच्चा सो गया तो उसे वहीं खटिया पर लिटा कर, किरण आँगन में बनी नाली के पास आकर अपनी पेटीकोट को कमर तक उठाकर मूतने बैठ गई।

उसकी निकलती हुई मूत्र की धार ऐसे स्वर उत्पन्न कर रही थी, जैसे दूर कही घुंघरू बज रहे हों। उसकी गोरी चिकनी टाँगें, जाँघें और गठे नितम्ब देख मैं दंग रह गया।

ये गाँव की गोरियाँ भी हुस्न के मामले में शहर की महिलाओं से पीछे नहीं होतीं, बस दिखावे से दूर रहती हैं।

फिर वहाँ से उठकर किरण ने अपने कपड़े और पानी की बाल्टी लाकर वहीं नाली के पास रखी। मेरे दिल की धड़कन एकदम से बढ़ गई।

फिर उसने अपने ब्लाउज को खोलकर निकाल दिया। उसके स्तन आजाद परिंदे हो गए थे, खुले आसमान के नीचे। जरा भी ढीले नहीं हुए थे। लगता है हरिया को इनके बारे में कुछ जानकारी ही नहीं है कि ये अमृतकलश सिर्फ दूध पिलाने के लिए नहीं होते।

उसके नितम्ब यानि गांड के उभार देख मेरा लंड सलामी देने लगा।

फिर किरण वहीं बैठ गई नहाने को। अब की बार उसका चेहरा दरवाजे के झिरी की ओर ही था। उसने नहाते हुए पेटीकोट को कमर के पास सरका लिया, वो अपनी टाँगों को मल रही थी।

फिर जाँघों को मलते हुए उन्हें फैला दिया, तो वहाँ काली झांटें घुंघराले बालों के रूप में बुर को ढके हुए थीं। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

जब वो वहाँ पानी डालकर रगड़ती, तब उसकी गुलाबी योनिद्वार की झलक दिखाई देती। वो बड़े नजाकत से अपने स्तनों को मलमल कर धो रही थी। ऐसा लग रहा था राम तेरी गंगा मैली वाली मंदाकिनी मेरे सामने आ गई हो। मेरा लंड गीला हो चला था।

फिर वो नहाकर कपड़े पहन अन्दर चली गई। मैं बाहर का दरवाजा खोल कर काम देखने चला गया। लौटकर आया तो किरण मुझे चाय बनाकर दे गई।

कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा। मैंने सोच-विचार कर योजना बनाई, अब उस पर अमल करना बाकी था।

अगले दिन मैं साईट पर गया। मंजू मैडम वहीं मिल गईं, फिर मेरे साथ कमरे में आकर बैठ गईं।

मैंने पूछा- मैडम, आप मेरे काम से संतुष्ट तो हैं?

मंजू मुस्कुराते हुए बोली- हाँ हाँ, क्यों नहीं? आपका काम अच्छा लगा।

बातों-बातों में उसने बताया कि उसका पति बेरोजगार है। महाराष्ट्र में मेरी ससुराल है, तो वो अक्सर वहाँ चला जाता है और बेटा भी वहीं बोर्डिंग में है।

मुझे कोई ऐसा क्लू नहीं मिल रहा था कि उसके बारे कोई धारणा बनाऊँ। इतना जरुर था कि अकेली औरत जल्दी हाथ में आ जाती है। फिर अभी तो किरण मेरा लक्ष्य थी।
जब मैडम चली गई, तो किरण के नहाने के समय फिर दरवाजे की झिरी पर आँख लगा दी और उसके हुस्न का दीदार किया।

जब वो नहाकर कपड़े पहनने लगी तो मैंने दरवाजे को इस तरह से खटका दिया कि वो समझ जाए कि मैं उसे नहाते हुए देख रहा था। वो जल्दी से अन्दर को भाग गई।

दोपहर में मेरे लिए चाय लेकर आई, तो मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा- किरण तुम कितना काम करती हो, कभी मेरे पास बैठ भी लिया करो।
और उसको तख्त पर बैठा दिया, वो मेरे से नजरें नहीं मिला रही थी।

बोली- बाबू अबहीं तुम का करत रहे?

मैं- मकान का काम देख रहा था।

बोली- नाहीं, बाबू तुम इहाँ थे किबाड़ के छिददा से म्हारे को नहाती देखि है तुमने?

मेरी योजना सफल हो रही थी।

मैंने कहा- वो तो मैं यहाँ आया था कुछ काम से, तो तुम्हारी चूड़ियों की आवाज सुनकर देखने लगा था। किरण तुम बहुत सुन्दर हो। तुम्हारा सारा शरीर, तुम्हारे ये जुबना।

मैंने सीने को देखते हुए कहा- बहुत सुन्दर हैं। मैंने पहली बार इतने सुन्दर स्तन और शरीर देखा है।

फिर उसे मौका दिए बिना ही कहा- एक बात पूछुं? तुम ब्लाउज के अन्दर कुछ नहीं पहनती हो। और तुम्हारे नीचे के बाल भी नहीं बनाती हो कितने बड़े हो गए। ऐसे में तो तुम्हें बीमारी लग सकती है।
फिर उसे हेयर रिमूवर के बारे में भी बता डाला।

वो शर्मा गई बोली- ऊ का है बाबू हमार गांव मा इ सब जादा नाहि चलत है।

मैंने कहा- मैं लाकर दे दूँगा।

किरण- नाहि बाबू हम नाहि ले सकत।

“ठीक है बाल साफ करने की दवाई मैं ला दूँगा। तो तुम खुद बाल साफ कर लेना।” उसकी जाँघ को सहलाते हुए कहा।

वो मेरी नियत को समझ रही थी, उसने मेरा हाथ जाँघ से हटा दिया। वो खाली प्याला लेकर चली गई।

कुछ दिनों पहले हरिया को एक मोबाईल भी खरीदकर दे दिया था। ताकि वो हमेशा संपर्क में रहे।

अगले दिन साईट पर गया। मकान का काम देखते-देखते कमरे में चला गया। बाहर का दरवाजा लगा लिया, फिर आँगन तरफ के दरवाजे की झिरी से देखा। किरण कपड़े धो रही थी।

मैंने वो दरवाजा खोला तो किरण मेरी तरफ देखने लगी। मैंने डिब्बी देते हुए कहा- नहाने से पहले इसमें से दवाई लेकर अपने नीचे और कांख के अनचाहे बालों पर लगाकर थोड़ी देर बाद धो लेना। वहाँ के सारे बाल निकल जायेंगे।

फिर दरवाजा बंद करके कमरे में आ गया। किरण ने शायद कल ही मेरे दरवाजे के बाहर कपड़े सुखाने की डोरी बांध दी थी। कपड़े धोकर उस डोरी पर सुखाने डाल दिए। अब मुझे आँगन का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

बस उसके नहाने का मजा उसकी चूड़ियों की खनखनाहट से महसूस कर रहा था कि अभी वो किस अंग को मल कर नहा रही है।

दोपहर को किरण चाय के साथ वो डिब्बी भी ले आई हँसते हुए बोली- बाबू इ तुम्हार जादू की डब्बी रख लो।
मैं- क्यों लगाया नहीं तुमने? कोई परेशानी हुई क्या?
किरण- नाहि इ तो कमाल की है ! इ से तो बाल बिल्कुल सफाचट हो गए।
मैंने कहा- इसे तुम ही रख लो फिर काम आएगी। कहते हुए उसे अपनी और खींचना चाहा तो वो बिना एतराज किए हाथ छुड़ाकर भाग गई।

मुझे उम्मीद हो चली थी कि बहुत जल्द कुछ न कुछ कर गुजरूँगा क्योंकि उसने मनाही जैसी भी कोई बात नहीं की थी।

कहानी जारी रहेगी।

अपने विचार इस पते पर पोस्ट करें !

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category Office Sex or similar stories about

You may also like these sex stories

Comments

Scroll To Top