काम-देवियों की चूत चुदाई-2
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दूसरे दिन मैंने ऑफिस खोला ही था कि लीना आ पहुँची। वो सलवार सूट पहनकर आई थे, हरे रंग का सूट, उस पर लाल पीले फूल बने हुए थे, बिल्कुल सिम्पल सादे लिबास में उसकी असली खूबसूरती और भी निखरी हुई लग रही थी।
मैंने उसे सारे काम एक बार फिर से समझा कर अपनी साइट पर चल रहे ज्योति मैडम के मकान का काम देखने चला गया !
इस मकान का काम लगभग पूरा हो चुका था, कारीगर अभी टायल्स लगा रहे थे जिन्हें ज्योति मैडम ने चार दिन तक मेरे साथ घूम घूमकर मुश्किल से पसंद किये थे, इस समय वो वहीं मौजूद थी, मेरे को देखते ही चहक उठी- रोनी जी, टायल्स अच्छे लग रहे हैं न? मेरी पसंद सही है या नहीं?
मैंने कहा- मैडम, आपकी पसंद तो लाजवाब है।
बोली- ऊपर वाले बाथरूम के लिए कुछ विशेष टायल्स के लिए लेनी हैं, आइये, हम बताते हैं।
मैं उनके पीछे हो लिया, ऊपरी मंजिल का काम पूरा हो चुका था, वहाँ कोई था भी नहीं, फिर उसने चारों ओर एक बार देखा एक कमरे में मेरे को ले जाकर मुझसे लिपट कर मुझे चूमने लगी।
बोली- आजकल तो जनाब को मेरे लिए बिल्कुल भी समय नहीं है।
मैंने कहा- ऐसा नहीं ज्योति जी, काम पहले जरुरी होता है।
बोली- मेरे मकान का काम समाप्ति पर है। रंग-रोगन के बाद तो आपका आना भी बंद हो जायेगा। तुम मेरे घर कब आ रहे हो?
मैंने लोहा गर्म देख कर चोट कर दी।
फ़ौरन कहा- मैडम मेरे कारीगरों को उनकी मजदूरी चुकाना है, जितना सामान इस काम के लिए भाड़े पर लिया था उन सबका किराया भुगतान करना है। आप मेरा पेमेंट जब करोगी, मैं उस दिन आ जाऊँगा।
तुरंत बोली- कल ही 12 बजे आकर ले लो। आपका पेमेंट साहब ने चार दिन पहले ही मेरे पास भिजवा दिया था।
मैं समझ गया कि ‘गर्म लोहे पर तो चोट ज्योति मैडम ने किया है रोनी तू तो गया…!’
दूसरे दिन मैं 11 बजे ऑफिस पहुँच गया। मुझे ज्योति के घर पेमेंट लेने जाना था। मुझे मालूम था कि आज ज्योति मुझ को छोड़ने वाली नहीं है।
उसके मकान के निर्माण में 6 माह का समय लग गया था। इन छह माह में तीन बार उसकी जवानी का रस जी भरकर पिया था।
थोड़ी ही देर बाद लीना भी आ गई। क्रीम रंग की प्रिंट वाली साड़ी में उसके रूप-लावण्य को देख कर ठगा सा रह गया। उसके ब्लाउज में से उसके बड़े-बड़े उरोज को कवर किये हुए उसकी सफ़ेद ब्रा दिख रही थी।
ज्योति के ख्यालों में खोया था तो शराफत का चोला पहनते हुए मैंने कहा- लीना, जरा रजिस्टर उठाकर देखो कि ज्योति मैडम का कितना अमाउंट बाकी लेना बनता है? और उनके दिए सारे भुगतानों का डिटेल डेट बाई डेट एक पेपर पर लिखकर दो। मुझे आज उसने पेमेंट घर आकर लेने के लिए बुलाया है।
डिटेल के कागज लेकर मैं ज्योति के घर पहुँचा, सोचा इस समय तो उसके बच्चे स्कूल में होंगे।
जैसे ही ज्योति ने दरवाजा खोला उसे देख मेरे आँखे खुली की खुली रह गईं, उसने काले रंग का गाउन पहन रखा था। चेहरे को चमकाकर सुर्ख लिपस्टिक लगाई हुई थी, बाल खुले हुए गाउन के नीचे काली ब्रा जो बड़े-बड़े चुच्चे की गोलाई आधे से ज्यादा ढकने में नाकाम थी। नीचे काली पैन्टी पहनी हुई थी, जिसके नीचे दूधिया जाँघे चिकनी-चिकनी दिखाई दे रही थीं।
मेरे लंड ने सलामी देना शुरू कर दिया। दरवाजा बंद करके ज्योति ने परदे भी लगा दिए और एक झटके में गाउन को निकाल फेंका।
उसका 34-30-36 के फिगर वाला बदन मेरी आँखों के सामने था। सारा बदन संगमरमर की तरह चिकना और गोरा था। एक भी दाग उसके जिस्म पर दिखाई नहीं दिया मुझे। मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपने पास खींचकर उसे अपने आलिंगन में ले लिया।
“अह्ह्ह… रोनी…आआअ ….आ ..जाओ न ..”
ऐसा नहीं था कि पहली बार उसके साथ ये सब कर रहा था, परन्तु आज वो कुछ ज्यादा ही उन्मुक्त हो कर वासना से भरी हुई थी। उसने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए। मुझे पलंग पर गिराकर मेरे ऊपर सवार हो गई। मेरे सारे बदन को चूमने-चाटने लगी। उसकी सांसें प्रतिपल तेज और तेज होती जा रही थीं।
“ओह्ह्ह …….”
अंत में मेरे लंड का पकड़कर चूमते हुए सहलाने लगी मैंने भी उसकी ब्रा-पैन्टी को निकालकर उसकी चिकनी गुलाबी बुर पर प्यार से हाथ फिराते हुए, बुर में अंगुली को डाल दिया। अंगूठे से उसके शिश्निका को सहलाते हुए अंगुल-चोदन शुरू कर दिया।
वो सिस्कारियों के साथ मेरे लौड़े पर जीभ फेरते हुए चूमने लगी, कभी चूस भी लेती थी।
जन्नत का मजा दोनों को आ रहा था फिर वो मेरी कमर पर आ गई। लौड़े को अपनी गीली बुर पर टिकाकर अपनी गांड का दबाब बनाते हुए लौड़े को अपनी बुर में घुसा लिया।
“ओह्ह… रोनी… कितना मजा आ रहा है आह्ह्ह… स्स्स्स !” करते हुए वो लंड को अपनी बुर में सटासट अन्दर बाहर करते हुए मेरे ऊपर झुक गई।
मैं उसके रसीले संतरे जैसे बूब्स को अपने हाथों से मसलते हुए निप्पल को चूसते हुए, दांतों से मसल भी देता। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो शिखर पर पहुँच कर झड़ने लगी मुझ से कस कर लिपट गई। मैंने उसके मांसल नितम्बों को सहलाते हुए उसके होंठों को चूस लिया।
उसे चित्त लेटाकर उसके टाँगों को अपने कंधे पर रखकर ठाप लगाना शुरू किया फिर स्पीड बढ़ाते हुए चुदाई की मंजिल पर पहुँचकर उसकी चूत को अपने वीर्य से लबालब कर दिया।
दोनों ही हांफते हुए अपनी धड़कनों पर काबू करने का प्रयास कर रहे थे। फिर ज्योति ने मुझे चूमा और अपने कपड़े उठाकर नहानी में चली गई। मैंने भी अपने को साफ करके कपड़े पहन लिए।
फिर ज्योति को अपने साथ लाये कागज पर लिखा हिसाब बताया मेरे बताये अनुसार उसने मेरा पूरा भुगतान कर दिया।
अगले दस दिन बाद उनके पति आ गए। इसी दौरान उनके मकान का पूरा काम होने के बाद उन्हें मकान की चाभी सौंप दी, फिर आज तक कभी भी ज्योति से मुलाकात नहीं हुई। हाँ कभी-कभी वो फोन लगाती थी, अब फोन भी नहीं आते उसके। मैं भी फोन लगाकर डिस्टर्ब करना नहीं चाहता उसे।
आप सोच रहे होंगे ये ज्योति कौन है? मेरे से कैसे मिली तो आपको उसकी कहानी का फ़्लैश-बैक भी बता देता हूँ।
मुझसे उसके पति की मुलाकात 6 माह पहले हुई। वो अपने शहर से बाहर पूना में किसी कम्पनी में जॉब करता है। उसका वहाँ एक साल का जॉब का कांट्रेक्ट है।
वो अपने पुराने मकान को तोड़कर नया मकान बनवाना चाहता है, फिर एक साल बाद वो यहीं शिफ्ट हो जायेगा। उसने यह ठेका मुझे दे दिया।
बोले- मैं 20-25 दिन में यहाँ आ पाता हूँ, इसलिए इस काम को मेरी पत्नी ज्योति देखती रहेगी। आपके सारे पेमेंट आपको समय समय पर मिलते रहेंगे। फिर वो अपना पूरे मकान का प्लान वाला नक्शा देकर पूना चले गए।
मैंने काम शुरू कर दिया। अक्सर ज्योति साईट पर काम देखने आती थी। मुझ से बात करते हुए मुस्कुराती रहती थी, जैसे मुझ पर फ़िदा हो रही हो पर पड़ी लिखी महिला होने के नाते मैं इसे गंभीरता से नहीं लेता था।
फिर जब मैं अपने ऑफिस के लिए वहाँ से वापस आता तो मुझसे लिफ्ट ले लेती थी। मैं उसके बदन की महक करीब से महसूस करता तो मेरा तो लिंग मचलने लगता था। पर अपने लंड को ये समझाकर कि ज्योति ऐसी-वैसी नहीं है, शांत कर देता था।
तीन माह बाद एक बार साईट पर काम बंद था ज्योति ने किचन के बारे में समझाने के लिए उसके नव-निर्मित मकान यानि मेरी साईट पर बुलाया।
किचन के बारे में अपना प्लान बताने लगी, अचानक ज्योति का पैर फिसला और पानी के टैंक में गिर गई।
मैंने सहारा देकर उसे पानी बाहर निकाला। वो पूरी भीग गई थी। वो मुझे कसकर पकड़े थी, घबरा भी गई थी। उसका भीगा जिस्म कपड़ों में से नुमाया हो रहा था।
सबसे ज्यादा उसके स्तन और नितम्ब तो मुझ को पागल बना रहे थे। टैंक से निकालते हुए मैंने थोड़ा बहुत उनका स्पर्श करते हुए मजा ले लिया था।
वो बोली- अब क्या करें? मैं घर कैसे जाऊँगी?
मैंने कहा- एक उपाय है। अक्सर साईट पर मेरे कपड़े सीमेंट, मिटटी, पानी से गंदे हो जाते हैं, इसलिए मेरे बेग में एक टी-शर्ट और लोअर रखा रहता है। आप चाहो तो वो पहन लो।
मरता क्या न करता उसने कपड़े लेकर एकांत कोने में जाकर वो पहन कर अपने गीले कपड़े रख लिए। मैं उसे कपड़े बदलता देखना तो चाहता था, पर सोचा अगर वो देख लेगी तो क्या होगा?
मैं अपनी बाइक के पास आकर खड़ा हो गया।
फिर झुंझलाती हुई ज्योति आ गई। अभी भी उसके गीले बालों से पानी की बूँदें टपक रही थीं। उसके लोवर टी-शर्ट को देख स्पष्ट लग रहा था कि उसने ब्रा पैन्टी भी उतार कर कपड़ों में रख लिए है।
मैंने कहा- चलिए आपको घर छोड़ दूँ।
तो वो दोनों तरफ पैर डाल कर पीछे बैठ गई। मैं उसे उसके घर छोड़ कर अपने ऑफिस आ गया और अपने कामों में लग गया।
मैं ज्योति के ख्यालों में खोया सोच रहा था कि ‘आज पहली बार ज्योति बाइक पर दोनों तरफ पैर डालकर बैठ कर मुझसे इतना चिपककर क्यों बैठी थी कि उसकी चूचियों की नोक मेरी पीठ पर चुभ रही थी। शायद ये भी हो सकता है कि इन कपड़ों में अपने आप को असहज महसूस कर रही हो। लोगों की नजरों से बचने के लिए भी ऐसा हो सकता है।’
उसी शाम को ज्योति का फोन आया बोली- ऑफिस बंद करके आप मेरे यहाँ आ सकते हो? आप अपने कपड़े ले जाना और आज मैंने गुलाब-जामुन बनाए हैं, उनको खा कर बताना कैसे बने हैं?
मैं पूरी बात समझ गया कि दाल में काला जरुर है। शाम वहाँ पहुँचा तो समझ गया कि यहाँ तो पूरी दाल ही काली है। जैसे ही ज्योति ने दरवाजा खोला, रोनी की छटी इंद्री जाग उठी।
ज्योति अभी भी उसी लोवर टी-शर्ट को पहने थी यानि रोनी को कपड़ों का धोखा देकर बुलाया गया है। धोखा किस तरह का हो सकता है, इसको जाँचने के लिए मैंने पूछा- दोनों बच्चे दिखाई नहीं दे रहे कहाँ है वे?
ज्योति- बच्चों के मामा आए थे, जिद करके उनके साथ चले गए। उनकी दो दिन की छुट्टी थी, तो मैंने भी मना नहीं किया।
फिर यहाँ वहाँ की बहुत सी बातें होती रहीं। यहाँ तक कि उसने अपने पति को ये इल्जाम भी दे दिया कि इन्हें तो मेरी तो कोई चिंता ही नहीं।
बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि कामदेव के तीर चल चुके हैं। यह मुझसे चुदना चाहती है, तभी तो अकेले में बुलाया।
अब सवाल यह था कि शुरुआत कैसे हो?
ज्योति चाय बनाने का कहकर किचन में चली गई। मैं उसके मटकते नितम्ब देखता रह गया। अब मैं सोचने लगा इसके भरोसे तो शायद सुबह ही हो जाएगी। मुझे ही शुरुआत करना पड़ेगी। कहावत है, जब बात निकलेगी तो दूर तक तो जरूर जाएगी।
ज्योति चाय के साथ नमकीन और गुलाब-जामुन का नाश्ता भी लेकर आ गई।
दोनों ने आमने सामने बैठ कर नाश्ता किया, चाय पीते समय देखा कि टी-शर्ट के ऊपर के बटन खुले जरूर थे, पर हल्का सा उभार के अलावा दिखाई कुछ नहीं दे रहा था।
ज्योति तो ज्यादा से ज्यादा झुक कर दिखाने की कोशिश में थी, पर नाकाम रही।
मैंने उसे छेड़ने के लिए कहा- मैडम आपने कहा था कपड़े ले जाना पर आपने तो इन्हें चेंज ही नहीं किया। अब उतार भी दो तभी तो ले जा सकूँगा।
ज्योति- यहाँ आपके सामने? आप भी न बड़े शरारती हो।
मैं- तो क्या हुआ? ये कपड़े पहने भी तो मेरी आँखों के सामने थे। अब मुझ से क्या पर्दा?
ज्योति हक्की बक्की रह गई वो भागकर अन्दर वाले कमरे में चली गई।
मैं पीछे उसके पास गया तो बोली- आपने सच्ची में मुझ को वहाँ पर कपड़े बदलते समय बेपर्दा देख लिया था?
अगर ज्योति के मन में कोई गलत बात नहीं होती तो वो मेरी इन बातों को सुनकर अब तक मुझ को घर से बाहर निकलने को बोल दिया होता। मगर वो तो शर्म से मुँह छुपा रही थी यानि निःसंदेह लाइन साफ है।
मैं- ज्योति आप बहुत खूबसूरत हो। सच में आपके बड़े-बड़े कसे हुए स्तन मेरे पीठ को बहुत गुदगुदा रहे थे। मैं तो बहुत उत्तेजित हो गया था, कहते हुए अपने कांपते हाथ उसके कंधे पर रख दिए।
जब कोई विरोध नहीं किया उसने, तो लपक कर उसे चूमने लगा और उसके स्तन मसल डाले पीठ और नितम्ब तक सहला दिए।
वो मुझसे लिपट गई, बगैर मेहनत के पेड़ का टूटा फल मेरी गोद में आ गिरा। यह कहावत भी चरितार्थ हो गई थी।
फिर उस दिन रात 11 बजे तक रूककर ज्योति को रगड़कर मसलते हुए दो बार चुदाई की थी।
आते वक्त ज्योति ने एक रहस्य उजागर किया कि मैं खुद जान बूझकर पानी के टैंक में गिर गई थी। अपने गीले कपड़े बदलते हुए बेपर्दा भी हुई थी, पर आपने कोई प्रतिकिया न करके मुझ को अपने घर छोड़ दिया। मैं पति से दूर रहकर ये सब कर गुजरी। मुझे दुःख है कोशिश करुँगी कि अब मैं ऐसा न करुँ।
दूसरी बार उसने मुझ को फिर बुलाया और रोते हुए बताया कि मेरे पति बीस दिनों बाद आज आने वाले थे। मैं बहुत उत्साहित और उत्तेजित थी। बच्चों को मामा के यहाँ भिजवा दिया है फिर अभी उनका फोन आया कि कोई अर्जेंट प्रोजेक्ट के कारण अभी पच्चीस दिन और नहीं आ पाएंगे। प्लीज मेरी मजबूरी को समझो रोनी, कहते हुए मुझसे लिपट कर उसने जो अपने जिस्म के जलवे दिखाए तो रोनी का दिल बाग़ बाग़ हो गया।
जिसके लिए खुद रोनी मौका तलाशता रहता है, वो खुद उसे मिल गया था। उस दिन उसने दिल खोलकर मेरे साथ चुदाई की। वो तो बस रमणिका बन गई थी।
तीसरी बार जब मार्केट से टायल्स खरीदकर लाये फिर उन्हें रखवाने के लिए साईट पर गए। तब वहाँ काम नहीं लगा था। ताला खोलकर टायल्स रखवा दिए।
टेम्पो वाला भाड़ा लेकर चला गया तो मोहतरमा ज्योति जी वासना से भरी सांसें लेती हुई बोली- रोनी, अब तो आपका मेरे मकान का काम समाप्त हो रहा है। ये भी आने वाले हैं, शायद अब मौका नहीं मिल पायेगा। आज आखिरी बार मेरी प्यास बुझा दो।
ऐसी वीरानियों को देख मैं तो खुद उससे यही बात कहने वाला था, पर उसने तो मुझसे पहले ही कहकर मुझे मौका ही नहीं दिया। फिर क्या था, दरवाजे लगाए फिर वही तूफान का प्रचंड वेग आ गया। फिर भूकंप के साथ धमाका हुआ, फिर ज्वालामुखी के लावा बह निकले। तब कहीं जाकर सांसों का तूफान थमा।
इसके बाद की आखिरी मुलाकात आप पहले ही पढ़ चुके हैं।
मेरी असिस्टेंट लीना की चुदाई करने के लिए मैं तड़फ रहा था, पर कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।
अब मेरा ध्यान लीना पर केन्द्रित था। उसकी जवानी तो कपड़ों के ऊपर से ही महसूस करके मेरे तन-बदन में आग सी लग जाती थी।
अब तक उसको नौकरी करते एक माह भी होने वाला था। अब उससे बहुत मजाक कर लेता था। वो भी मुझे अपने दोस्त की तरह एक जवाबदार इन्सान समझते हुए अपनी पर्सनल बातें मुझसे साझा करने लगी थी।
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