काम-देवियों की चूत चुदाई-5
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अब तक मैंने उसका साड़ी का पल्लू गिराकर उसके स्तनों पर कब्ज़ा कर लिया था। उन्हें पीछे से पकड़कर मसलने में अनुपम सुख मिलने लगा।
मेरे लंड की हालत बिगड़ने लगी। वो खड़ा होकर लीना के नितम्बों को मेरी कमर से दूर धकेल रहा था।
उसकी सिसकी छूटने लगी “स्सस्सस्स… सर… ये…क्या कर रहे हो… प्लीस्स्स छोड़ दो न…”
अब किसी तरह जल्दी से जल्दी उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसे चोद लेना चाहते था। क्योंकि अभी वो गर्मी पर है। अभी चोद लिया तो चुद जाएगी और आगे के लिए तो रास्ता भी खुल ही जाएगा।
चुदाई के दौरान की जाने वाली मौज-मस्ती को बाद में जब मौका मिलेगा, तब कर लूँगा। ये सोच कर मैंने उसे उठा कर पलंग पर लिटा दिया।
उसके ऊपर सवार होकर चुम्बनों की बौछार उसके लाल होते गालों पर, पसीने से भीगे ललाट, थरथराते रसीले होंठ, कान और गले पर बिना रुके चूम डाला।
साँसों के उतार-चढ़ाव के साथ ऊपर-नीचे होते, उसके भरे-पूरे स्तनों को सहलाते हुए, उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए। फिर ब्रा के ऊपर से ही उसके बड़े-बड़े चूचे, जो अब और भी फूलकर कड़क हो रहे थे, को सहलाते हुए चूमने लगा।
उसकी कामुक सिसकियाँ उसके मुख से निकलने लगी “स्स्स्स…ओह्ह्ह…ओ…” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
फिर उसकी नाभि को चूमते हुए, उसके मोटे मोटे नितम्बों को मसल डाला। और उसकी साड़ी को उठाकर कमर तक ले आया। उसने लाल रंग की पैन्टी पहनी हुई थी। जो योनिरस से बहुत गीली हो चुकी थी।
मैंने उसे निकालना चाहा तो लीना मेरे हाथ पकड़ने लगी बोली- यह ठीक नहीं है ! ओह्ह… रोनी जी… मुझे छोड़ दो न…प्लीज़्ज़…
मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसकी पैन्टी को निकालकर, उसी पैन्टी से उसकी गीली हो चुकी बुर को पोंछ दिया। फिर उसकी टाँगों को फैलाकर उसकी बुर को देखा जो बिल्कुल चिकनी शेव की हुई थी।
शायद अपनी सालगिरह से पहले ही अपने पति के लिए चिकना किया होगा।
उसके बड़ी किसमिस जैसे क्लैटोरिस के दाने को अंगुली से सहलाते हुए अपने होंठों से बुर को किस करते हुए अपनी जीभ से उसकी बुर को सहलाने लगा।
वो “आह्ह…ओह्ह्ह…” करते हुए मचलने लगी।
मेरे हाथ उसके पुष्ट नितम्बों को सहलाते हुए मसल रहे थे।
अब लीना पूरी मस्ती में आ चुकी थी। दूधिया चिकनी सुडौल जाँघों को सहलाते हुए जाँघो पर भी दांत गडाते हुए पप्पी ले ली।
अब लीना मेरे सर को पकड़ कर अपने ऊपर खींचने का जतन कर रही थी। मैंने अपने पैन्ट और जाँघिया को फुर्ती से निकाल कर एक ओर रख दिया।
मेरा तन्नाया लंड बड़ा बेसब्र हो रहा था। उसमें से प्री-कम रस की बूँदें बाहर आने लगी थीं। मुझे इस अवस्था में देख लीना ने एक हाथ से अपना चेहरा ढक लिया!
मैं उसकी टाँगों के बीच में आ गया और उसकी टाँगो को फैलाकर, एक हाथ से अपने लंड को पकड़ उसकी योनि पर फिराते हुए, उसे योनिरस से गीला करके उसे योनिद्वार का रास्ता दिखा कर अन्दर ठेल दिया।
अभी आधा भी अन्दर नहीं गया था कि लीना चीख पड़ी- ओ..माँ… आआअ… धीरे करो… दुखता है…
उसकी चूत तो उम्मीद से ज्यादा कसी हुई थी, जैसे रोज लंड न लेती हो। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रखकर उन्हें चूसने लगा, धीरे-धीरे लंड पर दबाब बनाते हुए उसे अन्दर करता जा रहा था।
अब उसने अपने पैरों को ढीला छोड़ दिया। तो मैंने धक्के लगाना चालू कर दिए।
उसकी कामुकता से सराबोर सिस्कारियाँ बढ़ रही थीं ‘स्स्स्स…आह्ह्ह…’ करते हुए अपनी कमर को उछालते हुए धक्के से धक्का को मिलाते हुए कुछ ही क्षणों में वो झड़ गई और मुझ से लिपट गई, अपनी टाँगों को मेरी कमर से लपेट लिया।
अब उसकी चूत बहुत गीली हो गई थी। जैसे ही उसने पैरों को ढीला किया, मैंने फिर लंड पेलना शुरू कर दिया। बड़े ही सरलता से लंड अन्दर-बाहर होने लगा, तो मैंने उसकी टाँगों को अपने कंधे पर रखकर धक्के लगाने शुरू किए।
धक्कों के साथ-साथ उसके स्तन मर्दन करते हुए उन्हें चूमता जा रहा था। उसके स्तनाग्र बहुत छोटे थे जिन्हें होंठों से दबाकर जीभ से सहलाने में लीना को बहुत उत्तेजना मिल रही थी।
“ओह्ह…जोर्रर…से ..स्स्स्स…हाँ…और…क..करो…न…”
फिर गति बढ़ाते हुए जो लंड पेलाई की तो पांच मिनट में ही मेरा वीर्य बाहर निकलने को आमादा हो गया। जो तीव्र गति से निकलता हुआ सीधा लीना की चूत में समाने लगा।
लीना भी दोबारा स्खलित हो गई- ओह्ह्ह्ह.. रो ..नी…आआअ…स्स्स्स…
योनी का संकुचन और लंड से निकलता वीर्य गजब अहसास था दोनों ही दुनिया-जहान से बेखबर एक दूसरे में समां गए थे।
दो-तीन मिनट बाद मैं उठ गया। उसके बाद एक कपड़े से मैंने अपने लंड को पोंछकर, लीना की चूत से बहती धार को भी पोंछ दिया। फिर दोनों अपने-अपने कपड़े पहनने लगे।
लीना अपनी ढीली साड़ी को फिर से बांध रही थी। मैं अपने कपड़े पहन कर ऑफिस में आ गया। काफी देर बाद भी लीना नहीं आई तो मैंने जाकर देखा वो नजरें झुकाए पलंग पर बैठी थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो नारी सुलभ आँसू बहाते हुए कहने लगी- यह अच्छा नहीं हुआ।
मैंने कहा- देखो लीना, यह वक्त की जरुरत थी। जो हुआ, जैसा कि कहानी को पढ़कर दोनों की हालत थी, यह उसका परिणाम था। जो हुआ उसे भूल जाओ, अगर तुम्हें पसंद नहीं तो अब दोबारा कभी नहीं करूँगा।
मैं उसे बाहर ऑफिस वाले कमरे में ले आया। उसके मन की टोह लेने के लिए मैंने कहा- लीना तुम्हें अच्छा नहीं लगा, मजा नहीं आया क्या?
तो लीना ने कहा- ऐसी बात नहीं है। मजा तो आया पर मुझे बहकना नहीं चाहिए था।
वो मुझसे नजरें नहीं मिला रही थी।
मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा- लीना तुम्हारे साथ आज मुझे बहुत आनंद मिला। तुम्हारा बदन फ़िल्मी अभिनेत्रियों की तरह बहुत ही सेक्सी है। कितने अच्छे बड़े-बड़े स्तन हैं तुम्हारे, तुम्हारी जाँघें तो बिल्कुल मक्खन जैसे सफ़ेद चिकनी हैं। और तुम्हारी वो तो (उसकी चूत की और इशारा करके) बहुत ही कसी हुई है। किसी कुंवारी लड़की की तरह। क्या तुम अपने पति के साथ रोज सम्भोग नहीं करती?
तो उसने कुछ नहीं कहा चुपचाप सुनती रही लेकिन अब वो सामान्य होती जा रही थी।
फिर शाम तक मेरे से बातें करती रही उसने यह भी बताया कि मेरे पति का लंड इतना मोटा नहीं है इसलिए आपने जब अन्दर डाला तो मुझे दर्द हो रहा था।
अब तो खुलकर बातें हो रही थी मैं समझ गया की जल्दी ही फिर दोबारा मौका मिलेगा।
फिर छह बजे वो मुस्कुराते हुए चली गई। मुझे लगा कि आज मेरी ख्वाहिश पूरी हो गई है तो कुछ पार्टी तो बनती है न।
मैंने छोटू को फोन लगा कर बुलाया फिर उससे वोदका का अद्धा और चखना मंगवा कर वहीं बैठ चुस्कियाँ लेने लगा।
इसके कई बार उसके साथ बात करते हुए मैंने उसे गिफ्ट में दी हुई ब्रा पैन्टी पहन कर आने का आग्रह किया।
जिस दिन वो पहन कर आई मैंने उसे अन्दर वाले कमरे में ले जाकर एक बार दिखाने को कहा।
बड़े अनुनय-विनय के बाद वो राजी हो गई। राजी हो गई मतलब… फिर उसे वही पलंग पर पटक कर खूब रगड़ा।
जब भी मौका मिला, लीना को मैंने अलग-अलग तरीके से जी भरकर चोदा। कभी ऑफिस में, कभी साईट पर ले जाकर चोदा।
उसे भी मोटा लंड डलवाने में मजा आने लगा है। दो बार तो उसके घर पर भी चुदाई की, जब उसका पति शहर से बाहर गया हुआ था।
कहानी जारी रहेगी।
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